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दिवस- 22: चीन के साथ विभिन्न जटिल समस्याओं से कुशल तरीके से निपटने के लिये भारत को अपनी रणनीति का पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता है। चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

01 Aug 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | अंतर्राष्ट्रीय संबंध

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • भारत-चीन संबंधों का संक्षिप्त में परिचय दीजिये।
  • भारत-चीन संबंधों के बीच प्रमुख विवादों का उल्लेख कीजिये।
  • भारत और चीन के बीच रणनीतिक दृष्टिकोण के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता का मूल्यांकन कीजिये।
  • चीन के साथ जटिल विवादों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिये रणनीतिक उपायों का प्रस्ताव कीजिये।
  • उपयुक्त रूप से निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

भारत और चीन का इतिहास बहुत जटिल है, जिसमें क्षेत्रीय विवाद, आर्थिक प्रतिस्पर्द्धा एवं भू-राजनीतिक तनाव शामिल हैं। सीमा पर कई झड़पों, खासतौर पर वर्ष 2020 में गलवान घाटी की घटना के बाद, भारत के लिये चीन के प्रति अपने रणनीतिक दृष्टिकोण का पुनर्मूल्यांकन करना बहुत ज़रूरी हो गया है। यह पुनर्मूल्यांकन न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये बल्कि बदलती वैश्विक गतिशीलता के दौर में स्थिर क्षेत्रीय माहौल को बढ़ावा देने के लिये भी ज़रूरी है।

मुख्य बिंदु:

भारत-चीन संबंधों में मौजूद प्रमुख विवाद

  • सीमा विवाद:
    • पश्चिमी क्षेत्र (लद्दाख):
      • अंग्रेज़ों द्वारा प्रस्तावित जॉनसन रेखा (Johnson Line) ने अक्साई चिन को जम्मू-कश्मीर रियासत का हिस्सा बनाया था।
      • चीन ने जॉनसन रेखा को अस्वीकार कर दिया और मैकडॉनल्ड रेखा (McDonald Line) का समर्थन करते हुए अक्साई चिन पर नियंत्रण का दावा किया।
      • वर्तमान में अक्साई चीन का प्रशासन चीन के पास है लेकिन भारत का इस मुद्दे पर आधिकारिक रुख यह है कि चूँकि यह जम्मू-कश्मीर (लद्दाख) का एक भाग है, इसलिये भारत का अभिन्न अंग है।
    • मध्य क्षेत्र (हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड):
      • मध्य क्षेत्र में अपेक्षाकृत मामूली विवाद मौजूद है, जहाँ भारत और चीन के बीच मानचित्रों के आदान-प्रदान में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर मोटे तौर पर सहमति है।
    • पूर्वी क्षेत्र (अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम):
      • चीन मैकमोहन रेखा (McMahon Line) को अवैध एवं अस्वीकार्य मानता है और दावा करता है कि जिन तिब्बती प्रतिनिधियों ने वर्ष 1914 में शिमला में आयोजित कन्वेंशन (जहाँ मैकमोहन रेखा को मानचित्र पर निरुपित किया गया था) पर हस्ताक्षर किये थे, उन्हें ऐसा करने का अधिकार नहीं था।
  • सीमा पर घुसपैठ:
    • भारत और चीन के बीच सीमा अपनी समग्रता में स्पष्ट रूप से सीमांकित नहीं है और कुछ हिस्सों में कोई पारस्परिक रूप से सहमत वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) मौजूद नहीं है।
    • इस क्षेत्र में वर्ष 2014 में डेमचोक , 2015 में देपसांग, 2017 में डोकलाम और 2020 में गलवान जैसे सीमा संघर्ष के कई दृष्टांत सामने आये हैं।
  • जल बँटवारा:
    • चीन की लाभप्रद भौगोलिक स्थिति एक विषमता पैदा करती है जहाँ उसे हाइड्रोलॉजिकल डेटा पर भारत जैसे अनुप्रवाह देशों की निर्भरता का लाभ उठाने की अनुमति मिलती है।
    • ब्रह्मपुत्र सहित अन्य सीमा-पारीय नदियों पर चीन की बाँध निर्माण गतिविधियाँ भारत के लिये चिंता का कारण हैं , जिससे दोनों देशों के बीच जल बँटवारे के मुद्दों पर तनाव उत्पन्न हो गया है।
  • तिब्बत का मुद्दा:
    • भारत निर्वासित तिब्बत सरकार और आध्यात्मिक नेता दलाई लामा की मेज़बानी करता है, जो चीन के साथ विवाद का एक मुद्दा रहा है।
    • चीन भारत पर तिब्बती अलगाववाद का समर्थन करने का आरोप लगाता है, जबकि भारत का कहना है कि वह ‘एक चीन’ की नीति का सम्मान करता है, लेकिन तिब्बती समुदाय को भारत में रहने की नैतिक अनुमति देता है।
  • व्यापार असंतुलन:
    • चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा वर्ष 2022 में 87 बिलियन अमेरिकी डॉलर के ऐतिहासिक उच्च स्तर पर पहुँच गया।
    • जटिल विनियामक आवश्यकताएँ, बौद्धिक संपदा अधिकारों का उल्लंघन और व्यापारिक लेन-देन में पारदर्शिता की कमी चीनी बाज़ार तक पहुँच की इच्छा रखने वाले भारतीय व्यवसायों के लिये चुनौतियाँ पेश करती हैं।
  • बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) पर चिंताएँ:
    • BRI पर भारत की मुख्य आपत्ति यह है कि इसमें चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) शामिल है, जो पाक-अधिकृत कश्मीर (PoK) से होकर गुज़रता है, जिस पर भारत अपना दावा करता है।
    • भारत का यह भी मानना है कि BRI परियोजनाओं को अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों, विधि के शासन और वित्तीय स्थिरता का सम्मान करना चाहिये तथा मेज़बान देशों के लिये ऋण जाल (debt trap) या पर्यावरणीय एवं सामाजिक जोखिम पैदा नहीं करना चाहिये।

चीन के दावे के पीछे क्या भू-राजनीति है?

  • चीन की ‘सलामी स्लाइसिंग’ रणनीति:
    • सैन्य शब्दावली में ‘सलामी स्लाइसिंग’ (Salami Slicing) फूट डालो और जीतो की रणनीति (divide-and-conquer strategy) को संदर्भित करती है जहाँ विरोध पर काबू पाने और नए क्षेत्रों का अधिग्रहण करने के लिये वृद्धिशील भयादोहन एवं गठबंधनों का इस्तेमाल किया जाता है।
    • चीन के मामले में सलामी स्लाइसिंग की रणनीति दक्षिण चीन सागर और हिमालयी क्षेत्र, दोनों में क्षेत्रीय विस्तार के उसके दृष्टिकोण में स्पष्ट है, जहाँ डोकलाम गतिरोध को प्रायः हिमालय में चीन की सलामी स्लाइसिंग रणनीति की अभिव्यक्ति के रूप में देखा जाता है।
  • चीन की ऋण जाल कूटनीति:
    • चीन की ऋण जाल कूटनीति (Debt Trap Diplomacy) एक ऐसी रणनीति को संदर्भित करती है जिसमें चीन विकासशील देशों को प्रायः अवसंरचना परियोजनाओं के लिये ऋण देता है ताकि वे चीन पर आर्थिक रूप से निर्भर बन जाएँ।
    • इसके परिणामस्वरूप यदि देनदार अपने वित्तीय दायित्वों को पूरा करने में असमर्थ रहता है तो चीन उसकी प्रमुख परिसंपत्तियों पर रणनीतिक लाभ या नियंत्रण हासिल कर सकता है। आलोचकों का तर्क है कि यह दृष्टिकोण चीन को उधार लेने वाले देशों की आर्थिक कमज़ोरियों का फायदा उठाकर विश्व स्तर पर अपना प्रभाव बढ़ाने की अनुमति देता है।
  • चीन की फाइव फिंगर्स ऑफ तिब्बत रणनीति:
    • ‘फाइव फिंगर्स ऑफ तिब्बत’ पद का उपयोग तिब्बत के संबंध में चीन के क्षेत्रीय दावों और रणनीतिक दृष्टिकोण का वर्णन करने के लिये किया जाता है।
    • यह रूपक या मेटाफर तिब्बत को एक हथेली के रूप में वर्णित करता है, जहाँ चीन इसके आस-पास के पाँच क्षेत्रों (फाइव फिंगर्स) को नियंत्रित या प्रभावित करने की इच्छा रखता है।
    • फाइव फिंगर्स निम्नलिखित क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं:
      • लद्दाख: लद्दाख पर नियंत्रण हासिल करने से चीन को पाकिस्तान तक निर्बाध पहुँच प्राप्त हो जाएगी।
      • नेपाल: नेपाल पर अपना प्रभाव स्थापित करने से चीन को भारत के हृदय स्थल तक रणनीतिक पहुँच प्राप्त हो जाएगी।
      • सिक्किम: सिक्किम पर नियंत्रण से चीन को भारत के ‘चिकेन नेक’ (सिलीगुड़ी कॉरिडोर) को अलग करने का सामरिक लाभ प्राप्त होगा, जहाँ पूर्वोत्तर राज्य प्रभावी रूप से भारतीय मुख्य भूमि से पृथक किये जा सकते हैं।
      • भूटान: भूटान पर नियंत्रण हासिल करने से चीन बांग्लादेश के निकट पहुँच जाएगा, जिससे उसे बंगाल की खाड़ी तक एक संभावित मार्ग उपलब्ध हो जाएगा और चीन का क्षेत्रीय प्रभाव बढ़ जाएगा।
      • अरुणाचल प्रदेश: अरुणाचल प्रदेश पर नियंत्रण हासिल करने से चीन भारत के पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र पर हावी हो जाएगा, जिससे क्षेत्र में उसकी सैन्य पहुँच और रणनीतिक प्रभाव की वृद्धि होगी।
  • चीन के ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ द्वारा भारत की रणनीतिक घेराबंदी:
    • चीन का ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ (String of Pearls) एक भू-राजनीतिक और रणनीतिक पहल को संदर्भित करता है जिसमें हिंद महासागर क्षेत्र में विभिन्न रणनीतिक स्थानों पर चीन द्वारा वित्तपोषित, स्वामित्व या नियंत्रित बंदरगाहों एवं अन्य समुद्री अवसंरचना सुविधाओं के एक नेटवर्क का निर्माण करना शामिल है।
    • चीन के स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स से जुड़े कुछ उल्लेखनीय स्थानों में पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह, श्रीलंका का हंबनटोटा बंदरगाह, बांग्लादेश का चटगाँव बंदरगाह और ‘हॉर्न ऑफ अफ्रीका’ का जिबूती शामिल हैं।

