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06 Aug 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 3
अर्थव्यवस्था
दिवस- 26: सहकारी समितियाँ भारत में उपज के संग्रहण करने, सौदेबाजी की शक्ति में वृद्धि करने एवं किसानों के लिये बेहतर बाज़ार पहुँच सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण हैं। चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में सहकारी समितियों का संक्षिप्त में परिचय दीजिये।
- चर्चा कीजिये कि सहकारी समितियाँ किस प्रकार उपज को एकत्रित करने, सौदेबाज़ी की शक्ति में वृद्धि करने एवं किसानों के लिये बेहतर बाज़ार पहुँच सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण हैं।
- भारत में सहकारी समिति से संबंधित चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
सहकारी समितियाँ जन-केंद्रित उद्यम हैं जिनका स्वामित्व, नियंत्रण और संचालन उनके सदस्यों द्वारा उनकी सामान्य आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं की प्राप्ति के लिये किया जाता है। कृषि, ऋण, डेयरी, आवास और मत्स्य पालन जैसे विभिन्न क्षेत्रों में 800,000 से अधिक सहकारी समीतियों के साथ भारत का सहकारिता नेटवर्क विश्व के सबसे बड़े नेटवर्कों में से एक है।
मुख्य बिंदु :
भारतीय कृषि में सहकारी समितियों की भूमिका:
- उपज का एकत्रीकरण: सहकारी समितियों की प्राथमिक भूमिकाओं में से एक किसानों की उपज को एकत्र करना है, जिसमें संसाधनों को एकत्रित करना तथा सामूहिक रूप से बड़ी मात्रा में बेचना शामिल है। इस एकत्रीकरण अर्थव्यवस्था को गति मिलती हैं, लेन-देन की लागत कम एवं लाभप्रदता में वृद्धि होती है।
- गुजरात में डेयरी सहकारी संस्था अमूल इस भूमिका का उदाहरण है। लाखों किसानों से दूध एकत्र करके, अमूल ने एक मज़बूत आपूर्ति शृंखला स्थापित की है जो प्रसंस्करण, गुणवत्ता नियंत्रण और विपणन को बढ़ावा देती है। इस सहकारी मॉडल ने किसानों को उनके दूध एवं डेयरी उत्पादों के लिये बेहतर मूल्य प्राप्त करने में सक्षम बनाया है।
- सौदेबाज़ी की शक्ति में वृद्धि: सहकारी समितियाँ व्यक्तिगत रूप से किसानों की सौदेबाज़ी की शक्ति में वृद्धि करती हैं। जब किसान सहकारी समितियों के माध्यम से एकजुट होते हैं, तो वे खरीदारों और व्यापारियों के साथ बेहतर कीमतों पर संवाद कर सकते हैं, जिससे उनकी आय में सुधार होता है।
- देश की सबसे बड़ी सहकारी समितियों में से एक भारतीय किसान उर्वरक सहकारी (इफको) इस बात का उदाहरण है कि सहकारी समितियाँ किस तरह किसानों को सशक्त बनाती हैं। इफको अपने सदस्यों को थोक खरीद के कारण कम कीमतों पर उर्वरक खरीदने और अपने उत्पाद को प्रतिस्पर्द्धा दरों पर बेचने में सक्षम बनाता है, जिससे उनका लाभ मार्जिन बढ़ता है।
- बाज़ार तक पहुँच: सहकारी समितियाँ किसानों को महत्त्वपूर्ण बाज़ार संबंधी जानकारी प्रदान करती हैं, जिसमें वर्तमान मूल्य, मांग के रुझान एवं बाज़ार की स्थितियाँ शामिल हैं। जानकारी तक यह पहुँच किसानों को उनके उत्पाद को कब और कहाँ बेचना है, इस बारे में सूचित निर्णय लेने में सक्षम बनाती है, जिससे उनका मुनाफा अधिकतम एवं नुकसान कम हो।
- भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ: NAFED किसानों को उनकी उपज के सीधे विपणन की सुविधा प्रदान करके उनकी सहायता करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बाज़ार संपर्क बनाकर और उचित मूल्य निर्धारण को बढ़ावा देकर, NAFED यह सुनिश्चित करने में मदद करता है, कि किसानों को उनके प्रयासों के लिये उचित आय मिल सके।
- ऋण तक अधिक पहुँच: प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ अल्पकालिक सहकारी ऋण संरचना के बुनियादी घटक हैं।
- वे किसानों और उच्च वित्तपोषण संस्थानों, जैसे अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों तथा भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई)/राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के बीच महत्त्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करते हैं।
भारत में सहकारी समितियों के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- संचालन और प्रबंधन के मुद्दे:
- सीमित व्यावसायिकता: कई सहकारी समितियों में पेशेवर प्रबंधन संरचनाओं का अभाव है, जो अकुशल संचालन और निर्णायक क्षमता का कारण है।
- राजनीतिक हस्तक्षेप: सहकारी समितियों के कामकाज में राजनीतिक हस्तक्षेप उनकी स्वायत्तता को कमज़ोर करता है और सदस्यों के हितों को प्रभावी ढंग से पूरा करने की उनकी क्षमता को प्रभावित करता है।
- पूंजी और संसाधन बाधाएँ:
- अपर्याप्त फंडिंग: सहकारी समितियाँ प्रायः विस्तार, आधुनिकीकरण और नए उद्यमों के विकास हेतु पर्याप्त पूंजी तक पहुँचने के लिये संघर्ष करती हैं।
- सीमित बुनियादी ढाँचा: उचित भंडारण सुविधाओं, प्रसंस्करण इकाईयों और बाज़ार संबंधों की कमी, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में छोटी सहकारी समितियों की वृद्धि तथा प्रतिस्पर्द्धात्मकता में बाधा बनती है।
- सामाजिक और सांस्कृतिक कारक:
- कम जागरूकता और भागीदारी: संभावित सदस्यों के बीच सहकारी मॉडल और इसके लाभों के बारे में जागरूकता की कमी उनकी भागीदारी को सीमित करती है।
- सामाजिक असमानताएँ: कुछ मामलों में सामाजिक पदानुक्रम और जाति-आधारित विभाजन सहकारी समितियों के भीतर समान भागीदारी एवं प्रतिनिधित्व के लिये बाधाएँ उत्पन्न करते हैं।
निष्कर्ष :
भारत के कृषि क्षेत्र की स्थिरता और सफलता के लिये सहकारी संरचनाओं तथा सहायक नीतियों में निरंतर निवेश महत्त्वपूर्ण है। बहुराज्यीय सहकारी समिति अधिनियम, 2023, अधिक पारदर्शी निर्णय लेने की प्रक्रिया एवं जवाबदेही तंत्र की शुरुआत करके एक सकारात्मक विकास का प्रतिनिधित्व करता है। ये परिवर्तन सहकारी समितियों के प्रबंधन को बढ़ाते हैं। किसानों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करके, सहकारी समितियाँ एक लचीला कृषि पारिस्थितिकी तंत्र बना सकती हैं, जिससे पूरे देश में लाखों किसानों को लाभ होगा।