25 Jul 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- परिचय: पंचायती राज व्यवस्था और उसके उद्देश्यों का संक्षिप्त परिचय देते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- मुख्य भाग: इनके समक्ष आने वाली विभिन्न चुनौतियों पर चर्चा करते हुए इसमें सुधार हेतु उपाय बताइये
- निष्कर्ष: मुख्य बिंदुओं को बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।
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73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय स्वशासन की एक त्रि-स्तरीय प्रणाली के रूप में पंचायती राज प्रणाली को शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य सत्ता के विकेंद्रीकरण एवं लोकतांत्रिक भागीदारी को बढ़ाने के साथ हाशिये पर रहने वाले समूहों का सशक्तीकरण और ग्रामीण विकास सुनिश्चित करना है। हालाँकि इसकी कार्यप्रणाली के समक्ष विभिन्न चुनौतियाँ विद्यमान हैं जिनसे निपटने की आवश्यकता है।
- पंचायती राज व्यवस्था के समक्ष आने वाली कुछ प्रमुख चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं जैसे:
- वित्त की कमी: पंचायतों के पास राजस्व के सीमित स्रोत हैं और वे राज्य तथा केंद्र सरकारों के अनुदान पर निर्भर होती हैं जो अक्सर अपर्याप्त होता है। इससे विकास परियोजनाओं की योजना बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने तथा ग्रामीण लोगों को बुनियादी सेवाएँ प्रदान करने की उनकी क्षमता प्रभावित होती है।
- पर्याप्त शक्तियों एवं कार्यों का हस्तांतरण न किया जाना: राज्य सरकारों द्वारा पंचायतों को पर्याप्त शक्तियों एवं कार्यों का हस्तांतरण नहीं किया गया है। इससे उनकी स्वायत्तता तथा जवाबदेही कम होने के साथ शासन में भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है।
- क्षमता की कमी: पंचायत सदस्यों और अधिकारियों के पास अपनी भूमिका और ज़िम्मेदारियों को प्रभावी ढंग से निभाने के लिये कौशल, प्रशिक्षण एवं संसाधनों का अभाव रहता है। इन्हें भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, राजनीतिक हस्तक्षेप तथा नौकरशाही बाधाओं जैसे मुद्दों का भी सामना करना पड़ता है जिससे इनकी दक्षता और विश्वसनीयता प्रभावित होती है।
- भागीदारी का अभाव: पंचायतों के ग्रामीण लोगों (विशेषकर महिलाओं, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य हाशिये पर रहने वाले समूहों) में जागरूकता का अभाव होता है। उन्हें कुलीन वर्ग का वर्चस्व, सामाजिक पूर्वाग्रह और हिंसा जैसी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है जो उनकी समावेशिता में बाधक हैं।
पंचायती राज व्यवस्था को मज़बूत करने हेतु कुछ उपाय:
- वित्तीय स्वायत्तता को मज़बूत करना: पंचायतों को कर, शुल्क, उपकर आदि जैसे राजस्व के अधिक स्रोत दिये जाने चाहिये। उन्हें उनके प्रदर्शन और ज़रूरतों के आधार पर राज्य एवं केंद्र सरकारों से समय पर पर्याप्त अनुदान भी मिलना चाहिये।
- कार्यात्मक स्वायत्तता को मज़बूत करना: राज्य सरकारों द्वारा संविधान की 11वीं अनुसूची के अनुसार, पंचायतों को अधिक शक्तियाँ और कार्य सौंपे जाने चाहिये। उन्हें ग्रामीण विकास से संबंधित विभिन्न विभागों के कर्मचारियों तथा संसाधनों पर भी नियंत्रण दिया जाना चाहिये।
- क्षमता निर्माण को मज़बूत करना: पंचायत के सदस्यों और अधिकारियों के कौशल, ज्ञान एवं दक्षता को बढ़ाने के लिये उन्हें नियमित प्रशिक्षण, मार्गदर्शन और सहायता प्रदान की जानी चाहिये। उन्हें बेहतर प्रशासन के लिये सर्वोत्तम प्रथाओं, नवाचारों तथा प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिये भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- सहभागी लोकतंत्र को मज़बूत करना: पंचायतों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि ग्रामीण समाज के सभी वर्गों के प्रतिनिधित्व एवं परामर्श को निर्णय लेने तथा कार्यान्वयन प्रक्रियाओं में शामिल किया जाना चाहिये। उन्हें ग्रामीण लोगों (विशेषकर महिलाओं, एससी, एसटी और अन्य हाशिये पर रहने वाले समूहों) के बीच जागरूकता, शिक्षा, सशक्तीकरण एवं सुरक्षा को भी बढ़ावा देना चाहिये।
भारत में स्थानीय स्वशासन और ग्रामीण विकास के लिये पंचायती राज प्रणाली महत्त्वपूर्ण है लेकिन इसमें कई चुनौतियाँ हैं जिन्हें दूर करने की आवश्यकता है। अंतर-सरकारी समन्वय के साथ जवाबदेही तंत्र एवं निगरानी और मूल्यांकन प्रणाली आदि को मज़बूत करके पंचायती राज प्रणाली ग्रामीण भारत में समावेशी एवं सतत् विकास प्राप्त करने में भूमिका निभा सकती है।