चीन के आक्रामक कदमों पर भारत की प्रतिक्रिया

  • वैश्विक रणनीतिक गठबंधन:
    • भारत हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के प्रभाव को सामूहिक रूप से संबोधित करने के लिये समान विचारधारा वाले देशों के साथ सक्रिय रूप से संलग्न हुआ है।
    • क्वाड (QUAD): यह चार लोकतांत्रिक देशों—भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान का समूह है। सभी चार राष्ट्र लोकतांत्रिक राष्ट्र होने का एक समान आधार रखते हैं तथा निर्बाध समुद्री व्यापार एवं सुरक्षा के साझा हित का समर्थन करते हैं।
    • I2U2: यह भारत, इज़रायल, अमेरिका और यूएई का एक नया समूह है। इन देशों के साथ गठबंधन के निर्माण से क्षेत्र में भारत की भू-राजनीतिक स्थिति सुदृढ़ हुई है।
  • भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (India-Middle East-Europe Economic Corridor- IMEC):
    • वैकल्पिक व्यापार और कनेक्टिविटी गलियारे के रूप में लॉन्च किये गए IMEC का लक्ष्य अरब सागर तथा मध्य-पूर्व में भारत की उपस्थिति को सुदृढ़ करना है।
    • वैश्विक अवसंरचना और निवेश के लिये साझेदारी (Partnership for Global Infrastructure Investment- PGII) द्वारा वित्तपोषित IMEC, G7 देशों के समर्थन से चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के प्रति-पहल के रूप में अपनी भूमिका निभाएगा।
  • अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (International North-South Transport Corridor- INSTC):
    • भारत, ईरान और रूस के बीच एक समझौते के माध्यम से स्थापित INSTC 7200 किलोमीटर के व्यापक मल्टी-मोड परिवहन नेटवर्क का सृजन करता है जो हिंद महासागर, फारस की खाड़ी और कैस्पियन सागर को आपस में जोड़ता है।
    • ईरान में स्थित चाहबहार बंदरगाह इसका प्रमुख नोड है जो अरब सागर और होर्मुज़ जलडमरूमध्य में चीन की गतिविधियों पर रणनीतिक रूप से नज़र रखता है और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के ग्वादर बंदरगाह का एक विकल्प प्रदान करता है।
  • हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA):
    • यह हिंद महासागर की सीमा से लगे देशों के बीच आर्थिक सहयोग और क्षेत्रीय एकीकरण को बढ़ावा देने के लिये स्थापित एक अंतर-सरकारी संगठन है।
    • IORA के सदस्य देश हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में व्यापार, निवेश और सतत विकास से संबंधित विभिन्न पहलों पर कार्य करते हैं।
  • भारत की ‘नेकलेस ऑफ डायमंड’ रणनीति:
    • चीन की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ रणनीति के जवाब में भारत ने ‘नेकलेस ऑफ डायमंड’ (Necklace of Diamonds) रणनीति अपनाई है, जहाँ अपनी नौसैनिक उपस्थिति को बढ़ाकर, सैन्य अड्डों का विस्तार कर और क्षेत्रीय देशों के साथ राजनयिक संबंधों को मज़बूत कर चीन को घेरने पर बल दिया गया है।
      • इस रणनीति का उद्देश्य हिंद-प्रशांत और हिंद महासागर क्षेत्रों में चीन के सैन्य नेटवर्क एवं प्रभाव का मुकाबला करना है।

