23 Jul 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में संघ की अवधारणा का संक्षिप्त में परिचय दीजिये।
- संघ और राज्यों के बीच सहयोग, प्रतिस्पर्द्धा एवं विरोध की गतिशीलता पर चर्चा कीजिये।
- भारत के संघीय ढाँचे को मज़बूत करने के लिये आवश्यक कदम सुझाइये।
- उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
भारत में संघवाद, जैसा कि संविधान में निहित है, सरकार की एक प्रणाली है जिसे केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों तथा उत्तरदायित्त्व को संतुलित करने के लिये स्थापित किया गया है। सातवीं अनुसूची शक्तियों को तीन सूचियों में विभाजित करती है:
- संघ सूची: केंद्र सरकार के लिये विशेष शक्तियाँ।
- राज्य सूची: राज्य सरकारों के लिये विशेष शक्तियाँ।
- समवर्ती सूची: केंद्र और राज्य दोनों सरकारों द्वारा साझा की जाने वाली शक्तियाँ।
संघ और राज्य सरकारों के बीच सहयोग, प्रतिस्पर्धा और विरोध के कारण यह प्रणाली समय के साथ महत्त्वपूर्ण रूप से विकसित हुई है।
मुख्य बिंदु:
सहयोग की गतिशीलता
- सहयोगात्मक तंत्र:
- अंतर-सरकारी परिषदें: अनुच्छेद 263 के तहत स्थापित अंतर-राज्य परिषद जैसे निकाय संघ और राज्यों के बीच सहयोग को सुविधाजनक बनाते हैं। राष्ट्रीय विकास परिषद (NDC) भी संयुक्त विकास प्रयासों को बढ़ावा देने में भूमिका निभाती है।
- राजकोषीय संघवाद: अनुच्छेद 280 के तहत स्थापित वित्त आयोग, राज्यों को केंद्रीय राजस्व के वितरण की सिफारिश करता है, जिससे राजकोषीय स्थिरता और समान संसाधन आवंटन को बढ़ावा मिलता है।
- सफल सहयोगात्मक पहल:
- नीति कार्यान्वयन: उदाहरणों में राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार योजनाओं, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) जैसे स्वास्थ्य कार्यक्रमों और प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) जैसी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में संयुक्त प्रयास शामिल हैं।
- आपदा प्रबंधन: वर्ष 2004 को हिंद महासागर में आई सुनामी और हाल ही में आई बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के दौरान प्रभावी सहयोग से पता चलता है कि केंद्र तथा राज्य आपातकालीन प्रतिक्रिया एवं राहत हेतु एक साथ कार्य कर रहे हैं।
प्रतिस्पर्द्धा की गतिशीलता
- राजनीतिक और चुनावी प्रतिस्पर्द्धा:
- चुनावी प्रतिद्वंद्विता: क्षेत्रीय दलों और राष्ट्रीय दलों के बीच राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा अक्सर संघीय गतिशीलता को प्रभावित करती है, जिससे शासन और नीति-निर्माण प्रभावित होता है। क्षेत्रीय दल राज्य के हितों पर ज़ोर देते हैं, जिससे केंद्रीय नीतियों के साथ विरोध हो सकता है।
- केंद्रीकरण और क्षेत्रवाद में संतुलन: भारत राष्ट्रीय एकता के लिये केंद्रीय प्राधिकार और क्षेत्रीय आवश्यकताओं के लिये राज्य स्वायत्तता के बीच की जटिल स्थिति का सामना करता है। मज़बूत केंद्रीय सरकारों को अतिक्रमण के रूप में देखा जा सकता है, जबकि मज़बूत क्षेत्रीय आंदोलन राष्ट्रीय एकता को खतरे में डाल सकते हैं।
- दक्षिण भारतीय राज्य जिनकी पहचान विशिष्ट द्रविड़ भाषाएँ और वहाँ की संस्कृतियाँ हैं। आधिकारिक राष्ट्रीय भाषा के रूप में हिंदी की घोषणा से खासकर तमिलनाडु जैसे दक्षिणी राज्यों में विरोध प्रदर्शन शुरू हुए।
- राज्य की स्वायत्तता: संसाधनों और राजनीतिक प्रभाव के लिये प्रतिस्पर्द्धा से राज्य की स्वायत्तता एवं राज्य के मामलों में केंद्रीय हस्तक्षेप पर विवाद हो सकता है।
- वर्ष 2019 में जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को केंद्र सरकार ने राज्य विधानमंडल से परामर्श किये बिना ही हटा दिया। संघीय सिद्धांतों को कमज़ोर करने के प्रयास के रूप में इस कदम की आलोचना की गई।
- आर्थिक एवं संसाधनों की प्रतिस्पर्द्धा:
- असमान राजस्व वितरण: 15वें वित्त आयोग ने राज्यों के लिये केंद्रीय करों में अधिक हिस्सेदारी की सिफारिश की है, जिसे 32% से बढ़ाकर 41% कर दिया है। हालाँकि राज्य अक्सर शिकायत करते हैं कि धन अपर्याप्त है और समय पर वितरित नहीं किया जाता है, जिससे राजकोषीय तनाव उत्पन्न होता है।
