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23 Jul 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 2
राजव्यवस्था
दिवस - 14: भारत में ग्रामीण स्थानीय निकायों में महिलाओं की भागीदारी का शासन पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। परीक्षण कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- ग्रामीण स्थानीय निकायों में महिलाओं की भागीदारी का समर्थन करने वाले कानूनी ढाँचे का संक्षेप में परिचय दीजिये।
- भारत में शासन पर ग्रामीण स्थानीय निकायों में महिलाओं की भागीदारी के प्रभाव की रूपरेखा तैयार कीजिये।
- संबंधित चुनौतियों पर चर्चा कीजिये तथा आवश्यक उपाय सुझाइये।
- उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
वर्ष 1992 के 73वें संविधान संशोधन अधिनियम ने ग्रामीण स्थानीय निकायों, जिन्हें पंचायतों के नाम से जाना जाता है, में महिलाओं के लिये 33% सीटों के आरक्षण को अनिवार्य बनाकर भारतीय शासन में एक परिवर्तनकारी क्षण को चिह्नित किया है। इन निकायों में महिलाओं की भागीदारी ने शासन पर गहरा प्रभाव डाला है, नीति-निर्माण, सेवा वितरण और सामाजिक सशक्तीकरण को प्रभावित किया है।
मुख्य बिंदु:
भारत में ग्रामीण स्थानीय निकायों में महिलाओं की भागीदारी का शासन पर प्रभाव:
- महिला सशक्तिकरण: स्थानीय शासन में भागीदारी ने महिलाओं को सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाया है, उन्हें नेतृत्व कौशल, आत्मविश्वास तथा चिंताओं को व्यक्त करने के लिये एक मंच प्रदान किया है।
- स्थानीय सरकारों में महिलाओं की भागीदारी के मामले में भारत अग्रणी देशों में से एक है, जहाँ 1.45 मिलियन से अधिक महिलाएँ स्थानीय निकायों में प्रतिनिधित्त्व कर रही हैं।
- नीतिगत प्रभाव: महिलाओं के बढ़ते प्रतिनिधित्त्व के कारण स्वास्थ्य, शिक्षा और स्वच्छता जैसे महिलाओं के मुद्दों को संबोधित करने वाली नीतियों की शुरूआत एवं प्राथमिकता हुई है।
- उदाहरण के लिये महिला पंचायत नेताओं ने अक्सर अपने गाँवों में स्वच्छता सुविधाओं और मातृ स्वास्थ्य में सुधार के लिये पहल की है।
- समावेशिता: निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में महिलाओं को शामिल करने से अधिक समावेशिता और विविधता को बढ़ावा मिला है, जिससे यह सुनिश्चित हुआ है कि महिलाओं एवं हाशिये पर पड़े समुदायों की चिंताओं का समाधान किया गया है।
- बिहार में 2021 के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि घरेलू हिंसा और बाल विवाह के मुद्दों पर निवारण सहायता प्रदान करने में ईडब्ल्यूआर (EWRs) महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- कार्यान्वयन में प्रभावशीलता: अनुसंधान से पता चला है कि महिलाओं के नेतृत्व वाली स्थानीय संस्थाएँ सामुदायिक परियोजनाओं और सेवाओं के कार्यान्वयन में अधिक प्रभावी होती हैं, क्योंकि महिला नेताओं को अक्सर अपने समुदायों के सामने आने वाली चुनौतियों का प्रत्यक्ष अनुभव होता है।
- वर्ष 2010 में 11 राज्यों में किये गए एक अध्ययन में पाया गया कि महिलाओं के नेतृत्व वाले गाँव में सेवाओं की बेहतर डिलीवरी के साथ भ्रष्टाचार का स्तर भी कम रहा है।
- सामुदायिक प्रभाव: समुदायों पर व्यापक प्रभाव में बेहतर लैंगिक संबंध और अधिक सामुदायिक विकास शामिल है। शासन में महिलाओं की भागीदारी ने सामाजिक सामंजस्य तथा संसाधनों के अधिक न्यायसंगत वितरण में योगदान दिया है।
- महिलाओं के लिये महत्वपूर्ण जल अवसंरचना, स्वच्छता, शिक्षा और सड़क जैसी सेवाओं में अधिक निवेश किया गया।
चुनौतियाँ और सीमाएँ
- सीमित अधिकार:
- संरचनात्मक बाधाएँ: ग्रामीण स्थानीय निकायों में महिलाओं को अक्सर पुरुष-प्रधान निर्णय लेने वाली संरचनाओं के भीतर सीमित अधिकार और प्रभाव के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इससे कभी-कभी प्रतीकात्मकता की स्थिति पैदा हो जाती है, जहाँ महिलाएँ चुनी तो जाती हैं, लेकिन उनके पास पर्याप्त शक्ति नहीं होती।
- कई रिपोर्ट और अध्ययन राजस्थान एवं बिहार जैसे राज्यों में “सरपंचपति” की व्यापक प्रथा पर प्रकाश डालते हैं, जहाँ महिला मुखिया अक्सर अपने पतियों के प्रभाव में रहकर सरपंच की भूमिका निभाती हैं।
- कार्यान्वयन में अंतराल: नीतियों को वास्तव में व्यवहार में लाने के तरीके में विसंगतियाँ मौजूद हैं, जिनमें ऐसी स्थितियाँ भी शामिल हैं जब महिला नेताओं के लिये संसाधन और समर्थन अपर्याप्त हैं।
- संरचनात्मक बाधाएँ: ग्रामीण स्थानीय निकायों में महिलाओं को अक्सर पुरुष-प्रधान निर्णय लेने वाली संरचनाओं के भीतर सीमित अधिकार और प्रभाव के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इससे कभी-कभी प्रतीकात्मकता की स्थिति पैदा हो जाती है, जहाँ महिलाएँ चुनी तो जाती हैं, लेकिन उनके पास पर्याप्त शक्ति नहीं होती।
- सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाएँ:
- पारंपरिक दृष्टिकोण: महिलाओं की प्रभावी ढंग से नेतृत्व करने की क्षमता सामाजिक-सांस्कृतिक मानदंडों और पारंपरिक लिंग भूमिकाओं से प्रभावित हो सकती है। उनकी शक्ति अक्सर पितृसत्तात्मक विचारों एवं स्थानीय अभिजात वर्ग के विरोध से प्रभावित होती है।
- वर्ष 2021 के एक अध्ययन से पता चलता है कि साक्षात्कार में शामिल 77 प्रतिशत निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों (EWRs) का मानना है कि वे सामाजिक चुनौतियों के कारण अपने निर्वाचन क्षेत्रों में चीज़ों को आसानी से नहीं बदल सकती हैं
- प्रशिक्षण का अभाव: कई महिला नेताओं को अपर्याप्त प्रशिक्षण और संसाधनों के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी भूमिका को प्रभावी ढंग से निभाने की क्षमता प्रभावित होती है।
- पारंपरिक दृष्टिकोण: महिलाओं की प्रभावी ढंग से नेतृत्व करने की क्षमता सामाजिक-सांस्कृतिक मानदंडों और पारंपरिक लिंग भूमिकाओं से प्रभावित हो सकती है। उनकी शक्ति अक्सर पितृसत्तात्मक विचारों एवं स्थानीय अभिजात वर्ग के विरोध से प्रभावित होती है।
- संस्थागत चुनौतियाँ:
- प्रशासनिक सहायता: ग्रामीण स्थानीय निकायों में महिलाओं की प्रभावशीलता कभी-कभी अपर्याप्त प्रशासनिक सहायता और संसाधन आवंटन के कारण कम हो जाती है, जिससे नीतियों एवं कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से लागू करने की उनकी क्षमता प्रभावित होती है।
- डिजिटल विभाजन: ग्रामीण भारत में महिलाओं के बीच लैंगिक डिजिटल विभाजन मुख्य रूप से महिलाओं को प्रभावित करता है, जिससे महिला प्रतिनिधियों के काम में बाधा आती है। यह अधिक प्रासंगिक होता जा रहा है क्योंकि देश भर में स्थानीय सरकारें सार्वजनिक सेवा वितरण और निवारण के लिये डिजिटलीकरण को अपना रही हैं।
