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24 Jul 2023
सामान्य अध्ययन पेपर 2
राजव्यवस्था
दिवस-7. चुनावी बॉण्ड की अवधारणा का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। राजनीतिक फंडिंग में अधिक जवाबदेहिता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने हेतु उपाय बताइये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- परिचय: चुनावी बॉण्ड योजना का संक्षिप्त परिचय देते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
- मुख्य भाग: इसके गुण एवं दोष बताते हुए इस संदर्भ में आगे की राह पर चर्चा कीजिये।
- निष्कर्ष: मुख्य बिंदुओं को संक्षेप में बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
राजनीतिक दलों को चंदा देने की प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेहिता सुनिश्चित करने हेतु वर्ष 2018 में सरकार द्वारा चुनावी बॉण्ड की शुरुआत की गई थी। ये ब्याज मुक्त ऐसे वित्तीय उपकरण हैं जिन्हें भारतीय स्टेट बैंक से खरीदा जा सकता है और 15 दिनों के अंदर किसी भी पंजीकृत राजनीतिक दल को दान किया जा सकता है। इसके दाता एवं प्राप्तकर्ता की पहचान लोगों के सामने प्रकट नहीं की जाती है, जिससे बॉण्ड गुमनाम रहते हैं।
चुनावों में काले धन के इस्तेमाल पर रोक लगाने तथा राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से चुनावी बॉण्ड की शुरुआत की गई थी।
मुख्य भाग:
चुनावी बॉण्ड के लाभ:
- चुनावी बॉण्ड, चंदा देने का कानूनी और विनियमित तरीका प्रदान करके राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाते हैं। इससे फंड को ट्रैक करने एवं अवैध फंडिंग पर अंकुश लगाने में मदद मिलती है।
- चुनावी बॉण्ड बहुत अधिक मात्रा वाले नकद लेन-देन और काले धन को कम करके राजनीतिक चंदा को औपचारिक बनाते हैं। ये फंडिंग का पता लगाने योग्य तथा जवाबदेह उपकरण प्रदान करते हैं, ताकि ऑडिट करने के साथ इनकी निगरानी की जा सके।
- चुनावी बॉण्ड में गुमनामी होने से दानदाताओं की गोपनीयता की रक्षा होती है। यह दानदाताओं को प्रतिशोध या उत्पीड़न से बचाता है।
- चुनावी बॉण्ड ऐसे नए दानदाताओं को आकर्षित करके दाता आधार का विस्तार करते हैं जो पहचान या जाँच के डर के कारण दान करने में झिझकते थे। इससे अधिक विविध और समावेशी फंडिंग परिदृश्य को बल मिल सकता है।
- चुनावी बॉण्ड के तहत प्राप्त धन के बारे में जानकारी देने की आवश्यकता के कारण वित्तीय जवाबदेही को बढ़ावा मिलता है। यह दलों को जवाबदेह बनाकर यह सुनिश्चित करने में सहायक है कि धन का उपयोग वैध उद्देश्यों के लिये किया जाए।
चुनावी बॉण्ड से संबंधित हानियाँ:
- लोकतंत्र का कमज़ोर होना: जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29C के अनुसार, सभी पंजीकृत दलों को 20,000 रुपए से अधिक के दान की घोषणा करना आवश्यक था। हालाँकि चुनावी बॉण्ड को इस धारा के दायरे से बाहर रखा गया है, जिससे पारदर्शिता में कमी आई है।
- पक्षपात को बढ़ावा: एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) का तर्क है कि चुनावी बॉण्ड सत्तारूढ़ दलों के पक्ष में हैं। सत्तारूढ़ दल SBI के माध्यम से दानदाताओं के बारे में जानकारी प्राप्त कर लेते हैं, जबकि विपक्ष और जनता को इसकी जानकारी नहीं होती है।
