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दिवस- 19: वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बनने की भारत की महत्त्वाकांक्षा के लिये कुशल श्रम शक्ति क्षमता का उपयोग करना आवश्यक है। टिप्पणी कीजिये। ( 150 शब्द)

29 Jul 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • भारत की वर्तमान आर्थिक स्थिति और उसकी आकांक्षाओं पर संक्षेप में चर्चा कीजिये।
  • कुशल जनशक्ति के महत्त्व का उल्लेख कीजिये।
  • भारत में कौशल पारिस्थितिकी तंत्र में चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
  • कुशल जनशक्ति क्षमता का दोहन करने के लिये रणनीतियाँ सुझाइये।
  • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

भारत में 18 से 35 वर्ष की आयु के 600 मिलियन से अधिक लोग रहते हैं, जहाँ 65% जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु वालों की है। यह जनसांख्यिकी लाभांश कम-से-कम वर्ष 2055-56 तक रहने की उम्मीद है, जो वर्ष 2041 के आस-पास चरम पर होगा जब कार्यशील आयु वर्ग की आबादी (20-59 वर्ष) कुल आबादी का 59% होगी। यह देश के जनसांख्यिकी लाभांश का लाभ उठाने का एक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करता है, बशर्ते कि सही परिस्थितियाँ स्थापित या प्रोत्साहित की जाए। फिर भी, वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बनने की दिशा में भारत की यात्रा अपने कुशल कार्यबल की क्षमता का प्रभावी ढंग से दोहन करने पर निर्भर करती है।

मुख्य बिंदु:

कुशल जनशक्ति का महत्त्व:

  • आर्थिक विकास: एक अच्छी तरह से प्रशिक्षित कार्यबल उत्पादकता, नवाचार और प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाता है तथा विभिन्न क्षेत्रों के समग्र विकास में योगदान देता है।
    • सेंटर फॉर इकोनॉमिक्स एंड बिज़नेस रिसर्च के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था वर्ष 2030 तक 7.3 और वर्ष 2035 तक 10 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँचने की ओर अग्रसर है।
  • रोज़गार सृजन: रोज़गार के अवसर उत्पन्न करने के लिये कुशल कार्यबल आवश्यक है। कौशल विकास पहल रोज़गार चाहने वालों और नियोक्ताओं के बीच के अंतर तथा बेरोज़गारी दरों को कम कर सकती है, साथ ही आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा दे सकती है।
    • भारत कौशल रिपोर्ट 2023 युवाओं के बीच समग्र रोज़गार क्षमता में सुधार को इंगित करती है, जो 46.2% से बढ़कर 50.3% हो गई है।
  • तकनीकी उन्नति: जैसे-जैसे भारत ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहा है, उन्नत प्रौद्योगिकियों, जैसे- कृत्रिम बुद्धिमत्ता, मशीन लर्निंग और स्वचालन को अपनाने तथा लागू करने के लिये कुशल जनशक्ति महत्त्वपूर्ण हो गई है, जो नवाचार एवं विकास के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
    • भारत के ग्रेजुएट स्किल इंडेक्स, 2023 की रिपोर्ट के अनुसार एआई और एमएल क्षेत्रों में भारतीय स्नातकों की रोज़गार दर 48% है। यह निष्कर्ष अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी क्षेत्र में बढ़ती मांग को पूरा करने में सक्षम एक मज़बूत प्रतिभा पूल की उपस्थिति को रेखांकित करता है।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा: वैश्वीकरण के साथ, भारत को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में प्रभावी रूप से प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये कुशल कार्यबल की आवश्यकता है। एक अच्छी तरह से प्रशिक्षित कार्यबल वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में भारत की स्थिति में वृद्धि तथा विदेशी निवेश को आकर्षित कर सकता है।
    • वित्त वर्ष 2023-24 में देश में कुल FDI प्रवाह 70.95 बिलियन डॉलर है। वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान सबसे अधिक FDI इक्विटी प्रवाह प्राप्त करने वाले शीर्ष 5 क्षेत्र सेवा क्षेत्र (वित्त, बैंकिंग, बीमा, गैर-वित्त/व्यवसाय, आउटसोर्सिंग, अनुसंधान एवं विकास, कॉरियर, तकनीकी परीक्षण और विश्लेषण, अन्य (16%), कंप्यूटर सॉफ्टवेयर तथा हार्डवेयर (15%), ट्रेडिंग (6%), दूरसंचार (6%) एवं ऑटोमोबाइल उद्योग (5%) हैं।
  • सामाजिक सशक्तीकरण: कौशल विकास हाशिये पर पड़े समुदायों, खासकर महिलाओं और वंचित समूहों को सशक्त बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उन्हें कौशल प्रदान करके, भारत समावेशिता को बढ़ावा दे सकता है तथा सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को कम कर सकता है।
    • वर्ष 2022-23 में महिला श्रम बल भागीदारी दर बढ़कर 37% हो गई।
  • नवप्रवर्तन और उद्यमिता: भारत में 111 यूनिकॉर्न हैं, जिनका कुल मूल्य 349.67 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, जो नवप्रवर्तन एवं उद्यमिता को बढ़ावा देने में कुशल जनशक्ति की महत्त्वपूर्ण भूमिका को उजागर करता है।
  • सतत् विकास: कुशल जनशक्ति सतत् विकास लक्ष्यों (SGD) को प्राप्त करने के लिये अभिन्न अंग है।
    • राष्ट्रीय कौशल विकास निगम के अनुसार, नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश से लाखों रोज़गार उत्पन्न हो सकते हैं और कार्यान्वयन तथा रखरखाव के लिये कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होगी, जो वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने की भारत की प्रतिबद्धता के अनुरूप है।

