25 Jul 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में संसदीय समिति प्रणाली का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- विधायी प्रक्रिया की प्रभावशीलता बढ़ाने में समिति प्रणाली के महत्त्व को बताइये।
- समिति प्रणाली के सामने आने वाली चुनौतियों का उल्लेख कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
भारत में संसदीय समिति प्रणाली विधायी ढाँचे का एक महत्त्वपूर्ण घटक है, जो संसद के प्रभावी कामकाज को सुगम बनाता है। इसमें लोकसभा और राज्यसभा दोनों के सांसदों (MP) से बनी विभिन्न समितियाँ शामिल हैं। इन समितियों को विशिष्ट ज़िम्मेदारियाँ सौंपी जाती हैं, जिनमें कानून, सरकारी नीतियों की जाँच करना और कार्यक्रमों तथा बजट के कार्यान्वयन का प्रबंधन करना शामिल है।
मुख्य बिंदु:
भारत में संसदीय समितियों को कई प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है:
- स्थायी समितियाँ: ये समितियाँ निरंतर कार्य करती हैं तथा विशिष्ट क्षेत्रों के लिये ज़िम्मेदार होती हैं। उनके द्वारा किये जाने वाले कार्यों की प्रकृति के आधार पर, स्थायी समितियों को निम्नलिखित छह श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
- वित्तीय समितियाँ
- विभागीय स्थायी समितियाँ
- जाँच समितियाँ
- परीक्षण एवं नियंत्रण के लिये गठित समितियाँ
- सरकारी आश्वासनों पर समिति
- सदन के दैनंदिन कार्यों से संबंधित समितियाँ
- हाउस-कीपिंग समितियाँ या सेवा समितियाँ
- चयन समितियाँ: विशेष विधेयकों या मुद्दों की गहराई से जाँच करने के लिये गठित अस्थायी समितियाँ।
- संयुक्त समितियाँ: लोकसभा और राज्यसभा दोनों के सदस्यों से मिलकर बनी ये समितियाँ उन विशिष्ट मामलों पर ध्यान केंद्रित करती हैं जिनके लिये व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।
- तदर्थ समितियाँ: किसी विशिष्ट कार्य के लिये गठित और अपने उद्देश्य की प्राप्ति के बाद भंग कर दी जाती हैं।
समिति प्रणाली कई कारणों से अपरिहार्य है:
- विधान की जाँच: समितियाँ विधेयकों का विश्लेषण कर संशोधन प्रस्तावित करती हैं तथा यह सुनिश्चित करती हैं कि विधान व्यापक और व्यावहारिक हो।
- उदाहरण के लिये मानव संसाधन विकास समिति राष्ट्रीय शिक्षा नीति जैसे शिक्षा विधेयकों की समीक्षा करती है तथा शैक्षिक मानकों एवं पहुँच में सुधार के लिये संशोधनों का सुझाव देती है।
- सरकारी नीतियों की जाँच: समितियाँ सरकारी कार्यक्रमों और नीतियों के कार्यान्वयन की समीक्षा करती हैं तथा नागरिकों पर उनकी प्रभावशीलता एवं प्रभाव का आकलन करती हैं।
- स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संबंधी समिति आयुष्मान भारत योजना जैसी स्वास्थ्य पहलों की जाँच करती है तथा इसके कार्यान्वयन एवं पहुँच का विश्लेषण करती है, ताकि स्वास्थ्य देखभाल आवश्यकताओं को प्रभावी ढंग से पूरा करने को सुनिश्चित किया जा सके।
- जाँच करना: समितियाँ भ्रष्टाचार, कुप्रशासन और अधिकारों के उल्लंघन जैसे सार्वजनिक सरोकार के मुद्दों की जाँच करती हैं तथा सरकार को उसके कार्यों के लिये जवाबदेह ठहराती हैं।
- लोक लेखा समिति (PAC) सरकार के वित्तीय लेखों, वित्तीय अनियमितताओं के मामलों की जाँच करने तथा सार्वजनिक वित्त के उपयोग में पारदर्शिता सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- बजट समीक्षा: समितियाँ बजट प्रस्तावों की जाँच करती हैं तथा वित्तीय मामलों में पारदर्शिता एवं जवाबदेहिता सुनिश्चित करती हैं।