चीन के साथ जटिल विवादों को प्रभावी ढंग से सुलझाने के लिये उठाए जाने वाले कदम:

  • ‘शांति के लिये युद्ध’:
    • भारत को चीन के साथ संघर्ष की संभावना के लिये तैयार रहने की ज़रूरत है और इसके लिये अपनी सैन्य क्षमताओं को बढ़ावा देना चाहिये।
    • रक्षा पर संसदीय स्थायी समिति ने अनुशंसा की है कि भारत की निवारक/प्रतिरोधक स्थिति को बनाए रखने के लिये रक्षा हेतु आवंटन को सकल घरेलू उत्पाद का 3% होना चाहिये।
    • सीमा पर सड़कों और पुलों जैसे बुनियादी ढाँचे के विकास से दोनों देशों को दूर-दराज़ के इलाकों तक पहुँचने में मदद मिल सकती है तथा इससे किसी भी गलतफहमी या संघर्ष की संभावना कम हो सकती है।
  • सामर्थ्य की स्थिति से कूटनीतिक संवाद:
    • मुद्दों का विभाजन: भिन्न-भिन्न चुनौतियों को पृथक कर वार्ताकार प्रत्येक विशेष पहलू के अनुरूप समाधान विकसित कर सकते हैं
    • सीमा विवादों को संबोधित करना: राजनयिक साधनों और समझौता वार्ताओं के माध्यम से जारी सीमा विवादों को हल करने को प्राथमिकता दी जाए।
    • उच्च-स्तरीय वार्ता में शामिल होना: दोनों देशों को मौजूदा मुद्दों पर चर्चा करने और इन्हें हल करने के लिये उच्च-स्तरीय राजनयिक वार्ताओं में शामिल होना चाहिये।
      • भारत और चीन के विदेश मंत्रियों ने लद्दाख सीमा पर तनाव कम करने के लिये वर्ष 2020 में मॉस्को में ‘पाँच सूत्री’ समझौते पर हस्ताक्षर किये थे।
      • विश्वास-निर्माण उपाय (CBMs) लागू करें: गलतफहमी और आकस्मिक तनाव वृद्धि को रोकने के लिये दोनों देशों के सैन्य बलों के बीच संचार चैनलों में सुधार करें।
  • विदेशी मामलों में रणनीतिक स्वायत्तता:
    • भारत की चीन नीति के भू-राजनीतिक निहितार्थों का अपना एक स्वतंत्र तर्क है।
    • भारत को एकमात्र क्वाड राष्ट्र या महत्त्वपूर्ण शक्ति नहीं बने रहना चाहिये जो चीन के साथ संवाद में शामिल नहीं है।
    • अमेरिका-चीन संबंधों में संभावित बदलाव के बारे में आशंका व्यक्त करने के बजाय भारत को अमेरिका और पश्चिम के साथ मौजूदा अवसरों का लाभ उठाने को प्राथमिकता देनी चाहिये।
    • रणनीतिक फोकस में वैश्विक शक्ति पदानुक्रम में भारत का तेज़ी से उभार, चीन के साथ रणनीतिक अंतराल को कम करना और सैन्य निरोध को मज़बूत करना शामिल होना चाहिये।
  • आर्थिक सहयोग:
    • आयात में विविधता लाना: भारत को वियतनाम, दक्षिण कोरिया, जापान, ताइवान और इंडोनेशिया जैसे अन्य देशों से अपने आयात में विविधता लाकर चीनी आयात पर अपनी निर्भरता कम करने की आवश्यकता है।
    • निर्यात को बढ़ावा: भारत चीन को अपना निर्यात बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर सकता है। भारत को इंजीनियरिंग वस्तुओं, इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स और रसायन जैसे उच्च मूल्य उत्पादों के निर्यात पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
