02 Aug 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | अंतर्राष्ट्रीय संबंध
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का संक्षिप्त में परिचय दीजिये।
- शंघाई सहयोग संगठन के लक्ष्यों और उद्देश्यों पर चर्चा कीजिये।
- भारत के लिये इसके महत्त्व का परीक्षण कीजिये।
- संगठन के प्रमुख मुद्दों की पहचान कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
शंघाई सहयोग संगठन एक स्थायी अंतर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जिसकी स्थापना 15 जून, 2001 को शंघाई (PRC) में हुई थी। वर्ष 2024 में बेलारूस के शामिल होने से पहले, इसके नौ सदस्य थे: भारत, ईरान, कज़ाखस्तान, चीन, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, रूस, ताज़िकिस्तान और उज़्बेकिस्तान। SCO विश्व की लगभग 42% आबादी और वैश्विक GDP का 25% प्रतिनिधित्व करता है।
SCO के लक्ष्य और उद्देश्य:
- सदस्य देशों के बीच आपसी विश्वास, मित्रता और अच्छे पड़ोसी की भावना को मज़बूत करना।
- राजनीति, व्यापार, अर्थव्यवस्था, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, संस्कृति, शिक्षा, ऊर्जा, परिवहन, पर्यटन, पर्यावरण संरक्षण आदि क्षेत्रों में सदस्य देशों के बीच प्रभावी सहयोग को प्रोत्साहित करना।
- क्षेत्र में शांति, सुरक्षा और स्थिरता को संयुक्त रूप से सुनिश्चित करना तथा बनाए रखना एवं एक नई लोकतांत्रिक, निष्पक्ष व तर्कसंगत अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक और आर्थिक अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को बढ़ावा देना।
- शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के अंदर शंघाई भावना को बरकरार रखा गया है, जहाँ इसे आपसी विश्वास, आपसी लाभ, समानता, परामर्श, सभ्यताओं की विविधता के लिये सम्मान और साझा विकास की खोज के रूप में परिभाषित किया गया है। बाहरी तौर पर, यह गुटनिरपेक्षता, अन्य देशों या क्षेत्रों को लक्ष्य न बनाने की विशेषता है।
भारत के लिये SCO का महत्त्व:
- आर्थिक सहयोग:
- SCO भारत को मध्य एशियाई देशों के साथ आर्थिक सहयोग बढ़ाने के लिये एक मंच प्रदान करता है, जिनके पास प्राकृतिक संसाधनों का विशाल भंडार है।
- भारत अपनी आर्थिक साझेदारियों में विविधता लाने के लिये SCO देशों के साथ अपने व्यापार और निवेश संबंधों को बढ़ाने की इच्छा रखता है।
- ऊर्जा सुरक्षा:
- मध्य एशिया में तेल एवं गैस के विशाल भंडार मौजूद हैं और भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा बढ़ाने के लिये इन संसाधनों का दोहन करना चाहता है।
- SCO भारत को मध्य एशिया के ऊर्जा संपन्न देशों के साथ संलग्न होने और ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग के अवसरों का पता लगाने के लिये एक मंच प्रदान करता है।
- 22वें शिखर सम्मेलन में हस्ताक्षरित ‘समरकंद घोषणा’ (Samarkand Declaration) कनेक्टिविटी को केंद्रीकृत करती है जो भारत के लिये ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ एक प्राथमिक विषय है।
- सांस्कृतिक सहयोग:
- SCO के सदस्य देशों, पर्यवेक्षकों और भागीदारों के समग्र सांस्कृतिक धरोहर में 207 यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल शामिल हैं।
- SCO सदस्य देशों ने एक रोटेटिंग पहल के तहत हर साल SCO सदस्य देशों के किसी एक शहर को पर्यटन एवं सांस्कृतिक राजधानी के रूप में नामित करने का निर्णय लिया है।
- इस क्रम में ‘काशी’ (वाराणसी) को SCO की पहली सांस्कृतिक राजधानी के रूप में नामित किया गया है।
- आतंकवाद से मुकाबला:
- SCO का आतंकवाद विरोधी सहयोग पर विशेष ध्यान है।
- आतंकवाद का शिकार रहे भारत को इस क्षेत्र में आतंकवाद से निपटने के लिये संगठन के सामूहिक प्रयासों से लाभ प्राप्त हो सकता है।
SCO में चुनौतियाँ:
- भू-राजनीतिक तनाव: सदस्य देशों के बीच प्रतिद्वंद्विता और ऐतिहासिक तनाव सहयोग को जटिल बना सकते हैं तथा क्षेत्रीय मुद्दों पर एकजुट मोर्चा प्रस्तुत करने की संगठन की क्षमता में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं।
- भारत और चीन के बीच सीमा मुद्दे: भारत और चीन के बीच भूमि सीमा मुद्दे ऐतिहासिक शिकायतों, क्षेत्रीय दावों तथा सामरिक हितों का एक जटिल मिश्रण हैं।
- चीन का उदय:
- चीन के उदय के साथ आंतरिक एशिया में प्रमुख शक्ति के रूप में चीन के उभार की संभावनाएँ बढ़ रही हैं।
- इसने अन्य क्षेत्रीय शक्तियों, जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका की ओर से बाह्य दबावों को जन्म दिया है, जो चीन के उदय को नियंत्रित करने तथा क्षेत्र में उसके प्रभाव को सीमित करने की इच्छा रखता है।
- सीमित संस्थागत तंत्र:
- जबकि SCO में कई निकाय हैं, जैसे कि राज्य प्रमुखों की परिषद, विदेश मंत्रियों की परिषद और राष्ट्रीय समन्वयकों की परिषद, इन निकायों में औपचारिक निर्णयन एवं प्रवर्तन शक्तियों का अभाव है जो प्रभावी शासन के लिये आवश्यक होता है।
- सदस्य राज्यों के बीच विवादों को सुलझाने के लिये SCO के पास किसी औपचारिक तंत्र का अभाव है।
- अलग-अलग हित और असहमतियाँ:
- SCO में ऐसे सदस्य देश शामिल हैं जो भिन्न-भिन्न राजनीतिक प्रणालियाँ, आर्थिक मॉडल और रणनीतिक प्राथमिकताएँ (जैसे- CPEC, सीमा अवसंरचना परियोजनाएँ) रखते हैं। इससे आर्थिक सहयोग और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर आंतरिक संघर्षों एवं असहमतियों की संभावना बनती है।
- सीमित भौगोलिक दायरा:
- SCO का भौगोलिक फोकस यूरेशिया और पड़ोसी क्षेत्रों तक सीमित है, जो वैश्विक मुद्दों तथा चुनौतियों से संलग्न हो सकने की इसकी क्षमता को अवरुद्ध करता है।
निष्कर्ष:
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) को अपनी क्षमता को अधिकतम करने के लिये राजनीतिक विश्वास को मज़बूत करने, आर्थिक सहयोग बढ़ाने और सुरक्षा चुनौतियों का समाधान करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने तथा सदस्यता विस्तार पर विचार करके, एससीओ सदस्य देशों के बीच क्षेत्रीय स्थिरता और सहयोग के लिये एक महत्त्वपूर्ण मंच के रूप में अपनी भूमिका को मज़बूत कर सकता है।