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दिवस- 23: तेज़ी से बदलती वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपनी महत्त्वपूर्ण स्थिति बनाए रखने के लिये विश्व व्यापार संगठन (WTO) को साहसिक सुधारों को लागू करने की आवश्यकता है। चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

02 Aug 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | अंतर्राष्ट्रीय संबंध

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • विश्व व्यापार संगठन (WTO) का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • संगठन की उपलब्धियाँ बताइये।
  • संगठन के समक्ष आने वाले प्रमुख मुद्दों की पहचान करें।
  • तेज़ी से विकसित हो रही वैश्विक अर्थव्यवस्था में इसकी वैधता और केंद्रीय भूमिका को बनाए रखने के लिये सुधारों का सुझाव दीजिये।
  • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

विश्व व्यापार संगठन (WTO) एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है, जिसकी स्थापना वर्ष 1995 में सदस्य देशों के बीच अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को विनियमित करने और उसे सुविधाजनक बनाने के लिये की गई थी। इसका उद्देश्य व्यापार समझौतों पर बातचीत करने, व्यापार विवादों को सुलझाने और व्यापार नीतियों की निगरानी के लिये एक ढाँचा प्रदान करके यह सुनिश्चित करना है कि व्यापार यथासंभव सुचारु, पूर्वानुमानित तथा स्वतंत्र रूप से प्रवाहित हो।

मुख्य बिंदु:

WTO की उपलब्धियांँ:

  • व्यापार की वैश्विक सुविधा:
    • WTO वस्तुओं और सेवाओं के वैश्विक व्यापार हेतु बाध्यकारी नियमों का निर्माण तथा सीमा पार व्यापार गतिविधियों को बढ़ावा देने हेतु सुविधा प्रदान करता है।
    • WTO ने न केवल व्यापार मूल्यों को बढ़ाया है, बल्कि व्यापार और गैर-व्यापार बाधाओं को समाप्त करने में भी मदद की है।
  • बेहतर आर्थिक विकास:
    • वर्ष 1995 के बाद से विश्व व्यापार मूल्यों में लगभग चार गुना वृद्धि हुई है, जबकि विश्व व्यापार में वास्तविक वृद्धि 2.7 गुना तक हुई है।
    • घरेलू सुधारों और खुले बाज़ार की प्रतिबद्धताओं के परिणामस्वरूप देशों की राष्ट्रीय आय में स्थायी वृद्धि हुई है।
  • वैश्विक मूल्य शृंखला में वृद्धि:
    • WTO के अनुमानित बाज़ार को वैश्विक मूल्य शृंखला के साथ बढ़ावा देने हेतु बेहतर संचार व्यवस्था के साथ जोड़ा गया है। वर्तमान में कुल व्यापार का लगभग 70% इन मूल्य शृंखलाओं के अंतर्गत आता है।
  • गरीब देशों का उत्थान:
    • WTO में कम विकसित देशों पर अतिरिक्त ध्यान दिया जाता है। WTO के सभी समझौतों में इस बात का ध्यान रखा गया है कि कम विकसित देशों को अधिक रियायत दी जानी चाहिये और जो सदस्य देश बेहतर स्थिति में हैं उन्हें कम विकसित देशों के निर्यात पर प्रतिबंधों को कम करने हेतु अतिरिक्त प्रयास करने होंगे।

वर्तमान में विश्व व्यापार संगठन की प्रभावशीलता को कमज़ोर करने वाली प्रमुख चुनौतियाँ:

