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  • 01 Sep 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़

    दिवस-41. आप प्रवर्तन विभाग में उप निदेशक के रूप में कार्यरत हैं और आपको वित्त सचिव से विपक्षी दल के एक राजनेता के यहाँ छापा मारने का आदेश मिलता है। दस्तावेज़ों की समीक्षा करने पर आप राजनेता के बैंक लेन-देन में अनियमितताओं को सामने लाते हैं। विभाग के अंतर्गत आगे की जांच करने पर आपको पता चलता है कि इस राजनेता का कर अपराधी होने का इतिहास है और चल रही कानूनी कार्यवाही पहले से ही अदालत में इन मामलों को संबोधित कर रही है। सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद, आप यह निष्कर्ष निकालते हैं कि इस बिंदु पर छापेमारी करने से महत्वपूर्ण लाभ नहीं मिलेगा, क्योंकि कानूनी प्रक्रिया पहले से ही चल रही है, और इसमें विभाग के मूल्यवान संसाधनों की खपत होगी। आपने अपने मूल्यांकन के बारे में अपने वरिष्ठों को बता दिया है; हालाँकि वे उच्च पदस्थ राजनीतिक अधिकारियों को खुश करने के लिए आदेश का पालन करने के लिए आप पर दबाव डालते रहते हैं।

    इस परिदृश्य में निम्नलिखित प्रश्नों पर विचार कीजिये:

    1. चल रही कानूनी कार्यवाही के बावजूद एक विपक्षी दल के राजनेता पर छापा मारने का आदेश दिए जाने से कौन सी नैतिक दुविधाएँ उत्पन्न होती हैं?
    2. इस संदर्भ में आपके समक्ष कौन से विकल्प उपलब्ध हैं? आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।
    3. विद्यमान कारकों को देखते हुए इस आदेश के जवाब में आप अंततः क्या निर्णय लेंगे? (250 शब्द)

    उत्तर

    इस मामले में प्रवर्तन विभाग में उप निदेशक के रूप में वित्तीय अनियमितताओं और कानूनी कार्यवाही की पृष्ठभूमि के बीच एक विपक्षी राजनेता पर छापा मारने के आधिकारिक आदेश के आलोक में मुझे दुविधा का सामना करना पड़ रहा है। इससे कर्तव्य, न्याय और विवेक के बीच का नाजुक अंतरसंबंध भी प्रदर्शित होता है।

    1. चल रही कानूनी कार्यवाही के बावजूद एक विपक्षी दल के राजनेता पर छापा मारने का आदेश दिये जाने से उत्पन्न होने वाली नैतिक दुविधाओं में कई प्रमुख पहलू शामिल हैं:

    • न्याय और निष्पक्षता: जब कानूनी कार्यवाही चल रही हो तब छापेमारी करना, निष्पक्षता के साथ दोषी साबित होने तक निर्दोष होने की धारणा के बारे में चिंता उत्पन्न करता है।
      • इससे उस सिद्धांत को चुनौती मिलती है कि कानूनी मामलों को प्रशासनिक कार्यों के बजाय उचित न्यायिक चैनलों के माध्यम से हल किया जाना चाहिये।
    • निष्पक्षता और तटस्थता: कानून प्रवर्तन की तटस्थता और निष्पक्षता को बनाए रखना तब चुनौतीपूर्ण हो जाता है जब छापेमारी का आदेश राजनीति से प्रेरित प्रतीत होता है।
      • राजनीतिक दबाव के आगे झुकने का जोखिम, प्रवर्तन एजेंसी में लोगों के विश्वास को कम कर सकता है।
    • कुशल संसाधन आवंटन: चल रही कानूनी कार्यवाही के बावजूद छापेमारी करने से विभाग के मूल्यवान संसाधनों का दुरूपयोग हो सकता है, जिसका उपयोग अन्य मामलों को हल करने में बेहतर तरीके से किया जा सकता है।
      • यह सार्वजनिक धन के ज़िम्मेदार उपयोग के बारे में चिंता पैदा करता है।
    • विवेक और व्यावसायिक सत्यनिष्ठा: कानून प्रवर्तन अधिकारी के रूप में, यह सुनिश्चित करना जिम्मेदारी है कि कार्य नैतिक विचारों और उचित प्रक्रिया के पालन द्वारा निर्देशित हों।
      • ऐसी परिस्थितियों में छापेमारी करने से किसी की पेशेवर ईमानदारी और विवेक के साथ टकराव हो सकता है।
    • शक्ति के दुरुपयोग की संभावना: छापेमारी के आदेश को राजनीतिक विरोधियों पर दबाव डालने के क्रम में शक्ति का दुरुपयोग माना जा सकता है।
      • यह राजनीतिक लाभ के लिये कानून प्रवर्तन एजेंसियों के दुरुपयोग के बारे में चिंता पैदा करता है और लोकतंत्र के सिद्धांतों को कमज़ोर करता है।
    • सार्वजनिक धारणा और पारदर्शिता: चल रही कानूनी कार्यवाही के बावजूद छापेमारी जारी रखने का निर्णय यह धारणा पैदा कर सकता है कि कानून प्रवर्तन का उपयोग राजनीतिक लाभ के लिये एक उपकरण के रूप में किया जा रहा है।
      • यह प्रवर्तन विभाग के कार्यों की पारदर्शिता और विश्वसनीयता को चुनौती देता है।

