25 Jul 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारतीय संसद में अध्यक्ष की भूमिका का संक्षिप्त में परिचय दीजिये।
- लोकतांत्रिक सिद्धांतों और संसद के समग्र कामकाज को बनाए रखने में अध्यक्ष के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
- अध्यक्ष के पद से जुड़े मुद्दों पर प्रकाश डालिये।
- आगे की राह पर चर्चा कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
लोकसभा अध्यक्ष भारतीय संसद में एक महत्त्वपूर्ण व्यक्ति है, जो व्यवस्था बनाए रखने और विधायी प्रक्रियाओं के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के लिये ज़िम्मेदार है। वह सदन का संवैधानिक और औपचारिक प्रमुख है। लोकतांत्रिक सिद्धांतों को कायम रखते हुए, वह संवाद को सुगम बनाने, निष्पक्ष प्रतिनिधित्त्व सुनिश्चित करने तथा सदस्यों के अधिकारों की रक्षा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
मुख्य भाग:
लोकतांत्रिक सिद्धांतों और संसद के समग्र कामकाज को बनाए रखने में अध्यक्ष की भूमिका:
- सदन की कार्यवाही की अध्यक्षता करना:
- अध्यक्ष निचले सदन के सत्रों की देखरेख करते हैं, सदस्यों के बीच अनुशासन और शिष्टाचार सुनिश्चित करते हैं। अध्यक्ष संसदीय बैठकों के लिये एजेंडा तय करते हैं साथ ही प्रक्रियात्मक नियमों की व्याख्या करते हैं।
- वह स्थगन, अविश्वास और निंदा प्रस्ताव जैसे प्रस्तावों की अनुमति प्रदान करते हैं, जिससे व्यवस्थित आचरण सुनिश्चित होता है।
- प्रावधानों का अंतिम व्याख्याता: अध्यक्ष प्रावधानों का अंतिम व्याख्याता है।:
- भारत का संविधान
- लोक सभा की प्रक्रिया एवं कार्य संचालन के नियमों और
- सदन के भीतर संसदीय प्रक्रियाओं का पालन करना।
- कोरम और अनुशासनात्मक कार्रवाई:
- कोरम के अभाव में अध्यक्ष आवश्यक उपस्थिति पूरी होने तक बैठकों को स्थगित या निलंबित कर देता है।
- अध्यक्ष के पास संविधान की 10वीं अनुसूची के तहत अनियंत्रित व्यवहार को दंडित करने और दलबदल के आधार पर सदस्यों को अयोग्य ठहराने की शक्ति है।
- समितियों का गठन:
- सदन की समितियाँ अध्यक्ष द्वारा गठित की जाती हैं जो अध्यक्ष के समग्र निर्देशन में कार्य करती हैं।
- सभी संसदीय समितियों के अध्यक्ष, लोकसभा अध्यक्ष द्वारा मनोनीत किये जाते हैं।
- कार्य मंत्रणा समिति, सामान्य प्रयोजन समिति और नियम समिति जैसी समितियाँ सीधे अध्यक्ष की अध्यक्षता में कार्य करती हैं।
- सदन के विशेषाधिकार:
- अध्यक्ष सदन, उसकी समितियों और सदस्यों के अधिकारों एवं विशेषाधिकारों का संरक्षक होता है। विशेषाधिकार के किसी भी प्रश्न की जाँच, मूल्यांकन तथा रिपोर्ट के लिये विशेषाधिकार समिति को भेजना पूरी तरह से अध्यक्ष पर निर्भर करता है।
- प्रशासनिक प्राधिकारी:
- लोकसभा सचिवालय के प्रमुख के रूप में अध्यक्ष संसद भवन के भीतर प्रशासनिक मामलों और सुरक्षा व्यवस्था का प्रबंधन करते हैं। वे संसदीय बुनियादी ढाँचे में परिवर्तन एवं परिवर्द्धन को नियंत्रित करते हैं।
- अंतर-संसदीय संबंध:
- अध्यक्ष भारतीय संसदीय समूह के पदेन अध्यक्ष के रूप में कार्य करता है, जो अंतर-संसदीय संबंधों को सुगम बनाता है। वह विदेश में प्रतिनिधिमंडलों का नेतृत्व तथा भारत में विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन की अध्यक्षता करता है।
अध्यक्ष के कार्यालय से जुड़े मुद्दे:
- पक्षपातपूर्ण मुद्दा: अध्यक्ष, जो अक्सर सत्तारूढ़ पार्टी से संबंधित होते हैं, पर पक्षपातपूर्ण होने का आरोप लगाया जाता है।
- वर्ष 2016 में आधार विधेयक को धन विधेयक के रूप में मान्यता दिये जाने की व्यापक रूप से आलोचना की गई थी।
