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07 Aug 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 3
अर्थव्यवस्था
दिवस-27: भारत में कृषि उत्पादों के विपणन की अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम प्रक्रियाओं में आने वाली प्राथमिक चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में कृषि विपणन प्रणाली का संक्षिप्त में परिचय दीजिये।
- भारत में कृषि उत्पादों के विपणन की अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम प्रक्रियाओं में आने वाली प्राथमिक चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
- इन चुनौतियों से निपटने के लिये सुधार सुझाइये।
- उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
भारत में कृषि विपणन प्रणाली एक जटिल प्रणाली है जो किसानों से उपभोक्ताओं तक कृषि उत्पादों के वितरण की सुविधा प्रदान करती है। इसमें कृषि वस्तुओं की बिक्री, परिवहन, प्रसंस्करण और भंडारण सहित विभिन्न गतिविधियाँ शामिल हैं। किसानों की आय को अधिकतम करने और उपभोक्ताओं को भोजन की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये कृषि उत्पादों का प्रभावी विपणन आवश्यक है। हालाँकि, कृषि उत्पादों के विपणन में अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम दोनों प्रक्रियाओं को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जो उनकी दक्षता और लाभप्रदता में बाधा डालती हैं।
मुख्य बिंदु:
अपस्ट्रीम चुनौतियाँ
- अभिगम्यता:
- किसानों को अक्सर बीज, उर्वरक और कीटनाशकों जैसे गुणवत्तापूर्ण कृषि इनपुट तक पहुँचने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। कई छोटे किसान इन इनपुट को वहन करने के लिये संघर्ष करते हैं, जिससे उत्पादन और बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा कम हो जाती है।
- आपूर्ति शृंखला की अकुशलताएँ:
- आपूर्ति शृंखला में अक्षमता, जिसमें खराब परिवहन और अपर्याप्त भंडारण सुविधाएँ शामिल हैं, किसानों को इनपुट डिलीवरी में देरी का कारण बनती हैं। इससे समय पर फसल बोने और काटने की उनकी क्षमता प्रभावित होती है, जिससे अंततः उत्पादन प्रभावित होता है।
- वित्तीय बाधाएँ:
- ऋण और वित्तीय सेवाओं तक सीमित पहुँच किसानों के लिये एक महत्त्वपूर्ण बाधा है। बहुत से किसान अनौपचारिक ऋण स्रोतों पर निर्भर हैं, जो अक्सर उच्च ब्याज दर वसूलते हैं, जिससे आवश्यक इनपुट और प्रौद्योगिकी में निवेश करने की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है।
- राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की वर्ष 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, एक किसान परिवार का औसत ऋण लगभग 1 लाख रुपए से अधिक है।
- ज्ञान और कौशल अंतर:
- आधुनिक कृषि पद्धतियों, प्रौद्योगिकियों और बाजार के रुझानों के बारे में किसानों में जागरूकता और ज्ञान की कमी है। यह अंतर उन्हें कुशल कृषि पद्धतियों को अपनाने और बाजार की मांगों को समझने से रोकता है।
- राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) के आँकड़ों के अनुसार, इंटरनेट तक पहुँच में काफी असमानता है, केवल 24% ग्रामीण, जबकि शहरी क्षेत्रों में 66% परिवारों के पास इंटरनेट तक पहुँच है।
डाउनस्ट्रीम चुनौतियाँ
- बाज़ार तक पहुँच:
- किसानों को अक्सर अपने उत्पादों को बाज़ार तक पहुँचाने हेतु संघर्ष करना पड़ता है। भौगोलिक बाधाएँ, परिवहन की कमी और अपर्याप्त बाज़ार बुनियादी ढाँचा उपभोक्ताओं तक प्रभावी ढंग से पहुँचने की उनकी क्षमता में बाधा डालते हैं।
- राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के 77वें संस्करण में परिवारों की भूमि और पशुधन जोत तथा कृषि परिवारों की स्थिति का आकलन सर्वेक्षण में पाया गया है कि अधिकांश भारतीय किसान अपने उत्पादों को स्थानीय बाज़ारों में बेचते हैं।
- मूल्य में उतार-चढ़ाव:
- कृषि उत्पाद मौसमी, मांग-आपूर्ति असंतुलन और बाज़ार संबंधी बाधाएँ जैसे कारकों के कारण मूल्य में अस्थिरता हैं। यह अस्थिरता किसानों को आय के पूर्वानुमान और उसके अनुसार अपने उत्पादन की योजना बनाना चुनौतीपूर्ण बनाती है।
- ईसीए वर्ष 1955 के तहत किसी वस्तु को आवश्यक वस्तु घोषित करके सरकार उस वस्तु के उत्पादन, आपूर्ति और वितरण को नियंत्रित करती है।
