25 Jul 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- महिला आरक्षण अधिनियम, 2023 का संक्षिप्त में परिचय दीजिये।
- अधिनियम के प्रमुख प्रावधानों की व्याख्या कीजिये।
- यह महिलाओं को कैसे सशक्त बना सकता है और नीति निर्माण में विविधता को कैसे बढ़ा सकता है। उल्लेख कीजिये।
- पूर्ण क्षमता को साकार करने से संबंधित चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
- भारत में महिलाओं के लिये समावेशी और न्यायसंगत राजनीतिक परिदृश्य को बढ़ावा देने के संबंध में उपाय सुझाइये।
- उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
महिला आरक्षण अधिनियम 2023, संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिये 33% सीटें आरक्षित करने का प्रावधान करता है। इस ऐतिहासिक कानून का उद्देश्य भारतीय राजनीति में महिला प्रतिनिधित्त्व को बढ़ाना तथा लैंगिक समानता को बढ़ावा देना है।
मुख्य बिंदु:
अधिनियम के प्रमुख प्रावधान:
- महिलाओं के लिये आरक्षण: यह अधिनियम लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभा में महिलाओं के लिये लगभग एक तिहाई सीटें आरक्षित करता है। यह लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिये आरक्षित सीटों पर भी लागू होगा।
- आरक्षण की शुरुआत: इस विधेयक के लागू होने के बाद की गई जनगणना के बाद आरक्षण प्रभावी होगा। जनगणना के आधार पर महिलाओं के लिये सीटें आरक्षित करने हेतु परिसीमन किया जाएगा। आरक्षण 15 साल की अवधि के लिये प्रदान किया जाएगा। हालाँकि यह संसद द्वारा बनाए गए कानून द्वारा निर्धारित तिथि तक जारी रहेगा।
- सीटों का रोटेशन: महिलाओं के लिये आरक्षित सीटों को प्रत्येक परिसीमन के बाद रोटेट किया जाएगा, जैसा कि संसद द्वारा बनाए गए कानून द्वारा निर्धारित किया जाता है।
महिला आरक्षण अधिनियम, 2023 का महत्त्व
- महिला भागीदारी बढ़ाना: 33% सीटें आरक्षित करके अधिक से अधिक महिलाओं को राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर प्रदान किया गया है।
- 18वीं लोकसभा के लिये चुने गए सांसदों में 74 (14%) महिलाएँ थीं। यह वर्ष 2019 की तुलना में जब 78 महिलाएँ चुनी गईं, यह कुछ कम है।
- नीतिगत दृष्टिकोण में विविधता लाना: नीति निर्माण में महिलाओं के मुद्दों और दृष्टिकोणों पर अधिक प्रमुखता से विचार किया जाएगा, जिससे व्यापक एवं समावेशी कानूनों का निर्माण होगा।
- उदाहरण के लिये, 73वें और 74वें संविधान संशोधन के माध्यम से स्थानीय निकायों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ने से स्वच्छता, स्वास्थ्य एवं शिक्षा जैसे मुद्दों पर अधिक ध्यान दिया गया है।
- सशक्तीकरण: यह अधिनियम महिलाओं को अपनी बात कहने तथा शासन में योगदान देने के लिये एक मंच प्रदान करके उन्हें सशक्त बनाता है।
- उदाहरण के लिये बिहार जैसे राज्यों में जहाँ पंचायतों में महिलाओं को 50% आरक्षण प्राप्त है, स्थानीय शासन में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
- रोल मॉडल: राजनीति में महिलाओं की बढ़ती दृश्यता युवा पीढ़ी को नेतृत्व की भूमिका निभाने की आकांक्षा के लिये प्रेरित और प्रोत्साहित कर सकती है।
- यह बात ममता बनर्जी और सुषमा स्वराज जैसी महिला नेताओं के संदर्भ में स्पष्ट है, जिन्होंने कई युवा महिलाओं को प्रेरित किया है।
पूर्ण क्षमता का एहसास करने में चुनौतियाँ:
- परिसीमन के बाद लागू होगा:
- आरक्षण परिसीमन के बाद ही लागू होगा और परिसीमन अगली जनगणना के प्रासंगिक आँकड़े प्रकाशित होने के बाद ही किया जाएगा।
- अधिनियम से संबंधित OBC मुद्दा:
- महिला आरक्षण अधिनियम, जो लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिये 33% सीटें आरक्षित करता है, में OBC की महिलाओं के लिये आरक्षण शामिल नहीं है। OBC, जो जनसंख्या का 41% हिस्सा हैं (2011 की जनगणना के अनुसार), लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय सरकारों में अपर्याप्त प्रतिनिधित्त्व रखते हैं।
- पितृसत्तात्मक मानदंड:
- पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण अधिनियम की प्रभावशीलता में बाधा डाल सकते हैं। राजनीतिक भूमिका में कदम रखने पर महिलाओं को अपने परिवारों और समुदायों के भीतर से प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है। उदाहरण के लिये पंचायतों में कई निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों को सामाजिक अपेक्षाओं के कारण अपने अधिकार का दावा करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- टोकनवाद:
- इस बात का जोखिम है कि महिलाओं को वास्तविक शक्ति या प्रभाव के बिना, मात्र प्रतीक के रूप में चुना जा सकता है, जिससे अधिनियम की वास्तविक भावना को नुकसान पहुँच सकता है।
- सरपंचवाद से तात्पर्य उस प्रथा से है जहाँ सरपंच (ग्राम प्रधान) के रूप में निर्वाचित महिला का पति या पुरुष रिश्तेदार अनौपचारिक रूप से निर्वाचित महिला प्रतिनिधि की भूमिका और ज़िम्मेदारियों को संभाल लेता है।
- पार्टी की आंतरिक गतिशीलता:
- महिला उम्मीदवारों को राजनीतिक दलों के भीतर विरोध का सामना करना पड़ सकता है, जहाँ पुरुष-प्रधान पदानुक्रम उनके अवसरों और विकास को सीमित कर सकता है। इसका एक उल्लेखनीय उदाहरण आम चुनावों में प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा महिला उम्मीदवारों की सीमित संख्या है।
- वित्तीय बाधाएँ: चुनाव प्रचार महँगा है और महिलाओं को अक्सर अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में वित्तीय संसाधनों तक पहुँच कम होती है।
- चुनावों के दौरान बहुत कम महिला उम्मीदवारों को पर्याप्त धनराशि और समर्थन प्राप्त होता है।
समावेशी और न्यायसंगत राजनीतिक परिदृश्य को बढ़ावा देने के उपाय
कानूनी और संरचनात्मक सुधार:
- कानूनी ढाँचे को मज़बूत करना: महिला आरक्षण अधिनियम के प्रावधानों का सख्ती से क्रियान्वयन और नियंत्रण किया जाए।
- वित्तीय सहायता: महिला उम्मीदवारों को प्रभावी चुनाव अभियान चलाने में मदद करने के लिये वित्तीय सहायता और सब्सिडी प्रदान करना।
राजनीतिक सुधार:
- क्षमता निर्माण कार्यक्रम: महिला राजनेताओं को प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिये आवश्यक कौशल और ज्ञान से लैस करने के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम लागू करना। PRS लेजिस्लेटिव रिसर्च तथा नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल डेवलपमेंट एंड पंचायती राज जैसे गैर सरकारी संगठन महिला प्रतिनिधियों के लिये प्रशिक्षण प्रदान करते हैं।
- मेंटरशिप और सपोर्ट नेटवर्क: मेंटरशिप कार्यक्रम स्थापित करना जहाँ अनुभवी महिला नेता राजनीतिक क्षेत्र में नए प्रवेशकों का मार्गदर्शन और समर्थन कर सकें।
सामाजिक सुधार
- स्वतंत्र निर्णय लेने को मज़बूत करना: एक स्वतंत्र निगरानी प्रणाली या समितियाँ स्थापित करना, जो स्पष्ट रूप से परिवार के सदस्यों को महिला प्रतिनिधियों की निर्णय लेने की प्रक्रिया को प्रभावित करने से रोकती हैं।
- शैक्षिक कार्यक्रम और जागरूकता अभियान: महिलाओं के बीच उनके अधिकारों और राजनीति में उनकी भागीदारी के महत्त्व के बारे में जागरूकता पैदा करना आवश्यक है। शैक्षिक कार्यक्रम और जागरूकता अभियान महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी बढ़ाने में मदद कर सकते हैं।
निष्कर्ष:
महिला आरक्षण अधिनियम, 2023 निस्संदेह भारत के राजनीतिक परिदृश्य में लैंगिक समानता को आगे बढ़ाने के लिये महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालाँकि इसकी पूरी क्षमता को साकार करने के लिये महिलाओं के समक्ष आने वाली सामाजिक, राजनीतिक और संरचनात्मक चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है। सामाजिक सुधारों, राजनीतिक प्रशिक्षण तथा मज़बूत कानूनी समर्थन को शामिल करने वाले व्यापक प्रयासों के माध्यम से, भारत एक अधिक समावेशी एवं न्यायसंगत राजनीतिक वातावरण को बढ़ावा दे सकता है जहाँ महिलाएँ वास्तव में फल-फूल सकती हैं व राष्ट्र की प्रगति में योगदान दे सकती हैं।