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दिवस- 26: सब्सिडी फसल पद्वति, फसल विविधता एवं किसानों की आर्थिक स्थितियों को कैसे प्रभावित करती है? भारत में किसान-हितैषी एवं पारिस्थितिक रूप से धारणीय उर्वरक सब्सिडी को लागू करने के लिये रणनीतियाँ प्रस्तावित कीजिये। (250 शब्द)

06 Aug 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | अर्थव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण :

  • कृषि क्षेत्र में सब्सिडी की भूमिका का परिचय दीजिये।
  • फसल प्रतिरूप, फसल विविधता और किसानों की आर्थिक स्थितियों को प्रभावित करने में उनके प्रभावों पर प्रकाश डालिये।
  • भारत में किसान-अनुकूल और पारिस्थितिक रूप से सतत् उर्वरक सब्सिडी को लागू करने के लिये रणनीतियाँ का सुझाव दीजिये।
  • उचित रूप से निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

उर्वरक एक प्राकृतिक या कृत्रिम पदार्थ है जिसमें रासायनिक तत्त्व (जैसे- नाइट्रोजन (N), फास्फोरस (P) और पोटेशियम (K)) होते हैं जो पौधों की वृद्धि तथा उत्पादकता में सुधार करते हैं। सरकार उर्वरक उत्पादकों को सब्सिडी प्रदान करती है ताकि किसान बाज़ार से कम कीमत पर उर्वरक खरीद सकें। भारत में उर्वरक की खपत असंतुलित है, तथा अधिकांश फसलों में इस्तेमाल किये जाने वाले नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों में यूरिया का 82% से अधिक हिस्सा है।

मुख्य बिंदु:

फसल प्रतिरूप पर सब्सिडी का प्रभाव

  • प्रमुख फसलों के उत्पादन में वृद्धि: उर्वरकों और उच्च उपज किस्म (HYV) के बीजों पर सब्सिडी के कारण चावल एवं गेंहूँ जैसी प्रमुख फसलों के उत्पादन में वृद्धि हुई है।
    • सब्सिडी से खाद्य उत्पादन में समग्र वृद्धि होती है तथा खाद्य सुरक्षा पहलों को समर्थन मिलता है।
  • मृदा क्षरण: सब्सिडी द्वारा प्रेरित रासायनिक उर्वरकों पर इस अत्यधिक निर्भरता के परिणामस्वरूप मृदा क्षरण और जल प्रदूषण सहित पर्यावरणीय चुनौतियाँ उत्पन्न हुई हैं, जो अंततः फसल की पैदावार में कमी का कारण बनती हैं।
    • नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम (NPK) की खपत का अनुपात वर्ष 2009-10 में 4:3.2:1 से बढ़कर वर्ष 2019-20 में 7:2.8:1 हो गया है।

फसल विविधता पर प्रभाव

  • फसल विविधता में कमी: पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में चावल तथा गेहूँ पर भारी सब्सिडी के कारण अन्य फसलों जैसे बाज़रा, ज्वार तथा दालों के उत्पादन में कमी आई है, जिससे उगाई जाने वाली फसलों की समग्र विविधता कम हो गई है।
  • एकल कृषि पद्धतियाँ: सिंधु-गंगा के मैदानों में चावल और गेंहूँ की खेती की प्रधानता ने एकल कृषि वातावरण का निर्माण किया है जो कीटों, बीमारियों तथा बदलती जलवायु परिस्थितियों के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ा सकता है।

