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31 Jul 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 2
सामाजिक न्याय
दिवस- 21: निर्धनता एक ऐसी समस्या है जिसे हम भारत जैसे देश में नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते हैं, जहाँ धन का संकेंद्रण कुछ चुनिंदा लोगों के पास है। चर्चा कीजिये (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में निर्धनता की अवधारणा को एक खतरे के रूप में संक्षेप में प्रस्तुत कीजिये।
- असमानता और निर्धनता के बीच के अंतर्संबंध पर प्रकाश डालिये।
- असमानता और निर्धनता के परस्पर जुड़े मुद्दों को संबोधित करने के लिये उपाय सुझाइये।
- उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
विश्व बैंक के अनुसार, निर्धनता को "सुख-सुविधा में स्पष्ट अभाव" के रूप में परिभाषित किया गया है, जो समाज में कार्य करने के लिये व्यक्तियों की क्षमताओं पर केंद्रित है। गरीब व्यक्ति अक्सर अपर्याप्त आय, शिक्षा, स्वास्थ्य और राजनीतिक स्वतंत्रता का अनुभव करते हैं। विश्व बैंक प्रति व्यक्ति प्रति दिन $2.15 से कम पर जीवन यापन करने को अत्यधिक निर्धनता के रूप में परिभाषित करता है।
धन का संकेंद्रण समाज के भीतर परिसंपत्तियों और संसाधनों के असमान वितरण को संदर्भित करता है, जहाँ आबादी का एक छोटा प्रतिशत कुल धन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा रखता है। भारत दुनिया के सबसे असमान देशों में से एक है, जहाँ शीर्ष 10% आबादी के पास कुल राष्ट्रीय धन का 77% हिस्सा है।
मुख्य भाग:
धन के संकेंद्रण और निर्धनता के बीच अंतर्संबंध:
- असमान धन वितरण: धन वितरण में असमानता के कारण संसाधनों का कुछ लोगों के हाथों में संकेंद्रण हो जाता है, जिससे आबादी का एक बड़ा हिस्सा बुनियादी ज़रूरतों तक पहुँच से वंचित रह जाता है। यह असमानता निर्धनता में योगदान देती है, क्योंकि आर्थिक सीढ़ी के सबसे निचले पायदान पर रहने वाले लोग अपने जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिये संघर्ष करते हैं।
- विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 के अनुसार, भारत विश्व के सबसे असमान देशों में से एक है, जहाँ सबसे अमीर 10% और 1% आबादी देश के कुल राजस्व का क्रमशः 57% और 22% है। निर्धनता का अनुपात 50% से घटकर 13% हो गया है।
- अवसरों तक पहुँच का अभाव: असमानता हाशिये पर पड़े समूहों के लिये शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और रोज़गार के अवसरों तक पहुँच को सीमित करती है। जब कुछ आबादी को व्यवस्थित रूप से इन आवश्यक सेवाओं से बाहर रखा जाता है, तो निर्धनता से बचने की उनकी क्षमता कम हो जाती है, जिससे वंचितता का चक्र चलता रहता है।
- जनगणना 2011 के अनुसार अनुसूचित जनजातियों (ST) की साक्षरता दर 59% थी जबकि अखिल भारतीय स्तर पर समग्र साक्षरता दर 73% थी।
- सीमित सामाजिक गतिशीलता: असमानता के उच्च स्तर के परिणामस्वरूप अक्सर निम्न सामाजिक गतिशीलता होती है, जहाँ गरीब पृष्ठभूमि के व्यक्तियों को अपनी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार करना चुनौतीपूर्ण लगता है। ऊपर की ओर गतिशीलता की यह कमी निर्धनता को बढ़ाती है, क्योंकि परिवार पीढ़ियों से वंचितता के चक्र में फँसे रहते हैं।
- विश्व आर्थिक मंच की वैश्विक सामाजिक गतिशीलता रिपोर्ट के अनुसार, भारत में एक गरीब परिवार के सदस्य को औसत आय प्राप्त करने में सात पीढ़ियाँ लग जाएंगी।
- राजनीतिक असमानता को बढ़ावा: आर्थिक असमानता राजनीतिक असमानता को बढ़ावा दे सकती है, जहाँ धनी व्यक्तियों या समूहों का नीति-निर्माण पर अधिक प्रभाव होता है। इसका परिणाम अक्सर ऐसी नीतियों में होता है जो अमीरों के पक्ष में होती हैं, जिससे कम आय वाली आबादी और भी हाशिये पर चली जाती है तथा उनकी उन्नति के अवसर सीमित हो जाते हैं।
- 18वीं लोकसभा के लिये चुने गए 543 सांसदों में से लगभग 504 या 93% करोड़पति हैं।
