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26 Jul 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 2
राजव्यवस्था
दिवस- 17: भारत में मानवाधिकार के उल्लंघन से संबंधित शिकायतों के समाधान के लिये राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की प्रभावशीलता का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के बारे में संक्षिप्त में परिचय दीजिये।
- NHRC के कार्यों और उपलब्धियों पर प्रकाश डालिये।
- NHRC के सामने आने वाली चुनौतियों का उल्लेख कीजिये।
- सुधार के लिये सिफारिशें प्रस्तावित कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के तहत स्थापित भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) का कार्य देश में मानवाधिकारों की रक्षा और उन्हें बढ़ावा देना है। इसके कार्यक्षेत्र में मानवाधिकार उल्लंघन की शिकायतों की जाँच करना, कानूनों की समीक्षा करना तथा मानवाधिकारों के बारे में जागरूकता फैलाना शामिल है।
मुख्य भाग:
NHRC के कार्य और उपलब्धियाँ
- मूलभूत प्रकार्य:
- NHRC मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के तहत कार्य करता है, जो इसकी शक्तियों, कार्यों और ज़िम्मेदारियों को रेखांकित करता है।
- NHRC शिकायतों की जाँच, पूछताछ और जेलों का दौरा करता है, संवैधानिक तथा कानूनी सुरक्षा उपायों की समीक्षा करता है साथ ही अनुसंधान एवं जागरूकता अभियान भी चलाता है।
- उल्लेखनीय मामले हस्तक्षेप:
- कुनान पोशपोरा सामूहिक बलात्कार मामला: NHRC ने जम्मू-कश्मीर में वर्ष 1991 के कुनान पोशपोरा सामूहिक बलात्कार मामले में हस्तक्षेप किया, जिसके परिणामस्वरूप पीड़ितों को मुआवज़ा मिला और सुरक्षा बलों द्वारा यौन हिंसा के मामलों में न्याय तथा जवाबदेही की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।
- मुज़फ्फरनगर दंगे: वर्ष 2013 के मुज़फ्फरनगर दंगों के बाद, NHRC के हस्तक्षेप के परिणामस्वरूप पीड़ितों के लिये राहत और पुनर्वास उपाय किये गए, जिससे सांप्रदायिक हिंसा को संबोधित करने तथा न्याय सुनिश्चित करने में इसकी भूमिका का प्रदर्शन हुआ।
- फर्ज़ी मुठभेड़ मामले: कानून और न्याय के शासन की रक्षा के लिये NHRC ने मणिपुर सहित फर्ज़ी मुठभेड़ की घटनाओं का स्वत: संज्ञान लिया है। इसके परिणामस्वरूप अपराधियों के खिलाफ जाँच एवं प्रतिबंध लगाए गए हैं।
- नीति प्रभाव :
- किशोर न्याय अधिनियम में संशोधन: NHRC की सिफारिशों ने किशोर न्याय अधिनियम में संशोधन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे बच्चों के अधिकारों की रक्षा में यह अधिक व्यापक हो गया।
- घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम: NHRC की वकालत के कारण घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम में महत्त्वपूर्ण बदलाव हुए, जिससे घरेलू दुर्व्यवहार के खिलाफ महिलाओं की सुरक्षा के लिये कानूनी प्रावधानों को मज़बूत किया गया।
- जेल सुधार: NHRC ने देश भर की जेलों का कई बार दौरा और निरीक्षण किया है, जिसके परिणामस्वरूप रहने की स्थिति में सुधार, कैदियों के अधिकारों को सुनिश्चित करने तथा भीड़भाड़ एवं अपर्याप्त चिकित्सा सुविधाओं जैसे मुद्दों के समाधान के लिये सिफारिशें की गई हैं।
- मानव अधिकारों की रक्षा
- वार्षिक रिपोर्ट: NHRC की वार्षिक रिपोर्ट भारत में मानवाधिकारों की स्थिति का व्यापक अवलोकन प्रदान करती है और महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डालती है तथा उन्हें संबोधित करने के लिये कार्रवाई की सिफारिश करती है। ये रिपोर्ट नीति निर्माताओं, शोधकर्त्ताओं एवं कार्यकर्त्ताओं के लिये मूल्यवान संसाधन के रूप में कार्य करती हैं।
- "अपने अधिकारों को जानें" अभियान: NHRC ने कई जागरूकता अभियान चलाए हैं, जैसे "अपने अधिकारों को जानें" अभियान, जिसका उद्देश्य हाशिये पर पड़े समुदायों को उनके अधिकारों और निवारण के लिये उपलब्ध तंत्रों के बारे में शिक्षित करना है।
- कार्यशालाएँ और सेमिनार: NHRC नियमित रूप से जनता, कानून प्रवर्तन एजेंसियों और सरकारी अधिकारियों के बीच मानवाधिकार शिक्षा तथा जागरूकता को बढ़ावा देने के लिये कार्यशालाएँ एवं सेमिनार आयोजित करता है।
NHRC के समक्ष चुनौतियाँ
- अनुशंसाओं की गैर-बाध्यकारी प्रकृति:
- हालाँकि NHRC मानवाधिकार से संबंधित उल्लंघनों की जाँच कर सिफारिशें प्रदान करता है, लेकिन यह अधिकारियों को विशिष्ट कार्रवाई करने के लिये बाध्य नहीं कर सकता। इसका प्रभाव कानूनी के बजाय काफी हद तक नैतिक रहता है।
- उल्लंघनकर्त्ताओं को दंडित करने में असमर्थता:
- NHRC के पास उल्लंघनकर्त्ताओं को दंडित करने का अधिकार नहीं है। मानवाधिकारों के उल्लंघन के अपराधियों की पहचान करने के बावजूद, NHRC इन्हें दंड या पीड़ितों को राहत नहीं दे सकता है। यह सीमा इसकी प्रभावशीलता को कम करती है।
- सशस्त्र बलों के मामलों में सीमित भूमिका:
- सशस्त्र बलों द्वारा मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में NHRC का अधिकार क्षेत्र सीमित है। सैन्य कर्मियों से जुड़े मामले अक्सर NHRC के अधिकार क्षेत्र से बाहर होते हैं, जिससे व्यापक जवाबदेही में बाधा आती है।
- ऐतिहासिक मानवाधिकार उल्लंघन के मामले में समय सीमाएँ:
- NHRC एक साल के बाद रिपोर्ट किये गए उल्लंघनों पर विचार नहीं कर सकता। यह सीमा एनएचआरसी को ऐतिहासिक या विलंबित मानवाधिकार शिकायतों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने से रोकती है।
- संसाधनों की कमी:
- NHRC के पास आवश्यक संसाधनों का अभाव है। NHRC को अपने भारी ‘हाई केसलोड’ और कम संसाधनों के कारण जाँच, पूछताछ तथा सार्वजनिक जागरूकता पहल को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करना मुश्किल लगता है।
- स्वतंत्रता की कमी:
- NHRC की संरचना सरकारी नियुक्तियों पर निर्भर करती है। राजनीतिक प्रभाव से पूरी तरह स्वतंत्र रहना एक चुनौती बनी हुई है, जिससे इसकी विश्वसनीयता प्रभावित हो रही है।
- सक्रिय हस्तक्षेप की आवश्यकता:
- NHRC अक्सर शिकायतों पर प्रतिक्रियात्मक तरीके से प्रतिक्रिया करता है। निवारक उपायों और प्रारंभिक हस्तक्षेप सहित अधिक सक्रिय दृष्टिकोण से इसका प्रभाव बढ़ सकता है।
NHRCके कामकाज को मज़बूत करने के लिये कदम उठाए जाने की ज़रूरत है:
- कार्यक्षेत्र और प्रभावशीलता में सुधार:
- उभरती मानवाधिकार चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये NHRC’s के कार्यक्षेत्र को व्यापक बनाना। उदाहरण के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता, डीप फेक, जलवायु परिवर्तन आदि।
- प्रवर्तन शक्तियाँ प्रदान करना:
- NHRC को अपनी सिफारिशों को लागू करने के लिये दंडात्मक शक्तियाँ प्रदान की जाएँ। इससे जवाबदेही और अनुपालन में वृद्धि होगी।
- संरचना सुधार:
- वर्तमान संरचना में विविधता का अभाव है। समग्र दृष्टिकोण सुनिश्चित करने के लिये नागरिक समाज, कार्यकर्त्ताओं और विशेषज्ञों से सदस्यों की नियुक्ति कीजिये।
- स्वतंत्र कैडर का विकास:
- NHRC के पास संसाधनों की कमी है। मानवाधिकार मुद्दों में प्रासंगिक विशेषज्ञता वाले कर्मचारियों का एक स्वतंत्र कैडर स्थापित करें।
- राज्य मानवाधिकार आयोगों को मज़बूत बनाना:
- राज्य मानवाधिकार आयोगों को सहायता की आवश्यकता है। राज्य आयोगों के बीच सहयोग, क्षमता निर्माण और ज्ञान साझा करने की सुविधा प्रदान करना।
- सार्वजनिक जागरूकता:
- प्रतिक्रियात्मक प्रतिक्रियाएँ प्रभाव को सीमित कर सकती हैं। नागरिकों को उनके अधिकारों के बारे में सशक्त बनाने के लिये सक्रिय रूप से जागरूकता अभियान और शैक्षणिक कार्यक्रमों में भाग ले सकते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
- भारत अंतर्राष्ट्रीय अनुभवों से लाभ उठा सकता है। अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार निकायों के साथ सहयोग करें, उनके व्यवहार से सीखें और प्रासंगिक रणनीतियाँ अपनाएँ।
निष्कर्ष:
भारत में मानवाधिकार उल्लंघनों से निपटने में NHRC की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। हालाँकि इसने नीतिगत प्रभाव और जागरूकता में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन सीमित शक्तियों, संसाधनों की कमी तथा स्वायत्तता की कथित कमी के कारण इसकी प्रभावशीलता बाधित हुई है। भारत में मानवाधिकारों की रक्षा के लिये NHRC की क्षमता बढ़ाने हेतु इसकी कानूनी शक्तियों को मज़बूत करना, स्वतंत्रता सुनिश्चित करना, संसाधनों में सुधार करना, प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना तथा सार्वजनिक भागीदारी बढ़ाना आवश्यक कदम हैं।