-
23 Jul 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 2
राजव्यवस्था
दिवस - 14: 101वाँ संविधान संशोधन अधिनियम भारत के राजकोषीय संघवाद में एक मील का पत्थर है। टिप्पणी कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- 101 वें संविधान संशोधन अधिनियम का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- 101 वें संविधान संशोधन अधिनियम के प्रमुख प्रावधानों पर चर्चा कीजिये।
- अधिनियम की उपलब्धियों और चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
- GST ढाँचे को मज़बूत करने हेतु भविष्य के सुधारों का सुझाव दीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
राजकोषीय संघवाद, जिसमें सरकार के विभिन्न स्तरों के बीच वित्तीय शक्तियाँ और उत्तरदायित्त्व शामिल है, संतुलित आर्थिक विकास तथा कुशल शासन सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक है। वर्ष 2016 में अधिनियमित 101वाँ संविधान संशोधन अधिनियम भारत के राजकोषीय संघवाद में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर है।
मुख्य बिंदु:
101वें संविधान संशोधन अधिनियम के प्रमुख प्रावधान:
- GST का परिचय:
- 101वें संशोधन अधिनियम द्वारा वस्तु एवं सेवा कर के कार्यान्वयन के लिये महत्त्वपूर्ण प्रावधान किये गए जिसमे केंद्र और राज्यों दोनों द्वारा आरोपित अप्रत्यक्ष करों की जटिल शृंखला का प्रतिस्थापन शामिल है। GST का उद्देश्य एकल, एकीकृत कर प्रणाली स्थापित करना, करों की बहुलता को कम करना और कर पर कर के व्यापक प्रभाव को कम करना है।
- राजस्व साझाकरण और मुआवज़ा तंत्र:
- इस अधिनियम द्वारा केंद्र और राज्यों के बीच GST राजस्व के वितरण के लिये एक रूपरेखा स्थापित की गई, जिसमें GST में बदलाव के कारण राजस्व के किसी भी नुकसान के लिये राज्यों को मुआवज़े के प्रावधान शामिल हैं। इस अधिनियम के तहत राज्यों को राजस्व में कमी के लिये मुआवज़ा हेतु GST क्षतिपूर्ति कोष के निर्माण का प्रावधान किया गया है।
- GST परिषद का सशक्तीकरण:
- इस अधिनियम ने GST परिषद को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया, जो केंद्र और राज्यों के प्रतिनिधित्त्व वाली एक संस्था है, जिसे कर दरों, छूटों तथा अन्य नीतिगत मामलों सहित GST से संबंधित मुद्दों पर सिफारिशें करने से संबंधित कार्य सौंपा गया है।
उपलब्धियाँ और सकारात्मक प्रभाव
- एकीकृत कर प्रणाली:
- GST के कार्यान्वयन ने विभिन्न अप्रत्यक्ष करों को एक कर में समाहित करके कर संरचना को सरल बना दिया है, जिससे केंद्र और राज्यों के बीच कर-संबंधी विवाद कम हो गए हैं। इसके द्वारा एक साझा राष्ट्रीय बाज़ार स्थापित किया गया है, जिससे अंतर्राज्यीय वस्तुओं और सेवाओं की आसान आवाजाही की सुविधा मिली है।
- राजस्व दक्षता:
- GST के द्वारा राजस्व संग्रह दक्षता में सुधार, कर चोरी में कमी और अधिक सुव्यवस्थित तथा डिजिटल कर प्रणाली के माध्यम से पारदर्शिता में वृद्धि हुई है। अप्रैल 2024 में सकल वस्तु एवं सेवा कर (GST) संग्रह 2.10 लाख करोड़ रुपए के रिकॉर्ड के साथ उच्च स्तर पर पहुँच गया।
- आर्थिक एकीकरण:
- GST व्यवस्था ने आर्थिक एकीकरण और कर नीतियों में एकरूपता को बढ़ावा दिया है, प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाया है तथा पूरे भारत में निवेश को प्रोत्साहित किया है।
- उन्नत राजकोषीय संघवाद:
- संशोधन ने कर प्रशासन में केंद्र और राज्यों की भूमिकाओं तथा उत्तरदायित्त्व को स्पष्ट किया है, जिससे सरकार के दोनों स्तरों के बीच राजकोषीय संबंध मज़बूत हुए हैं।
चुनौतियाँ और आलोचनाएँ
