31 Jul 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | सामाजिक न्याय
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की अवधारणा का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में इसकी भूमिका पर प्रकाश डालिये।
- भारत में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में प्रमुख चुनौतियों की पहचान कीजिये।
- निष्कर्ष के तौर पर, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल को मज़बूत करने के लिये रणनीति सुझाइए।
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परिचय:
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल स्वास्थ्य और कल्याण के लिये समाज का एक दृष्टिकोण है जो व्यक्तियों, परिवारों तथा समुदायों की आवश्यकताओं एवं प्राथमिकताओं पर केंद्रित है। यह स्वास्थ्य के व्यापक निर्धारकों को संबोधित करता है और शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक स्वास्थ्य व कल्याण के व्यापक एवं परस्पर संबंधित पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करता है।
मुख्य भाग:
प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की भूमिका:
- अभिगम्यता (पहुँच) और सामर्थ्य: भारत में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल (PHC) का उद्देश्य विशेष रूप से वंचित और ग्रामीण आबादी के लिये पहुँच को बढ़ाना है।
- आयुष्मान भारत योजना के तहत स्थापित स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों (HWC) का उद्देश्य किफायती लागत पर निवारक, प्रोत्साहनात्मक तथा उपचारात्मक देखभाल सहित व्यापक स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करना है।
- निवारक और संवर्द्धक देखभाल: प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के मुख्य कार्यों में से एक स्वास्थ्य को बढ़ावा देना और बीमारियों की रोकथाम करना है।
- जैसा कि वर्ष 2018 अस्ताना घोषणा में मान्यता दी गई है, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल (PHC) दृष्टिकोण आज की स्वास्थ्य और स्वास्थ्य प्रणाली की चुनौतियों को स्थायी रूप से हल करने का सबसे प्रभावी तरीका है। PHC प्रणाली 80% तक स्वास्थ्य आवश्यकताओं से निपट सकती है और विशेष स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की आवश्यकता को कम कर सकती है।
- देखभाल की निरंतरता: प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल दीर्घकालिक बीमारियों से पीड़ित व्यक्तियों के लिये देखभाल की निरंतरता सुनिश्चित करती है।
- यह निरंतरता मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदय रोग जैसी स्थितियों के प्रबंधन के लिये महत्त्वपूर्ण है, जिनके लिये नियमित निगरानी तथा जीवनशैली में समायोजन की आवश्यकता होती है।
भारत में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की प्रमुख चुनौतियाँ
- अपर्याप्त चिकित्सा अवसंरचना: भारत में अस्पतालों की कमी है (विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में) और कई मौजूदा स्वास्थ्य सुविधाओं में बुनियादी उपकरणों एवं संसाधनों की कमी है।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल 2021 के अनुसार, भारत में लगभग 25,000 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) हैं, जो अक्सर संसाधनों की कमी से जूझते हैं और उनमें बुनियादी सुविधाओं तथा चिकित्सा उपकरणों का अभाव होता है।
- स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों की कमी: डॉक्टरों, नर्सों और संबद्ध स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं सहित प्रशिक्षित स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों की, विशेष रूप से ग्रामीण तथा वंचित क्षेत्रों में काफी कमी है।
- भारत में प्रति 1,000 जनसंख्या पर केवल 0.7 डॉक्टर हैं, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुशंसित प्रति 1,000 लोगों पर 1.5 डॉक्टरों के अनुपात से काफी कम है।
- भारत में प्रत्येक एलोपैथिक डॉक्टर कम-से-कम 1,511 लोगों की सेवा करता है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रति 1,000 लोगों पर एक डॉक्टर के मानक से बहुत अधिक है।
- प्रशिक्षित नर्सों की कमी और भी गंभीर है, नर्स-जनसंख्या अनुपात 1:670 है जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानक 1:300 है।
- सीमित वित्तपोषण और संसाधन: प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के लिये अपर्याप्त वित्तपोषण से बुनियादी ढाँचे का विकास, मानव संसाधन और आवश्यक दवाओं तथा आपूर्ति की उपलब्धता प्रभावित होती है।
- विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद, भारत का स्वास्थ्य देखभाल व्यय वित्त वर्ष 2023 के लिये सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 2.1% है, जो कि अधिकांश देशों द्वारा आमतौर पर खर्च किये जाने वाले 5-12.5% से काफी कम है।
- आउट-ऑफ-पॉकेट एक्सपेंडिचर पर निर्भरता: भारत में स्वास्थ्य देखभाल लागत का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा रोगियों द्वारा स्वयं वहन किया जाता है, जिससे वित्तीय कठिनाई देखने को मिलती है।
- NHA का अनुमान है कि भारत में कुल स्वास्थ्य व्यय का 47% हिस्सा स्वयं रोगी द्वारा वहन किया जाता है, जिससे परिवारों पर काफी वित्तीय बोझ पड़ता है।
- शहरी-ग्रामीण विभाजन: शहरी क्षेत्रों में ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में स्वास्थ्य सेवाओं तक बेहतर पहुँच हो सकती है, जिससे स्वास्थ्य असमानताएँ बढ़ सकती हैं।
- संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी ढाँचे, चिकित्सा कार्यबल और अन्य स्वास्थ्य संसाधनों का लगभग 75 प्रतिशत हिस्सा शहरी क्षेत्रों में केंद्रित है, जहाँ केवल 27 प्रतिशत आबादी रहती है।
निष्कर्ष:
इन चुनौतियों से निपटने के लिये व्यापक नीतिगत सुधार, अधिक वित्तपोषण, सामुदायिक सहभागिता और एक मज़बूत प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल बुनियादी ढाँचे के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है जो पहुँच, गुणवत्ता तथा समानता को प्राथमिकता देता है। प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में निवेश करके, भारत स्वास्थ्य परिणामों में सुधार कर सकता है और अपनी आबादी के लिये एक स्वस्थ भविष्य सुनिश्चित कर सकता है।