- बिहार में किये गए एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि EWR प्रतिभागियों में से केवल 63 प्रतिशत के पास फोन था, जिनमें से केवल 24 प्रतिशत के पास स्मार्टफोन थे।
सुधार हेतु सुझाव:
- क्षमता निर्माण:
- प्रशिक्षण कार्यक्रम: ग्रामीण स्थानीय निकायों में महिला नेताओं के कौशल और ज्ञान को बढ़ाने के लिये व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरूआत की जानी चाहिये। प्रशिक्षण में शासन, प्रबंधन एवं परियोजना कार्यान्वयन शामिल होना चाहिये।
- सलाह और सहायता: महिला नेताओं को मार्गदर्शन और सशक्त बनाने के लिये सलाह कार्यक्रम तथा सहायता नेटवर्क स्थापित कर आवश्यक संसाधन एवं सलाह प्रदान करना।
- संस्थागत समर्थन को मज़बूत करना:
- संसाधन आवंटन: ग्रामीण स्थानीय निकायों के लिये संसाधन आवंटन और प्रशासनिक सहायता में सुधार करना ताकि महिलाएँ अपनी भूमिकाएँ अधिक प्रभावी ढंग से निभा सकें। सफल शासन के लिये पर्याप्त धन एवं रसद सहायता महत्त्वपूर्ण है।
- नीति सुधार: अधिक सार्थक भागीदारी और प्रभाव सुनिश्चित करने के लिये तथा संरचनात्मक एवं सांस्कृतिक बाधाओं को दूर करने हेतु नीतिगत सुधार लागू करें। उपायों में लैंगिक समानता को बढ़ावा देना एवं पारंपरिक मानदंडों को चुनौती देना शामिल होना चाहिये।
- समावेशिता को प्रोत्साहित करना:
- सामुदायिक सहभागिता: नेतृत्व की भूमिकाओं में महिलाओं के लिये स्वीकृति और समर्थन को बढ़ावा देने हेतु सामुदायिक सहभागिता तथा जागरूकता कार्यक्रमों को बढ़ावा देना। लिंग-समावेशी शासन के लाभों के बारे में समुदायों को शिक्षित करने से प्रतिरोध पर काबू पाने में मदद मिल सकती है।
- दरअसल, 2021 के एक अध्ययन से पता चला है कि स्वयं सहायता समूहों में शामिल होने से महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है क्योंकि यह उन्हें बड़ा नेटवर्क और सामूहिक कार्रवाई की क्षमता प्रदान करता है तथा उनके नागरिक कौशल को विकसित करने में मदद करता है।
- निगरानी और मूल्यांकन: स्थानीय शासन में महिलाओं की भागीदारी की प्रभावशीलता की निगरानी और मूल्यांकन के लिये तंत्र स्थापित करना। नियमित मूल्यांकन चुनौतियों एवं सुधार के क्षेत्रों की पहचान करने में मदद कर सकता है।
- सामुदायिक सहभागिता: नेतृत्व की भूमिकाओं में महिलाओं के लिये स्वीकृति और समर्थन को बढ़ावा देने हेतु सामुदायिक सहभागिता तथा जागरूकता कार्यक्रमों को बढ़ावा देना। लिंग-समावेशी शासन के लाभों के बारे में समुदायों को शिक्षित करने से प्रतिरोध पर काबू पाने में मदद मिल सकती है।
निष्कर्ष
ग्रामीण स्थानीय निकायों में महिलाओं की भागीदारी ने प्रतिनिधित्व बढ़ाकर, सेवा वितरण में सुधार करके और सामाजिक तथा आर्थिक सशक्तीकरण को बढ़ावा देकर भारत में शासन को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया है। हालाँकि उल्लेखनीय उपलब्धियाँ हुई हैं, लेकिन सीमित अधिकार, सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाएँ और संस्थागत बाधाएँ जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। लक्षित सुधारों एवं समर्थन उपायों के माध्यम से इन चुनौतियों का समाधान स्थानीय शासन में महिलाओं की भूमिका को और मज़बूत कर सकता है, जिससे ज़मीनी स्तर पर अधिक प्रभावी तथा न्यायसंगत शासन सुनिश्चित हो सकता है।