25 Jul 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- परिचय: CBI, इसकी स्थापना और अधिदेश को बताते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- मुख्य भाग: CBI के समक्ष आने वाली विभिन्न चुनौतियों पर चर्चा करते हुए इसमें सुधार हेतु उपाय बताइये।
- निष्कर्ष: मुख्य बिंदुओं को बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।
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केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) भारत की प्रमुख अन्वेषण एजेंसी है जो भ्रष्टाचार, आर्थिक अपराध और आतंकवाद संबंधी मामलों का अन्वेषण करती है। इसकी स्थापना वर्ष 1963 में दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 के माध्यम से विधि के शासन को बनाए रखने, सार्वजनिक हितों की रक्षा करने और अपराध के पीड़ितों हेतु न्याय सुनिश्चित करने के लिये की गई थी। हालाँकि एक प्रभावी और निष्पक्ष एजेंसी के रूप में अपनी भूमिका निभाने में CBI को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इनमें से कुछ चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं जैसे:
- स्वायत्तता का अभाव: CBI एक वैधानिक निकाय नहीं है लेकिन जाँच करने की शक्ति उसे दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 से प्राप्त होती है। यह कर्मचारियों और प्रशासनिक नियंत्रण हेतु कई मंत्रालयों पर निर्भर है। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत शामिल मामलों के संदर्भ में CBI, केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) और लोकपाल के पर्यवेक्षण के तहत भी कार्य करती है।
- राजनीतिक हस्तक्षेप: अपनी कार्यप्रणाली में अत्यधिक राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा CBI को "पिंजरे में बंद तोता, जो कि अपने मालिक की आवाज बोलता है",के रूप में संदर्भित कर इसकी आलोचना की गई है। CBI पर अक्सर विभिन्न मामलों में पक्षपातपूर्ण होने या सत्तारूढ़ दल या विपक्ष से प्रभावित होने का आरोप लगाया जाता है, जिससे इसकी विश्वसनीयता और स्वतंत्रता प्रभावित होती है।
- दोषसिद्धि की दर में कमी: भारत की अन्य जाँच एजेंसियों की तुलना में, CBI के तहत पंजीकृत मामलों में दोषसिद्धि की दर कम है। CVC की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2021 में CBI के तहत दर्ज मामलों में सज़ा की दर 67% थी। इस खराब प्रदर्शन के कुछ कारणों में गुणवत्तापूर्ण साक्ष्य की कमी एवं प्रक्रियात्मक देरी के साथ उचित न्यायिक जाँच तथा सही गवाहों का अभाव आदि शामिल हो सकते हैं।
- पारदर्शिता का अभाव: CBI को सूचना का अधिकार अधिनियम के कुछ प्रावधानों से छूट दी गई है, जिससे इसकी कार्यप्रणाली और जवाबदेही के बारे में जानकारी तक लोगों की पहुँच सीमित होती है। इससे इस एजेंसी की विश्वसनीयता प्रभावित हो सकती है।
- संसाधनों की कमी: बढ़ते कार्यभार और मामलों की जटिलता से निपटने के लिये CBI को कर्मचारियों, बुनियादी ढाँचे तथा प्रौद्योगिकी की कमी का सामना करना पड़ता है। वर्ष 2018 में संसदीय समिति द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, CBI में अधिकारियों और कर्मचारियों की संख्या, स्वीकृत संख्या से 15% कम थी। इसके साथ ही उभरती चुनौतियों से निपटने के लिये CBI के पास पर्याप्त फोरेंसिक प्रयोगशालाओं, साइबर अपराध इकाइयों, प्रशिक्षण सुविधाओं आदि का भी अभाव है।
