23 Jul 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में स्थानीय स्वशासन का संक्षिप्त में परिचय दीजिये।
- भारत में स्थानीय स्वशासन के महत्त्व का उल्लेख कीजिये।
- भारत में स्थानीय स्वशासन की उपलब्धियों और चुनौतियों की विवेचना कीजिये।
- सुधार के उपायों का सुझाव दीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
|
परिचय
भारत में स्थानीय स्वशासन लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण और समावेशी विकास की आधारशिला है। 1992 के 73वें तथा 74वें संविधान संशोधन के तहत स्थानीय स्वशासन का प्रावधान किया गया, जिसका उद्देश्य स्थानीय मामलों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिये पंचायत एवं नगर पालिका जैसे स्थानीय निकायों को सशक्त बनाना है।
प्रमुख बिंदु:
स्थानीय स्वशासन का महत्त्व
- लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण:
- ज़मीनी स्तर पर सशक्तीकरण: पंचायतों और नगर पालिकाओं जैसे स्थानीय स्वशासन निकायों की अभिकल्पना शासन व्यवस्था में निवासियों को समाविष्ट करने के लिये की गई है, जिससे उन्हें अपने दैनिक जीवन को प्रभावित करने वाली निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में भाग लेने का अवसर प्राप्त होता है।
- परिवर्द्धित जवाबदेहिता: प्रशासनिक कार्यों को विकेंद्रीकृत करके, स्थानीय सरकारें स्थानीय मुद्दों का अधिक प्रभावी ढंग से समाधान कर सकती हैं और जिन निवासियों के लिये वे सेवारत हैं, उनके प्रति स्थानीय सरकार की जवाबदेहिता बढ़ती है।
- समावेशी विकास:
- लक्षित विकास परियोजनाएँ: इस व्यवस्था में स्थानीय निकाय समुदाय की विशेष आवश्यकताओं की पहचान करने और उन्हें संबोधित करने, स्थानीय प्राथमिकताओं की पूर्ति करने वाली परियोजनाओं को कार्यान्वित करने एवं समग्र विकास को बढ़ाने के लिये बेहतर स्थिति में होती हैं।
- सामाजिक सशक्तीकरण: स्थानीय निकायों में महिलाओं और हाशियाई समुदायों के लिये सीटों का आरक्षण शासन में उनके प्रतिनिधित्व तथा भागीदारी को सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखता है।
स्थानीय स्वशासन की उपलब्धियाँ
- बेहतर स्थानीय सेवाएँ:
- बुनियादी ढाँचे का विकास: स्थानीय निकायों ने सड़क, स्वच्छता और जल की आपूर्ति जैसी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं का सफलतापूर्वक प्रबंधन किया है, जिससे कई क्षेत्रों में जीवन की गुणवत्ता में सुधार हुआ है।
- उदाहरणार्थ, कई पंचायतों ने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) के अंतर्गत सफलतापूर्वक ग्रामीण सड़क योजनाओं का क्रियान्वन किया है।
- स्वास्थ्य और शिक्षा: स्थानीय सरकारों ने स्वास्थ्य और शिक्षा सेवाओं को बेहतर बनाने में योगदान दिया है, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल की सुविधाओं तथा स्वास्थ्य केंद्रों में सुधार की पहल भी शामिल है।
- स्थानीय भागीदारी में वृद्धि:
- मतदाताओं की भागीदारी में वृद्धि: स्थानीय स्वशासन की स्थापना ने ज़मीनी स्तर पर मतदाताओं की भागीदारी और राजनीतिक भागीदारी को बढ़ावा दिया है।
- सामुदायिक भागीदारी: स्थानीय निकाय विकास परियोजनाओं का नियोजन करने और उन्हें कार्यान्वित करने में सामुदाय की भागीदारी को बढ़ावा देते हैं, जिससे निवासियों में स्वामित्व एवं उत्तरदायित्व की भावना जागृत होती है।
- महिलाओं के प्रतिनिधित्व में सुधार:
- 73वें संशोधन अधिनियम के अधिनियमन के बाद से निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों में अनुपात में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है।
- वर्तमान में भारत में 260,512 पंचायतें हैं, जिनमें 3.1 मिलियन निर्वाचित प्रतिनिधि हैं, जिनमें महिलाओं की भागीदारी 1.3 मिलियन है।
- विभिन्न राज्यों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा का सृजन:
- 73वें और 74वें संशोधन के पारित होने से अंतरण {3F: निधि (Fund), प्रकार्य (Function) और पदाधिकारी (Functionary)} के संबंध में विभिन्न राज्यों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा का सृजन हुआ है।
- उदाहरणार्थ:
- केरल ने अपने 29 कार्य पंचायतों को हस्तांतरित कर दिये हैं।
- केरल से प्रेरित राजस्थान ने स्वास्थ्य, शिक्षा, महिला और कृषि जैसे कई प्रमुख विभाग पंचायती राज संस्थानों (PRI) को हस्तांतरित किये हैं।
- इसी तरह बिहार ने "पंचायत सरकार" के विचार को प्रस्तुत किया है और ओडिशा जैसे राज्यों ने महिलाओं के लिये 50% सीटें बढ़ाई हैं।
स्थानीय स्वशासन के समक्ष चुनौतियाँ
- वित्तीय बाधाएँ:
- अपर्याप्त निधि: कई स्थानीय निकाय अपर्याप्त वित्तीय संसाधनों का सामना करते हैं, जिससे विकास परियोजनाओं को क्रियान्वित करने और उनकों जारी रखने की उनकी क्षमता प्रभावित होती है। निधि के लिये केंद्र और राज्य सरकारों पर निर्भरता प्रायः देरी एवं अक्षमताओं का कारण बनती है।
- राजस्व सृजन: स्थानीय सरकारों को सीमित राजकोषीय शक्तियों और स्थानीय कर संग्रह के लिये अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे के कारण पर्याप्त राजस्व उत्पन्न करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- प्रशासनिक और संरचनात्मक मुद्दे:
- क्षमता संबंधी बाधाएँ: स्थानीय निकायों में प्रायः प्रभावी शासन और परियोजना के कार्यान्वयन के लिये आवश्यक प्रशासनिक क्षमता तथा तकनीकी विशेषज्ञता का अभाव होता है। सीमित प्रशिक्षण एवं संसाधन उनके कार्यों को कुशलतापूर्वक निष्पादित करने की उनकी क्षमता में बाधा डालते हैं।
- समन्वय की समस्याएँ: स्थानीय निकायों और सरकार के उच्च स्तर के बीच अप्रभावी समन्वय से नीतियों का असंगत कार्यान्वयन तथा कार्रवाई का दोहराव हो सकता है।
- राजनीतिक हस्तक्षेप:
- राजनीतिक संरक्षण: स्थानीय स्वशासन निकाय बहुत से मामलों में राजनीतिक हस्तक्षेप और संरक्षण के अधीन होते हैं, जिससे उनकी स्वायत्तता तथा प्रभावकारिता कम हो जाती है। राजनेता अपने हितों के लिये स्थानीय निकायों पर नियंत्रण कर सकते हैं।
- भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन: स्थानीय शासन में भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन के उदाहरण अक्षमता एवं स्थानीय संस्थाओं में जनता के विश्वास को कम कर सकते हैं।
- सामाजिक एवं सांस्कृतिक बाधाएँ:
- लैंगिक एवं जातिगत भेदभाव: महिलाओं और हाशियाई समुदायों के लिये सीटों के आरक्षण के बावजूद, लैंगिक तथा जाति-आधारित भेदभाव स्थानीय शासन में उनकी प्रभावी भागीदारी एवं नेतृत्व को सीमित कर सकता है।
- सामाजिक-सांस्कृतिक मानदंड: कुछ क्षेत्रों में परंपरागत मानदंड और परिवर्तन के प्रति प्रतिरोध स्थानीय स्वशासन संस्थाओं के प्रभावी कामकाज में बाधा डाल सकते हैं।
सुधार हेतु अनुशंसाएँ
- वित्तीय स्वायत्तता का सुदृढ़ीकरण:
- वर्द्धित राजकोषीय शक्तियाँ: स्थानीय निकायों को उनकी वित्तीय स्थिरता में सुधार करने के लिये अधिक राजकोषीय स्वायत्तता और राजस्व-उत्पादन शक्तियाँ प्रदान करने की आवश्यकता है। इसमें स्थानीय कर आधारों का विस्तार करना तथा वित्तीय प्रबंधन प्रथाओं में सुधार करना शामिल हो सकता है।
- वर्द्धित निधीयन: स्थानीय निकायों को अपनी ज़िम्मेदारियों को प्रभावी ढंग से पूरा करने में सक्षम बनाने के लिये राज्य और केंद्र सरकारों से समय पर तथा पर्याप्त वित्तीय सहायता सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
- द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) ने सरकार के प्रत्येक स्तर के प्रकार्यों का स्पष्ट सीमांकन किये जाने की सिफारिश की।
- क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण:
- कौशल विकास: स्थानीय सरकारी अधिकारियों की प्रशासनिक और तकनीकी कौशल संवर्द्धित करने के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रमों में निवेश करना आवश्यक है। क्षमता निर्माण पहलों में प्रभावी परियोजना प्रबंधन एवं शासन पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
- तकनीकी सहायता: स्थानीय निकायों को विकास परियोजनाओं को क्रियान्वित करने और बुनियादी ढाँचे की ज़रूरतों को पूरा करने में मदद करने के लिये तकनीकी सहायता तथा संसाधन प्रदान करने की आवश्यकता है।
- जवाबदेही और पारदर्शिता में सुधार:
- निगरानी और मूल्यांकन: स्थानीय स्वशासन संस्थाओं के निष्पादन की निगरानी और मूल्यांकन के लिये एक सुदृढ़ तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये।
- राज्य सरकारों द्वारा ज़िला स्तर पर वित्तीय जानकारी की अखंडता, आंतरिक नियंत्रण की पर्याप्तता, प्रयोज्य कानूनों के अनुपालन और स्थानीय निकायों में शामिल सभी व्यक्तियों के नैतिक आचरण की निगरानी के लिये अंकेक्षण समितियों का गठन किया जा सकता है।
- जन सहभागिता: स्थानीय शासन प्रकमों में सक्रिय जन सहभागिता और निगरानी को प्रोत्साहित करना आवश्यक है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि स्थानीय निकाय समुदाय की ज़रूरतों एवं चिंताओं के प्रति उत्तरदायी हैं।
- राजनीतिक और सामाजिक बाधाओं का समाधान:
- राजनीतिक हस्तक्षेप को कम करना: स्थानीय निकायों की स्वायत्तता और सामुदाय का विकास सुनिश्चित करने हेतु स्थानीय शासन में राजनीतिक हस्तक्षेप को कम करने के उपायों को क्रियान्वित करने की आवश्यकता है।
- कर्नाटक ने पंचायतों के लिये एक पृथक नौकरशाही कैडर स्थापित किया है जिसका उद्देश्य अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति की प्रथा को समाप्त करना है जिसमें प्रायः यह देखा जाता था की अधिकारी निर्वाचित प्रतिनिधियों पर हावी हो जाते थे।
- समावेशिता का संवर्द्धन: लैंगिक और जाति आधारित भेदभाव समाप्त करने के प्रयासों को सुदृढ़ करना, स्थानीय शासन में समावेशी भागीदारी एवं नेतृत्व को बढ़ावा देना।
निष्कर्ष
लक्षित सुधारों, उन्नत प्रशिक्षण कार्यक्रमों और सुदृढ़ अनुवीक्षण तंत्रों के माध्यम से PRI को सुदृढ़ करने से न केवल स्थानीय शासन प्रभावी होगा अपितु भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था भी सुदृढ़ होगी। अधिक सहभागी और जवाबदेह स्थानीय शासन प्रणाली को बढ़ावा देकर, PRI वास्तव में भारत की लोकतांत्रिक एवं विकासात्मक आकांक्षाओं की आधारशिला बन सकती हैं।