- हालाँकि, आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 ने इस बात पर प्रकाश डाला कि ईसीए 1955 के तहत सरकारी हस्तक्षेप ने अक्सर कृषि व्यापार को विकृत कर दिया, जबकि मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने में पूरी तरह से अप्रभावी रहा है।
- बुनियादी ढाँचे का अभाव:
- कोल्ड स्टोरेज, परिवहन सुविधाओं और प्रसंस्करण इकाइयों जैसे बुनियादी ढाँचे की अपर्याप्तता, कृषि उत्पादों के कुशल विपणन में बाधा डालती है। खराब बुनियादी ढाँचे के कारण फसल कटाई के बाद नुकसान बढ़ता है तथा उत्पादों की गुणवत्ता कम होती है।
- भारत में आपूर्ति शृंखला के अप्रभावी तथा अकुशल कटाई के बाद के चरणों के कारण प्रत्येक वर्ष कुल उत्पादन का लगभग 33.1% बर्बाद हो जाता है।
- बिचौलिये:
- आपूर्ति शृंखला में बिचौलिये और कमीशन एजेंट अक्सर किसानों के मुनाफे को कम कर देते है। ये बिचौलिये लाभ का कुछ हिस्सा कमीशन के रूप में ले लेते है, जिससे किसानों को अंतिम बाज़ार मूल्य का केवल एक अंश ही मिल पाता है।
- कृषि उपज बाज़ार समिति (APMC) बाज़ार उच्च मध्यस्थता लागत के साथ एकाधिकारवादी बन गए हैं।
- गुणवत्ता आश्वासन और मानकीकरण:
- उत्पाद की गुणवत्ता और मानकीकरण को बनाए रखना किसानों के लिये एक चुनौती है। गुणवत्ता न होने के कारण किसानों के उत्पादों को बाज़ार में अस्वीकार कर दिया जा सकता है, जिससे वित्तीय नुकसान हो सकता है और उपभोक्ताओं का भरोसा कम हो सकता है।
कृषि विपणन में प्रस्तावित सुधार:
- कृषि बाज़ारों का मानकीकरण:
- यह प्रस्ताव है कि खाद्यान्न, तिलहन और फलों और सब्जियों के लिये पूरे देश में 0.25% या 0.50% का एक समान मंडी शुल्क लगाया जाए।
- APMC में सभी व्यापार खुली नीलामी के माध्यम से होने चाहिये, जिसमें प्रत्येक लॉट के लिये कई खरीदार शामिल हों। ऐसे व्यापार प्रत्यक्ष रूप से खरीदारों और विक्रेताओं के बीच होने चाहिये।
- APMC के पास भंडारण और बैंकिंग सुविधाएँ:
- अगर तत्काल नकदी की जरूरतों को पूरा करने के लिये बैगिंग और भंडारण की सुविधा के साथ-साथ गोदाम रसीदों के आधार पर ऋण उपलब्ध हो तो संकटकालीन बिक्री से बचा जा सकता है। ये APMC के आसपास मौजूद होने चाहिये।
- विपणन में FPO को बढ़ावा देना:
- किसान उत्पादक संगठनों/कंपनियों को अपने सदस्यों की उपज का सीधे बड़े खरीदारों और प्रसंस्करणकर्त्ताओं को विपणन करने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- इससे APMC में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ेगी और बेहतर कीमतें मिलेंगी।
- आवश्यक वस्तु अधिनियम (ECA) को शिथिल/समाप्त करना:
- ECA, उपज की आवाजाही, भंडारण, मूल्य निर्धारण और नई प्रौद्योगिकियों को अपनाने पर प्रतिबंध लगाता है।
- ECA और अन्य विनियमों के तहत इस तरह के नियंत्रणों को खत्म करने से व्यापार का विस्तार होगा और किसानों को बेहतर लाभ मिलेगा।
- “व्यापार करने में आसानी” कृषि के लिये उतनी ही आवश्यक है, जितनी कि अन्य व्यवसायों के लिये।
- बाज़ारों की संख्या बढ़ाएँ:
- अशोक दलवई समिति के अनुसार, भारत को बाज़ार हेतु कम-से-कम 30,000 खेतों की ज़रूरत है, जबकि अभी लगभग 6,500 खेत हैं।
- इस व्यापक अंतर को कम करने के लिये "मिनी-मार्केट" की अवधारणा की आवश्यकता है।
- कृषि तकनीक बाज़ार:
- सरकार ने अखिल भारतीय व्यापार पोर्टल के माध्यम से सभी विनियमित थोक उपज मंडियों को जोड़ने के लिये एक इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (ENAM) बनाया है।
- कृषि तकनीक स्टार्टअप को मूल्य खोज तंत्र के लिये शामिल किया जाना चाहिये, ताकि मूल्य अस्थिरता को नियंत्रित किया जा सके।
निष्कर्ष:
भारत में कृषि बाज़ारों में अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम चुनौतियों का समाधान करने के लिये सरकारी पहल, निजी क्षेत्र की भागीदारी, बुनियादी ढाँचे में निवेश और किसानों के लिये क्षमता निर्माण को शामिल करते हुए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इन रणनीतियों को लागू करके, भारत अपने कृषि बाज़ारों की दक्षता और लाभप्रदता को बढ़ा सकता है, जिससे अंततः किसानों को लाभ होगा तथा राष्ट्र के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होगी।