CBI में सुधार हेतु कुछ उपाय:
- एक नया CBI अधिनियम लागू करना: एक नया CBI अधिनियम लाना चाहिये जिससे CBI की स्वायत्तता सुनिश्चित होने के साथ इसके पर्यवेक्षण की गुणवत्ता में सुधार हो सके। इस नए अधिनियम में CBI के अधिकार क्षेत्र, शक्तियों, कार्यों और जवाबदेही को भी स्पष्ट एवं व्यापक रूप से परिभाषित किया जाना चाहिये।
- पूर्व CJI एन वी रमन्ना ने CBI, SFIO, ED जैसी एजेंसियों को साथ लाने के लिये एक स्वतंत्र निकाय बनाने का सुझाव दिया है जिसमें इनकी शक्तियों, कार्यों और निरीक्षण को परिभाषित करने वाला एक स्पष्ट कानून होना चाहिये।
- राजनीतिक हस्तक्षेप को कम करना: इसकी कुछ जाँचों के संबंध में CBI पर राजनीतिक विचारों और दबावों से प्रभावित होने का आरोप लगाया गया है। उसकी जाँच योग्यता, साक्ष्य और कानून पर आधारित हो, यह सुनिश्चित करने के लिये CBI को किसी भी राजनीतिक हस्तक्षेप या प्रभाव से बचाया जाना चाहिये।
- वित्तीय स्वायत्तता सुनिश्चित करना: CBI को बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप या प्रभाव के अपने स्वयं के धन और संसाधनों का प्रबंधन करने के लिये वित्तीय स्वायत्तता प्रदान की जानी चाहिये। CBI को बेहतर प्रदर्शन के लिये प्रोत्साहन के रूप में भ्रष्टाचार के मामलों में की गई वसूली का एक प्रतिशत अपने पास रखने की भी अनुमति दी जानी चाहिये।
- व्यावसायिक क्षमता को बढ़ाना: CBI को अपनी व्यावसायिक क्षमता में सुधार के लिये पर्याप्त कर्मचारी, उपकरण, प्रशिक्षण और सुविधाएँ प्रदान की जानी चाहिये। उभरती चुनौतियों से निपटने के लिये CBI में फोरेंसिक विज्ञान, साइबर अपराध, बैंकिंग आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रों से अधिक विशेषज्ञों की भर्ती की जानी चाहिये।
- पारदर्शिता और जवाबदेही में सुधार करना: CBI को सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों से छूट दी गई है। पारदर्शिता एवं लोगों का विश्वास बढ़ाने के लिये CBI को आरटीआई अधिनियम के दायरे में लाया जाना चाहिये। CBI को एक स्वतंत्र निरीक्षण निकाय जैसे- संसदीय समिति या न्यायिक आयोग के प्रति भी जवाबदेह होना चाहिये जो उसकी गतिविधियों की निगरानी कर सके तथा उसके खिलाफ किसी भी शिकायत का समाधान कर सके।
- निर्बाध और प्रभावी जाँच सुनिश्चित करने के लिये इसे राज्य पुलिस, सतर्कता आयोग, प्रवर्तन निदेशालय आदि जैसी अन्य एजेंसियों के साथ समन्वय और सहयोग को बढ़ाना चाहिये। इसके लिये विभिन्न निकायों के कानूनी ढाँचे और प्रक्रियाओं में सामंजस्य स्थापित करने की भी आवश्यकता होगी।
भ्रष्टाचार से लड़ने, जवाबदेही सुनिश्चित करने और न्याय दिलाने में CBI की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। हालाँकि CBI विभिन्न कारकों के चलते विश्वसनीयता और विश्वास के संकट का सामना कर रही है जिससे इसकी स्वतंत्रता एवं अखंडता में कमी आई है। इसलिये संकट के कारणों तथा प्रभावों का समाधान कर और उपर्युक्त उपायों को लागू करके CBI की कार्यप्रणाली में सुधार के साथ इसे मज़बूत करना अत्यावश्यक है। इससे CBI के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ेगा और वह अपने अधिदेश एवं मिशन को प्रभावी ढंग से तथा कुशलता से पूरा करने में सक्षम होगी।