- किहोतो होलोहन बनाम जाचिल्हू मामले (1992) में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि सत्तारूढ़ दल का सदस्य होने के बावजूद अध्यक्ष के निर्णय लेने की प्रक्रिया में निष्पक्ष रूप से कार्य करने की अपेक्षा की जाती है। हालाँकि सत्ता के किसी भी संभावित दुरुपयोग को रोकने के लिये न्यायालय ने अध्यक्ष के निर्णयों की न्यायिक समीक्षा की अनुमति दी।
- राष्ट्रीय हित पर पार्टी हितों को प्राथमिकता देना: यदि वे चर्चाएँ राष्ट्र की भलाई के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, तो अध्यक्षों के पास उन वाद-विवाद या चर्चाओं को प्रतिबंधित करने की शक्ति है जो संभावित रूप से राजनीतिक दलों के एजेंडे को प्रभावित कर सकती हैं।
- कार्यवाही में व्यवधान और बाधा में वृद्धि: पक्षपाती माने जाने वाले अध्यक्ष से विपक्ष में निराशा और व्यवधान पैदा हो सकता है, जो अंततः संसद के कामकाज में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
- समितियों और जाँच को दरकिनार करना: उचित समिति समीक्षा के बिना विधेयकों को जल्दबाज़ी में पर्याप्त विचार-विमर्श की कमी से प्रासंगिक कानून नहीं बन पाते हैं।
- समीक्षा के परिणामस्वरूप अप्रासंगिक कानून बन सकता है जिस पर पर्याप्त विचार नहीं किया गया है।
- विपक्ष द्वारा व्यापक विरोध और बाद में उन्हें वापस लेने के कारण के रूप में 2020 में तीन कृषि कानूनों को संसदीय समिति को भेजे बिना पारित करने के उदाहरण का हवाला दिया गया है।
आगे की राह
- स्थिरता बनाए रखना: अध्यक्ष की निष्पक्षता और न्यायसंगतता महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि उन्हें विविध राजनीतिक हितों की जटिल गतिशीलता को संतुलित करना होता है।
- अविश्वास प्रस्ताव की स्वीकृति, संवाद के लिये समय का आवंटन तथा सदस्यों की मान्यता जैसे मुद्दों पर उनके निर्णय सरकार की स्थिरता पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाल सकते हैं।
- विवादों को सुलझाने में निष्पक्षता बनाए रखना:
- गठबंधन सरकार के मामले में जहाँ अलग-अलग विचारधाराओं और एजेंडों वाली कई पार्टियाँ एक साथ आती हैं, संघर्ष एवं विवाद अपरिहार्य हैं। अध्यक्ष को इन विवादों में मध्यस्थता करने तथा सभी हितधारकों को स्वीकार्य समाधान खोजने में निष्पक्षता बनाए रखनी चाहिये।
- सरकार और विपक्ष के मध्य सेतु के रूप में कार्य: विधायी एजेंडे को नियंत्रित करके, अध्यक्ष विधेयकों के पारित होने और सरकार की समग्र नीति दिशा को प्रभावित कर सकता है।
- भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि "अध्यक्ष की भूमिका सिर्फ सदन चलाने तक ही सीमित नहीं है; बल्कि सरकार और विपक्ष के मध्य सेतु के रूप में कार्य करने तथा लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सुनिश्चित करना है।
- गैर-पक्षपात सुनिश्चित करना: पूर्ण गैर-पक्षपात सुनिश्चित करने के लिये अध्यक्ष द्वारा अपने राजनीतिक दल से त्याग-पत्र देने की प्रथा को संविधान के शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत को कायम रखने के लिये आगे बढ़ाया जा सकता है।
- वर्ष 1967 में स्पीकर/अध्यक्ष बनने के बाद एन. संजीव रेड्डी द्वारा अपनी पार्टी से इस्तीफा देने का उदाहरण गैर-पक्षपातपूर्ण व्यवहार की सकारात्मक मिसाल कायम करता है।
- ब्रिटेन में स्पीकर पूरी तरह से गैर-पार्टी सदस्य होता है। वहाँ एक परंपरा है कि स्पीकर को अपनी पार्टी से इस्तीफा देकर राजनीतिक रूप से तटस्थ रहना होता है।
निष्कर्ष:
लोकसभा अध्यक्ष केवल पीठासीन अधिकारी नहीं होते, बल्कि सदन के कामकाज को आकार देने और सत्तारूढ़ दल तथा विपक्ष के बीच संतुलन को प्रभावित करने में महत्त्वपूर्ण शक्ति (खासकर गठबंधन सरकार के मामले में) रखते हैं, अध्यक्ष के निर्णयों एवं कार्यों का सरकार के कामकाज व स्थिरता पर दूरगामी प्रभाव पड़ सकता है।