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26 Jul 2023
सामान्य अध्ययन पेपर 2
सामाजिक न्याय
दिवस- 9 'कुपोषण का दोहरा बोझ' लोगों के स्वास्थ्य और कल्याण को कैसे प्रभावित करता है? इसे नियंत्रित करने के लिये क्या कदम उठाए जा सकते हैं? (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण
- कुपोषण के दोहरे बोझ का अर्थ स्पष्ट कीजिये।
- भारत पर कुपोषण के दोहरे बोझ के पीछे के कारण बताइये और कुपोषण के दोहरे बोझ से निपटने के उपाय सुझाइये।
- यथोचित निष्कर्ष लिखिये।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, "कुपोषण के दोहरे बोझ में आबादी के भीतर कुपोषण और अधिक वज़न तथा मोटापा दोनों के साथ-साथ आहार संबंधी गैर-संचारी रोग शामिल हैं।”
- जिन व्यक्तियों का बॉडी मास इंडेक्स या बीएमआई 25 या उससे अधिक होता है उन्हें अधिक वज़न वाला माना जाता है, जबकि जिनका बीएमआई 18.5 से कम होता है उन्हें कम वज़न वाला माना जाता है। पुरुषों की तुलना में महिलाएँ दोनों प्रकार के कुपोषण से अधिक प्रभावित होती हैं।
भारत में कुपोषण का दोहरा बोझ:
- ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट में पाया गया कि भारत में विश्व के सबसे अधिक अविकसित (46.6 मिलियन) और कमज़ोर बच्चे (25.5 मिलियन) हैं।
- यहाँ 5 वर्ष से कम उम्र के लगभग 2% बच्चे अधिक वज़न वाले हैं।
- 15-49 आयु वर्ग की 23% महिलाएँ और 20% पुरुष कम वज़न वाले हैं, लगभग इतने ही प्रतिशत अधिक वज़न वाले या मोटापे (21% महिलाएँ और 19% पुरुष) से ग्रस्त हैं।
- पिछले दशक में यह अनुपात दोगुना हो गया है।
- जैसा कि वर्ष 2015-16 में आयोजित राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (एनएफएचएस-4) में दर्शाया गया है, भले ही देश के गरीब क्षेत्रों में अल्प-पोषण असाधारण रूप से उच्च बना हुआ है लेकिन कुछ अमीर क्षेत्रों में मोटापा स्थानिक स्तर तक पहुँच गया है।
- ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) ने मौजूदा कुपोषण की स्थिति को देखते हुए वर्ष 2022 में भारत को 121 देशों में से 107वें स्थान पर रखा। वहीं, देश के कई हिस्सों में अतिपोषण एक मूक महामारी के रूप में उभर रहा है।
भारत पर कुपोषण के दोहरे बोझ के पीछे कारण
- व्यवहार: जीवनशैली और आदतें, मनोवैज्ञानिक कारक।
- जैविक वंशानुक्रम: प्रारंभिक बचपन में एपिजेनेटिक्स का होना।
- पर्यावरण: खाद्य आपूर्ति और प्रणालियाँ, खाद्य परिवेश का आकार एवं लागत, सांस्कृतिक तथा सामाजिक पहलू, शहरी और निर्मित पर्यावरण, व्यापार एवं व्यापार नीति।
- सामाजिक और जनसांख्यिकीय: सामाजिक आर्थिक दोष एवं गरीबी, खाद्य असुरक्षा।
भारत में कुपोषण के दोहरे बोझ से निपटने के लिये आवश्यक कदम
- जैसा कि यूनिसेफ द्वारा अनुशंसित है, अल्पपोषण को रोकने के लिये निम्नलिखित पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है:
- बच्चे के जीवन के पहले दो वर्ष।
- बालिकाओं के लिये किशोरावस्था के वर्ष।
- माताओं के लिये गर्भावस्था एवं स्तनपान।
- यह वह अवधि है जब प्रमाणित पोषण हस्तक्षेप बच्चों को जीवित रहने और उनके इष्टतम विकास तथा वृद्धि हेतु सबसे अच्छा मौका प्रदान करता है।
