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दिवस- 20: गैर-सरकारी संगठन (NGOs) ऐसे सामाजिक मुद्दों को हल करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जहाँ सरकारी एवं निजी क्षेत्र सीमित भूमिका निभा पाते हैं। भारत में NGOs के महत्त्व को बताते हुए उनके समक्ष आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। उनके प्रभावी संचालन को सुनिश्चित करने हेतु उपाय बताइये। (250 शब्द)

30 Jul 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण :

  • NGOs और समाज में उनके प्राथमिक कार्यों को संक्षेप में परिभाषित कीजिये।
  • NGOs के महत्त्व और भारत में उनके समक्ष आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
  • उनके प्रभावी संचालन को सुनिश्चित करने के उपाय सुझाइये।
  • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

विश्व बैंक द्वारा गैर सरकारी संगठनों को ऐसे गैर-लाभकारी समूहों के रूप में परिभाषित किया गया है जो पीड़ा को कम करने, वंचितों के हितों को बढ़ावा देने, पर्यावरण को संरक्षित करने, आवश्यक सामाजिक सेवाएँ प्रदान करने या सामुदायिक विकास में संलग्न होने के लिये कार्य करते हैं। भारत में लगभग 3.4 मिलियन गैर-सरकारी संगठन (NGOs) हैं जो अन्य गतिविधियों के अलावा हाशिये पर पड़े और वंचित आबादी का समर्थन करते हैं तथा आपदा राहत प्रदान करते हैं।

मुख्य बिंदु :

भारत में गैर सरकारी संगठनों के लिये संवैधानिक प्रावधान:

  • अनुच्छेद 19(1)(c) में संघ बनाने के अधिकार का उल्लेख है;
  • अनुच्छेद 43 में ग्रामीण क्षेत्रों में सहकारी समितियों को बढ़ावा देने के लिये राज्य के प्रयास पर प्रकाश डाला गया है;
  • समवर्ती सूची की प्रविष्टि 28 में उल्लेख है- धर्मार्थ और दान देने वाली संस्थाएँ, धर्मार्थ तथा धार्मिक अनुदान एवं धार्मिक संस्थाएँ।

भारतीय लोकतंत्र में गैर सरकारी संगठनों का महत्त्व:

  • सामाजिक विकास: गैर सरकारी संगठन गरीबी, शिक्षा, स्वास्थ्य और महिला सशक्तीकरण जैसे मुद्दों को संबोधित करने वाले कार्यक्रमों को लागू करके सामाजिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
    • उदाहरण के लिये गैर सरकारी संगठन जैसे संगठन वंचित बच्चों के लिये शिक्षा तक पहुँच में सुधार, साक्षरता दर बढ़ाने और शिक्षा के अंतर को कम करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
  • समर्थन और जागरूकता: NGOs हाशिये पर पड़े समुदायों का समर्थन करते हैं, सामाजिक अन्याय और मानवाधिकार उल्लंघन के बारे में जागरूकता बढ़ाते हैं। वे नीति के समर्थन में संलग्न हैं, सरकारी नीतियों को प्रभावित करने के लिये कार्य करते हैं तथा यह सुनिश्चित करते हैं कि कमज़ोर लोगों की आवाज़ सुनी जाए।
    • पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) जैसे संगठन मानव अधिकारों के उल्लंघन के बारे में जागरूकता बढ़ाने, हाशिये पर पड़े समुदायों के अधिकारों की वकालत करने तथा अन्याय के खिलाफ अभियान चलाने के लिये अथक प्रयास करते हैं।
  • सेवा वितरण: कई गैर सरकारी संगठन विशेष रूप से ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा, स्वच्छता एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण सहित आवश्यक सेवाएँ प्रदान करते हैं।
    • उदाहरण के लिये गूंज हाशिये पर पड़े समुदायों की जीवन स्थितियों में सुधार के लिये संसाधन और कौशल विकास प्रदान करके शहरी गरीबी को दूर करने पर कार्य करता है।
  • सशक्तीकरण: गैर सरकारी संगठन स्वयं सहायता समूहों (SHGs) को बढ़ावा देकर और वित्तीय संसाधनों तक पहुँच को सुगम बनाकर समुदायों को सशक्त बनाया जाता हैं।
    • स्व-नियोजित महिला एसोसिएशन (सेवा) जैसी पहल महिलाओं को वित्तीय स्वतंत्रता प्राप्त करने और अपने अधिकारों की वकालत करने में सक्षम बनाती है, जिससे लैंगिक समानता में योगदान मिलता है।
  • दबाव समूह के रूप में कार्य करना: ऐसे राजनीतिक गैर सरकारी संगठन हैं जो सरकार की नीतियों और कार्यों के विरुद्ध जनमत हासिल करते हैं।
    • भारत में कई गैर सरकारी संगठनों ने महत्त्वपूर्ण कानून बनाने में प्रमुख भूमिका निभाई है, जिनमें पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986, शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009, वन अधिकार अधिनियम 2006 और सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 शामिल हैं।
  • अनुसंधान और क्षमता निर्माण: NGO विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर अध्ययन आयोजित करके नीति और व्यवहार को सूचित करने के लिये अनुसंधान में संलग्न हैं। वे व्यक्तियों और संगठनों के कौशल तथा क्षमताओं को बढ़ाने हेतु क्षमता निर्माण कार्यक्रम भी प्रदान करते हैं, जिससे सतत् विकास को बढ़ावा मिलता है।
    • पर्यावरण एवं ऊर्जा विकास केंद्र (CEED) पर्यावरण संबंधी मुद्दों और संधारणीय ऊर्जा समाधानों पर शोध करता है। वे संधारणीय प्रथाओं तथा नीति वकालत को बढ़ावा देने के लिये स्थानीय समुदायों एवं हितधारकों के लिये क्षमता निर्माण कार्यशालाएँ आयोजित करते हैं।

