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  • 01 Aug 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    दिवस- 22: श्रीलंका और भारत के बीच राजनयिक संबंधों से संबंधित एक विवादित मामले के रूप में कच्चातीवु द्वीप से जुड़ी जटिलताओं का परीक्षण कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण :

    • कच्चातीवु द्वीप और इसके भौगोलिक महत्त्व का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • भारत-श्रीलंका संबंधों पर कच्चातीवु द्वीप से जुड़ी जटिलताओं पर चर्चा कीजिये।
    • कच्चातीवु मुद्दे के समाधान के लिये उपाय सुझाइये।
    • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    कच्चातीवु द्वीप, भारत के दक्षिण-पूर्वी तट (तमिलनाडु) और श्रीलंका के उत्तरी तट के बीच पाक जलडमरूमध्य में स्थित निर्जन द्वीपों की एक शृंखला है। ये द्वीप अपनी रणनीतिक स्थिति और भारत तथा श्रीलंका दोनों की मछली पकड़ने की गतिविधियों में उनके महत्त्व के कारण ऐतिहासिक रूप से महत्त्वपूर्ण रहे हैं।

    मुख्य बिंदु:

    भारत-श्रीलंका संबंधों पर कच्चातीवु द्वीप से जुड़ी जटिलताएँ :

    • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
      • भारत और श्रीलंका के बीच कच्चातीवु पर स्वामित्व विवाद, जो ब्रिटिश राज के दौरान मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा था, वर्ष 1974 तक जारी रहा, जिसमें दोनों देशों ने द्वीप को अपना-अपना बताया।
      • चूँकि 1505 से 1658 ई. तक द्वीप पर नियंत्रण रखने वाले पुर्तगालियों का इस द्वीप पर अधिकार क्षेत्र था, इसलिये श्रीलंका ने कच्चातिवु पर संप्रभुता का दावा किया।
    • मछुआरों के मुद्दे:
      • वर्ष 1974 में भारत-श्रीलंका समुद्री समझौते के तहत इस द्वीप को श्रीलंका को हस्तांतरित किया गया।
      • समझौते के अनुच्छेद 4 में यह निर्धारित किया गया था कि प्रत्येक राज्य के पास जल, द्वीप, महाद्वीपीय मग्नतट और पाक जलडमरूमध्य तथा पाक खाड़ी में समुद्री सीमा के अपने पक्ष में अवभूमि पर संप्रभुता एवं अनन्य अधिकार क्षेत्र व नियंत्रण होगा तथा कच्चाथीवु द्वीप को श्रीलंकाई जलक्षेत्र में आने वाला निर्धारित किया गया था।
        • अगले अनुच्छेद में यह भी कहा गया कि “भारतीय मछुआरे और तीर्थयात्री पहले की तरह द्वीप पर पहुँच सकेंगे तथा इन उद्देश्यों के लिये श्रीलंका द्वारा उन्हें यात्रा दस्तावेज़ या वीज़ा प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं होगी”।
      • इस समझौते से मछली पकड़ने के अधिकार की समस्या का समाधान नहीं हुआ क्योंकि दोनों पक्षों ने इसकी अलग-अलग व्याख्या की। परिणामस्वरूप, श्रीलंका ने भारतीय मछुआरों की गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया, जिसमें आराम करना, जाल सुखाना और बिना वीज़ा के कैथोलिक धर्मस्थल पर जाना शामिल है।
    • मानवाधिकार संबंधी चिंताएँ: श्रीलंका द्वारा कच्चातीवु के आस-पास मछली पकड़ने की गतिविधियों पर लगाए गए प्रतिबंधों ने मानवीय चिंताओं को जन्म दिया है, जिसमें भारतीय मछुआरों की गिरफ्तारी, उत्पीड़न और जानमाल के नुकसान के मामले शामिल हैं।
    • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: कच्चातीवु पर नियंत्रण भारत को इस क्षेत्र में समुद्री गतिविधियों की निगरानी करने में रणनीतिक लाभ प्रदान करता है, जिसमें जहाज़ों की आवाजाही एव संभावित सुरक्षा संबंधी खतरे शामिल हैं।
      • भारत ने तस्करी और अन्य अवैध गतिविधियों के लिये कच्चातीवु के उपयोग पर चिंता व्यक्त की है, जो सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न कर सकती हैं।
    • पर्यावरण संबंधी चिंताएँ: भारतीय और श्रीलंकाई मछुआरों द्वारा अत्यधिक मछली पकड़ने से पर्यावरण का क्षरण हो सकता है, जिससे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा हो सकता है।
    • राजनयिक चुनौतियाँ: तमिलनाडु में राष्ट्रवादी भावनाएँ अक्सर भारत की विदेश नीति को प्रभावित करती हैं, स्थानीय राजनीतिक दबाव सरकार से भारतीय मछुआरों के अधिकारों की रक्षा में अधिक सक्रिय रुख अपनाने का आग्रह करते हैं। यह घरेलू दबाव भारत एवं श्रीलंका के बीच कूटनीतिक तनाव उत्पन्न कर सकता है।