भारत में कौशल पारिस्थितिकी तंत्र में चुनौतियाँ:

  • प्रशिक्षण कार्यक्रमों की गुणवत्ता:
    • भारत में कई कौशल विकास कार्यक्रमों की आलोचना उद्योग की आवश्यकताओं के साथ उनके संरेखण की कमी के लिये की गई थी। पुराने पाठ्यक्रम और अपर्याप्त व्यावहारिक प्रशिक्षण के कारण अक्सर अर्जित कौशल तथा नियोक्ताओं द्वारा मांगे जाने वाले कौशल के बीच अंतर पैदा हो जाता है।
      • वैश्विक प्रतिभा प्रतिस्पर्द्धात्मकता सूचकांक के अनुसार, भारत की प्रतिभा प्रतिस्पर्द्धात्मकता रैंकिंग वर्ष 2013 में 103 देशों में 83वें स्थान से गिरकर वर्ष 2023 में 134 देशों में 103वें स्थान पर आ जाएगी।
  • बुनियादी ढाँचे तक पहुँच:
    • विभिन्न क्षेत्रों में प्रशिक्षण अवसंरचना का असमान वितरण एक चुनौती बन गया है, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में कौशल विकास के अवसरों तक अक्सर पहुँच सीमित होती है।
    • प्रशिक्षण संस्थानों में उचित सुविधाओं और प्रौद्योगिकी की कमी ने कौशल कार्यक्रमों की समग्र गुणवत्ता को प्रभावित किया है।
  • प्रौद्योगिकी एकीकरण:
    • कौशल विकास कार्यक्रमों में प्रौद्योगिकी का एकीकरण एक समान नहीं है। डिजिटल संसाधनों तक पहुँच की कमी और अपर्याप्त तकनीकी बुनियादी ढाँचे ने ऑनलाइन शिक्षण तथा ई-कौशल पहलों को अपनाने में बाधा उत्पन्न की है।
  • नीतिगत एवं नियामक चुनौतियाँ:
    • कौशल विकास के लिये विनियामक ढाँचे को उद्योग की बदलती ज़रूरतों और तकनीकी प्रगति के अनुकूल बनाने के लिये परिष्कृत करने की आवश्यकता थी।
    • मान्यता और प्रमाणन प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित एवं सरल बनाना ऐसे क्षेत्र थे जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता थी।
  • प्रभावी निगरानी और मूल्यांकन तंत्र:
    • प्रभावी निगरानी और मूल्यांकन तंत्र का प्रायः अभाव था, जिससे कौशल कार्यक्रमों के प्रभाव का आकलन करना तथा सुधार के क्षेत्रों की पहचान करना चुनौतीपूर्ण हो जाता था।

कुशल जनशक्ति क्षमता के दोहन के लिये रणनीतियाँ:

  • गुणवत्ता आश्वासन और मानकीकरण:
    • यह सुनिश्चित करने के लिये गुणवत्ता आश्वासन तंत्र लागू कर कौशल विकास कार्यक्रम उद्योग मानकों का पालन करना।
    • प्रशिक्षण संस्थानों की गुणवत्ता को प्रमाणित करने के लिये मान्यता प्राप्त निकाय स्थापित कीजिये।
  • उद्योग-अकादमिक सहयोग:
    • वर्तमान उद्योग की ज़रूरतों के अनुरूप हो शैक्षिक संस्थानों और उद्योगों के बीच सहयोग को मज़बूत करना। कौशल कार्यक्रमों के विकास का मार्गदर्शन करने के लिये उद्योग सलाहकार बोर्ड स्थापित करना।
  • लचीले और मॉड्यूलर कार्यक्रम:
    • लचीले और मॉड्यूलर कौशल कार्यक्रम विकसित करना, जो शिक्षार्थियों को चरणबद्ध तरीके से कौशल हासिल करने की अनुमति देते हैं। यह दृष्टिकोण अलग-अलग शैक्षिक पृष्ठभूमि और कॅरियर आकांक्षाओं वाले व्यक्तियों की ज़रूरतों को पूरा कर सकता है।
  • वित्तीय समावेशन:
    • यह सुनिश्चित करना कि वित्तीय बाधाएँ कौशल विकास तक पहुँच में बाधा न बनें। कौशल विकास कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने में व्यक्तियों की सहायता के लिये वित्तीय सहायता, छात्रवृत्ति या कम ब्याज वाले ऋण के मॉडल की खोज करना।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी:
    • निजी कंपनियों को भारत में उभरते उद्यमियों को वित्त पोषण, मार्गदर्शन और संसाधन प्रदान करके नवाचार को बढ़ावा देते हुए स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र में सक्रिय रूप से समर्थन तथा निवेश करना चाहिये।

निष्कर्ष:

भारत के वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बनने के लिये कुशल जनशक्ति महत्त्वपूर्ण है। शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार, उद्योग-अकादमिक सहयोग को बढ़ावा देना, व्यावसायिक प्रशिक्षण को बढ़ावा देना और नीतिगत सहायता प्रदान करके, भारत अपनी कुशल जनशक्ति क्षमता का प्रभावी ढंग से उपयोग कर सकता है, जिससे आर्थिक विकास एवं वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा मिलेगा।