दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- हिमालय के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए उत्तर का परिचय दीजिये।
- भूस्खलन के प्रति हिमालय की उच्च संवेदनशीलता के पीछे के कारणों पर चर्चा कीजिये।
- प्रभावी शमन रणनीतियों पर चर्चा कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
हिमालय पृथ्वी पर सबसे महत्त्वपूर्ण पर्वत शृंखलाओं में से एक है। वे न केवल अपनी आकर्षक सुंदरता के लिये प्रसिद्ध हैं, बल्कि अपने गहन पारिस्थितिक, सांस्कृतिक और आर्थिक महत्त्व के लिये भी प्रसिद्ध हैं। अपने महत्त्व के बावजूद, हिमालय को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिसमें भूस्खलन और भूकंप जैसे प्राकृतिक आपदाओं के प्रति उनकी उच्च संवेदनशीलता शामिल है।
मुख्य बिंदु :
हिमालय में भूस्खलन की उच्च संवेदनशीलता के पीछे निम्नलिखित कारण हैं:
- भू-वैज्ञानिक कारक
- वर्तनिकी गतिविधि: वर्ष 2015 में नेपाल में आए भूकंप ने इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर भूस्खलन को जन्म दिया, जो विवर्तनिकी गतिविधियों के प्रभाव को दर्शाता है। भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट के बीच टकराव से महत्त्वपूर्ण भूकंपीय गतिविधियाँ उत्पन्न होती है, जिससे ढलान अस्थिर हो जाती है।
- चट्टान के प्रकार और संरचना: भारत के उत्तराखंड क्षेत्र में शेल और बलुआ पत्थर जैसी तलछटी चट्टानें हैं, इन कमज़ोर चट्टानों के अपक्षय एवं क्षरण के कारण कई भूस्खलन जैसी आपदाएँ देखने को मिलती हैं।
- जलवायु परिस्थितियाँ
- भारी वर्षा: भारत में वर्ष 2013 में केदारनाथ में आई बाढ़ का कारण तीव्र मानसूनी बारिश था, जिसके कारण मिट्टी में नमी आ गई और कई भूस्खलन जैसी घटनाएँ देखने को मिली।
- बर्फ का पिघलना: वर्ष 2014 में हिमालय में बर्फ के पिघलने की उच्च दर ने हिमाचल प्रदेश में भूस्खलन और अचानक बाढ़ जैसी घटनाओं को अंजाम दिया। ग्लेशियरों के तेज़ी से पिघलने से अचानक जल अपवाह में वृद्धि हो गई थी।
- स्थलाकृतिक विशेषताएँ:
- खड़ी ढलान: भारत का सिक्किम क्षेत्र, अपनी खड़ी ढलानों के कारण, अक्सर भूस्खलन का सामना करता है। उदाहरण के लिये वर्ष 2011 के सिक्किम भूकंप ने पहाड़ी ढलानों पर महत्त्वपूर्ण भूस्खलन को जन्म दिया, जिससे ढलान के टूटने की इस क्षेत्र की संवेदनशीलता पर प्रकाश डाला गया।
- ग्लेशियल और मोरेन गतिविधि: कश्मीर घाटी में ग्लेशियल के पिघलने और मोरेन जमा ने भूस्खलन की घटनाओं को जन्म दिया। अस्थिर मोरेन जमा की उपस्थिति से ढलानों पर भार में वृद्धि होती है तथा उनके टूटने की संभावना बढ़ जाती है।
- मानवीय गतिविधियाँ
- वनों की कटाई: दार्जिलिंग की पहाड़ियों में वनों की कटाई और कृषि विस्तार के कारण वनों की कमी तथा भूस्खलन का जोखिम बढ़ गया है।
- निर्माण और बुनियादी ढाँचा: राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे सड़क निर्माण और अपर्याप्त जल निकासी के साथ खराब तरीके से की गई सड़क कटाई ने भूस्खलन के जोखिम को बढ़ा दिया है।
- अतिचारण: भारत के उत्तराखंड राज्य में पशुओं द्वारा अत्यधिक चराई के कारण मिट्टी का संघनन हुआ, जिसके कारण वनस्पति आवरण नष्ट हो गया और कटाव एवं भूस्खलन की संभावना बढ़ गई है।