- स्वास्थ्य असमानताएँ: असमानता स्वास्थ्य असमानताओं में योगदान करती है, क्योंकि गरीब व्यक्तियों को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा और पौष्टिक भोजन तक पहुँच की कमी हो सकती है। खराब स्वास्थ्य किसी व्यक्ति की काम करने और जीविकोपार्जन करने की क्षमता में बाधा डाल सकता है, जिससे निर्धनता बढ़ती है तथा आर्थिक क्षमता सीमित होती है।
- भारत की लगभग 74% आबादी स्वस्थ आहार का खर्च वहन नहीं कर सकती तथा 39% को पर्याप्त पोषक तत्त्व नहीं मिल पाते।
- निर्धनता का चक्र: असमानता और निर्धनता के बीच चक्रीय संबंध है, निर्धनता असमानता को भी जन्म दे सकती है।
- विश्व बैंक के एक अध्ययन में पाया गया कि महामारी के कारण हुए आर्थिक नुकसान के कारण वैश्विक स्तर पर जो 7 करोड़ लोग निर्धनता से प्रभावित हुए, उनमें से 5.6 करोड़ लोग भारतीय थे।
असमानता और निर्धनता के परस्पर संबंधित मुद्दों के समाधान हेतु आवश्यक कदम:
- समावेशी ढाँचे को समर्थन देना:
- संवैधानिक प्रावधान लागू करना: नीतिगत उपायों के माध्यम से मूल अधिकारों में निहित समता की संवैधानिक गारंटी लागू करें। इन अधिकारों को सुदृढ़ करने के लिये बनाई गई सरकारी नीतियों को सख्ती से लागू करने की ज़रूरत है।
- प्रगतिशील कराधान: भारत में प्रगतिशील कराधान को लागू करने से यह सुनिश्चित करने के रूप में आय असमानता को कम करने में मदद मिल सकती है कि जो लोग अधिक आय अर्जित करते हैं, वे अपनी आय का अधिक अनुपात करों के रूप में चुकाते हैं।
- समावेशी शासन: नागरिक भागीदारी को प्रोत्साहित कर, पारदर्शिता को बढ़ावा देकर और भ्रष्टाचार को कम कर समावेशी शासन को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। स्थानीय स्वशासन को सशक्त बनाना और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में हाशिये पर स्थिति समुदायों को संलग्न करना भी सकारात्मक कदम होगा।
- निजी क्षेत्र की भागीदारी: समावेशी विकास पर ध्यान केंद्रित करने वाली कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) पहलों को प्रोत्साहित करें। निजी कंपनियों को सामाजिक क्षेत्रों में निवेश करने और सामुदायिक विकास परियोजनाओं का समर्थन करने के लिये प्रोत्साहित करें।
- बुनियादी सुविधाओं की पहुँच बढ़ाना:
- सार्वजनिक सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुँच: सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा लाभ, रोज़गार गारंटी योजनाओं जैसी सार्वजनिक वित्त पोषित उच्च गुणवत्तापूर्ण सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित कर असमानता को व्यापक रूप से कम किया जा सकता है।
- रोज़गार सृजन: भारत के श्रम-गहन विनिर्माण क्षेत्र में उन लाखों लोगों को शामिल करने की क्षमता है जो खेती करना छोड़ रहे हैं, जबकि सेवा क्षेत्र शहरी मध्यम वर्ग को लाभ पहुँचाता है।
- महिला सशक्तीकरण: महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनाने के लिये शिक्षा, रोज़गार एवं उद्यमिता में लैंगिक समानता को बढ़ावा दें।
- सामाजिक और वित्तीय समावेशन:
- भूमि सुधार: भूमि स्वामित्व और किरायेदारी के मुद्दों के समाधान के लिये भूमि सुधार लागू करें। भूमि संसाधनों का निष्पक्ष एवं समतामूलक वितरण सुनिश्चित करें।
- नागरिक समाज को बढ़ावा देना: पारंपरिक रूप से उत्पीड़ित और दबे हुए समूहों को वृहद् आवाज़ प्रदान की जाए, जहाँ इन समूहों के भीतर यूनियनों और संघों जैसे नागरिक समाज समूहों को सक्षम करना शामिल है।
- प्रौद्योगिकी और नवाचार: सभी के लिये नए अवसर पैदा करने के लिये तकनीकी प्रगति को अपनाया जाए।
- सुनिश्चित किया जाए कि तकनीकी प्रगति का लाभ समाज के विभिन्न वर्गों तक पहुँचे।
निष्कर्ष:
नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने भारत में निर्धनता से निपटने और सतत् आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये सामाजिक असमानताओं को दूर करने एवं शिक्षा तथा स्वास्थ्य सेवा में निवेश करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है। असमानता के अंतर्निहित कारणों से निपटने वाली समावेशी नीतियों को अपनाने और लागू करने से, भारत में अधिक समतापूर्ण समाज की ओर संक्रमण की क्षमता है। यह परिवर्तनकारी दृष्टिकोण संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्य 10 की आकांक्षाओं के अनुरूप है।