अपनी महत्ता के बावजूद, भारत में गैर सरकारी संगठनों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जो उनकी प्रभावशीलता में बाधा डालती हैं:

  • वित्तपोषण संबंधी बाधाएँ: कई NGOs पर्याप्त वित्तपोषण प्राप्त करने के लिये संघर्ष करते हैं, अक्सर यह अनुदान और दान पर निर्भर रहते हैं जो असंगत हो सकते हैं। यह वित्तीय अस्थिरता कार्यक्रमों को लागू करने तथा व्यापक दर्शकों तक पहुँचने की उनकी क्षमता को सीमित कर सकते है।
  • विनियामक बाधाएँ: विदेशी फंडिंग की सीमाओं और कठिन अनुपालन प्रक्रियाओं के कारण नियामक परिदृश्य कई चुनौतियों का सामना करता है।
    • विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA) की आलोचना इस बात के लिये की जाती रही है कि इससे NGOs के लिये अंतर्राष्ट्रीय समर्थन प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है, जिससे उनकी परिचालन क्षमता प्रभावित होती है। वर्ष 2015 से 16,000 से अधिक NGO का "उल्लंघन" के कारण FCRA पंजीकरण रद्द कर दिया गया है।
  • क्षमता संबंधी मुद्दे: कुछ NGOs में कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये आवश्यक संगठनात्मक क्षमता और कुशलता की कमी होती है, जिसके कारण परियोजना का निष्पादन में कमी आती है तथा लक्षित समुदायों पर इसका प्रभाव सीमित पड़ता है।
  • जवाबदेही और पारदर्शिता: NGOs को अक्सर अपनी जवाबदेही और पारदर्शिता के बारे में जाँच का सामना करना पड़ता है। जिसके लिये कठोर निगरानी एवं मूल्यांकन तंत्र की आवश्यकता होती है।
    • गृह मंत्रालय (NGO) द्वारा सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च पर विदेशी अनुदान को "विकास परियोजनाओं के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों और कानूनी लड़ाइयों" के वित्तपोषण तथा "भारत के आर्थिक हितों को कमज़ोर करने" के लिये धन का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया गया है।

भारत में गैर सरकारी संगठनों के प्रभावी संचालन को सुनिश्चित करने के लिये कई उपाय:

  • पंजीकरण प्रक्रिया को सरल बनाना: नौकरशाही संबंधी बाधाओं को कम करने के लिये गैर सरकारी संगठनों हेतु पंजीकरण प्रक्रिया को सरल बनाना, जिससे संगठनों की स्थापना में कोई बाधा उत्पन्न न हो।
  • नियमित ऑडिट: जवाबदेही बढ़ाने और हितधारकों के बीच विश्वास को बनाए रखने के लिये नियमित वित्तीय ऑडिट तथा वित्तीय विवरणों का सार्वजनिक प्रकटीकरण अनिवार्य करना।
  • धन के अनुदान में पारदर्शिता: गैर सरकारी संगठनों को धन के अनुदान में पारदर्शिता को अपनाने और धन के स्रोतों का खुलासा करने के लिये प्रोत्साहित करना।
  • राष्ट्रीय मान्यता परिषद की स्थापना: शिक्षाविदों, कार्यकर्त्ताओं और सेवानिवृत्त नौकरशाहों से मिलकर एक राष्ट्रीय मान्यता परिषद का गठन किया जाना चाहिये ताकि गैर सरकारी संगठनों द्वारा अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके।
  • सरकार के साथ साझेदारी: सामाजिक मुद्दों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिये गैर सरकारी संगठनों और सरकारी एजेंसियों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना, संसाधनों एवं विशेषज्ञता का लाभ उठाना आदि।
  • नेटवर्किंग के अवसर: गैर सरकारी संगठनों के लिये नेटवर्क बनाने, अनुभव साझा करने और उनके प्रभाव को बढ़ाने के लिये परियोजनाओं पर सहयोग करने हेतु मंच तैयार करना।
  • सहभागी दृष्टिकोण: गैर सरकारी संगठनों को सहभागी दृष्टिकोण अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना, निर्णय लेने की प्रक्रियाओं और परियोजना कार्यान्वयन में समुदाय के सदस्यों को शामिल करना।

निष्कर्ष :

NGO के लिये यह बहुत ज़रूरी है कि वे अपने कार्य और वित्तीय लेन-देन में उच्च स्तर की पारदर्शिता हासिल करें और उसे बनाए रखें, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उनकी आय तथा व्यय सार्वजनिक जाँच के लिये खुले रहें। जबकि किसी NGO की विश्वसनीयता का मूल्यांकन सिर्फ उसके वित्तपोषण के स्रोत के आधार पर नहीं किया जाना चाहिये चाहे वह घरेलू हो या विदेशी- सरकार को यह पहचानना चाहिये कि राष्ट्रीय सीमाओं के पार विचारों एवं संसाधनों का निर्बाध आदान-प्रदान वैश्विक समुदाय के कार्य के लिये ज़रूरी है।