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दिवस- 20: स्पष्ट सेवा मानक निर्धारित करने और लोगों को उन मानकों से अवगत कराने के क्रम में सिटीज़न चार्टर सरकारी वादों एवं नागरिक अपेक्षाओं के बीच के अंतराल को कम करने में सहायक है। चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

30 Jul 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • सिटीज़न चार्टर और उनके उद्देश्य को परिभाषित कीजिय।
  • सिटीज़न चार्टर की भूमिका पर चर्चा कीजिये ताकि नागरिक अधिकारों को रेखांकित किया जा सके।
  • सिटीज़न चार्टर को लागू करने और उसका पालन करने में आने वाली चुनौतियों का उल्लेख कीजिये।
  • सिटीज़न चार्टर की प्रभावशीलता बढ़ाने के उपाय सुझाइये।
  • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

सिटीज़न चार्टर सेवा वितरण के मानक, गुणवत्ता और समय-सीमा, शिकायत निवारण तंत्र, पारदर्शिता तथा जवाबदेही के प्रति संगठन की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। स्पष्ट सेवा मानक निर्धारित करके और उन्हें सार्वजनिक रूप से ज्ञात करके, नागरिक चार्टर सरकारी वादों एवं नागरिक अपेक्षाओं के बीच के अंतराल को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

चार्टर में निम्नलिखित तत्त्वों को शामिल किया जा सकता है:

  • विज़न और मिशन वक्तव्य
  • संगठन द्वारा किये गये व्यवसाय का विवरण
  • ग्राहकों का विवरण
  • प्रत्येक ग्राहक समूह को प्रदान की गई सेवाओं का विवरण
  • शिकायत निवारण तंत्र का विवरण और उस तक कैसे पहुँचे
  • ग्राहकों से अपेक्षाएँ

सिटीज़न चार्टर तैयार करने के पीछे क्या तर्क है?

  • नागरिकों और सेवा प्रदाताओं के बीच समझौता: नागरिक चार्टर करों के बदले सेवाओं की मात्रा तथा गुणवत्ता के संबंध में नागरिकों एवं सार्वजनिक सेवा प्रदाताओं के मध्य एक समझौते का प्रतिनिधित्व करता है।
  • जनअधिकार: चूँकि सार्वजनिक सेवाओं को नागरिकों द्वारा वित्तपोषित किया जाता है, इसलिये उन्हें उच्च गुणवत्ता, कुशल और लागत प्रभावी सेवाओं की अपेक्षा करने का अधिकार है।
  • लिखित घोषणा: चार्टर सेवा प्रदाताओं द्वारा एक स्वैच्छिक, लिखित घोषणा है जो सेवा की गुणवत्ता, विकल्प, पहुँच, गैर-भेदभाव, पारदर्शिता और जवाबदेही के मानकों की रूपरेखा तैयार करती है।
  • सुशासन को बढ़ावा देना: सरकारी विभागों द्वारा सख्ती से लागू किये जाने पर यह पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने एवं सुशासन को बढ़ावा देने के लिये एक उपकरण के रूप में कार्य करता है।
  • नागरिक केंद्रित: चार्टर को नागरिकों की अपेक्षाओं के अनुरूप होना चाहिये और सेवा प्रावधान की प्रकृति तथा स्पष्ट सेवा वितरण मानकों को परिभाषित करना चाहिये।
  • बदलती मानसिकता: इसका उद्देश्य लोक अधिकारियों (Public Officers) की मानसिकता को जनता पर अधिकार जमाने से बदलकर सार्वजनिक धन को बुद्धिमानी से खर्च करने और आवश्यक सेवाएँ प्रदान करने के अपने कर्त्तव्य को पूरा करना है।
  • कोई एक आकार-सभी के लिये उपयुक्त दृष्टिकोण नहीं: यह चार्टर एक समान नहीं है बल्कि सेवा मानकों को बढ़ाने और उपयुक्त तरीके से सार्वजनिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने की पहल का एक टूलकिट है।
  • संभावित लाभ: चार्टर के सफल कार्यान्वयन से सेवा वितरण में सुधार, जनता के प्रति अधिकारियों की प्रतिक्रिया में वृद्धि और सेवाओं के साथ अधिक सार्वजनिक संतुष्टि हो सकती है।

