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  • 08 Aug 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    दिवस- 28: FDI नीति में हालिया संशोधनों से भारतीय अंतरिक्ष उद्योग किस प्रकार से प्रभावित हुआ है, चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत में अंतरिक्ष क्षेत्र के लिये FDI नीति में हाल ही में किये गए संशोधनों का संक्षेप में परिचय दीजिये।
    • अंतरिक्ष क्षेत्र पर FDI नीति में संशोधनों के प्रभाव का उल्लेख कीजिये।
    • अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रमुख चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
    • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अंतरिक्ष क्षेत्र के लिये प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) नीति में स्वीकृत संशोधन भारत के अंतरिक्ष उद्योग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक परिवर्तनकारी बदलाव को दर्शाते हैं। भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023 के साथ तालमेल बिठाते हुए, ये परिवर्तन निजी क्षेत्र की अधिक भागीदारी को बढ़ावा देकर देश की क्षमता को उजागर करने के लिये डिज़ाइन किये गए हैं।

    मुख्य बिंदु:

    अंतरिक्ष क्षेत्र के लिये FDI नीति में संशोधन

    • 100% FDI की अनुमति:
      • हाल ही में किये गए संशोधनों से भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में 100% तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति मिल गई है। इसका उद्देश्य भारतीय अंतरिक्ष उद्यमों में महत्त्वपूर्ण वैश्विक निवेश आकर्षित करना, उनकी वित्तीय ताकत और तकनीकी उन्नति को बढ़ाना है।
    • उदारीकृत प्रवेश मार्ग:
      • स्वचालित मार्ग के अंतर्गत 74% तक FDI:
        • उपग्रह निर्माण और संचालन, उपग्रह डेटा उत्पाद तथा भू-क्षेत्र और उपयोगकर्त्ता क्षेत्रों जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में 74% तक विदेशी निवेश की स्वतः अनुमति है। यह नीति विदेशी निवेशकों के लिये आसान प्रवेश की सुविधा प्रदान करती है और इन महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में विकास का समर्थन करती है।
      • 74% से अधिक FDI:
        • इन क्षेत्रों में 74% से अधिक निवेश के लिये सरकारी अनुमोदन की आवश्यकता होगी, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि बड़े विदेशी शेयर नियामक जाँच के अधीन हों तथा राष्ट्रीय हितों के साथ संरेखित हों।
      • स्वचालित मार्ग के अंतर्गत 49% तक FDI:
        • प्रक्षेपण यान, संबंधित प्रणालियाँ या उप प्रणालियाँ तथा अंतरिक्ष बंदरगाहों के निर्माण जैसे क्षेत्रों में 49% तक विदेशी निवेश की स्वतः अनुमति है। इस उदारीकरण का उद्देश्य आधारभूत अंतरिक्ष अवसंरचना में अंतर्राष्ट्रीय पूंजी और विशेषज्ञता को आकर्षित करना है।
          • इन क्षेत्रों में 49% से अधिक निवेश के लिये पूर्व सरकारी अनुमोदन, नियामक निगरानी और रणनीतिक हितों की सुरक्षा की आवश्यकता होगी।
      • स्वचालित मार्ग के अंतर्गत 100% तक FDI:
        • उपग्रह घटकों और प्रणालियों के निर्माण में तथा भूमि एवं उपयोगकर्त्ता खंडों में 100% तक विदेशी स्वामित्त्व की अनुमति देता है। इस प्रावधान का उद्देश्य अंतरिक्ष क्षेत्र के भीतर आवश्यक विनिर्माण और सहायक कार्यों में विदेशी निवेश को बढ़ावा देना है।

    भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र पर FDI नीति संशोधन का प्रभाव

