07 Aug 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | अर्थव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- खाद्य प्रसंस्करण उद्योग और कृषि क्षेत्र में इसकी भूमिका को संक्षेप में परिभाषित करें।
- भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के महत्त्व पर प्रकाश डालिये।
- भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के दायरे पर चर्चा कीजिये।
- भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग से संबंधित कुछ चुनौतियों का उल्लेख कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय :
खाद्य प्रसंस्करण उद्योग कच्चे कृषि उत्पादों को संरक्षण, पैकेजिंग और तैयारी जैसी विभिन्न तकनीकों के माध्यम से मूल्यवर्धित खाद्य पदार्थों में बदलने को संदर्भित करता है। यह उद्योग खराब होने वाले सामानों की शेल्फ लाइफ बढ़ाकर, कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करके और कृषि उपज के समग्र मूल्य में वृद्धि करके कृषि क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हाल ही में, भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र ने लगभग 7.26% की औसत वार्षिक वृद्धि दर (AAGR) हासिल की है, जो इसकी महत्त्वपूर्ण आर्थिक क्षमता को उजागर करती है।
मुख्य बिंदु :
भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का महत्व:
- आर्थिक विकास:
- खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में सकल मूल्य वर्द्धन (जीवीए) 2019-20 में 2.24 लाख करोड़ रुपए था, जो देश में कुल जीवीए का 1.69% योगदान प्रदान करता है। अप्रैल 2014 से मार्च 2023 के दौरान इस क्षेत्र ने 6.185 बिलियन अमेरिकी डॉलर का FDI इक्विटी प्रवाह आकर्षित किया है।
- रोज़गार सृजन:
- खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र संगठित विनिर्माण क्षेत्र में सबसे बड़े रोज़गार प्रदाताओं में से एक है, जिसमें कुल पंजीकृत/संगठित क्षेत्र में 12.22% रोज़गार उपलब्ध है।
- मूल्य संवर्द्धन:
- कच्चे कृषि उत्पादों को मूल्यवर्द्धित वस्तुओं में परिवर्तित करके, उद्योग किसानों और उत्पादकों की आय बढ़ाता है, उनकी आजीविका में सुधार करता है।
- कृषि-निर्यात में प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात की हिस्सेदारी 2014-15 में 13.7% से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 25.6% हो गई है।
- खाद्य सुरक्षा:
- यह क्षेत्र फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने, खाद्यान्न की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करने और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा में योगदान देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के अनुसार, लगभग 6-18% अनाज, 30-40% फल और सब्जियाँ, और 10-12% दाल एवं तिलहन उत्पादन प्रत्येक वर्ष फसल कटाई के बाद नष्ट हो जाती हैं।
भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का दायरा :
- बाज़ार वृद्धि: भारतीय खाद्य प्रसंस्करण बाज़ार वर्ष 2025 तक लगभग ₹12.5 लाख करोड़ तक पहुँचने का अनुमान है, जो बढ़ते शहरीकरण, बढ़ती डिस्पोजेबल आय और बदलती जीवनशैली के कारण है, जो सुविधाजनक खाद्य पदार्थों को बढ़ावा देती है।
- प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ: भारत दूध का सबसे बड़ा उत्पादक है और फलों, सब्जियों, पोल्ट्री मांस के अग्रणी उत्पादकों में से एक है। भारत के पास कई प्राकृतिक संसाधनों तक पहुँच है जो खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ प्रदान करता है।
- प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की बढ़ती माँग: बढ़ती आबादी और स्वस्थ, खाने के लिये तैयार और पैकेज्ड खाद्य पदार्थों की ओर बदलाव के साथ, प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों की माँग बढ़ रही है। इस प्रवृत्ति के जारी रहने की उम्मीद है, जिससे विकास के कई अवसर पैदा होंगे।
- निर्यात क्षमता: खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र भारत की निर्यात आय में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है। वैश्विक खाद्य बाज़ार के लगातार विस्तार के साथ प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात में वृद्धि होने की उम्मीद है।
- ई-कॉमर्स के साथ एकीकरण: ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म का उदय खाद्य प्रसंस्करण कंपनियों को सीधे उपभोक्ताओं तक पहुँचने, बाज़ार पहुँच बढ़ाने और अपने ग्राहक आधार का विस्तार करने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है।
- कृषि-उद्यमिता का विकास: यह क्षेत्र सूक्ष्म और मध्यम उद्यमों (SME) और स्टार्टअप के लिये अवसर प्रदान करके कृषि-उद्यमिता को प्रोत्साहित करता है, जो विशिष्ट बाज़ार की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये नवाचार कर सकते हैं तथा इस प्रकार समग्र क्षेत्र के विकास को बढ़ावा दे सकते हैं।
- स्वास्थ्य और कल्याण रुझान: स्वास्थ्य और कल्याण पर बढ़ते फोकस से जैविक, कार्यात्मक और फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थों की मांग बढ़ रही है। खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र स्वास्थ्य के प्रति जागरूक उपभोक्ताओं की ज़रूरतों को पूरा करने वाले अभिनव उत्पादों को विकसित करके इस प्रवृत्ति का लाभ उठा सकता है।
- खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ:
- कोल्ड चेन और भंडारण की कमी: अपर्याप्त कोल्ड स्टोरेज और परिवहन सुविधाओं के परिणामस्वरूप फसल के बाद खराब होने वाली वस्तुओं की अत्यधिक हानि होती है। इससे न केवल भोजन की गुणवत्ता प्रभावित होती है बल्कि किसानों की आय पर भी असर पड़ता है।
- खंडित आपूर्ति शृंखला: भारत में आपूर्ति शृंखला अत्यधिक खंडित है, जिससे बढ़ी हुई लागत के साथ ही अपर्याप्तता की स्थिति उत्पन्न होती है। खराब सड़क और रेल बुनियादी ढाँचे के परिणामस्वरूप परिवहन में देरी और नुकसान हो सकता है।
- जटिल नियम: खाद्य प्रसंस्करण उद्योग नियमों, लाइसेंस और परमिट के एक जटिल जाल के अधीन है, जिसका समाधान करना व्यवसायों के लिये चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- नियमों के असंगत प्रवर्तन से अनुचित प्रतिस्पर्द्धा और गुणवत्ता संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- खाद्य सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: आपूर्ति शृंखला में अंतराल के कारण खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता मानकों को सुनिश्चित करना एक गंभीर चुनौती बनी हुई है। दूषित या मिलावटी खाद्य उत्पाद सार्वजनिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचा सकते हैं तथा क्षेत्र की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचा सकते हैं।
- अनुसंधान और विकास: अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में सीमित निवेश नवाचार और नए, मूल्य वर्द्धित उत्पादों के विकास मे बाधा उत्पन्न करता है।
- प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत का अनुसंधान और विकास (R&D) व्यय-GDP अनुपात 0.7% है जो कि बहुत कम है और विश्व औसत 1.8% से काफी नीचे है।
निष्कर्ष:
भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र बाज़ार की मांग, सरकारी सहायता और तकनीकी प्रगति से प्रेरित होकर महत्वपूर्ण वृद्धि कर रहा है। नवाचार और स्थिरता को अपनाकर, उद्योग अपनी पूरी क्षमता का दोहन कर सकता है, जिससे आर्थिक विकास, खाद्य सुरक्षा तथा लाखों लोगों के लिये बेहतर आजीविका में योगदान मिल सकता है।