- वित्त संबंधी समिति वित्त मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत वार्षिक बजट की समीक्षा करती है, राजस्व और व्यय प्रस्तावों का आकलन करती है तथा राजकोषीय प्रबंधन एवं जवाबदेहिता में सुधार के लिये सिफारिशें प्रदान करती है।
- बढ़ी हुई दक्षता: समितियाँ उन कठिन मामलों को संभाल सकती हैं जिन मुद्दों पर गहराई से विचार करने हेतु पूरे सदन की प्रक्रिया में अधिक समय लगता है।
- उदाहरण के लिये विदेश मामलों की समिति अंतर्राष्ट्रीय संधियों और समझौतों पर सुनवाई कर सकती है, जिससे गहन चर्चा संभव हो सकेगी, जो व्यापक संसदीय व्यवस्था में संभव नहीं है।
- विशेषज्ञता: सदस्य विशिष्ट क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं, सूचित दृष्टिकोण प्रदान कर सकते हैं और विधायी जाँच की गुणवत्ता बढ़ा सकते हैं।
- कृषि संबंधी समिति, जिसमें खेती और ग्रामीण मुद्दों के विशेषज्ञ सदस्य शामिल होते हैं, कृषि उत्पादन तथा किसान कल्याण से संबंधित नीतियों की समीक्षा करती है एवं यह सुनिश्चित करती है कि विधायी निर्णय पूरी जानकारी के साथ लिये जाए।
- सार्वजनिक जवाबदेहिता: समितियाँ सरकार को जवाबदेह बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं तथा यह सुनिश्चित करती हैं कि सार्वजनिक संसाधनों का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाए।
- वंचित समुदायों को बेहतर बनाने की पहल, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वित्तीय संसाधन ठीक से आवंटित किये जाएँ और प्राप्तकर्त्ताओं को इच्छित सहायता प्राप्त हो।
- संवाद को सुविधाजनक बनाना: समितियाँ विभिन्न पक्षों और हितधारकों के सदस्यों के बीच चर्चा के लिये एक मंच प्रदान करती हैं, जिससे सहयोग एवं आम सहमति का निर्माण होता है।
- परिवहन, पर्यटन और संस्कृति संबंधी समिति, विभिन्न क्षेत्रों को लाभ पहुँचाने वाली व्यापक नीतियाँ विकसित करने के लिये राज्य सरकारों तथा उद्योग प्रतिनिधियों सहित विभिन्न हितधारकों के साथ परामर्श करती है।
अपनी महत्ता के बावजूद, समिति प्रणाली को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है:
- 17वीं लोकसभा में 20% से भी कम विधेयक समितियों को भेजे गए: 16% विधेयक विस्तृत जाँच के लिये समितियों को भेजे गए। यह पिछली तीन लोकसभाओं के आँकड़ों से भी कम है।
- अनुशंसात्मक प्रकृति: समितियों के पास अपनी सिफारिशों को लागू करने के लिये पर्याप्त शक्तियाँ नहीं हैं। सरकार सिफारिशों को स्वीकार करने या लागू करने के लिये बाध्य नहीं है। समितियों के पास अपनी सिफारिशों की स्थिति को ट्रैक करने के लिये कोई अनुवर्ती तंत्र नहीं है।
- समय और संसाधनों की कमी: समितियों द्वारा सीमित समय-सीमा के भीतर बड़ी संख्या में विधेयकों और संबंधित मुद्दों की जाँच की जाती है। विस्तृत अध्ययन करने के लिये उनके पास अक्सर पर्याप्त स्टाफ, शोध सहायता, डेटा और सूचना की कमी होती है।
- सांसदों की कम उपस्थिति: समिति की बैठकों में सांसदों की उपस्थिति अक्सर विभिन्न कारणों जैसे कि परस्पर विरोधी कार्यक्रम, राजनीतिक दबाव, रुचि की कमी या प्रोत्साहन के कारण कम होती है।
निष्कर्ष:
वित्तीय सहायता, शोध क्षमताओं और जन भागीदारी को बढ़ावा देना तथा समिति के सदस्यों को नियमित रूप से शिक्षित करना, ये सभी उनकी प्रभावशीलता में सुधार के लिये आवश्यक हैं। क्रॉस-कटिंग मुद्दों पर सहयोग हेतु समितियों की प्रभावकारिता को बढ़ाना आवश्यक है।