    • निवेश प्रवाह में वृद्धि:
      • स्वचालित मार्ग के तहत 100% तक FDI की अनुमति से भारतीय अंतरिक्ष कंपनियों में पर्याप्त वैश्विक निवेश आकर्षित होने की उम्मीद है। पूंजी का यह प्रवाह इस क्षेत्र के वित्तीय संसाधनों को बढ़ाएगा, जिससे अधिक नवाचार और विकास संभव होगा।
    • निजी क्षेत्र की सहभागिता:
      • उपग्रह निर्माण और प्रक्षेपण यान विकास सहित विभिन्न अंतरिक्ष गतिविधियों में विदेशी निवेश को सुविधाजनक बनाकर, निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देगी। इससे प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि होगी, दक्षता में सुधार होगा और तकनीकी प्रगति में तेज़ी आएगी।
    • मज़बूत तकनीकी क्षमताएँ:
      • नीति के उदारीकृत प्रवेश मार्ग विदेशी संस्थाओं को उन्नत प्रौद्योगिकी और प्रणालियों में योगदान करने में सक्षम बनाएंगे। यह सहयोग भारत की तकनीकी क्षमताओं को मज़बूत करेगा, जिससे अंतरिक्ष अवसंरचना और मिशन क्षमताओं में सुधार होगा।
    • अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के विकास को बढ़ावा:
      • बढ़े हुए विदेशी निवेश से वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत की हिस्सेदारी में उल्लेखनीय वृद्धि होने की उम्मीद है। नीति का उद्देश्य भारत के योगदान को 2% से कम से बढ़ाकर 10% करना है, जिससे देश को अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष क्षेत्र में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थान मिलेगा।
    • अंतरिक्ष अवसंरचना का विकास:
      • नए अवसंरचना में निवेश करने के लिये निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करने से, स्पेसपोर्ट, उपग्रह निर्माण सुविधाओं और सहायक प्रणालियों का विकास तेज़ी से होगा। यह अवसंरचना विकास राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों अंतरिक्ष मिशनों का समर्थन करेगा।
    • रणनीतिक और वाणिज्यिक लाभ:
      • FDI के प्रवाह से अंतरिक्ष अन्वेषण और वाणिज्यिक अवसरों में भारत की रणनीतिक स्थिति मज़बूत होगी। वैश्विक खिलाड़ियों के साथ बढ़े हुए निवेश और सहयोग से अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता तथा नेतृत्व बढ़ेगा।

    भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रमुख चुनौतियाँ:

    • बजट और निवेश बाधाएँ:
      • अन्य प्रमुख अंतरिक्ष-यात्रा करने वाले देशों की तुलना में मामूली बजट (GDP का 0.05%) पर कार्य करता है।
      • अंतरिक्ष निर्माण और व्यवसायीकरण में सीमित उपस्थिति, भारतीय निवेशक सुरक्षित निवेश के लिये प्राथमिकता दिखा रहे हैं।
    • तकनीकी और परिचालन चुनौतियाँ:
      • महत्त्वपूर्ण घटकों और प्रौद्योगिकी के लिये पश्चिमी देशों पर निर्भर करता है।
      • अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण, जीवन रक्षक प्रणाली और वैश्विक अंतरिक्ष बाज़ारों में प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त बनाए रखने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • नीति, कानून और अंतरिक्ष मलबा:
      • भारतीय अंतरिक्ष नीति, 2023 में देरी के साथ व्यापक और समय पर अंतरिक्ष नीतियों तथा कानून की आवश्यकता है।
      • अंतरिक्ष मलबे के प्रबंधन के लिये प्रभावी रणनीतियों और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है।
    • भू-राजनीतिक और बाज़ार की गतिशीलता:
      • चीन के प्रभाव के लिये एक रणनीतिक जवाब के रूप में आर्टेमिस समझौते में भागीदारी।
      • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता बनाए रखने के लिये नवाचार, लागत-प्रभावशीलता और बाज़ार तक पहुँच की आवश्यकता।
    • अंतरिक्ष अनुप्रयोग और सार्वजनिक सहभागिता:
      • कृषि और आपदा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों के साथ अंतरिक्ष अनुप्रयोगों को एकीकृत करना।
      • भविष्य की उन्नति के लिये अंतरिक्ष विज्ञान में सार्वजनिक जागरूकता को बढ़ावा देना।

    निष्कर्ष:

    भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र के लिये हाल ही में किये गए FDI नीति संशोधनों को महत्त्वपूर्ण वैश्विक निवेश और विशेषज्ञता को आकर्षित करने के लिये डिज़ाइन किया गया है, जिससे अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत की भूमिका को बढ़ावा मिलेगा। 100% तक विदेशी स्वामित्व की अनुमति देना और अंतरिक्ष गतिविधियों के लिये प्रवेश मार्गों को आसान बनाना तकनीकी क्षमताओं को बढ़ाने, निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने तथा भारत के वैश्विक अंतरिक्ष हिस्से का विस्तार करने के लिये तैयार है। जबकि ये परिवर्तन पर्याप्त विकास और नवाचार का समर्थन करते हैं, एकाधिकार से बचने तथा सतत् विकास सुनिश्चित करने के लिये प्रभावी नियामक निगरानी आवश्यक होगी।

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