प्रभावी शमन उपाय/रणनीतियाँ:
- भू-उपयोग योजना और प्रबंधन
- विनियमित निर्माण: भूस्खलन के जोखिमों के जवाब में नेपाल सरकार ने वर्ष 2015 के भूकंप के बाद भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों में सख्त भवन संहिता लागू की है। इन विनियमों का उद्देश्य नए निर्माण भूस्खलन के खतरों के प्रति अधिक लचीले होने की प्रक्रिया को सुनिश्चित करना है।
- वनरोपण और पुनर्वनरोपण: हिमालयन फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ने वनस्पति आवरण को बहाल और ढलानों को स्थिर और मिट्टी की स्थिरता में सुधार के माध्यम से भूस्खलन के जोखिमों को कम करने के लिये हिमाचल प्रदेश में पुनर्वनरोपण परियोजनाएँ शुरू की हैं।
- इंजीनियरिंग समाधान
- ढलान स्थिरीकरण तकनीक: उत्तराखंड के नैनीताल ज़िले में रिटेनिंग वॉल और टेरेसिंग का उपयोग ढलानों को स्थिर तथा भूस्खलन की घटनाओं को कम करने में कारगर साबित हुआ है। ये इंजीनियरिंग उपाय मिट्टी एवं पानी के बहाव को प्रबंधित करने में मदद करते हैं।
- जल निकासी प्रणाली: सिक्किम के गंगटोक शहर में बेहतर जल निकासी प्रणालियों की स्थापना ने जल प्रवाह को प्रबंधित करने और मिट्टी की संतृप्ति को कम करने में मदद की है, जिससे भारी बारिश के दौरान भूस्खलन का खतरा कम हो गया है।
- पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ और निगरानी
- भूस्खलन पूर्व चेतावनी प्रणाली: भारत में हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ ग्लेशियोलॉजी वर्षा और मिट्टी की नमी की निगरानी के लिये पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित कर रहा है, जिससे भूस्खलन के जोखिम वाले समुदायों को समय पर चेतावनी मिल सकेगी।
- रिमोट सेंसिंग और जीआईएस: भारत में राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग केंद्र द्वारा जीआईएस प्रौद्योगिकी का उपयोग भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों का मानचित्रण और जोखिमों का आकलन करने में मदद करता है, जिससे शमन उपायों की बेहतर योजना एवं कार्यान्वयन संभव हो पाता है।
- समुदाय-आधारित दृष्टिकोण
- जन जागरूकता और शिक्षा: भूटान में भूस्खलन के जोखिमों और उपायों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये सामुदायिक शिक्षा कार्यक्रम शुरू किये गए हैं, जिससे स्थानीय लोगों को भूस्खलन के खतरों का प्रभावी ढंग से सामना करने में मदद मिलती है।
- सामुदायिक भागीदारी: भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश में भूस्खलन जोखिम मूल्यांकन और भूमि प्रबंधन प्रथाओं में शामिल स्थानीय समुदाय, सहयोग को बढ़ावा देते हैं तथा शमन प्रयासों में सुधार करते हैं।
निष्कर्ष:
भूस्खलन के प्रति हिमालय की उच्च संवेदनशीलता के कारण जोखिम प्रबंधन के लिये समन्वित और एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता है। बहु-विषयक सहयोग और सतत् भूमि उपयोग को बढ़ावा, पूर्व चेतावनी प्रणालियों को लागू, बुनियादी ढाँचे में निवेश करके तथा मज़बूत नीतियों का समर्थन करके, हम भूस्खलन के जोखिमों को प्रभावी ढंग से कम कर सकते हैं एवं जीवन, संपत्ति व पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं।