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30 Jul 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 2
राजव्यवस्था
दिवस- 20: महिला स्वयं सहायता समूहों को सूक्ष्म वित्त प्रदान करने से लैंगिक असमानता, निर्धनता एवं कुपोषण के दुष्चक्र को तोड़ने में किस प्रकार सहायता मिल सकती है? उदाहरण सहित समझाइये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण :
- सूक्ष्म वित्त और स्वयं सहायता समूहों (SHGs) को परिभाषित कीजिये।
- लैंगिक असमानता, गरीबी और कुपोषण के दुष्चक्र को तोड़ने में SHG की भूमिका पर चर्चा कीजिये।
- SHGs में महिलाओं के सामने आने वाली संभावित चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
- इन चुनौतियों से निपटने के उपाय सुझाइये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
सूक्ष्म वित्त या माइक्रोफाइनेंसिंग का तात्पर्य कम आय वाले व्यक्ति या समूह जिनके पास आमतौर पर पारंपरिक बैंकिंग तक पहुँच नहीं है, को वित्तीय सेवाएँ प्रदान करने से है। SHG समुदाय-आधारित संगठन हैं, जिनमें महिलाएँ शामिल होती हैं जो पैसे बचाने, सूक्ष्म ऋण प्राप्त करने और विभिन्न आर्थिक गतिविधियों में एक-दूसरे का समर्थन करने के लिये एक साथ आती हैं।
मुख्य बिंदु:
सूक्ष्म वित्त पोषण, विशेष रूप से स्वयं सहायता समूहों (SHGs) के माध्यम से, महिलाओं को सशक्त बनाने और लैंगिक असमानता, गरीबी एवं कुपोषण के परस्पर जुड़े मुद्दों के समाधान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- लैंगिक असमानता के चक्र को तोड़ना
- वित्तीय स्वतंत्रता के माध्यम से सशक्तीकरण: सूक्ष्म वित्त (माइक्रोफाइनेंसिंग) महिलाओं को ऋण प्राप्त करने में सक्षम बनाता है, जिससे उन्हें छोटे व्यवसाय शुरू करने और आय उत्पन्न करने में मदद मिलती है। यह वित्तीय स्वतंत्रता लैंगिक असमानता के चक्र को तोड़ने में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
- कुदुम्बश्री केरल में गरीबी उन्मूलन का एक उल्लेखनीय कार्यक्रम है, जिसने स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाया है। इस कार्यक्रम ने महिलाओं को खान-पान सेवाएँ, हस्तशिल्प और सूक्ष्म उद्यम जैसी विभिन्न आय-उत्पादक गतिविधियाँ शुरू करने में सफलतापूर्वक सक्षम बनाया है।
- आत्मविश्वास और कौशल का निर्माण: स्वयं सहायता समूहों में भागीदारी से महिलाओं का आत्मविश्वास और निर्णय लेने की क्षमता भी बढ़ती है। वे समूह चर्चा तथा वित्तीय नियोजन में भाग लेती हैं, जिससे उनमें आर्थिक गतिविधियों से परे नेतृत्व कौशल विकसित होता है।
- महाराष्ट्र सखी मंडल कार्यक्रम वित्तीय साक्षरता और व्यवसाय प्रबंधन में प्रशिक्षण प्रदान करता है, महिलाओं को एक सफल सहकारी समिति का नेतृत्व करने के लिये सशक्त बनाता है, जो हस्तनिर्मित शिल्प का उत्पादन करती है तथा नेतृत्व एवं उद्यमिता पर ऐसे प्रशिक्षण के प्रभाव को प्रदर्शित करता है।
- गरीबी पर ध्यान
- आय सृजन: SHGs के माध्यम से सूक्ष्म वित्त सीधे आय सृजन में योगदान प्रदान करता है, जिससे परिवारों को गरीबी से बाहर निकलने में मदद मिलती है। अध्ययनों के अनुसार, SHGs में भाग लेने वाली महिलाओं के नेतृत्व वाले परिवारों में अक्सर आय के स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि होती है।
