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दिवस-7: भारत में राजनीतिक दलों के सदस्यों द्वारा बार-बार किये जाने वाले दल-बदल को रोकने में दल-बदल विरोधी कानून किस सीमा तक प्रभावी रहा है? (150 शब्द)

24 Jul 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • परिचय: दल-बदल विरोधी कानून और इसके उद्देश्यों का संक्षिप्त विवरण दीजिये।
  • मुख्य भाग: सदस्यों की अयोग्यता के पीछे के कारणों को बताते हुए दल-बदल को रोकने में कानून की प्रभावशीलता पर चर्चा करने के साथ इस संदर्भ में आगे की राह बताइये।
  • निष्कर्ष: मुख्य बिंदुओं को बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

भारत में दल-बदल विरोधी कानून को वर्ष 1985 में 52वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा लाया गया था जिसका उद्देश्य विधानमंडल के सदस्यों द्वारा क्रमिक रूप से किये जाने वाले दल-बदल के कारण होने वाली अस्थिरता को रोकना था। इस कानून द्वारा संसद और राज्य विधानसभाओं के ऐसे सदस्यों को अयोग्य घोषित किया जाता है जो स्वेच्छा से अपने दल की सदस्यता छोड़ देते हैं या मतदान में अपने दल के व्हिप की अवज्ञा करते हैं। 

मुख्य भाग:

विधानमंडल के सदस्यों द्वारा दल-बदल किये जाने से संबंधित कारण:

  • व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षाएँ: कुछ सदस्य मंत्री पद या उच्च पद पाने के लिये किसी दूसरे दल में जा सकते हैं। ये अनुशासनात्मक कार्रवाई या अपने मूल दल से निष्कासन से बचने के लिये भी दल-बदल कर सकते हैं।
  • वैचारिक मतभेद: कुछ सदस्य अपने मूल दल की नीतियों, कार्यक्रमों या नेतृत्व से असहमति के कारण किसी अन्य दल में में जा सकते हैं। ये सरकार या विपक्ष के कार्यों के संबंध में अपना असंतोष व्यक्त करने के लिये भी दल-बदल कर सकते हैं।
  • चुनावी प्रोत्साहन: कुछ सदस्य अगला चुनाव जीतने की संभावनाओं के लिये दूसरे दल में शामिल हो सकते हैं। ये सदस्य किसी अधिक लोकप्रिय या प्रभावशाली दल में शामिल होने या अपने मूल दल के खिलाफ सत्ता विरोधी दल के प्रभावों से बचने के लिये दल-बदल कर सकते हैं। ये अपने निर्वाचन क्षेत्रों के लिये अधिक धन या संसाधन सुरक्षित करने हेतु भी दल-बदल कर सकते हैं।
  • गठबंधन कूटनीति: गठबंधन सरकार के गठन या अस्तित्व को प्रभावित करने के लिये कुछ सदस्य किसी अन्य दल में शामिल हो सकते हैं। ये किसी विशेष गठबंधन का समर्थन या विरोध करने या अपने मूल दल के लिये बेहतर सौदेबाज़ी करने के लिये दल-बदल कर सकते हैं। ये ऐसी सरकार को अस्थिर करने या गिराने के लिये भी दल-बदल कर सकते हैं जो उनके हितों के अनुकूल नहीं है।

दल-बदल विरोधी कानून की प्रभावशीलता:

इस कानून ने दल-बदल के मामलों को कम करने में कुछ हद तक भूमिका निभाई है क्योंकि इससे राजनेता दल- बदल हेतु हतोत्साहित हुए हैं। इससे राजनीतिक दलों को दल-बदल करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के साथ अनुशासन बनाए रखने हेतु भी एक विधिक तंत्र प्राप्त हुआ है। हालाँकि ऐसे उदाहरण भी सामने आए हैं जहाँ विधानमंडल के सदस्यों ने इसके प्रावधानों को दरकिनार करने के नए तरीके खोजे हैं, जैसे:

  • इस कानून के अनुसार, यदि किसी दल के कम-से-कम दो-तिहाई सदस्य किसी अन्य दल में विलय के पक्ष में हों तो उसे मान्यता दी गई है, जिससे विलय के नाम पर दल-बदल को बढ़ावा मिल सकता है।
  • इस कानून द्वारा दल-बदल के संदर्भ अयोग्यता पर निर्णय लेने की शक्ति सदन के पीठासीन अधिकारी को प्रदान की गई है, यह निर्णय पक्षपाती होने के साथ राजनीतिक विचारों से प्रभावित हो सकता है।
  • इस कानून में सदस्य की अयोग्यता संबंधी याचिका पर निर्णय लेने हेतु पीठासीन अधिकारी के लिये कोई समय-सीमा निर्दिष्ट नहीं की गई है, जिसके परिणामस्वरूप इसमें देरी या अनिश्चितता हो सकती है। 
    • हालाँकि हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि ऐसे मामलों के लिये तीन महीने की समय-सीमा तय की जानी चाहिये।

आगे की राह:

  • विशिष्ट मुद्दों (उदाहरण के लिये अविश्वास प्रस्ताव, धन विधेयक, लोक महत्त्व के मामले) पर लोक हित में निर्णय लेने हेतु विधानमंडल के सदस्यों को अपने विवेक के अनुसार मतदान करने में सक्षम बनाने के लिये इस कानून में संशोधन किया जाना चाहिये।
  • कानून में संशोधन के माध्यम से अयोग्यता संबंधी याचिका के निर्णयों को पीठासीन अधिकारियों से स्थानांतरित कर एक स्वतंत्र प्राधिकरण (उदाहरण के लिये चुनाव आयोग या न्यायिक प्राधिकरण) को स्थानांतरित करना चाहिये।
  • अयोग्यता संबंधी याचिकाओं पर निर्णय लेने के लिये एक समय-सीमा निर्धारित की जाए और अंतिम फैसला आने तक अयोग्य सदस्यों के भत्ते को रोका जाए।
  • इस कानून को निष्पक्षता के साथ लागू करने के साथ ही इसके किसी भी उल्लंघन हेतु लोगों को उचित दंड देने का प्रावधान हो।

निष्कर्ष:

भारत में दल-बदल विरोधी कानून किसी दल के सदस्यों को अपना दल परिवर्तन करने हेतु हतोत्साहित करता है। हालाँकि इस कानून में कुछ कमियाँ हैं, जैसे- सदन के अध्यक्ष को बहुत अधिक शक्ति देना। यह कानून दल-बदल के कारणों का समाधान करने में भी विफल है। इसके प्रभावी कार्यान्वयन हेतु इससे संबंधित चुनौतियों को दूर करने की आवश्यकता है।