    2. 

    विकल्प गुण दोष
    1. छापेमारी को जारी रखना - वरिष्ठों के आदेश का अनुपालन सुनिश्चित होता है। - चल रही कानूनी कार्यवाही को बाधित कर सकता है और संभावित रूप से यह राजनीति से प्रेरित प्रतीत हो सकता है।
    - राजनीतिक अनुरोधों के प्रति अधिकार और प्रतिक्रिया का प्रदर्शन होना। - चयनात्मक प्रवर्तन या सत्ता के दुरुपयोग के बारे में लोक धारणा को जोखिम में डाल सकता है।
    2. छापेमारी स्थगित करना - अस्थायी विलंब के साथ चल रही कानूनी कार्यवाही को सामने लाने पर बल मिलेगा। - इसे अनिर्णय या कार्य करने की अनिच्छा के रूप में देखा जा सकता है, जिससे वरिष्ठों के साथ मनमुटाव हो सकता है।
    - इससे समय से पहले हस्तक्षेप न करके उचित कानूनी प्रक्रिया और निष्पक्षता का सम्मान होता है। - इससे आदेश के संबंध में अंतर्निहित नैतिक चिंताओं का समाधान नहीं होगा।
    3. कानूनी विशेषज्ञों से परामर्श लेना - स्थिति की वैधता और नैतिकता पर विशेषज्ञ मार्गदर्शन मिलेगा। - तत्काल कार्रवाई में देरी होने से संभावित रूप से वरिष्ठों में निराशा उत्पन्न होगी।
    - इससे सुनिश्चित होता है कि निर्णय कानूनी विशेषज्ञता द्वारा प्रेरित है, जिससे इसकी विश्वसनीयता बढ़ती है।

    उदाहरण- वर्ष 2011 में, 2G स्पेक्ट्रम मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को जाँच आगे बढ़ाने से पहले कानूनी सलाह के लिये अटॉर्नी जनरल से परामर्श करने का निर्देश दिया। इसने नैतिक मानकों को बनाए रखने के साथ जाँच प्रक्रिया में कानूनी सुदृढ़ता सुनिश्चित हुई।
    - यदि कानूनी विशेषज्ञ परस्पर विरोधी सलाह देते हैं तो नैतिक दुविधा का समाधान नहीं हो सकता है।
    4. वित्त सचिव से स्पष्टता का अनुरोध करना - इससे आदेश के पीछे के तर्क को समझने के लिये खुले और पारदर्शी संचार को बढ़ावा मिलता है। - नैतिक चिंताओं को अनसुलझा छोड़कर आदेश में बदलाव नहीं किया जा सकता है।
    - स्पष्टता और औचित्य की तलाश करते हुए चिंताओं को व्यक्त करने का अवसर प्रदान होता है। - ऐसे में वरिष्ठ अधिकारी संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं दे सकते या अपने रुख पर पुनर्विचार नहीं कर सकते हैं।
    5.आंतरिक समीक्षा तंत्र लागू करना - इससे छापे की आवश्यकता का आकलन करने के लिये विभाग के भीतर एक संरचित प्रक्रिया स्थापित होगी। - आंतरिक समीक्षा में वरिष्ठों के प्रत्यक्ष आदेश को रद्द करने का अधिकार नहीं भी हो सकता है।
    - इससे जवाबदेही प्रदर्शित होने के साथ यह सुनिश्चित होता है कि निर्णयों पर पूरी तरह से विचार किया जाए।

