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  • 02 Aug 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    दिवस- 23: नाटो की कार्रवाइयों ने सुरक्षा को बढ़ावा देने के बजाय भू-राजनीतिक तनाव को बढ़ा दिया है। आलोचनात्मक रूप से परिक्षण कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) और इसके प्राथमिक उद्देश्यों का संक्षिप्त में परिचय दीजिये।
    • नाटो की उन कार्रवाइयों पर चर्चा कीजिये, जिनके कारण भू-राजनीतिक तनाव बढ़ा है।
    • सामूहिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये नाटो की कार्रवाइयों को आवश्यक बताते हुए तर्क प्रस्तुत कीजिये।
    • नाटो को अधिक प्रभावी बनाने के लिये आवश्यक सुधारों का सुझाव दीजिये।
    • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) 1949 में गठित एक अंतर-सरकारी सैन्य गठबंधन है। इसकी स्थापना मुख्य रूप से शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ से संभावित आक्रमण के विरुद्ध सामूहिक रक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से की गई थी। पिछले कुछ वर्षों में, नाटो अपने मूल अधिदेश से परे कई सुरक्षा चुनौतियों के समाधान के रूप में विकसित हुआ है।

    मुख्य बिंदु:

    नाटो की कार्यप्रणाली से संबंधित विभिन्न चिंताएँ:

