25 Jul 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- परिचय: ई-गवर्नेंस का संक्षिप्त परिचय देते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
- मुख्य भाग: इसके लाभों एवं चुनौतियों पर चर्चा करते हुए इन चुनौतियों के समाधान हेतु उपाय बताइये।
- निष्कर्ष: मुख्य बिंदुओं को संक्षेप में बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।
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ई-गवर्नेंस का आशय सार्वजनिक सेवाएँ प्रदान करने के साथ लोक प्रशासन में पारदर्शिता, दक्षता और नागरिक भागीदारी बढ़ाने हेतु सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) के उपयोग से है। भारत में 1970 के दशक से केंद्र, राज्य तथा स्थानीय स्तर पर विभिन्न पहलों के साथ ई-गवर्नेंस को बढ़ावा दिया जा रहा है। भारत में कुछ प्रमुख ई-गवर्नेंस परियोजनाएँ हैं जैसे: राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (NeGP), डिजिटल इंडिया, आधार, ऑनलाइन टैक्स फाइलिंग और भुगतान तथा डिजी लॉकर आदि।
ई-गवर्नेंस से लोक प्रशासन एवं नागरिकों को विभिन्न लाभ प्राप्त होते हैं जैसे:
- सार्वजनिक सेवाओं की गुणवत्ता, पहुँच और जवाबदेही में सुधार।
- सेवा वितरण में शामिल लागत, समय और भ्रष्टाचार में कमी।
- शासन में पारदर्शिता, जवाबदेहिता के साथ हितधारकों की भागीदारी को बढ़ावा।
- नागरिकों का सशक्तीकरण और जागरूकता को बढ़ावा।
- नवाचार, दक्षता एवं उत्पादकता बढ़ाने हेतु ICT की क्षमता का लाभ।
हालाँकि भारत में ई-गवर्नेंस के समक्ष कई चुनौतियाँ और सीमाएँ हैं जैसे:
- देश में डिजिटल बुनियादी ढाँचे का विकास समान रूप से नहीं हुआ है (खासकर ग्रामीण इलाकों में जहाँ इंटरनेट कनेक्टिविटी, बिजली आपूर्ति, हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर सुविधाएँ अपर्याप्त हैं)।
- डिजिटल बुनियादी ढाँचे के रख-रखाव में काफी उच्च लागत आती है, जो सभी सरकारी विभागों और एजेंसियों के लिये वहनीय नहीं हो सकती है।
- लोगों द्वारा प्रतिरोध (विशेष रूप से ऐसे लोग जो प्रौद्योगिकी से अधिक परिचित नहीं हैं, जो डिजिटल प्रौद्योगिकी का उपयोग करने में सहज या परिचित नहीं हो सकते हैं)।
- ई-गवर्नेंस प्रणाली की सुरक्षा, अंतर-संचालनीयता, मानकीकरण, डेटा गुणवत्ता, विश्वसनीयता और स्केलेबिलिटी जैसे तकनीकी मुद्दे, जिनसे इसका प्रदर्शन और विश्वसनीयता प्रभावित होती है।
- ई-गवर्नेंस सेवाओं तक पहुँच, समावेशिता, भागीदारी, जागरूकता, साक्षरता, भाषा संबंधी बाधाएँ, डिजिटल विभाजन आदि सामाजिक मुद्दे, जिससे इसको अपनाने और इसके उपयोग की प्रवृत्ति प्रभावित हो सकती है।
- गोपनीयता, डेटा सुरक्षा, साइबर अपराध, बौद्धिक संपदा अधिकार, डिजिटल हस्ताक्षर और ई-गवर्नेंस लेन-देन के प्रमाणीकरण आदि संबंधी कानूनी मुद्दे, जिससे इनकी वैधता प्रभावित हो सकती है।
- नेतृत्व, प्रतिबद्धता, समन्वय, सहयोग, जवाबदेही और ई-गवर्नेंस पहल की पारदर्शिता आदि संबंधी राजनीतिक मुद्दे, जिससे इनका प्रशासन और उत्पादकता प्रभावित हो सकती है।
इन चुनौतियों और सीमाओं का समाधान करने हेतु कुछ संभावित उपाय:
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से देश भर में ICT बुनियादी ढाँचे और कनेक्टिविटी को मज़बूत करना।
- किफायती उपकरण और सेवाएँ प्रदान करने के साथ डिजिटल साक्षरता एवं समावेशन कार्यक्रमों को बढ़ावा देकर डिजिटल अंतराल को कम करना।
- ई-गवर्नेंस प्रणालियों के प्रभावी कार्यान्वयन और प्रबंधन के लिये सरकारी अधिकारियों एवं कर्मचारियों की क्षमता का विकास करना।
- विभिन्न अभियानों, फीडबैक तंत्रों, शिकायत निवारण प्रणालियों के माध्यम से ई-गवर्नेंस सेवाओं के लाभों और उपयोग के बारे में नागरिकों के बीच जागरूकता एवं विश्वास को बढ़ावा देना।
- सर्वोत्तम प्रथाओं, मानकों, ऑडिट एवं एन्क्रिप्शन तकनीकों को अपनाकर ई-गवर्नेंस प्रणालियों की सुरक्षा बढ़ाना।
- डेटा सुरक्षा, गोपनीयता, इलेक्ट्रॉनिक लेन-देन जैसी ई-गवर्नेंस गतिविधियों को विनियमित करने के लिये कानूनी ढाँचे को अधिनियमित या अद्यतन करना।
- सामान्य प्लेटफॉर्मों, मानकों, अंतर-संचालनीयता के माध्यम से ई-गवर्नेंस परियोजनाओं को लागू करने के लिये सरकार के विभिन्न स्तरों और विभागों के बीच समन्वय एवं एकीकरण में सुधार करना।
भारत में लोक प्रशासन को बेहतर बनाने हेतु ई-गवर्नेंस महत्त्वपूर्ण है। इससे नागरिकों को बेहतर सेवाएँ एवं सूचनाएँ प्रदान करने के साथ शासन में इनकी भागीदारी को बढ़ाकर इनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है। हालाँकि इससे संबंधित विभिन्न चुनौतियों और सीमाओं (जिनसे प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न होती है) का भी समाधान करने की आवश्यकता है। इसलिये भारत में ई-गवर्नेंस की पूरी क्षमता का दोहन करने के लिये एक समग्र, सहयोगात्मक और नागरिक-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।