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दिवस- 15: भारतीय और ब्रिटिश संविधान की संरचना, स्रोत और शासन के सिद्धांतों के संदर्भ में अंतर स्पष्ट कीजिये। (150 शब्द)

24 Jul 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • भारतीय और ब्रिटिश संविधानों का संक्षिप्त में परिचय दीजिये।
  • भारतीय और ब्रिटिश संविधानों की संरचना, स्रोत तथा शासन के सिद्धांतों के संदर्भ में अंतर स्पष्ट कीजिये।
  • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

26 जनवरी, 1950 को अपनाया गया भारतीय संविधान विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान है। इसके विपरीत, ब्रिटिश संविधान एक एकल लिखित संविधान नहीं है, बल्कि विधि, सामान्य विधि, अभिसमय और आधिकारिक कार्यों का एक समामेलन है। जबकि भारतीय और ब्रिटिश संविधान कुछ ऐतिहासिक लिंक साझा करते हैं, वे संरचना, स्रोत एवं शासन के सिद्धांतों में मौलिक रूप से भिन्न हैं।

मुख्य बिंदु:

भारतीय और ब्रिटिश संविधानों की तुलना:

पहलू

भारतीय संविधान

ब्रिटिश संविधान

संरचना 

लिखित एवं संहिताबद्ध: भारतीय संविधान एक एकल लिखित दस्तावेज़ है जो शासन और कानूनी सिद्धांतों के लिये एक व्यापक ढाँचा प्रदान करता है।

लंबाई और विस्तार: यह दुनिया के सबसे लंबे संविधानों में से एक है, जिसमें शासन, अधिकार और कर्त्तव्यों के विभिन्न पहलुओं को कवर करने वाले विस्तृत प्रावधान हैं।

अलिखित एवं असंहिताबद्ध: ब्रिटिश संविधान एक लिखित दस्तावेज़ नहीं है, बल्कि यह विधियों, अभिसमय, न्यायिक निर्णयों और ऐतिहासिक दस्तावेज़ों का संयोजन है।

यह अधिक लचीला है और विधायी परिवर्तनों, न्यायिक निर्णयों तथा ऐतिहासिक प्रथाओं के माध्यम से समय के साथ विकसित होता रहता है।


विधियों के स्त्रोत

प्राथमिक स्रोत: प्राथमिक स्रोत लिखित संविधान ही है।

विधान: इसमें संसद (कानून) और राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित कानून शामिल हैं।

न्यायिक मिसालें: सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के निर्णय व्याख्या तथा न्यायिक समीक्षा के माध्यम से संवैधानिक कानून में योगदान करते हैं।

कार्यकारी आदेश: संविधान के अधिकार के तहत राष्ट्रपति या राज्य के राज्यपालों द्वारा जारी किये जाते है।

ऐतिहासिक दस्तावेज़: इसमें मैग्ना कार्टा और बिल ऑफ राइट्स जैसे महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ शामिल हैं।

संविधि: संसद द्वारा पारित कानून (जैसे, मानवाधिकार अधिनियम 1998)।

सामान्य कानून: न्यायिक निर्णय और मिसाल संवैधानिक सिद्धांतों को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

अभिसमय: स्थापित प्रथाएँ और रीति-रिवाज़ जो कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होते हुए भी संवैधानिक ढाँचे के हिस्से के रूप में पालन किये जाते हैं।

शासन के सिद्धांत

संघीय संरचना: भारत एक संघीय संघ है जिसमें केंद्र सरकार और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन है। संविधान में संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची से संबंधित शक्तियाँ वर्णित हैं।

संसदीय प्रणाली: भारत में संसदीय शासन प्रणाली है, जहाँ कार्यपालिका (प्रधानमंत्री एवं मंत्रिमंडल) विधायिका से ली गई है और उसके प्रति जवाबदेह है।

मौलिक अधिकार और कर्त्तव्य: नागरिकों के लिये मौलिक अधिकारों और कर्त्तव्यों की विस्तृत सूची प्रदान करता है, जिसमें समानता, स्वतंत्रता एवं  भेदभाव के विरुद्ध सुरक्षा के अधिकार शामिल हैं

एकात्मक संरचना: ब्रिटेन में एकात्मक प्रणाली है जिसमें केंद्रीकृत प्राधिकार है, हालाँकि स्कॉटलैंड, वेल्स और उत्तरी आयरलैंड को अलग-अलग स्तर की विधायी शक्ति हस्तांतरित की गई है।

संवैधानिक राजतंत्र: यूके एक संवैधानिक राजतंत्र है जहाँ सम्राट की शक्तियाँ काफी हद तक औपचारिक हैं और वास्तविक राजनीतिक शक्ति निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास होती है।

संसदीय संप्रभुता: ब्रिटेन, संसदीय संप्रभुता के सिद्धांत के तहत कार्य करता है, जिसका अर्थ है कि संसद किसी भी कानून का निर्माण कर सकती है या फिर उसे निरस्त कर सकती है, तथा इससे उच्च कोई प्राधिकारी नहीं है।

निष्कर्ष:

जबकि दोनों प्रणालियाँ संसदीय लोकतंत्र और जवाबदेही पर ज़ोर देती हैं, भारतीय मॉडल यू.के. की विकासशील एवं कम औपचारिक संवैधानिक प्रथाओं की तुलना में शासन के लिये अधिक संहिताबद्ध तथा स्पष्ट रूपरेखा प्रदान करता है। इन अंतरों को समझना विभिन्न लोकतांत्रिक स्थितियों में संवैधानिक सिद्धांतों की अनुकूलनशीलता एवं विकास को उजागर करता है।