24 Jul 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में संसदीय लोकतंत्र की अवधारणा का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- उत्तरदायित्त्व तंत्र स्थापित करने वाले प्रासंगिक संसदीय प्रावधानों का उल्लेख कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
भारत, एक संसदीय लोकतंत्र के रूप में यह सुनिश्चित करता है कि कार्यपालिका विधायिका के प्रति जवाबदेह हो। यह जवाबदेही स्वस्थ लोकतंत्र के लिये आवश्यक जाँच और संतुलन बनाए रखने के लिये आवश्यक है। इन विभिन्न साधनों के माध्यम से, संसद नियंत्रण रखती है, पारदर्शिता को बढ़ावा देती है तथा कार्यपालिका को उसके कार्यों के लिये ज़िम्मेदार ठहराती है, इस प्रकार सुशासन एवं सार्वजनिक विश्वास के सिद्धांतों को कायम रखती है।
मुख्य बिंदु:
कार्यकारी जवाबदेही सुनिश्चित करने वाले प्रासंगिक तंत्र:
- संवैधानिक ढाँचा:
- भारतीय संविधान कार्यपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये एक मज़बूत ढाँचा प्रदान करता है। अनुच्छेद 75 में कहा गया है कि मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है। सामूहिक उत्तरदायित्त्व का यह सिद्धांत कार्यपालिका को हमेशा निचले सदन में बहुमत का विश्वास प्राप्त होना चाहिये।
- संसदीय प्रश्न:
- प्रश्नकाल, संसदीय बैठक का पहला घंटा, सांसदों द्वारा मंत्रियों से पूछे जाने वाले प्रश्नों के लिये समर्पित होता है। यह प्रणाली सांसदों को जानकारी और स्पष्टीकरण मांगने तथा सरकारी कार्यों में पारदर्शिता सुनिश्चित करने की अनुमति देता है।
- तारांकित प्रश्न: मौखिक उत्तर की आवश्यकता होती है, जिसमें पूरक प्रश्न भी शामिल हैं।
- अतारांकित प्रश्न: लिखित उत्तर की आवश्यकता होती है और पूरक प्रश्नों की अनुमति नहीं होती
- अल्प सूचना प्रश्न: तत्काल सार्वजनिक महत्त्व के मामलों पर पूछे जाने वाले प्रश्न, जिनके लिये दस दिनों से कम समय की सूचना की आवश्यकता होती है।
- शून्यकाल:
- शून्यकाल एक भारतीय नवाचार है, जिसमें सांसद बिना किसी पूर्व सूचना के अत्यावश्यक मामले उठा सकते हैं। यह अवधि तात्कालिक चिंताओं को दूर करने और अप्रत्याशित रूप से उत्पन्न होने वाले मौजूदा मुद्दों के लिये सरकार को जवाबदेह ठहराने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- वाद-विवाद और चर्चाएँ:
- विधेयकों, बजटों और नीतियों पर नियमित बहस से सांसदों को कार्यपालिका के कार्यों की जाँच करने का मौका मिलता है। ये चर्चाएँ मुद्दों को उजागर करने, सुधार सुझाने एवं कार्यपालिका के निर्णय के जनहित में होने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- समितियों:
- लोक लेखा समिति (PAC), प्राक्कलन समिति और विभागीय रूप से संबंधित स्थायी समितियाँ जैसी संसदीय समितियाँ विभिन्न मंत्रालयों के कामकाज की जाँच करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये समितियाँ रिपोर्टों की विस्तृत जाँच (जो पूर्ण संसदीय सत्रों में संभव नहीं हो सकती है।) कर संसद में प्रस्तुत करती हैं। उदाहरण के लिये:
- लोक लेखा समिति (PAC): यह जाँच करती है कि संसद द्वारा सरकार को दिया गया धन विशिष्ट और निश्चित मद पर ही खर्च किया जाए तथा इसका कुशलतापूर्वक उपयोग किया जाए।
- प्राक्कलन समिति: यह बजट अनुमानों को लागू करने की जाँच करती है।
- विभागीय रूप से संबंधित स्थायी समितियाँ: ये समितियाँ विशिष्ट मंत्रालयों के कामकाज की समीक्षा करती हैं और मंत्रियों तथा अधिकारियों को पूछताछ के लिये बुला सकती हैं।
- प्रस्ताव:
- अविश्वास और निंदा जैसे प्रस्ताव शक्तिशाली उपकरण हैं। एक अविश्वास प्रस्ताव पूरे मंत्रिपरिषद को इस्तीफा देने के लिये मजबूर कर सकता है, जिससे यह सुनिश्चित हो जाता है कि कार्यपालिका विधायिका के प्रति जवाबदेह बनी रहती है। अन्य प्रस्ताव:
- स्थगन प्रस्ताव: किसी अत्यावश्यक सार्वजनिक महत्त्व के मामले की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिये लाया जाता है।
- निंदा प्रस्ताव: किसी विशिष्ट सरकारी नीतियों या कार्यों के प्रति अस्वीकृति व्यक्त करता है।
- संसदीय विशेषाधिकार:
- सांसदों को कुछ विशेषाधिकार प्राप्त हैं जो उन्हें कार्यपालिका से स्वतंत्र रूप से सवाल करने की अनुमति देते हैं। इन विशेषाधिकारों में सदन के भीतर बोलने की स्वतंत्रता और संसद में दिये गए बयानों के लिये कानूनी कार्रवाई से छूट शामिल है। यह सुनिश्चित करता है कि सांसद निष्पक्ष रूप से अपने कर्त्तव्यों का पालन कर सकें।
निष्कर्ष :
इन जवाबदेही तकनीकों की दक्षता कभी-कभी संसद में बार-बार होने वाले व्यवधानों, गहन विचार-विमर्श के लिये समय की कमी और पार्टी निष्ठा के प्रभाव जैसे मुद्दों से बाधित हो सकती है। सांसदों की जवाबदेही तथा प्रभावकारिता की गारंटी के लिये द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) (2009) ने सुझाव दिया कि संसदीय समितियों एवं सांसदों को अक्सर प्रदर्शन समीक्षा से गुज़रना पड़ता है।