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  • 21 Jul 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    दिवस-5: संयुक्त राज्य अमेरिका और यूएसएसआर के बीच शीत युद्ध के कारणों और परिणामों का विश्लेषण कीजिये। शीत युद्ध से उत्पन्न चुनौतियों का भारत ने किस प्रकार प्रत्युत्तर दिया? (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • परिचय: संयुक्त राज्य अमेरिका और यूएसएसआर के बीच शीत युद्ध का एक संक्षिप्त अवलोकन प्रदान कीजिये।
    • मुख्य भाग: शीत युद्ध के मुख्य कारणों और परिणामों तथा उस पर भारत की प्रतिक्रिया पर चर्चा कीजिये।
    • निष्कर्ष: मुख्य बिंदुओं को संक्षेप में प्रस्तुत करके अपना उत्तर समाप्त कीजिये।

    परिचय:

    शीत युद्ध संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ तथा उनके संबंधित सहयोगियों के बीच राजनीतिक और वैचारिक प्रतिद्वंद्विता की स्थिति थी जो वर्ष 1947 से 1991 तक जारी रही। इसकी विशेषता आपसी अविश्वास, संदेह और शत्रुता के साथ-साथ प्रचार, जासूसी, छद्म युद्ध और परमाणु हथियारों की होड़।

    मुख्य भाग:

    शीत युद्ध के कुछ मुख्य कारण इस प्रकार हैं:

    • पूंजीवाद और साम्यवाद के बीच वैचारिक टकराव, जो राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक प्रणालियों के विभिन्न दृष्टिकोणों का प्रतिनिधित्व करता है।
    • यूरोप, एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में प्रभाव और रणनीतिक लाभ के क्षेत्रों के लिये भूराजनीतिक प्रतिस्पर्धा।
    • द्वितीय विश्व युद्ध की विरासत, जिसने अमेरिका और यूएसएसआर को परस्पर विरोधी हितों और एजेंडे के साथ प्रमुख वैश्विक शक्तियों के रूप में उजागर किया।
    • परमाणु विनाश का डर, जिसने किसी भी टकराव या संकट के जोखिम और तनाव को बढ़ा दिया।

    शीत युद्ध के कुछ मुख्य परिणाम इस प्रकार हैं:

    • यूरोप का दो गुटों में विभाजन: नाटो के नेतृत्व वाला पश्चिमी गुट और वारसा संधि के नेतृत्व वाला पूर्वी गुट।
    • विभिन्न क्षेत्रों में नए संघर्षों और संकटों का उदय, जैसे कोरियाई युद्ध, वियतनाम युद्ध, क्यूबा मिसाइल संकट, स्वेज संकट, बर्लिन संकट और अफगान युद्ध।
    • एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलनों और राष्ट्रवादी संघर्षों का उदय हुआ, जिसने औपनिवेशिक शक्तियों को चुनौती दी और महाशक्तियों के साथ संरेखण या गुटनिरपेक्षता की मांग की।
    • विज्ञान, अंतरिक्ष, रक्षा, संचार और संस्कृति में नई प्रौद्योगिकियों और नवाचारों का विकास, जिसका समाज और पर्यावरण पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव पड़ा।

    शीत युद्ध पर भारत की प्रतिक्रिया:

    शीत युद्ध से उत्पन्न चुनौतियों के प्रति भारत की प्रतिक्रिया गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाना थी, जिसका अर्थ था कि भारत किसी भी सैन्य गठबंधन या गुट में शामिल नहीं होगा और विदेशी मामलों में अपनी स्वतंत्रता एवं स्वायत्तता बनाए रखेगा। भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) के माध्यम से एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के नव स्वतंत्र देशों के बीच शांति, सहयोग तथा विकास को बढ़ावा देने में भी अग्रणी भूमिका निभाई।

    भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति उसके राष्ट्रीय हितों और मूल्यों जैसे- संप्रभुता, लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, साम्राज्यवाद-विरोध, नस्लवाद-विरोध, निरस्त्रीकरण और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व पर आधारित थी। भारत ने अपने सिद्धांतों या हितों से समझौता किये बिना अमेरिका और यूएसएसआर दोनों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने की भी मांग की।

    निष्कर्ष:

    शीत युद्ध संयुक्त राज्य अमेरिका और यूएसएसआर के बीच वैचारिक और भू-राजनीतिक मतभेदों से प्रेरित था। शीत युद्ध के प्रति भारत की प्रतिक्रिया न तो नकारात्मक थी और न ही निष्क्रिय। यह एक सक्रिय और रचनात्मक प्रतिक्रिया थी जिसका उद्देश्य शीत युद्ध के तनाव को कम करना और अधिक न्यायसंगत वैश्विक व्यवस्था बनाना था।

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