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दिवस-7. भारत में समान नागरिक संहिता (UCC) को लागू करने से संबंधित चुनौतियों एवं निहितार्थों का मूल्यांकन कीजिये। न्याय, समानता और पंथनिरपेक्षता जैसे सिद्धांतों को बनाए रखते हुए सामंजस्यपूर्ण तरीके से इसे लागू करने हेतु उपाय बताइये। (250 शब्द)

24 Jul 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • परिचय: समान नागरिक संहिता (UCC) और उससे जुड़े संवैधानिक प्रावधानों का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
  • मुख्य भाग: UCC को लागू करने से संबंधित चुनौतियों एवं निहितार्थों का उल्लेख करते हुए इस संदर्भ में आगे की राह बताइये।
  • निष्कर्ष: मुख्य बिंदुओं को संक्षेप में बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

समान नागरिक संहिता (UCC) का आशय ऐसे व्यक्तिगत कानून बनाने और लागू करने से है जो सभी नागरिकों (चाहे उनका धर्म, लिंग और यौन रुझान कुछ भी हो) पर समान रूप से लागू हों। इसका उद्देश्य विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेना और संपत्ति का उत्तराधिकार जैसे आयामों को कवर करना है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में लैंगिक न्याय और समानता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत के रूप में UCC का उल्लेख किया गया है। शाह बानो मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने भी UCC लागू किये जाने का संकेत दिया।

मुख्य भाग:

UCC लागू करने के निहितार्थ:

  • लैंगिक समानता: समान नागरिक संहिता से विभिन्न धर्मों के व्यक्तिगत कानूनों में महिलाओं के खिलाफ शामिल भेदभावपूर्ण प्रथाओं को समाप्त करने के साथ लैंगिक समानता को बढ़ावा मिलेगा।
  • सार्वभौमिक सिद्धांतों के अनुरूप: UCC द्वारा समानता, मानवता और आधुनिकता के सार्वभौमिक सिद्धांतों से प्रेरित युवा पीढ़ी की आकांक्षाएँ प्रतिबिंबित होंगी।
  • राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा मिलने के साथ सांप्रदायिक तनाव में कमी: UCC को लागू करने से विशिष्ट धार्मिक समुदायों के व्यक्तिगत कानूनों की भेदभावपूर्ण प्रथाओं या विशेषाधिकारों के राजनीतिकरण को रोककर सांप्रदायिक तनाव को कम किया जा सकेगा।
  • व्यक्तिगत कानूनों के विवादास्पद सुधारों से मुक्ति: UCC से विभिन्न धार्मिक समुदायों को अपने व्यक्तिगत कानूनों में सुधार करने की आवश्यकता नहीं होगी क्योंकि इसमें रूढ़िवादी समूहों के प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है।

UCC के क्रियान्वयन से संबंधित चुनौतियाँ:

  • धार्मिक समूहों का विरोध: कुछ धार्मिक समूहों को UCC से अपनी स्वतंत्रता और पहचान खोने का डर है। उनका तर्क है कि व्यक्तिगत कानून उनके धार्मिक ग्रंथों और रीति-रिवाज़ो से प्रेरित हैं तथा इन्हें एक सामान्य संहिता द्वारा प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता है।
  • स्पष्टता का अभाव: UCC को लेकर कोई स्पष्ट परिभाषा या सहमति नहीं है। इस संदर्भ में विभिन्न समूहों के अलग-अलग विचार होने से संघर्ष और भ्रम पैदा होता है।
  • राजनीतिक सर्वसम्मति का अभाव: कुछ दल अपने वोट बैंक के लिये धार्मिक स्वायत्तता और व्यक्तिगत कानूनों को संरक्षित करने का समर्थन करते हैं, जबकि अन्य अधिक समान और धर्मनिरपेक्ष कानून का समर्थन करते हैं। यह राजनीतिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने के साथ UCC के क्रियान्वयन में बाधक है।
  • कानूनी और प्रशासनिक जटिलताएँ: UCC को लागू करने के लिये कानूनी और प्रशासनिक प्रणाली में बड़े बदलाव की आवश्यकता है, जो कठिन एवं चुनौतीपूर्ण है। बहुविवाह, विरासत तथा गोद लेने जैसे मुद्दों को परामर्श के माध्यम से हल किया जाना चाहिये। इस संदर्भ में इसे संविधान के अनुरूप भी रखना एक चुनौती है।

आगे की राह:

  • UCC को राज्य द्वारा थोपे जाने के बजाय इसका क्रियान्वयन विभिन्न हितधारकों के बीच व्यापक सहमति पर आधारित होना चाहिये। UCC का मसौदा एक भागीदारीपूर्ण और समावेशी प्रक्रिया के माध्यम से तैयार किया जाना चाहिये जिसमें विभिन्न समुदायों (विशेषकर अल्पसंख्यकों) के साथ परामर्श और बातचीत शामिल हो।
  • UCC के तहत यह सुनिश्चित करते हुए व्यक्तिगत कानूनों की विविधता और बहुलता का सम्मान करना चाहिये कि इससे मानवाधिकारों एवं संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन न हो। UCC द्वारा सांस्कृतिक विविधता को मिटाने का प्रयास नहीं करना चाहिये, बल्कि इसे एक सामान्य ढाँचे के तहत समायोजित करना चाहिये।
  • UCC का क्रियान्वयन प्रतिगामी और कठोर होने के बजाय प्रगतिशील और सुधारवादी होना चाहिये।
  • UCC द्वारा पुराने मानदंडों और प्रथाओं का पालन करने के बजाय समाज की बदलती ज़रूरतों एवं आकांक्षाओं का प्रदर्शन होना चाहिये।
  • UCC को भविष्य में होने वाले परिवर्तनों के अनुकूल होना चाहिये।
  • सरकार द्वारा पर्याप्त परामर्श और हितधारकों की भागीदारी के साथ विभिन्न चरणों में विवाह, गोद लेने एवं उत्तराधिकार जैसे- अलग-अलग पहलुओं को UCC में शामिल किया जा सकता है।

निष्कर्ष:

UCC द्वारा सभी धर्मों, लिंगों और यौन रुझानों के आधार पर व्यक्तिगत कानूनों में एकरूपता एवं स्थिरता सुनिश्चित होने से यह भारत के लिये अनुकूल साबित हो सकता है। हालाँकि इसके कार्यान्वयन हेतु विभिन्न हितधारकों के बीच सावधानीपूर्वक विचार-विमर्श करने के साथ इस संदर्भ में आम सहमति बनाने की आवश्यकता है। इसलिये न्याय, समानता और पंथनिरपेक्षता के सिद्धांतों को बनाए रखते हुए UCC को सामंजस्यपूर्ण तरीके से लागू करने के लिये व्यावहारिक तथा भागीदारीपूर्ण दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है।