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दिवस-1. बौद्ध दर्शन तथा परंपरा ने भारत के स्मारकों एवं उनकी कलात्मक संकल्पना को आकार देने में निर्णायक भूमिका निभाई है। चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

08 Jul 2024 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | संस्कृति

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • भारतीय इतिहास में बौद्ध दर्शन और परंपरा के महत्त्व का संक्षेप में परिचय दीजिये।
  • भारत में स्मारकों और कला पर बौद्ध दर्शन के प्रभाव पर चर्चा कीजिये।
  • बौद्ध सिद्धांतों को प्रतिबिंबित करने वाले प्रमुख स्मारकों और उनकी स्थापत्य विशेषताओं के उदाहरण प्रदान कीजिये।
  • अंत में भारतीय सांस्कृतिक विरासत में बौद्ध कला और वास्तुकला की स्थायी विरासत पर ज़ोर दीजिये।

परिचय:

बौद्ध दर्शन और परंपरा ने भारत के स्मारकों तथा कला को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, खासकर तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से 12वीं शताब्दी ईसवी तक बौद्ध धर्म की प्रमुखता थी, जिसका प्रभाव वास्तुकला शैलियों, छवि-चित्रण एवं इन संरचनाओं में सन्निहित दार्शनिक सार में स्पष्ट है।

मुख्य भाग:

वास्तुकला शैलियाँ:

  • स्तूप: बड़े गुम्बदाकार ढाँचे जिनमें बुद्ध के जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनाओं के अवशेष या प्रतीक मिलते हैं।
    • उदाहरणों में साँची का महान स्तूप और सारनाथ का धमेक स्तूप शामिल हैं।
  • चैत्य: सामूहिक पूजा हेतु प्रयुक्त चट्टान काटकर बनाई गई गुफाएँ।
    • उदाहरणों में महाराष्ट्र में कार्ला और भाजे गुफाएँ शामिल हैं।
  • विहार: भिक्षुओं के लिये आवासीय भवन।
    • उदाहरणों में अजंता और एलोरा के गुफा मंदिर शामिल हैं।
  • सिंह शीर्ष: सारनाथ स्थित अशोक स्तंभ की सबसे प्रमुख विशेषता इसका शीर्ष है, जिसमें चार सिंह पीठ से पीठ मिलाकर खड़े हैं, जिसे भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया गया है।
    • सिंह बुद्ध की शिक्षाओं के प्रतीक हैं, जिसे "सिंह की दहाड़" के रूप में जाना जाता है, जो शक्तिशाली और निडर हैं।
  • पगोडा: बहु-स्तरीय मीनारें जिनके किनारों पर ऊपर की ओर मुड़ी हुई छत होती है, जो पूर्वी एशियाई बौद्ध वास्तुकला में सामान्य है, लेकिन यह कला कुछ भारतीय स्थलों में भी पाई जाती हैं।

मूर्तियाँ और प्रतिमाएँ :

  • बोधिसत्व: वे मनुष्य जिन्होंने आत्मज्ञान प्राप्त कर लिया है, लेकिन दूसरों को आत्मज्ञान प्राप्त कराने में मदद करते हैं।
    • सामान्य बोधिसत्वों में अवलोकितेश्वर, मंजुश्री और क्षितिगर्भ शामिल हैं।
  • बुद्ध की मूर्तियाँ: बुद्ध की छवियाँ उनके जीवन और शिक्षाओं के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती हैं।
    • उदाहरण के रूप में बुद्ध की खड़ी हुई, बैठे हुए और लेटे हुए की प्रतिमा शामिल हैं ।
  • जातक कथाएँ चित्रण: बुद्ध के पूर्वजन्मों की कहानियाँ, जिनकी नैतिक शिक्षाओं को मूर्तिकला और चित्रकला में दर्शाया गया है।

चित्रकला:

  • भित्तिचित्र: बौद्ध गुफाओं में पाए जाने वाले भित्ति चित्र, जिनमें अक्सर बुद्ध के जीवन, जातक कथाओं और विभिन्न देवताओं के दृश्य दर्शाए जाते हैं।
  • उदाहरणों में अजंता और बाघ गुफाएँ शामिल हैं।
  • थंगका: कपास या रेशम पर तिब्बती बौद्ध चित्र, जिनमें अक्सर देवताओं, मंडलों या बौद्ध के विचारों और पौराणिक कथाओं के दृश्य दर्शाए जाते हैं।

प्रतीक और रूपांकन:

  • धर्म चक्र: बुद्ध की शिक्षाओं और ज्ञान प्राप्ति के मार्ग का प्रतिनिधित्व करता है।
  • कमल: पवित्रता, ज्ञान और दुख को सहने की क्षमता का प्रतीक है।
  • बोधि वृक्ष: उस वृक्ष का प्रतिनिधित्व करता है जिसके नीचे बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।

अनुष्ठान की वस्तुएँ:

  • प्रार्थना चक्र: प्रार्थना या मंत्रों से युक्त बेलनाकार वस्तुएँ, जिन्हें अक्सर पुण्य अर्जित करने के लिये हाथ से घुमाया जाता है।
  • मंडल: ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करने वाले ज्यामितीय डिज़ाइन, ध्यान और दृश्यावलोकन के लिये सहायक के रूप में उपयोग किये जाते हैं।

निष्कर्ष:

बौद्ध कला और संस्कृति ने भारतीय सभ्यता पर अपनी अद्वितीय छाप छोड़ी है, जिसने इसकी कलात्मक, स्थापत्य तथा दार्शनिक परंपराओं को प्रभावित किया है। बौद्ध धर्म भारत और उसके बाहर भी प्रचलित है, जो करुणा, ज्ञान एवं आत्मज्ञान के शाश्वत सिद्धांतों को मूर्त रूप प्रदान करता है।