- वित्त वर्ष 2019- 2024 के दौरान महिला SHGs सदस्यों की आय तीन गुनी हो गई है, शहरी सदस्यों की आय में 4.6 गुना वृद्धि देखी गई है।
- संसाधनों तक पहुँच: SHG स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा सहित आवश्यक संसाधनों तक पहुँच को भी सुगम बनाते हैं। आय में वृद्धि के साथ, परिवार बेहतर स्वास्थ्य सेवाएँ प्राप्त कर सकते हैं तथा अपने बच्चों को स्कूल भेज सकते हैं, जिससे गरीबी चक्र और भी प्रभावित होता है।
- मध्य प्रदेश में नाबार्ड द्वारा समर्थित सरस्वती SHG एक छोटे बचत समूह से एक सफल अचार के व्यवसाय में तब्दील हो गया। वर्तमान में वे विभिन्न प्रकार के अचार बनाते हैं, जिससे उनकी बाज़ार तक पहुँच में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है तथा सभी सदस्यों की आजीविका में सुधार हुआ है।
- आय सृजन: SHGs के माध्यम से सूक्ष्म वित्त सीधे आय सृजन में योगदान प्रदान करता है, जिससे परिवारों को गरीबी से बाहर निकलने में मदद मिलती है। अध्ययनों के अनुसार, SHGs में भाग लेने वाली महिलाओं के नेतृत्व वाले परिवारों में अक्सर आय के स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि होती है।
- कुपोषण से मुकाबला
- बेहतर पोषण विकल्प: महिलाएँ अपने परिवार के स्वास्थ्य और पोषण को अधिक प्राथमिकता देती हैं, जिससे बेहतर आहार संबंधी व्यवहार उत्पन्न होता है। स्वयं सहायता समूहों द्वारा प्रोत्साहित किचन गार्डन जैसी पहल से स्वस्थ उत्पाद प्राप्त होते है, जिससे खाद्य सुरक्षा और पोषण सेवन में वृद्धि होती है।
- तमिलनाडु में स्वयं सहायता समूह अपने सदस्यों के बीच रसोई उद्यान को बढ़ावा देते हैं, जिससे परिवारों को ताज़ी सब्जियाँ उपलब्ध होती हैं तथा खाद्य सुरक्षा एवं पोषण सेवन में उल्लेखनीय वृद्धि होती है।
- स्वास्थ्य जागरूकता और सेवाएँ: स्वयं सहायता समूह स्वास्थ्य जागरूकता के लिये मंच के रूप में कार्य करते हैं, महिलाओं को पोषण, स्वच्छता और स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में शिक्षित करते हैं।
- गुजरात में स्व-रोज़गार महिला संघ (SEWA) द्वारा कार्यशालाओं और सामुदायिक आउटरीच कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिसमें महिलाओं को उचित पोषण तथा स्वच्छता के महत्त्व के बारे में सिखाया जाता है। इस पहल से स्वास्थ्य के बेहतर परिणाम सामने आए हैं, जिससे SEWA द्वारा सेवा प्रदान किये जाने वाले क्षेत्रों में बच्चों में कुपोषण की दर में उल्लेखनीय कमी आई है।
- बेहतर पोषण विकल्प: महिलाएँ अपने परिवार के स्वास्थ्य और पोषण को अधिक प्राथमिकता देती हैं, जिससे बेहतर आहार संबंधी व्यवहार उत्पन्न होता है। स्वयं सहायता समूहों द्वारा प्रोत्साहित किचन गार्डन जैसी पहल से स्वस्थ उत्पाद प्राप्त होते है, जिससे खाद्य सुरक्षा और पोषण सेवन में वृद्धि होती है।
स्वयं सहायता समूहों के समक्ष आने वाली चुनौतियाँ और सीमाएँ:
- प्रारंभिक समर्थन से परे SHG पहल की स्थिरता: SHG की दीर्घकालिक व्यवहार्यता निरंतर बाह्य समर्थन और प्रभावी आंतरिक प्रबंधन पर निर्भर करती है जिसके लिये मज़बूत नेतृत्व, सामुदायिक समर्थन एवं परिचालन लागत को कवर करने के लिये पर्याप्त राजस्व उत्पन्न करने की क्षमता की आवश्यकता होती है।