    भारत और श्रीलंका के बीच कच्चातीवु मुद्दे को सुलझाने के उपाय:

    • कूटनीतिक वाद-विवाद: मछली पकड़ने के अधिकार और संप्रभुता संबंधी चिंताओं पर ध्यान केंद्रित करने हेतु भारत तथा श्रीलंका के बीच नियमित कूटनीतिक संवाद आयोजित करना।
      • भारत और श्रीलंका के बीच समुद्री सुरक्षा एवं सहयोग पर चर्चा को सुविधाजनक बनाने के लिये बिम्सटेक या IORA जैसे क्षेत्रीय निकायों को शामिल करना।
    • वर्ष 1974 के समझौते का पुनर्मूल्यांकन: कच्चातीवु को श्रीलंका को सौंपने वाले 1974 के समझौते पर, विशेष रूप से बदलते सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए, फिर से विचार करना साथ ही मछली पकड़ने के अधिकार और स्थानीय आजीविका पर इसके प्रभावों का मूल्यांकन करना।
    • द्विपक्षीय व्यापार समझौते: मत्स्य पालन और संबंधित उद्योगों में संयुक्त उद्यमों के प्रावधानों सहित दोनों देशों को लाभ पहुँचाने वाले व्यापार समझौतों के माध्यम से आर्थिक संबंधों को बढ़ाना।
      • भारत पारंपरिक रूप से श्रीलंका के सबसे बड़े व्यापार भागीदारों में से एक रहा है और श्रीलंका सार्क में भारत के सबसे बड़े व्यापार भागीदारों में से एक बना हुआ है।
    • श्रीलंका के 60% से अधिक निर्यात भारत-श्रीलंका मुक्त व्यापार समझौते का लाभ उठाते हैं।
    • संयुक्त संरक्षण प्रयास: समुद्री जैवविविधता को संरक्षित करने और संधारणीय मछली पकड़ने को बढ़ावा देने के लिये कच्चातीवु क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण पहलों पर सहयोग करना।
      • कच्चतीवु को शामिल करते हुए पर्यटन से संबंधित कार्यक्रमों की शुरूआत करना, जिससे द्वीप और उसके संसाधनों के लिये साझा स्वामित्त्व एवं ज़िम्मेदारी की भावना उत्पन्न हो।
      • वर्ष 2022 में भारत 100,000 से अधिक पर्यटकों के साथ श्रीलंका के लिये पर्यटकों का सबसे बड़ा स्रोत था।
    • सामुदायिक जुड़ाव: तमिलनाडु और श्रीलंका में मछली पकड़ने वाले समुदायों के साथ मिलकर उनकी चिंताओं तथा आकांक्षाओं को समझें एवं यह सुनिश्चित करें कि निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में उनकी आवाज़ सुनी जाए।
    • संयुक्त अभ्यास: दोनों देशों की नौसेनाओं के बीच विश्वास और सहयोग बनाने के लिये समुद्री सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हुए संयुक्त सैन्य अभ्यास करना।
    • भारत और श्रीलंका संयुक्त सैन्य (मित्र शक्ति) तथा नौसेना अभ्यास (SLINEX) आयोजित करते हैं।

    निष्कर्ष :

    कच्चातीवु मुद्दे को संबोधित करने के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें कूटनीतिक जुड़ाव, सामुदायिक भागीदारी और क्षेत्रीय सहयोग को शामिल किया गया हो। SAGAR (क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा एवं विकास) पहल के तहत भारत के दीर्घकालिक दृष्टिकोण का लाभ उठाकर, भारत तथा श्रीलंका दोनों कच्चातीवु मुद्दे को प्रभावी ढंग से हल कर सकते हैं। यह सहयोगात्मक ढाँचा न केवल तात्कालिक चिंताओं को संबोधित करता है बल्कि दोनों देशों के बीच समग्र संबंधों को भी मज़बूत करता है, जिससे क्षेत्र में स्थायी शांति एवं समृद्धि में योगदान मिलता है।

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