25 Jul 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- परिचय: आपराधिक न्याय प्रणाली और उसके घटकों का संक्षेप में परिचय दीजिये।
- निकाय: उन विभिन्न चुनौतियों का उल्लेख कीजिये जिनसे इसकी दक्षता और निष्पक्षता में बाधा उत्पन्न होती है तथा इसमें सुधार हेतु उपाय (मलिमथ समिति की सिफारिशों का भी उल्लेख किया जा सकता है) बताइये।
- निष्कर्ष: मुख्य बिंदुओं को बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।
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आपराधिक न्याय प्रणाली (CJS) में ऐसी एजेंसियों और प्रक्रियाओं को शामिल किया जाता है जो आपराधिक कानून को लागू करने, सार्वजनिक सुरक्षा सुनिश्चित करने, अपराध को रोकने एवं नियंत्रित करने तथा पीड़ितों एवं आरोपियों को न्याय दिलाने के लिये उत्तरदायी हैं। CJS में चार मुख्य घटक शामिल हैं: पुलिस, अभियोजन, न्यायपालिका और सुधारात्मक सेवाएँ।
भारत में CJS को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जिससे इसकी दक्षता और निष्पक्षता में बाधा उत्पन्न होती है, इसमें तत्काल सुधार किये जाने की आवश्यकता है। इनमें से कुछ चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं:
- पारदर्शिता का अभाव: CJS कम जवाबदेही और निरीक्षण के साथ गुप्त तथा अपारदर्शी तरीके से कार्य करती है। पुलिस, अभियोजकों, न्यायाधीशों एवं जेल अधिकारियों के प्रदर्शन और आचरण की निगरानी के लिये कोई स्पष्ट तंत्र नहीं है। साथ ही अपराध, दोषसिद्धि, दोषमुक्ति, लंबित मामले तथा जेल की स्थिति पर विश्वसनीय डेटा का अभाव रहता है।
- अधिक मामलों का लंबित रहना: CJS पर मामलों का अधिक बोझ है जिसके कारण इनके निपटान में अधिक देरी होती है। राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के अनुसार, विभिन्न न्यायालयों में 3.3 करोड़ से अधिक आपराधिक मामले लंबित हैं और आपराधिक मामलों के निपटान में लगने वाला औसत समय लगभग छह वर्ष है।
- जटिल प्रक्रियाएँ: CJS में पुरानी और जटिल प्रक्रियाओं को अपनाया जाता है जिनका अक्सर शामिल पक्षों द्वारा दुरुपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिये पुलिस अक्सर मनमाने ढंग से गिरफ्तारियाँ करने, अवैध हिरासत, हिरासत में यातना देने और झूठे आरोप लगाने में संलिप्त रहती है। अभियोजक अक्सर पर्याप्त सबूत पेश करने या गवाहों से ठीक से पूछताछ करने में विफल रहते हैं। सुधारात्मक सेवाओं में अक्सर कैदियों के कल्याण एवं पुनर्वास की उपेक्षा की जाती है।
- समन्वय और प्रणालीगत दृष्टिकोण का अभाव: CJS में विभिन्न एजेंसियों के बीच समन्वय और संचार का अभाव के कारण अपराध की रोकथाम, अपराध का पता लगाने, अभियोजन, न्याय निर्णयन तथा सुधार संबंधी मुद्दों को हल करने के लिये समान दृष्टिकोण या रणनीति का अभाव देखने को मिलता है। CJS से संबंधित मामलों पर केंद्र और राज्य सरकारों, नागरिक समाज संगठनों, मीडिया एवं शिक्षा जगत के बीच सहयोग तथा परामर्श सुनिश्चित करने के लिये कोई तंत्र नहीं है।
- भ्रष्टाचार: CJS सभी स्तरों पर बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार से ग्रस्त है जिससे इसकी अखंडता और विश्वसनीयता प्रभावित होती है। CJS में विभिन्न रूपों जैसे- रिश्वतखोरी, भाई-भतीजावाद, पक्षपात, जबरन वसूली, सबूतों में हेराफेरी, जाँच या परीक्षण में हस्तक्षेप, शक्ति या अधिकार का दुरुपयोग आदि के रूप में भ्रष्टाचार देखने को मिलता है। इससे न केवल न्याय वितरण की गुणवत्ता प्रभावित होती है बल्कि समाज में अपराध एवं हिंसा को और अधिक बढ़ावा मिलता है।
- लोगों के बीच जागरूकता का अभाव: CJS द्वारा नागरिकों, पीड़ितों, गवाहों या अभियुक्तों के प्रति अपने अधिकारों और कर्त्तव्यों के बारे में कम जागरूक रहने के परिणामस्वरूप अपराधों की कम रिपोर्टिंग, मुकदमों का लंबित रहना, अधिकारियों के साथ समन्वय या सतर्कता का अभाव देखने को मिलता है।
आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार हेतु सुझाव देने के लिये वर्ष 2000 में भारत सरकार द्वारा मलिमथ समिति का गठन किया गया था। इस समिति की कुछ प्रमुख सिफारिशें निम्नलिखित हैं जैसे:
- अन्य प्रणालियों से सीख लेना: आपराधिक न्याय प्रणाली में जर्मनी और फ्राँस जैसे देशों में अपनाई जाने वाली तार्किक प्रणाली की कुछ विशेषताओं को शामिल किया जाना चाहिये, जहाँ एक न्यायिक मजिस्ट्रेट जाँच की निगरानी करता है और न्यायालय के पास अभियुक्तों तथा गवाहों से पूछताछ करने की शक्ति होती है।
- चुप रहने के अधिकार को संशोधित करना: संविधान के अनुच्छेद 20 (3) द्वारा प्रदत्त चुप रहने के अधिकार को संशोधित किया जाना चाहिये ताकि सवालों के उत्तर न देने पर न्यायालय द्वारा आरोपी पर उचित कार्रवाई की जा सके।
- अभियुक्तों के अधिकारों को मज़बूत करना: आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) में अभियुक्तों के अधिकारों को सूचीबद्ध करने और उन्हें लागू करने के तरीके को सूचीबद्ध करने वाली एक अनुसूची को शामिल किया जाना चाहिये।
- पीड़ितों के लिये न्याय सुनिश्चित करना: इस समिति ने अपराध के पीड़ितों हेतु न्याय सुनिश्चित करने के लिये कई सिफारिशें कीं हैं जैसे- उन्हें पर्याप्त मुआवज़ा प्रदान करना, राज्य के खर्च पर उनकी पसंद का वकील नियुक्त करना और उन्हें सुरक्षा तथा सहायता सेवाएँ देना।
- जाँच और अभियोजन में सुधार करना: जाँच और अभियोजन को अलग करने के साथ इन्हें राजनीतिक प्रभाव से स्वतंत्र किया जाना चाहिये।
- न्यायिक दक्षता को बढ़ावा देना: इस समिति ने न्यायिक दक्षता बढ़ाने और लंबित मामलों को कम करने के लिये विभिन्न उपाय सुझाए हैं जैसे- न्यायालयों, न्यायाधीशों, अभियोजकों और पुलिस कर्मियों की संख्या एवं क्षमता में वृद्धि करना; संबंधित प्रक्रियाओं को सरल बनाना; वैकल्पिक विवाद समाधान विधियों जैसे- सौदेबाज़ी, मध्यस्थता आदि की शुरुआत करना; ई-कोर्ट, वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग आदि जैसी सूचना प्रौद्योगिकियों का उपयोग करना; विशिष्ट अपराधों या मामलों के लिये फास्ट ट्रैक न्यायालय या विशेष न्यायालय स्थापित करना आदि।
- अपराधों का पुनर्वर्गीकरण करना: अपराधों को तीन श्रेणियों में पुनर्वर्गीकृत किया जाना चाहिये: सामाजिक कल्याण संबंधी, सुधारात्मक एवं आपराधिक। सामाजिक कल्याण संबंधी अपराधों को सिविल न्यायालयों या न्यायाधिकरणों द्वारा निपटाया जाना चाहिये; सुधार संबंधी अपराधों को विशेष न्यायालयों या बोर्डों द्वारा निपटाया जाना चाहिये तथा आपराधिक अपराधों को आपराधिक न्यायालयों द्वारा निपटाया जाना चाहिये।
- विशिष्ट अपराधों से निपटना: इस समिति ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों, संगठित अपराध, आतंकवाद और आर्थिक अपराधों से निपटने के लिये विशेष सिफारिशें की हैं। जैसे- बलात्कार एवं यौन उत्पीड़न हेतु सज़ा बढ़ाना; संगठित अपराध से निपटने के लिये एक राष्ट्रीय एजेंसी का गठन करना; आर्थिक अपराधों के लिये विशेष न्यायालय स्थापित करना आदि।
CJS के समक्ष उत्पन्न चुनौतियों के कारण इसकी कार्यप्रणाली के निष्पक्ष एवं प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न होती है। इस संदर्भ में कानूनों, संस्थानों और प्रक्रियाओं में कमियों तथा कमज़ोरियों को दूर करने के लिये व्यापक सुधारों की आवश्यकता है। ये सुधार हितधारकों के अधिकारों की रक्षा करने, राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ साक्ष्य-आधारित, परामर्शात्मक एवं सर्वसम्मति से संचालित होने चाहिये। इनके सफल कार्यान्वयन हेतु प्रतिबद्धता, समन्वय और निगरानी आवश्यक है। ऐसे सुधारों के माध्यम से CJS सभी के लिये न्याय सुनिश्चित करने के अपने संवैधानिक अधिदेश को पूरा कर सकता है।