22 Jul 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारतीय संविधान की प्रस्तावना का संक्षिप्त में परिचय दीजिये।
- भारत को एक गणराज्य के रूप में वर्णित करने के लिये प्रयुक्त विशेषणों के महत्त्व पर प्रकाश डालिये।
- प्रत्येक विशेषण पर चर्चा कीजिये तथा वर्तमान संदर्भ में उसकी प्रासंगिकता का मूल्यांकन कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
भारतीय संविधान की प्रस्तावना एक परिचयात्मक कथन के रूप में कार्य करती है, जो दस्तावेज़ के मार्गदर्शक सिद्धांतों और दर्शन को रेखांकित करती है। यह भारत को एक "संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य" राज्य की स्थापना पर ज़ोर देती है। इनमें से प्रत्येक विशेषण उन मूल्यों एवं सिद्धांतों को समाहित करता है जिन पर भारतीय राज्य की स्थापना हुई है।
मुख्य बिंदु :
'गणतंत्र' शब्द से जुड़े विशेषणों का महत्त्व और प्रासंगिकता:
- सार्वभौमिकता:
- संप्रभुता का तात्पर्य है कि भारत एक पूर्ण रूप से स्वायत्त और स्वतंत्र है, जो बाहरी हस्तक्षेप या प्रभाव से मुक्त है। इसके पास अपने स्वयं के कानून एवं नीतियाँ बनाने का अधिकार है।
- वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिकता:
- विदेश नीति: भारत की संप्रभुता उसके स्वतंत्र विदेश नीति निर्णयों में स्पष्ट है, जैसे वैश्विक मुद्दों पर उसका रुख और संयुक्त राष्ट्र तथा ब्रिक्स जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में सदस्यता।
- आंतरिक मामले: भारत सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक नीति और विधायी मामलों जैसे आंतरिक मुद्दों को बाहरी हस्तक्षेप के बिना संबोधित करके संप्रभुता का प्रयोग करती है।
- चुनौतियाँ: संप्रभुता बनाए रखने में सीमा-पार आतंकवाद, साइबर खतरों जैसी चुनौतियों से निपटना और यह सुनिश्चित करना शामिल है कि अंतर्राष्ट्रीय समझौते राष्ट्रीय हितों को कमज़ोर न करें।
- समाजवादी
- भारतीय संदर्भ में समाजवाद का तात्पर्य सामाजिक और आर्थिक समानता के प्रति प्रतिबद्धता से है, जिसका उद्देश्य धन में असमानताओं को कम करना तथा सभी नागरिकों को समान अवसर प्रदान करना है।
- वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिकता:
- कल्याण कार्यक्रम: सरकार समाज के हाशिये पर पड़े वर्गों के उत्थान के लिये मनरेगा, प्रधानमंत्री आवास योजना और खाद्य सुरक्षा पहल जैसी विभिन्न सामाजिक कल्याण योजनाओं को लागू करती है।
- आर्थिक नीतियाँ: समावेशी विकास, ग्रामीण विकास और वित्तीय समावेशन पर लक्षित नीतियाँ समाजवादी लोकाचार को दर्शाती हैं।
- चुनौतियाँ: प्रयासों के बावजूद, आय में असमानता और सामाजिक विषमताएँ बनी हुई हैं, जिससे संसाधनों के समान वितरण को सुनिश्चित करने के लिये अधिक प्रभावी एवं लक्षित हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
- धर्मनिरपेक्ष
- भारत में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि राज्य किसी भी धर्म को प्रोत्साहित नहीं करता है, धार्मिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है तथा धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं करता।
- वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिकता:
- धार्मिक स्वतंत्रता: भारतीय संविधान धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है, जिसमे व्यक्तियों को अपने धर्म को मानने, उसका पालन और प्रचार करने का अधिकार दिया गया है।
- राज्य तटस्थता: धर्मनिरपेक्षता राज्य की नीतियों में परिलक्षित होती है जो किसी भी धर्म का पक्ष नहीं लेती हैं। उदाहरण के लिये सरकार विभिन्न धार्मिक समुदायों के संस्थानों को वित्तपोषित तथा सभी धर्मों के त्योहारों का समर्थन करती है।
- चुनौतियाँ: सांप्रदायिक हिंसा, धार्मिक असहिष्णुता और धर्म के राजनीतिकरण की बढ़ती घटनाएँ धर्मनिरपेक्षता के लिए महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ हैं।
- लोकतांत्रिक:
- भारत में लोकतंत्र का मतलब है जनता की, जनता द्वारा और जनता के लिये सरकार से है। जिसमें समय-समय पर चुनाव, विधि का शासन एवं मौलिक अधिकारों की सुरक्षा शामिल है।
- वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिकता:
- निर्वाचन प्रक्रिया: भारत नियमित अंतराल पर स्वतंत्र और निष्पक्ष निर्वाचन कराता है, जिससे नागरिकों को अपने प्रतिनिधि चुनने का मौका मिलता है। भारत का निर्वाचन आयोग निर्वाचन संबंधी प्रक्रिया की अखंडता सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- मौलिक अधिकार: संविधान मौलिक अधिकारों जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, विधि के समक्ष समानता और राज्य द्वारा मनमानी कार्रवाइयों के खिलाफ सुरक्षा की गारंटी देता है।
- चुनौतियाँ: चुनावी कदाचार, राजनीतिक भ्रष्टाचार और असहमति के दमन जैसे मुद्दे लोकतांत्रिक संस्थाओं एवं प्रक्रियाओं को मज़बूत करने के लिये सुधारों की आवश्यकता को उजागर करते हैं।
निष्कर्ष:
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में भारत को एक गणराज्य के रूप में वर्णित करने के लिये इस्तेमाल किया गया प्रत्येक विशेषण राष्ट्र की पहचान और शासन के एक बुनियादी पहलू को दर्शाता है। जबकि ये सिद्धांत आधुनिक भारत को आकार देने में सहायक रहे हैं, वे समकालीन चुनौतियों का भी सामना करते हैं। इन चुनौतियों का समाधान करने के लिये इन आधारभूत मूल्यों के प्रति निरंतर प्रतिबद्धता की आवश्यकता है, ताकि संविधान की भावना को अक्षरशः और व्यवहार दोनों में बरकरार रखा जा सके।