- अधिक वज़न/मोटापे से निपटने के लिये उच्च वसा, उच्च चीनी और उच्च नमक वाले उत्पादों पर कर लगाना आवश्यक है। मैक्सिको और यूनाइटेड किंगडम जैसे देशों, जो इस तरह के कर लगाते थे, में हृदय रोगों और अधिक वज़न के मामलों में कमी देखी गई है।
- किशोरियों के लिये पोषण योजनाओं को सशक्त और विस्तारित करना: भारत की 44% से अधिक किशोरियाँ कम वज़न वाली हैं, यानी उनका बॉडी मास इंडेक्स 18.5 से कम है। अधिकांश राज्यों में एनीमिया से पीड़ित किशोरियों का अनुपात चिंताजनक रूप से बहुत अधिक है, जो 76% से 92.9% के बीच है।
- सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों में भारी निवेश करना: प्रारंभिक शिक्षा का एक बड़ा विस्तार, स्वास्थ्य देखभाल और स्वच्छ जल से लेकर सामाजिक सुरक्षा तथा बुनियादी ढाँचे तक आवश्यक सेवाओं एवं सुविधाओं की एक विस्तृत शृंखला का विस्तार करना।
- संवर्द्धित खाद्य पदार्थों और बाजरा जैसे उच्च पोषण वाले खाद्य पदार्थों को शामिल करने के लिये सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में विविधता लाना। इसके अलावा बेहतर खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये मनरेगा योजना को मज़बूत करना।
- आयुष्मान भारत-राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना के सफल कार्यान्वयन के साथ गरीब समुदायों के लिये सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच में सुधार करना।
- बाल कुपोषण (पोषण अभियान), एनीमिया (एनीमिया मुक्त भारत) और स्वस्थ भोजन (ईट राइट इंडिया), एकीकृत बाल विकास सेवाएँ (आईसीडीएस), राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, जननी सुरक्षा योजना, मातृत्व सहयोग योजना, मध्याह्न भोजन योजना और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन आदि कार्यक्रमों एवं नीतियों की सफलता सुनिश्चित करना।
- नीति आयोग की राष्ट्रीय पोषण रणनीति और राष्ट्रीय पोषण मिशन का कड़ाई से कार्यान्वयन सुनिश्चित करना।
- कई मंत्रालयों में सार्वजनिक नीति के क्षेत्रों में सामंजस्य की आवश्यकता है- विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों की कृषि और खपत को प्रोत्साहित करना; पीडीएस, आईसीडीएस जैसे कार्यक्रमों में बेहतर पोषण (सिर्फ अधिक कैलोरी नहीं) की प्राप्ति हेतु सरकारी वित्तपोषण का उपयोग करना; किशोरों, गर्भवती महिलाओं एवं छोटे बच्चों की सर्वोत्तम स्वास्थ्य देखभाल सुनिश्चित करना; अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों व पेय पदार्थों के विपणन को प्रतिबंधित करना तथा पोषण साक्षरता में सुधार के प्रयासों का विस्तार करना।
- भारत के राज्यों, ज़िलों और समुदायों में कुपोषण संबंधी चुनौतियों के निदान के लिये एक तीव्र साक्ष्य-आधारित तथा डेटा-संचालित दृष्टिकोण।
कुपोषण का यह दोहरा बोझ कुपोषण के सभी रूपों पर एकीकृत कार्रवाई के लिये एक अनूठा और महत्त्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है। कुपोषण के दोहरे बोझ को संबोधित करना संयुक्त राष्ट्र पोषण कार्रवाई दशक (2016-25) के भीतर सतत् विकास लक्ष्यों (विशेष रूप से लक्ष्य 2 और लक्ष्य 3.4) तथा पोषण पर रोम घोषणा की प्रतिबद्धताओं को प्राप्त करने के लिये महत्त्वपूर्ण होगा।