    उदाहरण- वर्ष 2018 में केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) ने दूसरे-इन-कमांड आलोक वर्मा को अचानक हटाने के संबंध में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) निदेशक से स्पष्टीकरण मांगा। इस कदम का उद्देश्य पारदर्शिता सुनिश्चित करना तथा एजेंसी की स्वायत्तता के बारे में चिंताओं को दूर करना था
    - विभाग के अंदर आंतरिक संघर्ष या असहमति हो सकती है।
    6. नैतिक रुख अपनाने के साथ मीडिया को रिपोर्टिंग करना - इससे दृढ़तापूर्वक चिंताओं को व्यक्त करके व्यक्तिगत और व्यावसायिक नैतिकता को कायम रखा जा सकता है। - वरिष्ठों या राजनीतिक अधिकारियों की संभावित प्रतिक्रिया या प्रतिशोध का सामना करना पड़ सकता है।
    - इससे विभाग की अखंडता एवं नैतिक आचरण के प्रति उसकी प्रतिबद्धता की रक्षा होगी। - नैतिक दुविधा को अनसुलझा छोड़कर स्थिति को तुरंत हल नहीं किया जा सकता है।

    3. कार्रवाई का अंतिम क्रम: नैतिक दृष्टिकोण और पारदर्शिता

    • दृढ़ संचार: मैं इस स्थिति पर चर्चा करने तथा नैतिक आचरण एवं कानून के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करने के लिये अपनी टीम के साथ एक आंतरिक बैठक करूँगा।
    • विस्तृत रिपोर्ट: मैं चल रही कानूनी कार्यवाही और इस आकलन को रेखांकित करते हुए एक व्यापक रिपोर्ट संकलित करूँगा कि छापेमारी करने से आवश्यक लाभ नहीं मिल सकता है।
    • वरिष्ठों के साथ संचार: मैं रिपोर्ट प्रस्तुत करने एवं स्पष्ट साक्ष्य और तर्क के साथ आदेश के संबंध में अपनी नैतिक चिंताओं को व्यक्त करने के लिये अपने वरिष्ठों के साथ एक बैठक करूँगा।
    • वैकल्पिक कार्रवाइयों का प्रस्ताव रखना: मैं छापे के बजाय की जा सकने वाली वैकल्पिक कार्रवाइयों का सुझाव दूँगा, जैसे कि कानूनी कार्यवाही को चलने देने के साथ अधिक सबूत इकट्ठा करने के लिये अतिरिक्त जाँच करना।
    • उपर्युक्त मामले को उच्च स्तर पर ले जाना: यदि मेरी चिंताओं को पर्याप्त रूप से नहीं समझा जाता है तो मैं उचित माध्यमों का उपयोग करके इस मामले को विभाग के उच्च अधिकारियों तक ले जा सकता हूँ।
    • सत्यनिष्ठा की सुरक्षा: इस पूरी प्रक्रिया के दौरान मैं प्रवर्तन विभाग की सत्यनिष्ठा और निष्पक्षता की रक्षा के साथ नैतिक प्रथाओं के प्रति इसकी प्रतिबद्धता को प्राथमिकता दूँगा।
    • संबंधित दस्तावेज़ और रिकॉर्ड बनाए रखना: अपनी निर्णय लेने की प्रक्रिया में पारदर्शिता एवं जवाबदेहिता सुनिश्चित करने के लिये संचार, मूल्यांकन और प्रस्तावित कार्यों का एक विस्तृत रिकॉर्ड बनाए रखूँगा।
    • नैतिक सिद्धांतों पर टिके रहना: दबाव के बावजूद अपने नैतिक सिद्धांतों एवं नैतिक मूल्यों को बनाए रखने के साथ पेशेवर आचरण के प्रति ईमानदारी और प्रतिबद्धता का प्रदर्शन करूँगा।
    • चिंतन करना और सीखना: अनुभव के साथ निर्णय लेने की प्रक्रिया पर इस बात पर विचार करूँगा कि यह व्यक्तिगत मूल्यों और विभाग के मूल्यों के साथ किस प्रकार मेल खाता है।

    जैसा कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने ठीक ही कहा था "मैं जीतने के लिये बाध्य नहीं हूँ, लेकिन मैं सच्चा होने के लिये बाध्य हूँ। मैं सफल होने के लिये बाध्य नहीं हूँ, लेकिन मेरे पास जो ज्ञान है, उसके अनुरूप जीने के लिये मैं बाध्य हूँ।" बाहरी दबावों का विरोध करके और ईमानदारी तथा जवाबदेहिता के मूल्यों का पालन करके, उप निदेशक के रूप में मैं जटिल राजनीतिक गतिशीलता का सामना करने पर भी नैतिक आचरण के प्रति समर्पण प्रदर्शित कर सकता हूँ।

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