- क्रोनी पूंजीवाद और विदेशी प्रभाव को बढ़ावा: चुनावी बॉण्ड में कॉर्पोरेट चंदे पर लगी सीमा को हटाकर कॉर्पोरेट प्रभाव को बढ़ावा दिया गया है। इसके अतिरिक्त इनसे विदेशी कंपनियाँ अपनी भारतीय सहायक कंपनियों के माध्यम से राजनीतिक दलों को वित्तपोषित कर सकती हैं। इससे क्रोनी पूंजीवाद के साथ भारतीय राजनीति में विदेशी प्रभाव से संबंधित चिंताओं को बढ़ावा मिला है जिसे चुनाव आयोग ने भी व्यक्त किया है।
- निगरानी की कमी: चुनावी बॉण्ड पर निगरानी का अभाव है क्योंकि इस संदर्भ में भारत के चुनाव आयोग और भारतीय रिज़र्व बैंक जैसे संवैधानिक और वैधानिक प्राधिकरण की जाँच भी अधिक प्रभावी नहीं है। इससे निष्पक्ष एवं पारदर्शी राजनीतिक फंडिंग हेतु आवश्यक जाँच तथा संतुलन कमज़ोर होता है।
- काले धन का प्रभाव: चुनावी बॉण्ड में कॉर्पोरेट चंदे पर लगी सीमा को हटाने से राजनीतिक दलों को वित्तपोषण करने के उद्देश्य से शेल कंपनियों के निर्माण से संबंधित चिंताएँ बढ़ गई हैं। इससे राजनीतिक फंडिंग में काले धन की संभावना को बढ़ावा मिला है।
आगे की राह:
- चुनावी बॉण्ड प्रणाली में पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिये एक निश्चित सीमा और आवृत्ति से ऊपर के दान को सार्वजनिक करना आवश्यक होना चाहिये।
- यूनाइटेड किंगडम में राजनीतिक दलों को प्रति तिमाही £7,500 (ब्रिटिश पाउंड) से अधिक के सभी दान की रिपोर्ट देनी होती है। दानदाताओं के नाम और पते चुनाव आयोग द्वारा ऑनलाइन प्रकाशित किये जाते हैं।
- कॉर्पोरेट चंदा पर सीमा लगाना, दलों को लाभ और हानि विवरण में राजनीतिक चंदा को प्रदर्शित करने संबंधी प्रावधान के साथ शेल कंपनियों के माध्यम से काले धन के प्रभाव को रोकने के लिये इस प्रावधान को लागू करना चाहिये कि चंदा देने वाला निगम तीन साल से अस्तित्व में हो।
- राजनीति में धन के प्रभाव को कम करने, पारदर्शिता को बढ़ावा देने और सभी राजनीतिक दलों के लिये समान अवसर सुनिश्चित करने पर बल देना चाहिये। इसमें खर्च पर सीमाएँ आरोपित करना, राजनीतिक फंडिंग के सभी स्रोतों को सार्वजनिक करना तथा छोटे स्तर के व्यक्तिगत दान को प्रोत्साहित करना शामिल हो सकता है।
- भूटान और जर्मनी जैसे देशों की तरह राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाया जाना चाहिये।
- चुनावी बॉण्ड की जाँच और ऑडिट करने के लिये ECI को सशक्त बनाने के साथ दलों की जवाबदेही एवं निगरानी सुनिश्चित करने के लिये इसे राजनीतिक दलों के आयकर रिटर्न या ऑडिट हेतु सक्षम करना।
- चुनावी बॉण्ड के स्थान पर अन्य विकल्पों को अपनाना। जैसे कि दिनेश गोस्वामी समिति द्वारा अनुशंसित किया गया कि चुनावों के लिये राज्य द्वारा वित्तपोषण किया जाए। इसके साथ ही राष्ट्रीय चुनाव कोष बनाया जा सकता है जिसमें दानकर्ता किसी भी दल के लिये अपनी प्राथमिकता बताए बिना योगदान कर सकते हैं।
निष्कर्ष:
चुनावी बॉण्ड का उद्देश्य राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ाना है लेकिन इनके कार्यान्वयन से जवाबदेही के साथ ही संबंधित चिंताओं में वृद्धि हुई है। प्राप्त होने वाले चंदे को सार्वजनिक करने, चंदे पर सीमा लगाने के साथ मज़बूत निरीक्षण उपायों को लागू करके इस संदर्भ में संतुलन बनाना आवश्यक है ताकि राजनीतिक फंडिंग में अधिक जवाबदेहिता और पारदर्शिता को बढ़ावा मिलने के साथ भारत में एक स्वस्थ लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बढ़ावा दिया जा सके।