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18 Jul 2024
सामान्य अध्ययन पेपर 1
भूगोल
दिवस - 10: भारत में हरित क्रांति के महत्त्व और प्रभाव का परीक्षण कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में हरित क्रांति का संक्षिप्त में परिचय दीजिये।
- भारत में हरित क्रांति के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
- भारत में हरित क्रांति के प्रभाव का उल्लेख कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
हरित क्रांति का तात्पर्य 1960 और 1970 के दशक के दौरान भारत में लागू किये गए कृषि सुधारों तथा उन्नति की एक शृंखला से है। डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन जैसे कृषि वैज्ञानिकों के नेतृत्व में और सरकार द्वारा समर्थित इस क्रांति का उद्देश्य भारत के कृषि परिदृश्य को बदलना, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना एवं खाद्य आयात पर निर्भरता कम करना था।
हरित क्रांति का महत्त्व:
- खाद्य सुरक्षा:
- उत्पादन में वृद्धि: विशेष रूप से गेहूँ और चावल के लिये उच्च उपज वाली किस्म (HYV) के बीजों की शुरूआत, साथ ही बेहतर सिंचाई, उर्वरक तथा कीटनाशकों ने फसल की पैदावार में उल्लेखनीय वृद्धि की।
- आत्मनिर्भरता: हरित क्रांति से भारत को खाद्यान्न की कमी वाले देश से आत्मनिर्भर खाद्यान्न उत्पादक देश बनने में मदद मिली है। खाद्य आयात पर उसकी निर्भरता कम तथा खाद्य आपूर्ति सुरक्षित हो गई।
- आर्थिक विकास:
- कृषि विकास: कृषि क्षेत्र में पर्याप्त वृद्धि देखी गई, जिसने देश के समग्र आर्थिक विकास में योगदान दिया।
- ग्रामीण विकास: कृषि उत्पादकता में वृद्धि से किसानों की आय में वृद्धि हुई, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन मिला और जीवन स्तर में सुधार हुआ।
- प्रौद्योगिकी में प्रगति:
- आधुनिक कृषि तकनीकें: हरित क्रांति ने ट्रैक्टर और कंबाइन हार्वेस्टर सहित आधुनिक कृषि तकनीकें तथा उपकरण पेश किये, जिससे दक्षता एवं उत्पादकता में वृद्धि हुई।
- अनुसंधान और विकास: इसने कृषि अनुसंधान और विकास में निवेश को बढ़ावा दिया, जिससे फसल किस्मों तथा कृषि पद्धतियों में अधिक नवाचार एवं सुधार हुए।
- रोज़गार सृजन:
- कृषि रोज़गार: उच्च उत्पादन स्तर के कारण कृषि में श्रम की बढ़ती मांग ने ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक रोज़गार के अवसर उत्पन्न किये।
- संबंधित क्षेत्र: कृषि क्षेत्र की वृद्धि ने उर्वरक, कीटनाशक और मशीनरी विनिर्माण जैसे संबंधित उद्योगों को भी लाभ पहुँचाया।
हरित क्रांति का प्रभाव:
- सकारात्मक प्रभाव:
- फसल की पैदावार में वृद्धि: गेहूँ का उत्पादन 1964-65 में 12.3 मिलियन टन से बढ़कर 1990 में 55 मिलियन टन हो गया और चावल के उत्पादन में भी इसी तरह की वृद्धि देखी गई।
- गरीबी उन्मूलन: कृषि उत्पादकता में वृद्धि ने गरीबी उन्मूलन खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में योगदान दिया।
- बुनियादी ढाँचे का विकास: बेहतर सिंचाई और परिवहन की आवश्यकता ने सड़कों तथा सिंचाई सुविधाओं सहित ग्रामीण बुनियादी ढाँचे के विकास को जन्म दिया।
- नकारात्मक प्रभाव:
- पर्यावरण क्षरण: रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के व्यापक उपयोग से मिट्टी का क्षरण, जल प्रदूषण एवं जैवविविधता का नुकसान हुआ।
- पानी की कमी: गहन सिंचाई परंपराओं से भू-जल स्तर को कम कर दिया, जिससे कई क्षेत्रों में पानी की कमी हो गई।
- असमानता: हरित क्रांति के लाभ समान रूप से वितरित नहीं किये गए। बड़ी भूमि वाले अमीर किसानों को अधिक लाभ हुआ, जिससे आय असमानता में वृद्धि हुई।
- क्षेत्रीय असमानताएँ: मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे HYV फसलों के लिये अनुकूल परिस्थितियों वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया गया, जिससे कृषि विकास में क्षेत्रीय असमानताएँ उत्पन्न हुईं।
- सामाजिक प्रभाव:
- प्रवासन: कृषि उत्पादकता में वृद्धि के कारण मौसमी प्रवासन हुआ, क्योंकि मज़दूर बेहतर अवसरों वाले क्षेत्रों में चले गए।
- भूमि उपयोग प्रारूप में परिवर्तन: उच्च उपज वाली फसलों पर ज़ोर देने से पारंपरिक और विविध फसलों की किस्मों की खेती में कमी आई है।
निष्कर्ष:
भारत में हरित क्रांति ने कृषि क्षेत्र के उत्थान और खाद्य सुरक्षा हासिल करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालाँकि इससे महत्त्वपूर्ण आर्थिक लाभ तथा तकनीकी में वृद्धि हुई है, लेकिन इसने पर्यावरण क्षरण, जल की कमी एवं सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को भी जन्म दिया। इन चुनौतियों का समाधान करने के लिये सतत् कृषि पद्धतियों को अपनाना, समान विकास को बढ़ावा देना और यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि कृषि विकास का लाभ समाज के सभी वर्गों तक पहुँच सके।