- कार्यान्वयन संबंधी मुद्दे: GST को लागू करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसमें GST नेटवर्क में तकनीकी गड़बड़ियाँ, व्यवसायों पर अनुपालन का बोझ और राज्य स्तर पर प्रशासनिक बाधाएँ शामिल हैं।
- राजस्व क्षतिपूर्ति: भारत का GST "कंपनसेशन गारंटी" से अनिश्चित रूप से जुड़ा हुआ है, जिसके तहत राज्यों ने गारंटीकृत राजस्व के बदले में अपनी राजकोषीय शक्तियों को आत्मसमर्पण कर दिया।
- हालाँकि COVID-19 महामारी के दौरान, केंद्र सरकार ने GST व्यवस्था के तहत राज्यों को दी गई क्षतिपूर्ति गारंटी का बार-बार उल्लंघन किया।
- राज्य की स्वायत्तता: GST ने राज्यों को उपलब्ध स्वायत्तता का एक बड़ा हिस्सा छीन लिया है और देश की अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था को एकात्मक बना दिया है।
- प्रशासनिक जटिलता: GST अनुपालन की जटिलता और व्यवसायों के लिये नई प्रणाली के अनुकूल होने की आवश्यकता ने प्रशासनिक चुनौतियों खासकर छोटे उद्यमों एवं अनौपचारिक क्षेत्र के लिये, को जन्म दिया।
GST ढाँचे को मज़बूत और सशक्त बनाने के लिये सुझाए गए सुधार
- राज्यों के प्रति सुधारात्मक दृष्टिकोण: केंद्र राज्यों की चिंताओं और वित्तीय दुविधाओं के प्रति अधिक समझौतावादी होने का प्रयास कर सकता है।
- राजस्व में कमी का सामना कर रहे राज्यों की चिंताओं को दूर करने के लिये राजस्व-साझाकरण व्यवस्था को समायोजित करने के लिये अधिक प्रभावी तंत्र लागू करने की आवश्यकता है। इसमें न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करने के लिये समय-समय पर समीक्षा और समायोजन शामिल हो सकते हैं।
- क्षैतिज एवं ऊर्ध्वाधर स्तर पर सहयोग: केंद्र और राज्यों के बीच ऊर्ध्वाधर (केंद्र व राज्यों के बीच) तथा क्षैतिज (राज्यों के बीच) दोनों स्तरों पर एवं विभिन्न मोर्चों पर सहयोग आवश्यक है।
- इसमें वांछित परिणामों के लिये विकासात्मक उपायों को सुव्यवस्थित करना, विकास संबंधी नीतिगत निर्णय, कल्याणकारी उपाय, प्रशासनिक सुधार, रणनीतिक निर्णय आदि शामिल हैं।
- GST परिषद में सुधार: GST में सुधार के लिये शायद अब समय आ गया है। GST परिषद में राजनेता की भूमिका की आवश्यकता है, भले ही न्यायालय ने कहा हो कि परिषद सहकारी संघवाद के साथ-साथ राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के लिये भी महत्त्वपूर्ण है।
- परिषद को वर्तमान राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता से ऊपर उठना चाहिये। राज्यों को परिषद में असहमति जताने का अधिकार होना चाहिये तथा निर्णय लेने में सर्वसम्मति की चाह में उनकी आवाज़ को दबाया नहीं जाना चाहिये।
- प्रक्रियाओं का सरलीकरण:
- व्यवसायों, विशेष रूप से छोटे और मध्यम उद्यमों (MSME) पर बोझ कम करने के लिये GST अनुपालन प्रक्रियाओं को सरल बनाया जाना चाहिये। सरलीकृत फाइलिंग प्रक्रिया और स्पष्ट दिशा-निर्देश अनुपालन को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं।
- तकनीकी सहायता और उन्नयन:
- GST नेटवर्क को उन्नत करने तथा गड़बड़ियों को दूर करने तथा व्यवसायों एवं कर अधिकारियों दोनों के लिये उपयोगकर्त्ता अनुभव को बेहतर बनाने हेतु मज़बूत तकनीकी सहायता में निवेश करने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष:
GST को अपनी पूरी क्षमता का प्रयोग करने के लिये, संघ और राज्यों के बीच निरंतर सहयोग एवं संवाद आवश्यक है। क्षतिपूर्ति के बारे में राज्यों की चिंताओं को संबोधित करना तथा एक स्थिर तथा पूर्वानुमानित कर नीति बनाए रखना महत्त्वपूर्ण होगा। अंततः राजकोषीय संघवाद को मज़बूत करने में GST की सफलता सभी हितधारकों की एक अधिक एकीकृत और न्यायसंगत आर्थिक ढाँचे की दिशा में सहयोगात्मक रूप से कार्य करने की क्षमता पर निर्भर करेगी।