भारत में सिटीज़न चार्टर पहल को लागू करने में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

भारत में सिटीज़न चार्टर के कार्यान्वयन में कई प्रमुख चुनौतियाँ हैं:

  • प्रारंभिक कार्यान्वयन: भारत में सिटीज़न चार्टर पहल की शुरुआत वर्ष 1997 में हुई और अधिकांश चार्टर कार्यान्वयन के प्रारंभिक चरण में थे।
  • परिवर्तन का विरोध: कर्मचारियों के रूढ़िवादी रवैये और स्थापित नौकरशाही प्रणाली के कारण सरकारी संगठनों में नए विचारों को पेश करना कठिन हो सकता है।
  • वास्तविक जुड़ाव की कमीः कई संगठनों ने मुख्य रूप से टॉप-डाउन निर्देशों के कारण न्यूनतम अथवा बिना किसी सार्थक परामर्श के सिटीज़न चार्टर तैयार किये। परिणामतः इस पहल के प्रति ध्यान केंद्रित किये जाने और प्रतिबद्धता के पुष्टिकरण में कमी हुई।
  • प्रशिक्षण और अभिविन्यास: सफल चार्टर कार्यान्वयन के लिये पूर्णरूप से प्रशिक्षित और संवेदनशील कर्मचारियों की आवश्यकता होती है जो चार्टर की भावना एवं विषयवस्तु को समझते हैं। कई मामलों में कर्मचारियों के पास उचित प्रशिक्षण एवं अभिविन्यास का अभाव था।
  • अधिकारियों के स्थानांतरण द्वारा व्यवधान: घोषणा-पत्र (चार्टर) निर्माण और कार्यान्वयन में शामिल अधिकारियों के बार-बार स्थानांतरण तथा फेरबदल ने रणनीतिक प्रक्रियाओं को बाधित किया एवं प्रगति में बाधा उत्पन्न की।
  • अपर्याप्त जागरूकता अभियान: घोषणा-पत्र के संबंध में ग्राहकों को शिक्षित करने हेतु व्यवस्थित जागरूकता अभियान लगातार आयोजित नहीं किये गए, जिससे इस नई पहल के विषय में जनता की समझ सीमित हो गई।
  • अवास्तविक मानक: कुछ घोषणा-पत्रों में सेवा मानक तथा समय मानदंड शामिल थे जो या तो बहुत उदार थे या बहुत सख्त थे, जिससे अव्यावहारिक उम्मीदें उत्पन्न हुईं और ग्राहक असंतुष्ट हो गए।
  • नागरिक घोषणा-पत्र की मूल अवधारणा को गलत समझना: कुछ मामलों में नागरिक घोषणा-पत्र की मूल अवधारणा को ठीक से नहीं समझा गया। विवरण पुस्तिका (ब्रोशर) और प्रचार पुस्तिका (पेम्पलेट) जैसी संगठनात्मक सामग्री को गलती से घोषणा-पत्र ही समझ लिया गया।

निष्कर्ष :

भारत में दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) की 12वीं रिपोर्ट गैर-अनुपालन के लिये उपायों में स्पष्टता, प्रक्रियाओं के आंतरिक पुनर्गठन और विभिन्न एजेंसियों की अद्वितीय क्षमताओं पर विचार करने वाले एक अनुरूप दृष्टिकोण की सिफारिश करके प्रभावी सिटिज़न चार्टर की आवश्यकता पर ज़ोर देती है। यह निर्माण प्रक्रिया में व्यापक परामर्श, सेवा वितरण के संबंध में सटीक और मात्रात्मक प्रतिबद्धताओं तथा जवाबदेही एवं सेवा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिये मज़बूत शिकायत निवारण तंत्र का समर्थन करता है।