- बाह्य सहायता पर निर्भरता और अत्यधिक निर्भरता के मुद्दे: SHG को बाह्य सहायता पर निर्भरता के कारण महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जो विशेष रूप से आपदा प्रभावित क्षेत्रों में उनकी आत्मनिर्भरता और दीर्घकालिक व्यवहार्यता में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
- अंतर्विभागीय चुनौतियों को संबोधित करना: SHG को अक्सर जाति, वर्ग और क्षेत्रीय चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी प्रभावशीलता एवं समावेशिता प्रभावित होती है, हाशिये पर रहने वाले समूहों को आमतौर पर लाभ का कुछ अंश ही मिल पाता है।
- कृषि गतिविधियाँ: अधिकांश स्वयं सहायता समूह स्थानीय स्तर पर कार्य करते हैं, जो मुख्य रूप से कृषि गतिविधियों में संलग्न हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में SHG को गैर-कृषि व्यवसायों से परिचित कराया जाना चाहिये और उन्हें अत्याधुनिक मशीनरी प्रदान की जानी चाहिये।
- प्रौद्योगिकी का अभाव: कई स्वयं सहायता समूह अपने संचालन में अल्पविकसित या किसी प्रौद्योगिकी का उपयोग नहीं करते हैं।
- बाज़ार तक पहुँच: SHG द्वारा उत्पादित वस्तुओं की अक्सर बड़े बाज़ारों तक पहुँच नहीं होती है।
- अव्यवस्थित बुनियादी ढाँचा: SHG आमतौर पर ग्रामीण और दूर-दराज़ के क्षेत्रों में स्थित होते हैं, जहाँ सड़कों या रेलवे के माध्यम से कनेक्टिविटी प्रभावित होती है तथा बिजली तक सीमित पहुँच होती है।
- राजनीतिकरण: राजनीतिक संबद्धता और हस्तक्षेप SHG के लिये महत्त्वपूर्ण मुद्दे हैं, जो अक्सर समूह संघर्ष का कारण बनते हैं।
इन चुनौतियों से निपटने के उपाय:
- मानक और दक्षता के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: प्रौद्योगिकी रिकॉर्ड रखने, वित्तीय लेन-देन और संचार में सहायता करने वाले डिजिटल प्लेटफॉर्म के साथ दक्षता एवं मापनीयता में सुधार करके SHG को काफी हद तक बढ़ा सकती है, जैसा कि नाबार्ड की ई-शक्ति परियोजना जैसी पहल में देखा गया है।
- औपचारिक वित्तीय संस्थानों के साथ संबंधों को मज़बूत करना: SBLP जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से SHG को औपचारिक वित्तीय संस्थानों से जोड़ने से उनकी स्थिरता बढ़ती है, अनौपचारिक उधारदाताओं पर निर्भरता कम होती है और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा मिलता है।
- SHG गतिविधियों में पर्यावरणीय स्थिरता को एकीकृत करना: SHG का पर्यावरणीय स्थिरता का एकीकरण लचीलेपन और व्यापक सतत् विकास लक्ष्यों को बढ़ावा देता है।
- समावेशिता के लिये जागरूकता: SHG को समान भागीदारी और लाभ-बँटवारे के लिये भेदभाव संबंधी चिंताओं को दूर करने हतु सदस्यों की सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि पर विचार करते हुए एक समावेशी दृष्टिकोण अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष:
स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाना न केवल व्यक्तिगत विकास को बढ़ावा देता है बल्कि समुदायों के व्यापक सामाजिक-आर्थिक विकास में भी योगदान प्रदान करता है, जो ऐसे कार्यक्रमों में निरंतर समर्थन और निवेश की आवश्यकता को उजागर करता है। जैसा की कहा गया है, "महिलाएँ सामाजिक एवं आर्थिक विकास की कुंजी हैं। जब वे सफल होती हैं, तो पूरा परिवार और समुदाय सफल होता है।"