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दिवस- 13: हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के आलोक में जीवन (अनुच्छेद 21) और समानता (अनुच्छेद 14) के मौलिक अधिकारों के तहत जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से सुरक्षा के अधिकार की मान्यता का आलोचनात्मक रूप से विवेचना कीजिये। (250 शब्द)

22 Jul 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से सुरक्षा के अधिकार पर हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए फैसले का संक्षिप्त में परिचय दीजिये।
  • जलवायु परिवर्तन से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों की न्यायालय की व्याख्या पर प्रकाश डालिये।
  • जलवायु परिवर्तन शमन और मानवाधिकार संरक्षण के बीच संतुलन बनाने में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
  • आगे की राह सुझाएँ।
  • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

परिचय :

हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से सुरक्षा के अधिकार को भारतीय संविधान में निहित जीवन का अधिकार (अनुच्छेद 21) और समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14) के मौलिक अधिकारों के हिस्से के रूप में स्वीकार किया। यह फैसला ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और लेसर फ्लोरिकन के संरक्षण से संबंधित एक मामले के दौरान देखने को मिला।

मुख्य बिंदु:

जलवायु परिवर्तन से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों की सर्वोच्च न्यायालय की व्याख्या:

  • संवैधानिक प्रावधान:
    • अनुच्छेद 48A, जो पर्यावरण संरक्षण को अनिवार्य बनाता है और अनुच्छेद 51A (g) जो वन्यजीव संरक्षण को बढ़ावा देता है, जलवायु परिवर्तन से सुरक्षा के अधिकार की गारंटी प्रदान करता है।
    • अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को मान्यता प्रदान करता है, जबकि अनुच्छेद 14 सभी व्यक्तियों को विधि के समक्ष समता तथा विधि के समान संरक्षण जैसे अधिकार प्रदान करता है।
      • इन अनुच्छेदों में स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार और जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के विरुद्ध अधिकार शामिल हैं।
      • एम.सी. मेहता बनाम कमल नाथ मामला, 2000 में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार जीवन के अधिकार का ही विस्तार है।
  • हालिया फैसले के निहितार्थ:
    • इस निर्णय के महत्त्वपूर्ण निहितार्थ हैं कि यह भारत में पर्यावरण संरक्षण प्रयासों के लिये कानूनी आधार को मज़बूत करता है और साथ ही जलवायु परिवर्तन पर निष्क्रियता के विरुद्ध कानूनी चुनौतियों के लिये एक रूपरेखा भी प्रदान करता है।
    • यह जलवायु परिवर्तन के मानवाधिकार आयामों की बढ़ती अंतर्राष्ट्रीय मान्यता के अनुरूप है, जैसा कि संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम तथा मानवाधिकार के साथ-साथ पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिवेदक द्वारा उल्लिखित है।

जलवायु परिवर्तन शमन और मानवाधिकार संरक्षण के बीच संतुलन स्थापित करने से संबंधित चुनौतियाँ:

  • व्यापार-बंद: कुछ जलवायु शमन उपाय मानवाधिकारों के साथ टकराव कर सकते हैं, जैसे संरक्षण परियोजनाओं के लिये भूमि उपयोग पर प्रतिबंध अथवा नवीकरणीय ऊर्जा बुनियादी ढाँचे के विकास के कारण विस्थापन।
    • ऐसे समाधान ढूँढना कठिन हो सकता है जो लाभांश को अनुकूलित करते हुए त्रुटियों को कम करे।
  • संसाधनों तक पहुँच: नवीकरणीय ऊर्जा में परिवर्तन अथवा कार्बन मूल्य निर्धारण को लागू करने जैसी जलवायु गतिविधियाँ, विशेष रूप से हाशिये पर रहने वाले समुदायों के लिये ऊर्जा, जल तथा भोजन जैसे आवश्यक संसाधनों तक पहुँच को प्रभावित कर सकती हैं।
  • पर्यावरणीय प्रवासन: जलवायु-प्रेरित प्रवासन सामाजिक प्रणालियों पर दबाव डाल सकता है और साथ ही मेज़बान समुदायों में संसाधनों एवं अधिकारों पर संघर्ष का कारण बन सकता है।
    • प्रवासन प्रवाह को इस तरह से प्रबंधित करना कि प्रवासियों तथा मेज़बान आबादी दोनों के अधिकारों का सम्मान हो, यह एक बहुआयामी चुनौती प्रस्तुत करती है।
  • अनुकूलन बनाम शमन: जलवायु प्रभावों के अनुकूलन में निवेश के साथ ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (शमन) को कम करने के प्रयासों को संतुलित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
    • एक को दूसरे पर प्राथमिकता देने से मानवाधिकारों पर प्रभाव पड़ सकता है, विशेषकर उन समुदायों पर, जो पहले से ही जलवायु संबंधी जोखिमों का सामना कर रहे हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक मुद्दा है जिसके लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है।
    • यह राष्ट्रीय जलवायु महत्त्वाकांक्षाओं और अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों के बीच संतुलन बनाने का एक कठिन प्रयास है, साथ ही यह सुनिश्चित करना भी है कि जलवायु पहल विदेशों में कमज़ोर समूहों के अधिकारों का उल्लंघन न करें।

आगे की राह:

  • मानवाधिकार-आधारित कार्बन मूल्य निर्धारण: प्रगतिशील छूट या लाभांश के साथ कार्बन कर लागू करना। कम आय वाले परिवारों के लिये छूट बड़ी हो सकती है, जिससे उच्च ऊर्जा लागत के प्रभाव की भरपाई हो सकती है और एक न्यायपूर्ण परिवर्तन सुनिश्चित हो सकता है।
    • कार्बन टैक्स से राजस्व को स्वच्छ ऊर्जा पहल, कमज़ोर आबादी के लिये सामाजिक सुरक्षा जाल और उनके जलवायु शमन एवं अनुकूलन प्रयासों में विकासशील देशों का समर्थन करने के लिये निर्देशित किया जा सकता है।
  • हरित प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और क्षमता निर्माण: विकासशील देशों को सस्ती दरों पर हरित प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करना। इसमें बौद्धिक संपदा प्रतिबंधों में ढील देना या प्रौद्योगिकी साझा साझेदारी बनाना शामिल हो सकता है।
    • इससे विकासशील देशों को अपने विकास के अधिकार से समझौता किये बिना कम कार्बन वाले विकास पथ अपनाने की अनुमति मिलेगी।
  • मानवाधिकार प्रभाव आकलन: किसी भी जलवायु परिवर्तन शमन या अनुकूलन रणनीतियों को लागू करने से पहले संपूर्ण मानवाधिकार प्रभाव आकलन करें।
    • इससे संभावित जोखिमों की पहचान करने में सहायता मिलेगी तथा यह सुनिश्चित होगा कि समाधान इस तरह से बनाए गए हैं जो मानवाधिकारों का सम्मान और सुरक्षा करते हैं।

निष्कर्ष:

अनुच्छेद 21 और 14 के तहत जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से सुरक्षा के अधिकार को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मान्यता देना पर्यावरण संबंधी चिंताओं को मौलिक अधिकारों के साथ एकीकृत करने की दिशा में एक प्रगतिशील कदम है। यह फैसला न केवल पर्यावरण संरक्षण के लिये संवैधानिक ढाँचे को मज़बूत करता है बल्कि जलवायु न्याय के महत्त्व को भी रेखांकित करता है। हालाँकि इसके प्रभावी कार्यान्वयन के लिये मज़बूत नीतियों, संस्थागत तंत्र और राजनीतिक प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है। आर्थिक विकास को पर्यावरणीय स्थिरता के साथ संतुलित करना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है।