  • बहुपक्षीयता का क्षरण:
    • हाल के वर्षों में व्यापार विवादों में वृद्धि और एकतरफा व्यापार कार्रवाइयों के उभार के साथ बहुपक्षीयता (multilateralism) का उल्लेखनीय क्षरण हुआ है।
    • यह प्रवृत्ति व्यापार संघर्षों को सुलझाने और व्यापार समझौतों पर वार्ता के सार्थक मंच के रूप में WTO की प्रभावशीलता को कमज़ोर करती है।
    • MC13 मात्स्यिकी सब्सिडी जैसे प्रमुख मुद्दों पर भी प्रगति करने में विफल रहा, जो 166 सदस्य देशों के बीच गंभीर मतभेद को दर्शाता है।
  • संरक्षणवाद और व्यापार युद्ध:
    • टैरिफ, कोटा एवं अन्य व्यापार बाधाओं का प्रसार मुक्त व्यापार के सिद्धांतों को कमज़ोर करता है तथा नियम-आधारित व्यापार प्रणाली के लिये खतरा उत्पन्न करता है।
    • उदाहरण के लिये, अमेरिका और चीन के बीच व्यापार विवाद ने बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली को तनावपूर्ण बना दिया है और WTO की मध्यस्थता तथा ऐसे संघर्षों को हल कर सकने की क्षमता को चुनौती दी है।
  • विवाद निपटान तंत्र संकट:
    • WTO का विवाद निपटान तंत्र (Dispute Settlement Mechanism), जिसे प्रायः संगठन का ‘मुकुट रत्न’ माना जाता है, को हाल के वर्षों में संकट का सामना करना पड़ा है।
    • व्यापार विवादों पर निर्णय लेने के लिये ज़िम्मेदार अपीलीय निकाय, निकाय में नई नियुक्तियों पर अमेरिका के व्यवधान के कारण निष्क्रिय हो गया है।
    • एक कार्यशील विवाद निपटान तंत्र की अनुपस्थिति बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली में भरोसे को कम करती है और एकपक्षीयता को प्रोत्साहित करती है।
  • विकास अंतराल और विशेष एवं विभेदक व्यवहार:
    • विकासशील देशों को लचीलापन एवं सहायता प्रदान करने पर लक्षित विशेष एवं विभेदक उपचार (S&D) के सिद्धांत के बावजूद, व्यापार वार्ता में प्रभावी ढंग से भाग लेने और व्यापार-संबंधी सुधारों को लागू करने की उनकी क्षमता में असमानताएँ बनी हुई हैं।
    • अल्प-विकसित देशों (LDCs) के पास प्रायः व्यापार के अवसरों का लाभ उठाने के लिये आवश्यक संसाधनों एवं तकनीकी सहायता की कमी होती है, जिससे वे वैश्विक अर्थव्यवस्था में लगातार हाशिये पर बने रहते हैं।
  • डिजिटल व्यापार और ई-कॉमर्स:
    • डिजिटल व्यापार और ई-कॉमर्स की तीव्र वृद्धि WTO के लिये अवसर और चुनौतियाँ दोनों प्रस्तुत करती है। जबकि डिजिटल प्रौद्योगिकियों में व्यापार दक्षता बढ़ाने और आर्थिक विकास को सुविधाजनक बनाने की क्षमता है, वे ऐसे नए नियामक एवं नीतिगत मुद्दे भी खड़े करते हैं जो पारंपरिक व्यापार समझौतों के दायरे से बाहर हैं।
    • WTO को सभी सदस्य देशों के लिये समान अवसर सुनिश्चित करते हुए डिजिटल व्यापार की उभरती प्रकृति को समायोजित करने के लिये अपने नियमों एवं समझौतों को अनुकूलित करने की चुनौती का सामना करना पड़ता है।
  • पर्यावरण और संवहनीयता संबंधी चिंताएँ:
    • WTO को अपने व्यापार नियमों और समझौतों में पर्यावरण एवं संवहनीयता संबंधी विचारों को शामिल करने के लिये लगातार बढ़ते दबाव का सामना करना पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन, जैवविविधता हानि और अन्य पर्यावरणीय चुनौतियों का वैश्विक व्यापार स्वरूपों एवं अभ्यासों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
    • व्यापार उदारीकरण लक्ष्यों के साथ पर्यावरणीय उद्देश्यों को संतुलित करने के लिये आर्थिक विकास और पर्यावरणीय संवहनीयता दोनों को बढ़ावा देने वाले नियम विकसित करने के लिये WTO सदस्यों के बीच नवोन्मेषी दृष्टिकोण एवं सहयोग की आवश्यकता है।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य और दवाओं तक पहुँच:
    • कोविड-19 महामारी ने व्यापार नीति में सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी विचारों के महत्त्व को उजागर किया। सस्ती दवाओं और चिकित्सा आपूर्ति तक पहुँच अब एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है, विशेष रूप से विकासशील देशों के लिये जो आवश्यक स्वास्थ्य देखभाल उत्पादों की खरीद में चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
    • WTO को विशेष रूप से सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थितियों के दौरान सभी के लिये दवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करने की आवश्यकता के साथ बौद्धिक संपदा अधिकारों के बीच सामंजस्य बैठाने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
  • कृषि एवं खाद्य सुरक्षा:
    • हालाँकि कृषि पर WTO विषयों को अद्यतन करना वर्ष 2000 से ही सदस्यों के एजेंडे में रहा है, लेकिन इस दिशा में बहुत कम प्रगति हुई है। MC13 में कृषि वार्ता के दायरे, संतुलन और समय-सीमा पर आम सहमति तक पहुँचने में सदस्य देश एक बार फिर विफल रहे।
    • यह विफलता विशेष रूप से ‘खाद्य सुरक्षा उद्देश्यों के लिये सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग’ (public stockholding for food security purposes) के मुद्दे पर व्यापक असहमति के परिणामस्वरूप मिली।

विश्व व्यापार संगठन (WTO) में कौन-से सुधार आवश्यक हैं?

  • विवाद निपटान तंत्र को पुनर्जीवित करना:
    • व्यापार विवादों का समय पर और प्रभावी समाधान सुनिश्चित करने के लिये अपीलीय निकाय की कार्यक्षमता को पुनर्बहाल करना अत्यंत आवश्यक है।
    • अपीलीय निकाय में नए सदस्यों की नियुक्ति में गतिरोध को दूर करने और WTO के विवाद निपटान तंत्र की अखंडता को बनाए रखने के लिये तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।
  • दंड के लिये उपयुक्त प्रावधान:
    • यदि किसी देश ने कुछ गलत किया हो तो उसे शीघ्रता से अपनी गलतियों को सुधारना चाहिये। यदि वह किसी समझौते का उल्लंघन जारी रखता है तो उसे मुआवज़ें की पेशकश करनी चाहिये या ऐसी उचित प्रतिक्रिया का सामना करना चाहिये जिसमें कुछ उपचार (remedy) शामिल हो। यह वस्तुतः दंड नहीं है, बल्कि एक ‘उपचार’ है, जहाँ अंतिम लक्ष्य यह है कि संबद्ध देश निर्णय का पालन करे।
    • ऐसे दोषी देशों को हरित जलवायु कोष (Green Climate Fund) में अनिवार्य रूप से एक विशेष राशि जमा करने के लिये बाध्य किया जा सकता है।
  • आधुनिक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करने के लिये व्यापार नियमों को अद्यतन करना:
    • डिजिटल व्यापार, ई-कॉमर्स और पर्यावरणीय संवहनीयता जैसे उभरते मुद्दों के को संबोधित करने के लिये WTO के नियमों तथा समझौतों को अद्यतन करने की आवश्यकता है।
    • यहाँ तात्कालिक सुधारों को नई प्रौद्योगिकियों को समायोजित करने, सतत् विकास को बढ़ावा देने और समावेशी आर्थिक विकास को सुविधाजनक बनाने के लिये व्यापार नियमों को आधुनिक बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  • S&D प्रावधानों को सुदृढ़ करना:
    • विकासशील और अल्प-विकसित देशों के विकास उद्देश्यों का समर्थन करने के लिये S&D प्रावधानों की प्रभावशीलता को बढ़ाना आवश्यक है।
    • यहाँ तात्कालिक सुधारों का लक्ष्य S&D प्रावधानों को विकासशील देशों के समक्ष विद्यमान विशिष्ट आवश्यकताओं एवं चुनौतियों (विशेष रूप से कृषि, IPR एवं सेवा व्यापार जैसे क्षेत्रों में) के प्रति अधिक क्रियाशील एवं उत्तरदायी बनाना होना चाहिये।
  • व्यापार विकृतियों और सब्सिडी को संबोधित करना:
    • व्यापार-विकृतिकारी अभ्यासों—जिसमें सब्सिडी भी शामिल है जो बाज़ार प्रतिस्पर्द्धा को विकृत करती है और निष्पक्ष व्यापार को कमज़ोर करती है, को संबोधित करने के लिये तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है,
    • यहाँ सुधारों को WTO के सभी सदस्यों के लिये समान अवसर सुनिश्चित करने के लिये सब्सिडी और सरकारी समर्थन के अन्य रूपों पर नियंत्रण मज़बूत करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  • समावेशी निर्णयन को बढ़ावा देना:
    • WTO के भीतर समावेशी निर्णयन प्रक्रियाओं को सुनिश्चित करना इसकी वैधता एवं प्रभावशीलता को सुदृढ़ करने के लिये आवश्यक है।
    • यहाँ तत्काल सुधारों को WTO वार्ताओं, समितियों और निर्णयकारी निकायों में विकासशील एवं अल्प-विकसित देशों सहित सभी सदस्य देशों की अधिक भागीदारी एवं प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।

निष्कर्ष:

तेज़ी से विकसित हो रही वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपनी वैधता और केंद्रीय भूमिका को बनाए रखने के लिये विश्व व्यापार संगठन (WTO) को दूरदर्शी सुधार करने चाहिये। इसमें सभी सदस्य देशों की आवाज़ के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिये समावेशिता को प्राथमिकता देना, आधुनिकीकरण एवं नवाचार के माध्यम से उभरती चुनौतियों एवं अवसरों के प्रति तेज़ी से अनुकूलित होना और हितधारकों के बीच भरोसा निर्माण के लिये पारदर्शिता एवं जवाबदेही को बनाए रखना शामिल है।