22 Jul 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- 'संवैधानिक नैतिकता' के सिद्धांत का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- प्रासंगिक न्यायिक निर्णयों के माध्यम से इसके अनुप्रयोग को स्पष्ट कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
|
परिचय:
‘संवैधानिक नैतिकता’ का तात्पर्य संविधान के मूल्यों और सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता, लोकतांत्रिक लोकाचार को बढ़ावा देना तथा संविधान की सर्वोच्चता का सम्मान करना है। इसके लिये राज्य की सभी कार्रवाइयाँ संविधान की भावना के अनुरूप होनी चाहिये और शासन ईमानदारी तथा व्यक्तिगत अधिकारों के सम्मान के साथ की जानी चाहिये।
मुख्य बिंदु:
भारतीय संविधान में संवैधानिक नैतिकता:
- यद्यपि भारतीय संविधान में संवैधानिक नैतिकता शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है, फिर भी यह इसके कई अनुच्छेदों में गहराई से समाहित है:
- प्रस्तावना: यह न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सहित हमारे लोकतंत्र के आधारभूत सिद्धांतों को रेखांकित करती है।
- मौलिक अधिकार: यह राज्य द्वारा शक्ति के मनमाने उपयोग के विरुद्ध व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करता है। उल्लेखनीय रूप सर्वोच्च न्यायालय अनुच्छेद 32 के अंतर्गत इन अधिकारों के प्रवर्तन की अनुमति देता है।
- निर्देशक सिद्धांत: वे राज्य को संविधान निर्माताओं द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं, जो गांधीवादी, समाजवादी और उदार बौद्धिक दर्शन से लिये गए हैं।
- मौलिक कर्त्तव्य: अपने अधिकारों के साथ-साथ नागरिकों की राष्ट्र के प्रति कुछ कर्त्तव्य प्रदान किये गए हैं।
- संतुलन: इसमें विधायी और कार्यकारी कार्यों की न्यायिक समीक्षा, कार्यकारी की विधायी निगरानी आदि शामिल हैं।
संवैधानिक नैतिकता को दर्शाने वाले न्यायिक निर्णय :
- नवतेज़ सिंह जौहर बनाम भारत संघ (2018)
- इस ऐतिहासिक फैसले के साथ भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को पलटते हुए वयस्कों के बीच सहमति से समलैंगिक कृत्यों को अपराध से मुक्त कर दिया गया है।
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समानता, सम्मान और गोपनीयता के संवैधानिक मूल्यों पर ज़ोर दिया। उल्लेखित है कि सामाजिक नैतिकता संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकती तथा बहुसंख्यकवादी विचारों पर संवैधानिक नैतिकता को बनाए रखने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।
- इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन बनाम केरल राज्य (2018)
- सबरीमाला मामले में सभी उम्र की महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी गई, जिसने सदियों पुरानी परंपरा जिसमे 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध था, को चुनौती दी है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि यह प्रथा समानता और गैर-भेदभाव के संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करती है। जिसमे कहा गया कि संवैधानिक नैतिकता यह सुनिश्चित करती है कि भेदभाव और बहिष्कार में निहित प्रथाओं की अनुमति नहीं दी जा सकती।
- जोसेफ शाइन बनाम भारत संघ (2018) :
- इस मामले ने भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को खारिज कर दिया, जो व्यभिचार को अपराध मानती थी।
- सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि यह प्रावधान पुराना है और समानता तथा निजता के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
- कानून महिलाओं को उनके पतियों की संपत्ति के रूप में मानता है, जो लैंगिक समानता के संवैधानिक सिद्धांतों के खिलाफ है।
- दिल्ली सरकार बनाम भारत संघ (2018)
- सर्वोच्च न्यायालय ने सहकारी संघवाद और लोकतांत्रिक शासन के महत्त्व को रेखांकित किया।
- इसने फैसला सुनाया कि दिल्ली के उपराज्यपाल को अधिकांश मामलों में दिल्ली के मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करना चाहिये।
- न्यायालय द्वारा इस बात पर ज़ोर दिया कि संवैधानिक नैतिकता के लिये शक्ति का सामंजस्यपूर्ण संतुलन और लोकतांत्रिक संस्थाओं के प्रति सम्मान की आवश्यकता होती है।
निष्कर्ष:
संवैधानिक नैतिकता का सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या और अनुप्रयोग न्याय, समानता और लोकतंत्र के मूल्यों के साथ संरेखित हों। नवतेज़ सिंह जौहर, सबरीमाला, जोसेफ शाइन और दिल्ली सरकार जैसे मामले तथा न्यायिक फैसले इस सिद्धांत के अनुप्रयोग को दर्शाते हैं, संवैधानिक सिद्धांतों को बनाए रखने एवं सामाजिक व संस्थागत पूर्वाग्रहों के खिलाफ व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करने में न्यायपालिका की भूमिका को उजागर करते हैं।