    • घरेलू उद्योगों का विकास करना: भारत को आयात पर निर्भरता कम करने के लिये अपने घरेलू उद्योगों को विकसित करने की आवश्यकता है। इससे न केवल व्यापार असंतुलन को कम करने में मदद मिलेगी बल्कि भारत में रोज़गार के अवसर भी पैदा होंगे।
    • FTAs की समीक्षा करना: भारत को निर्यात बढ़ाने और व्यापार घाटे को कम करने के लिये चीन के साथ FTA पर हस्ताक्षर करने पर भी विचार करना चाहिये।
  • सांस्कृतिक आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करना:
    • लोगों के परस्पर संपर्क को प्रोत्साहित करना: भारत और चीन के लोगों के बीच समझ को बढ़ावा देने के लिये सांस्कृतिक आदान-प्रदान, शैक्षिक कार्यक्रमों तथा पर्यटन को प्रोत्साहित करें।
    • ट्रैक II संवादों को बढ़ावा देना: नए दृष्टिकोण और विचारों में योगदान के लिये विद्वानों, चिंतक समूह (थिंक टैंक) तथा नागरिक समाज को शामिल करते हुए गैर-सरकारी आदान-प्रदान को प्रोत्साहित किया जाए।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में शामिल होना:
    • वैश्विक मुद्दों पर सहयोग करना: विश्व मंच पर संयुक्त नेतृत्व का प्रदर्शन करते हुए जलवायु परिवर्तन, सार्वजनिक स्वास्थ्य और आतंकवाद-विरोध जैसी वैश्विक चुनौतियों पर मिलकर कार्य करें।
    • बहुपक्षीय मंचों में शामिल होना: साझा चिंताओं को दूर करने और क्षेत्रीय एवं वैश्विक मुद्दों पर सहयोग को बढ़ावा देने के लिये बहुपक्षीय मंचों में संलग्न होना चाहिये।
  • हाईटेक - नई विदेश नीति:
    • संयुक्त अनुसंधान और नवाचार: दोनों देशों के आर्थिक और प्रौद्यिगिकीय लाभ के लिये प्रौद्योगिकी, अनुसंधान एवं नवाचार में सहयोग को प्रोत्साहित करना।
    • पर्यावरणीय मुद्दों पर संयुक्त प्रयास: साझा हितों को उजागर करने के लिये वायु प्रदूषण और जल प्रबंधन जैसे पर्यावरणीय पहलों पर सहयोग करें।
  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नेट सुरक्षा प्रदाता के रूप में उभरना:
    • समुद्री सुरक्षा: भारत को महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्गों में नौवहन की सुरक्षा एवं स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के प्रयासों में भागीदारी करनी चाहिये, जिससे हिंद-प्रशांत में समग्र सुरक्षा वास्तुकला में योगदान दिया जा सके।
    • मानवीय सहायता: भारत को मानवीय सहायता और आपदा राहत कार्यों में सक्रिय रूप से भाग लेकर क्षेत्रीय सुरक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता बनाए रखनी चाहिये।

निष्कर्ष

महान शक्ति समीकरण में परिवर्तन का आकलन करना और प्रतिक्रियाएँ तैयार करना किसी भी देश की विदेश नीति का एक बुनियादी पहलू है। भारत के लिये, मुख्य ध्यान इस पर होना चाहिये कि अमेरिका के साथ अपने गठबंधन को आगे बढ़ाने के लिये उभरते अवसरों के लाभ उठाए और चीन के साथ जटिल संबंधों के बीच कुशलता से आगे बढ़े। अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली में भारत का उत्थान उसे महान शक्ति संबंधों में किसी भी अप्रत्याशित बदलाव को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने की स्थिति प्रदान करता है।