    • अनियंत्रित रूप से आक्रामक:
      • नाटो की स्थापना इसके सदस्य देशों को किसी भी संभावित आक्रामकता से बचाने के लिये की गई थी। जैसा कि तथ्य बताते हैं, इसे कभी किसी आक्रामकता या आक्रामकता के खतरे का सामना नहीं करना पड़ा। इसके विपरीत, अपने सदस्य देशों की रक्षा के नाम पर स्वयं नाटो ही आक्रामक हो गया। पिछले सात दशकों में इसने दुनिया भर में 200 से अधिक सैन्य संघर्षों की शुरुआत की या उनमें भाग लिया, जिनमें 20 बड़े सैन्य संघर्ष भी शामिल हैं।
    • पूर्वी यूरोपीय, मध्य-पूर्व और एशियाई देशों में उसके दुस्साहसिक कदम:
      • यूगोस्लाविया पर बमबारी, इराक पर आक्रमण, लीबिया की राज्य सत्ता की तबाही, सीरिया में गैर-कानूनी सैन्य हस्तक्षेप और अफगानिस्तान में आतंकवाद से संघर्ष इनमें से कुछ प्रमुख मामले हैं।
    • रूस-यूक्रेन युद्ध को भड़काना:
      • वर्ष 1991 के बाद से नाटो के विस्तार के पाँच दौर (जबकि ऐसा नहीं करने का आश्वासन दिया गया था) और यूक्रेन को रूस के विरुद्ध ‘स्प्रिंगबोर्ड’ में बदल देना (यानी उसे रूस के विरुद्ध गतिविधियों के लिये एक रणनीतिक लॉन्चपैड के रूप में उपयोग करना) अब तक का सबसे बड़ी भड़काने वाली कार्रवाई सिद्ध हुई।
      • गठबंधन ने रूस के साथ संवाद तंत्र को नष्ट कर दिया और मैड्रिड में वर्ष 2022 में आयोजित नाटो शिखर सम्मेलन में इस रणनीतिक अवधारणा को अपनाया कि मास्को यूरो-अटलांटिक क्षेत्र में मित्र देशों की सुरक्षा, शांति एवं स्थिरता के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण एवं प्रत्यक्ष खतरा है, जबकि रूस ने ऐसा रुख कभी नहीं रखा है।
    • पश्चिमी आधिपत्य को बनाए रखना:
      • कठोर वास्तविकता यह है कि नाटो, जबकि अपनी शांतिपूर्ण आकांक्षाओं की घोषणा करता है, ऐसे किसी भी राज्य के विरुद्ध युद्ध में उतर जाता है या उस पर हमला करने की धमकी देता है जो पतनशील उदार ‘नियम-आधारित व्यवस्था’ को स्वीकार करने से इनकार करता है।
        • इस अर्थ में, नाटो की सैन्य क्षमता उन देशों पर पश्चिम के आधिपत्य को बनाए रखने के लिये एक प्रभावी उपकरण की स्थिति रखती है जिन्हें सैन्य खतरे के रूप में नहीं देखा जाता है।
      • यह नाटो के बारे में यह धारणा स्थापित करता है कि यह यूरो-अटलांटिक शासकों द्वारा निर्धारित लोकतंत्र, मानवाधिकार एवं स्वतंत्रता के नारों के तहत आधुनिक रूप में औपनिवेशिक अभ्यासों की ही निरंतरता है।
    • अनुचित विस्तार:
      • इस गठबंधन की क्षमताओं का निर्माण बाह्य अंतरिक्ष और साइबरस्पेस में किया जा रहा है। नाटो के ‘पूर्वी अंग’ को समायोजित क्षेत्रीय सैन्य योजनाओं हेतु तैयार करने के लिये नए संसाधनों और सैन्य बलों से सुसज्जित किया गया है। नाटो का आक्रामक व्यवहार रूस तक ही सीमित नहीं है। यह अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका में नए साझेदारों की तलाश कर रहा है।
      • नाटो की नज़र अब व्यापक रूप से उत्तर-सोवियत परिदृश्य एवं यूरेशिया की ओर है जहाँ वह विभिन्न देशों के बीच अलगाव बढ़ाने और उनके पारंपरिक रूप से घनिष्ठ संबंधों को क्षति पहुँचाने पर केंद्रित है।
    • हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उत्पन्न खतरे का लाभ उठाना:
      • यूरो-अटलांटिक और इंडो-पैसिफिक क्षेत्रों में सुरक्षा की अविभाज्यता के नारे के तहत पूरे पूर्वी गोलार्द्ध पर अपनी ज़िम्मेदारी बढ़ाने के नाटो के प्रयासों में इस मंच के विस्तारवाद की एक नई अभिव्यक्ति को देखा जा सकता है।
      • इस उद्देश्य से संयुक्त राज्य अमेरिका AUKUS, ‘यूएस-जापान-दक्षिण कोरिया ट्रोइका’ और टोक्यो-सियोल-कैनबरा-वेलिंगटन क्वार्टेट जैसे छोटे, अनौपचारिक, लघु-पक्षीय गठबंधनों के निर्माण में व्यस्त रहा है ताकि उन्हें नाटो के साथ व्यावहारिक सहयोग के लिये घसीटा जा सके।

    नाटो समूह की सुरक्षा संबंधी सफलताएँ:

