दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत के संदर्भ में नवीकरणीय ऊर्जा के महत्त्व का परिचय दीजिये।
- भारत में नवीकरणीय ऊर्जा की संभावनाओं पर चर्चा कीजिये।
- उनके सीमित स्थानिक प्रसार के कारणों की व्याख्या कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
- भारत, अपनी विशाल भौगोलिक और जलवायु विविधता के साथ, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के लिये महत्त्वपूर्ण क्षमता रखता है। ये स्रोत देश की ऊर्जा मांगों को स्थायी रूप से संबोधित करने तथा जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। इस क्षमता के बावजूद, नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं का स्थानिक वितरण में विविधता बनी हुई है।
भारत में नवीकरणीय ऊर्जा की संभावना:
भारत के नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में सौर, पवन, जलविद्युत, बायोमास और भूतापीय जैसे विभिन्न स्रोत शामिल हैं: इनमें से प्रत्येक स्रोत में पर्याप्त क्षमता है:
- सौर ऊर्जा: भारत में विशेष रूप से उत्तर-पश्चिमी और मध्य क्षेत्रों में उच्च सौर विकिरण प्राप्त होता है। राष्ट्रीय सौर मिशन का लक्ष्य वर्ष 2022 तक 100 गीगावाट सौर ऊर्जा स्थापित करना है। सौर ऊर्जा की विशाल क्षमता, विशेष रूप से राजस्थान, गुजरात एवं आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में, उच्च सौर विकिरण के कारण है।
- पवन ऊर्जा: भारत में विशेष रूप से पश्चिमी तट और दक्षिणी क्षेत्रों में पवन ऊर्जा की काफी संभावना है। पवन ऊर्जा की क्षमता 300 गीगावाट से अधिक होने का अनुमान है, जिसमें तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र एवं गुजरात जैसे राज्य का प्रमुख योगदान हैं।
- जल ऊर्जा: भारत में विशेष रूप से हिमालयी और पूर्वोत्तर क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण जलविद्युत क्षमता है। कुल जलविद्युत क्षमता लगभग 148 गीगावाट होने का अनुमान है, जिसमें हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड तथा सिक्किम जैसे राज्यों में अधिक मात्रा में जल संसाधन हैं।
- बायोमास ऊर्जा: एक बड़े कृषि क्षेत्र के साथ भारत में पर्याप्त रूप से बायोमास ऊर्जा क्षमता है। बायोमास संसाधन ग्रामीण क्षेत्रों में फैले हुए हैं जहाँ कृषि अवशेष प्रचुर मात्रा में हैं।
- भूतापीय ऊर्जा: भारत के हिमालयी क्षेत्र और दक्षिणी राज्यों में कुछ भूतापीय क्षमता मौजूद हैं हालाँकि यह अन्य नवीकरणीय स्रोतों की तुलना में कम विकसित है।
सीमित स्थानिक प्रसार के कारण:
पर्याप्त क्षमता के बावजूद भारत में नवीकरणीय ऊर्जा का स्थानिक प्रसार विभिन्न कारकों के कारण सीमित है:
- भौगोलिक और जलवायु संबंधी बाधाएँ: नवीकरणीय ऊर्जा संसाधन अक्सर विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों में केंद्रित होते हैं। उदाहरण के लिये राजस्थान जैसे अधिक सौर विकिरण वाले क्षेत्रों में सौर ऊर्जा सबसे प्रभावी है, जबकि तटीय क्षेत्रों में पवन ऊर्जा अधिक व्यवहार्य है। यह क्षेत्रीय संकेंद्रण नवीकरणीय ऊर्जा अवसंरचना के वितरण को सीमित कर सकता है।
- अवसंरचना और ग्रिड कनेक्टिविटी: अपर्याप्त अवसंरचना, जिसमें ट्रांसमिशन लाइनों और ग्रिड कनेक्टिविटी की कमी शामिल है, नवीकरणीय ऊर्जा के प्रभावी उपयोग तथा वितरण में बाधा डालती है। कई नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएँ दूर-दराज़ के क्षेत्रों में स्थित हैं, जिन्हें राष्ट्रीय ग्रिड से जोड़ने कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- वित्तीय और निवेश चुनौतियाँ: नवीकरणीय ऊर्जा अवसंरचना स्थापित करने के लिये उच्च प्रारंभिक पूंजी लागत और वित्तपोषण प्राप्त करने में चुनौतियाँ नवीकरणीय परियोजनाओं के विकास को (विशेष रूप से कम आर्थिक रूप से विकसित क्षेत्रों में) प्रतिबंधित कर सकती हैं।
- नीति और विनियामक मुद्दे: केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर असंगत नीतियाँ तथा विनियामक ढाँचे नवीकरणीय ऊर्जा के विकास को प्रभावित कर सकते हैं। सहायक नीतियों एवं प्रोत्साहनों वाले राज्यों में नवीकरणीय ऊर्जा निवेश आकर्षित करने की अधिक संभावना है।
- भूमि अधिग्रहण और पर्यावरण संबंधी चिंताएँ: नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं, विशेष रूप से बड़े पैमाने पर सौर और पवन फार्मों के लिये भूमि अधिग्रहण को स्थानीय समुदायों तथा पर्यावरण संबंधी चिंताओं से विरोध का सामना करना पड़ सकता है। घनी आबादी वाले या पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में यह एक महत्त्वपूर्ण बाधा हो सकती है।
- तकनीकी और परिचालन बाधाएँ: भू-तापीय जैसी कुछ नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के लिये विशिष्ट भू-वैज्ञानिक स्थितियों और उन्नत प्रौद्योगिकी की आवश्यकता होती है, जो सभी क्षेत्रों में उपलब्ध नहीं हो सकती हैं। इसके अतिरिक्त, परिचालन एवं रखरखाव संबंधी मुद्दे कम सुलभ क्षेत्रों में नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं की स्थिरता को प्रभावित कर सकते हैं।
आगे की राह:
भारत में नवीकरणीय ऊर्जा की संभावनाएँ बहुत बड़ी और विविधतापूर्ण हैं, लेकिन भौगोलिक, अवसंरचनात्मक, वित्तीय तथा नीति-संबंधी चुनौतियों के कारण इसका स्थानिक विस्तार सीमित है। इन मुद्दों को हल करने एवं नवीकरणीय ऊर्जा के वितरण को बढ़ाने के लिये निम्नलिखित उपायों पर विचार किया जा सकता है:.
- ग्रिड अवसंरचना को बढ़ाना: दूर-दराज़ के क्षेत्रों में नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं को जोड़ने के लिये ग्रिड अवसंरचना और ट्रांसमिशन लाइनों में निवेश करने से स्थानिक वितरण में सुधार हो सकता है।
- वित्तीय प्रोत्साहन और सहायता: नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश को आकर्षित करने के लिये वित्तीय प्रोत्साहन, सब्सिडी और सहायता तंत्र प्रदान करना, विशेष रूप से अविकसित क्षेत्रों में समान विकास को बढ़ावा दे सकता है।
- नीतिगत संगति और समन्वय: केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर सुसंगत तथा सहायक नीतियों को सुनिश्चित करने से विभिन्न क्षेत्रों में नवीकरणीय ऊर्जा के विकास को बढ़ावा मिल सकता है।
- सामुदायिक जुड़ाव: स्थानीय समुदायों के साथ जुड़ना और पारदर्शी तथा भागीदारी प्रक्रियाओं के माध्यम से भूमि अधिग्रहण एवं पर्यावरण संबंधी चिंताओं को संबोधित करना अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के विकास को सुविधाजनक बना सकता है।
- तकनीकी उन्नति: नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों की दक्षता और प्रयोज्यता में सुधार करने के लिये अनुसंधान तथा विकास में निवेश करने से भौगोलिक एवं परिचालन बाधाओं को दूर करने में मदद मिल सकती है।
निष्कर्षतः यद्यपि भारत में नवीकरणीय ऊर्जा की महत्त्वपूर्ण क्षमता है, तथापि इसके स्थानिक विस्तार से जुड़ी चुनौतियों का समाधान करना संतुलित और सतत् ऊर्जा भविष्य प्राप्त करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।