- इसके अलावा, दक्षिणी राज्य अक्सर शिकायत करते हैं कि उत्तरी राज्यों की तुलना में करों में अधिक योगदान देने के बावजूद उन्हें कम धनराशि प्राप्त होती है तथा वे इस असमानता के लिये अपनी कम जनसंख्या को ज़िम्मेदार ठहराते हैं।
- निवेश के लिये प्रतिस्पर्द्धा: राज्य अक्सर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के लिये प्रतिस्पर्द्धा करते हैं, जिससे असंतुलन उत्पन्न हो सकता है।
- उदाहरण के लिये महाराष्ट्र और गुजरात में पर्याप्त मात्रा में FDI प्राप्त होता है तथा पूर्वोत्तर राज्यों में न्यूनतम निवेश होता है, जिससे क्षेत्रीय असमानताओं में वृद्धि होती है।
- पुनर्वितरण मॉडल की वैधता:
- दक्षिणी राज्य, जिनकी अर्थव्यवस्था आमतौर पर ज़्यादा मज़बूत है और जो राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं, उन्हें लगता है कि GST मॉडल आर्थिक रूप से कम विकसित राज्यों को अनुपातहीन रूप से लाभ पहुँचाता है।
- वे GST पुनर्वितरण के लिये एक अधिक न्यायसंगत और संतुलित दृष्टिकोण की मांग करते हैं, जिसमें उनके उच्च योगदान को मान्यता देना, राजस्व की कमी को संबोधित करना तथा उनकी विकासात्मक आवश्यकताओं का समर्थन करने जैसे मुद्दे शामिल हैं।
विरोध की गतिशीलता :
- क्षेत्रीय असंतोष:
- क्षेत्रीयता भाषा और संस्कृति के आधार पर स्वायत्तता की मांग के माध्यम से स्वयं को स्थापित करते है। इस प्रकार राष्ट्र को उग्रवाद के रूप में आंतरिक सुरक्षा की चुनौती का सामना करना पड़ता है और इससे भारतीय संघ की मूल धारणा प्रभावित होती है।
- असम की एक प्रमुख जनजाति बोडो, लंबे समय से एक अलग बोडोलैंड राज्य की मांग कर रही है। पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग पहाड़ियों में केंद्रित एक जातीय समूह गोरखा, लंबे समय से एक अलग गोरखालैंड राज्य की मांग कर रहे हैं।
- शक्तियों के विभाजन में विवाद:
- संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची संघीय सरकार तथा राज्यों द्वारा साझा किये जाने वाले प्राधिकारों को चित्रित करती है। लेकिन यह अंतर अस्पष्ट हो सकते हैं, जिससे प्राधिकार के बारे में विवाद उत्पन्न (खासकर जब शिक्षा और कृषि जैसे मामले समवर्ती सूची में हों) हो सकते हैं।
- केंद्र सरकार द्वारा 2020 में पारित तीन कृषि कानूनों को पंजाब जैसे राज्यों ने इस आधार पर चुनौती दी थी कि कृषि राज्य सूची का विषय है। यह शक्ति विभाजन की व्याख्या को लेकर चल रहे विवादों को उजागर करता है।
- राज्यपाल कार्यालय का दुरुपयोग :
- राज्यपाल के कार्यालय के दुरुपयोग के बारे में चिंताएँ बढ़ रही हैं, जिसमें केंद्रीय सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा लगातार स्थानांतरण और नियुक्तियाँ, सरकार गठन में हेर-फेर, राज्य सरकारों को मनमाने ढंग से बर्खास्त करने तथा विधेयकों पर हस्ताक्षर करने से इनकार करने जैसे मुद्दे शमिल हैं।
- अरुणाचल प्रदेश (2016) में राज्यपाल की सिफारिश के कारण सत्तारूढ़ सरकार के पास बहुमत का समर्थन होने के बावजूद राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया, जिसे बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने रद्द किया था।
- अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग :
- अनुच्छेद 356, जिसे राष्ट्रपति शासन के नाम से भी जाना जाता है, तब लागू किया जाता है जब कोई राज्य संवैधानिक रूप से कार्य नहीं करता है। इसके तहत केंद्रीय मंत्रिमंडल को लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित राज्य सरकारों को बर्खास्त करने और विधानसभाओं को भंग करने की शक्ति प्रदान की गई है।
- ऐतिहासिक रूप से, अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल 2000 तक 100 से ज़्यादा बार राष्ट्रपति शासन लगाने के लिये किया गया है, जिससे राज्य की स्वायत्तता बाधित हुई है। हालाँकि इसका इस्तेमाल कम हुआ है, फिर भी इसका संभावित दुरुपयोग चिंता का विषय बना हुआ है।
- वर्ष 1988 में सरकारिया आयोग ने पाया कि अनुच्छेद 356 के कम-से-कम एक तिहाई अधिरोपण राजनीतिक रूप से प्रेरित थे।
भारत के संघीय ढाँचे को मज़बूत करने के लिये उठाये गए आवश्यक कदम:
- शक्तियों का हस्तांतरण बढ़ाना:
- संवैधानिक सूचियों को संशोधित करके, केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी बढ़ाकर, राज्यों को अधिक वित्तीय स्वायत्तता और लचीलापन देकर, राज्यों तथा स्थानीय निकायों को शक्तियों एवं संसाधनों का हस्तांतरण बढ़ाकर संघवाद को मज़बूत किया जा सकता है।
- सरकारिया आयोग (1988) ने संविधान की सातवीं अनुसूची की राज्य सूची में सूचीबद्ध क्षेत्रों में राज्यों के लिये अधिक स्वायत्तता का समर्थन किया है।
- समतामूलक विकास सुनिश्चित करना:
- संसाधन साझाकरण फॉर्मूला: जनसंख्या, गरीबी के स्तर और बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता जैसे कारकों पर विचार करते हुए राज्यों को केंद्रीय धन वितरित करने के लिये एक पारदर्शी तथा वस्तुनिष्ठ फॉर्मूला विकसित करना।
- रघुराम राजन समिति (2017) ने वस्तुनिष्ठ मानदंडों के आधार पर राज्यों को केंद्रीय निधियों के सूत्र-आधारित हस्तांतरण का समर्थन किया था।
- क्षेत्रीय असमानताओं का समाधान: पिछड़े और वंचित क्षेत्रों या समूहों को विशेष सहायता तथा समर्थन प्रदान करके क्षेत्रीय असंतुलन एवं असमानताओं का समाधान करना।
- 15वें वित्त आयोग ने राज्य-विशिष्ट अनुदानों के आवंटन के साथ-साथ राज्य-विशिष्ट और क्षेत्र-विशिष्ट अनुदानों के उपयोग की समीक्षा तथा नियंत्रण हेतु प्रत्येक राज्य में उच्च-स्तरीय समितियों के गठन की सिफारिश की।
- अंतर-सरकारी संस्थाओं को मज़बूत बनाना:
- अंतर-राज्य परिषद (ISC) को पुनःस्थापित करना: अंतर-राज्यीय विवादों को सुलझाने और राष्ट्रीय मुद्दों पर सहयोग को बढ़ावा देने के लिये अंतर-राज्य परिषद को अधिक प्रभावी मंच के रूप में स्थापित करना। इसमें आम नीतियों को विकसित करने के लिये इसे अधिक शक्ति देना शामिल हो सकता है।
- सरकारिया आयोग की सिफारिश पर सरकार ने एक स्थायी अंतर्राज्यीय परिषद की स्थापना की है, लेकिन यह सरकारिया आयोग के दृष्टिकोण के अनुरूप नहीं है।
- संचार और समन्वय बढ़ाना: सुचारू नीति कार्यान्वयन सुनिश्चित करने और क्षेत्रीय चिंताओं को दूर करने के लिये केंद्र एवं राज्यों के बीच नियमित संचार स्थापित करना।
- पुंछी आयोग ने आंतरिक सुरक्षा, समन्वय और प्रभावशीलता बढ़ाने से संबंधित मामलों के लिये एक अधिरोहित संरचना, ‘राष्ट्रीय एकता परिषद’ के निर्माण का प्रस्ताव रखा।
- संघीय सिद्धांतों और भावना का सम्मान करना:
- केंद्रीय हस्तक्षेप को कम करना: केंद्र को संविधान के अनुच्छेद 355 और 356 (जो राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुमति देते हैं) के तहत अपनी शक्तियों के अत्यधिक उपयोग से बचना चाहिये। इससे राज्यों के लिये अधिक स्वायत्तता सुनिश्चित होगी।
- सरकारिया आयोग ने सुझाव दिया था कि अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) का प्रयोग अत्यंत संयम से किया जाना चाहिये और अत्यंत आवश्यक मामलों में अंतिम उपाय के रूप में तभी इसका प्रयोग किया जाना चाहिये जब अन्य सभी उपलब्ध विकल्प विफल हो जाए।
- अधिक प्रतिनिधित्व और भागीदारी सुनिश्चित करना: राज्य विधायकों की बढ़ती भागीदारी यह गारंटी देती है कि संघीय स्तर पर उनके हितों और चिंताओं को गंभीरता से लिया जाता है।
- उदाहरण के लिये, राज्यपाल की नियुक्ति अधिक पारदर्शी और परामर्शी होनी चाहिये। पुंछी आयोग ने राज्यपाल की नियुक्तियों में मुख्यमंत्री की भागीदारी की सिफारिश की है।
निष्कर्ष:
भारत का संघवाद विविधता को अपनाकर, सहयोग को प्रोत्साहित और अपने सभी लोगों के लिये शांतिपूर्ण तथा समृद्ध भविष्य का निर्माण करके आगे बढ़ेगा। यह दृढ़ता और एकजुटता का प्रमाण है जो राजनीतिक अनिवार्यता के अलावा भारतीय गणराज्य की विशेषता को दर्शाता है।