    • शीत युद्ध:
      • शीत युद्ध के दौरान नाटो के प्रयास तीन लक्ष्यों पर केंद्रित रहे थे: सोवियत संघ को नियंत्रित करना, संपूर्ण यूरोप में उग्रवादी राष्ट्रवाद एवं साम्यवाद पर रोक रखना और वृहद् यूरोपीय राजनीतिक एकता स्थापित करना।
      • गठबंधन ने शीत युद्ध की तनावपूर्ण शांति को बनाए रखने और यह सुनिश्चित करने में प्रमुख भूमिका निभाई कि शीत युद्ध ‘शीत’ ही बना रहे। इस युद्ध की समाप्ति के साथ नाटो ने शांति बनाए रखने की दिशा में कार्य किया।
      • इस क्रम में उत्तरी अटलांटिक सहयोग परिषद (North Atlantic Cooperation Council) की स्थापना की गई और वर्ष 1997 में नाटो ने ‘फाउंडिंग एक्ट’ (Founding Act) के माध्यम से अमेरिका एवं रूस के बीच द्विपक्षीय चर्चा को प्रोत्साहित किया।
    • आधुनिक समय में सुरक्षा:
      • नाटो अपने सदस्यों को सुरक्षा प्रदान करने में अभी तक सफल रहा है। इसकी स्थापना के बाद से केवल एक बार ऐसा हुआ है जब नाटो के किसी सदस्य पर हमला किया गया (अमेरिका पर 9/11 हमला) और अनुच्छेद 5 (सामूहिक सुरक्षा और परस्पर सहयोग) को औपचारिक रूप से सक्रिय या प्रभावी किया गया।
      • सदस्य देशों को सामूहिक सुरक्षा प्रदान की जाती है, जैसा कि मूल रूप से नाटो का लक्ष्य था। इसके अतिरिक्त, नाटो ने दुनिया भर में 40 से अधिक देशों और अन्य भागीदारों का एक वैश्विक नेटवर्क बनाया है, जिसमें अफ्रीकी संघ (AU) से लेकर OSCE (Organization for Security and Cooperation in Europe) तक कई समूह शामिल हैं।
      • यह नेटवर्क नाटो को उसके संकट प्रबंधन कार्यों में सहायता प्रदान करता है। वर्ष 2005 के कश्मीर भूकंप के बाद राहत आपूर्ति जैसे सहायता कार्यों से लेकर भूमध्य सागर और सोमालिया के तट पर आतंकवाद विरोधी अभियानों तक इसके कई उदाहरण हैं।
    • यूक्रेन को मानवीय सहायता प्रदान करना:
      • नाटो ने सार्वजनिक रूप से यूक्रेन पर रूसी आक्रमण की निंदा की है और नाटो के सदस्य देशों एवं सहयोगियों ने यूक्रेन को पर्याप्त सहायता प्रदान की है। अमेरिका ने यूक्रेन को लगभग 54 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता दी है।
      • अन्य देशों ने युद्ध के 5 मिलियन से अधिक शरणार्थियों के लिये मानवीय सहायता एवं सहयोग प्रदान किया है। यूक्रेन युद्ध ने नाटो के महत्त्व की पुष्टि की है और यहाँ तक कि फिनलैंड एवं स्वीडन को गठबंधन में शामिल होने के अपने प्रयासों को तेज़ करने के लिये प्रेरित किया है।
      • इन देशों की सदस्यता हवाई और पनडुब्बी क्षमताओं की वृद्धि के माध्यम से नाटो को सैन्य रूप से मज़बूत करेगी, जिससे नाटो को रूसी आक्रामकता को और कम करने की अनुमति मिलेगी।

    नाटो को अधिक प्रभावी एवं कुशल बनाने के लिये आवश्यक सुधार:

    • सलाह की गुणवत्ता, सुसंगतता और समय-सीमा:
      • नाटो के अंदर पाँच प्रमुख नीति समितियों— सैन्य समिति, राजनीतिक समिति, नीति समन्वय समूह, कार्यकारी कार्य समूह और सीनियर रिसोर्स बोर्ड के महत्त्व एवं कार्यों को उन्नत बनाएँ।
      • इन समितियों के बीच समन्वय में सुधार करें, जहाँ उनके एजेंडे को परिषद की प्राथमिकताओं के साथ संरेखित करें। इससे सैन्य और नागरिक दोनों नाटो निकायों के लिये परिषद के मार्गदर्शन को प्रभावी एवं समयबद्ध सलाह में बदलने में मदद मिलेगी।
    • नाटो का गैर-सैन्य आयाम:
      • यह सुनिश्चित किया जाए कि जब सहयोगी देश नाटो को परिचालनात्मक रूप से संलग्न करने का निर्णय लें तो इसे राजनीतिक स्तर पर नागरिक विशेषज्ञता और ज़मीनी स्तर पर व्यवहार्य क्षमताओं का लाभ प्राप्त हो। साझा लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और स्थानियों अभिकर्ताओं के साथ सहयोग भी आवश्यक है। इसके लिये नाटो के अंदर एक नागरिक सुरक्षा समिति या ऐसी किसी संरचना के निर्माण की आवश्यकता हो सकती है।
    • संगठनात्मक सामंजस्य और आंतरिक तालमेल:
      • न केवल नाटो मुख्यालय को बल्कि ब्रुसेल्स के अंदर एवं बाहर के नाटो निकायों की एक सुव्यवस्थित शृंखला को बदलती रणनीतिक प्राथमिकताओं के अनुरूप उन्मुख करना होगा ताकि गठबंधन में पारदर्शिता, दृश्यता और उद्देश्य की समानता को बढ़ावा दिया जा सके।
    • एक समावेशी और संयुक्त गठबंधन:
      • संस्थागत व्यवस्थाओं को गठबंधन सुरक्षा की अविभाज्यता को प्रतिबिंबित करना चाहिये, जो गठबंधन की एकता एवं सामंजस्य को बनाए रखने और उसे सुदृढ़ करने पर लक्षित हो तथा उद्देश्य की एक साझा भावना को बढ़ावा देता हो।
        • इस प्रकार, नाटो संरचनाओं और प्रक्रियाओं को मुख्य रूप से सभी सहयोगियों के हितों, चिंताओं, राजनीतिक इच्छाशक्ति एवं सैन्य क्षमताओं को एकजुट करना चाहिये, ताकि सर्वसम्मति-निर्माण तथा सामूहिक कार्रवाइयों को सक्षम किया जा सके।
      • जहाँ भी संभव हो, संरचनाओं एवं प्रक्रियाओं को सहयोगियों और गैर-नाटो देशों की बढ़ती संख्या के बीच राजनीतिक संवाद, परामर्श, संयुक्त योजना, प्रशिक्षण, अभ्यास तथा संचालन को प्रोत्साहित और सुविधाजनक बनाना चाहिये।
    • नाटो का विशिष्ट चरित्र बनाए रखना:
      • जबकि नाटो को व्यापक दृष्टिकोण के माध्यम से जटिल संकटों से निपटने के लिये अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ सक्रिय रूप से एकीकृत होना चाहिये, यह सूक्ष्म रणनीतियों के साथ मज़बूत सैन्य क्षमताओं को संयोजित करने की इसकी मूल शक्ति को कम नहीं करे।
    • गैर-पारंपरिक खतरों पर ध्यान देना:
      • जबकि क्षेत्रीय रक्षा नाटो का एक प्रमुख कार्य बना रहे, कई लोगों का तर्क है कि नाटो को आतंकवाद, साइबर हमलों, दुष्प्रचार अभियानों और आपूर्ति शृंखला सुरक्षा को खतरों जैसे गैर-पारंपरिक खतरों से निपटने के लिये और अधिक अनुकूलित होना चाहिये।

    निष्कर्ष:

    जब वर्ष 2024 में नाटो अपनी 75वीं वर्षगाँठ मना रहा है, यह अपने उपलब्धिपूर्ण इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। नाटो ने एक नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के माध्यम से अपने सदस्यों की स्वतंत्रता एवं सुरक्षा की रक्षा के अपने मुख्य मिशन को सफलतापूर्वक पूरा किया है। हालाँकि पिछले कुछ दशक तेज़ी से विकसित हो रहे वैश्विक सुरक्षा परिदृश्य के साक्षी बने हैं, जहाँ महान शक्ति प्रतिद्वंद्विता, अंतर्राष्ट्रीय खतरों और जटिल आधुनिक चुनौतियों का पुनः उभार हुआ है।

    नाटो को शांति एवं स्थिरता के एक प्रभावशाली रक्षक के रूप में अपनी भूमिका बनाए रखने के लिये रक्षा क्षमताओं में वृहद् निवेश करने, निर्णय-निर्माण प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और साइबर सुरक्षा, अंतरिक्ष एवं प्रौद्योगिकीय श्रेष्ठता जैसे क्षेत्रों को दायरे में लेने के माध्यम से अपना सुधार करने तथा नए परिदृश्यों के प्रति अनुकूलित होने की आवश्यकता है।

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