किसानों की आर्थिक स्थिति पर प्रभाव

  • आय में वृद्धि: उर्वरक और बीज सब्सिडी द्वारा समर्थित हरित क्रांति ने गेहूँ तथा चावल के उत्पादन को काफी हद तक बढ़ाया, जिससे पंजाब एवं हरियाणा जैसे राज्यों में किसानों की आय में वृद्धि हुई।
  • कम उत्पादन लागत: सब्सिडी वाले उर्वरक और कीटनाशक उत्पादन की कुल लागत को कम करते हैं, जिससे किसानों, विशेष रूप से छोटे किसानों के लिये लाभ मार्जिन में वृद्धि होती है।
  • बेहतर नकदी प्रवाह: प्रत्यक्ष नकद सब्सिडी और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) किसानों को तत्काल वित्तीय राहत प्रदान करते हैं, जिससे उनके नकदी प्रवाह में सुधार होता है।
  • लाभों का असमान वितरण: सभी किसानों को सब्सिडी से समान रूप से लाभ नहीं मिलता है, जिससे कृषि समुदाय के भीतर आय असमानताएँ देखने को मिलती हैं।
  • कृषि विविधीकरण में सार्वजनिक निवेश में कमी: उर्वरक सब्सिडी पर ध्यान केंद्रित करने से अनुसंधान, विकास और सतत् कृषि पद्धतियों के विस्तार में निवेश कम हो सकता है।
    • वित्त वर्ष 2024 में उर्वरक सब्सिडी 164,000 करोड़ रुपए तय की गई है।

किसान-अनुकूल और पारिस्थितिक रूप से सतत् उर्वरक सब्सिडी के कार्यान्वयन के लिये रणनीतियाँ:

  • विविध सब्सिडी योजनाएँ: फसल विविधता को प्रोत्साहित करने के लिये फसलों की एक विस्तृत शृंखला (जैसे-दालें, बाज़रा, तिलहन) को बढ़ावा देना।
    • कृषि एवं किसान कल्याण विभाग (DAC&FW) राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (CDP) के एक भाग के रूप में वर्ष 2013-14 से फसल विविधीकरण कार्यक्रम (CDP) का क्रियान्वयन कर रहा है, जिसका लक्ष्य विशेष रूप से मूल हरित क्रांति वाले राज्य - हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश हैं।
  • जैविक प्रथाओं को बढ़ावा देना: मृदा स्वास्थ्य को बढ़ाने के लिये जैविक उर्वरकों और सतत् प्रथाओं के लिये सब्सिडी लागू करना।
    • परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) के अंतर्गत क्लस्टर दृष्टिकोण और भागीदारी गारंटी प्रणाली (PGS) प्रमाणीकरण द्वारा जैविक गाँव को अपनाकर जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाता है।
  • क्षमता निर्माण कार्यक्रम: सूचित निर्णय लेने के लिये विविध फसल प्रणालियों और सतत् प्रथाओं पर किसानों को शिक्षित करना।
    • एक राष्ट्र एक उर्वरक (ONOF) योजना का उद्देश्य देश भर में उर्वरक ब्रांडों का मानकीकरण करना, उर्वरकों की उपलब्धता और गुणवत्ता के संबंध में किसानों के भ्रम को दूर करना, लागत कम करना तथा उर्वरकों की उपलब्धता बढ़ाना साथ ही उर्वरकों की देश-भर में आवाजाही को न्यूनतम करके माल ढुलाई सब्सिडी को बचाना है।
  • निगरानी और मूल्यांकन: निरंतर सुधार के लिये किसानों की प्रतिक्रिया को शामिल करते हुए सब्सिडी की प्रभावशीलता का आकलन करने हेतु तंत्र स्थापित करना।
    • एग्री स्टैक का उपयोग यह सुनिश्चित करेगा कि सब्सिडी वाले उर्वरक केवल उन लोगों को बेचे जाए जिन्हें किसान के रूप में पहचाना गया है या किसान द्वारा अधिकृत किया गया है और सब्सिडी वाले उर्वरक की मात्रा भूमि स्वामित्व एवं ज़िले की प्रमुख फसलों जैसे मापदंडों के आधार पर तय की जाती है।

निष्कर्ष :

किसानों की आय दोगुनी करने संबंधी समिति (2018) ने उर्वरक सब्सिडी योजना की समीक्षा करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया ताकि इसे किसानों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से जोड़ा जा सके। भारत की उर्वरक नीति में सुधार के लिये एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जो स्थिरता को बढ़ावा देते हुए किसानों की विविध आवश्यकताओं को पूरा करे। लक्षित सब्सिडी लागू करके, जैविक प्रथाओं को प्रोत्साहित करके, अनुसंधान में निवेश करके और प्रौद्योगिकी का लाभ उठाकर, भारत किसानों एवं पर्यावरण दोनों को लाभान्वित करने वाले एक लचीले तथा उत्पादक कृषि क्षेत्र को बढ़ावा दे सकता है।