01 Sep 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- ऐसे मनमाने संशोधनों के बारे में बताइये जिनसे मौलिक अधिकार कमज़ोर होते हैं।
- मनमाने संशोधनों से सुरक्षा हेतु भारतीय संविधान के तहत शामिल प्रणालियों को बताइये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
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हाल के कुछ संविधान संशोधनों से भारत के संवैधानिक आधार के साथ उसके समन्वय पर तीखी बहस को जन्म मिला है। विशेष रूप से नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 ने संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के अनुरूप होने पर सवाल उठाए हैं। अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण से संवैधानिक ढाँचे के तहत क्षेत्रीय स्वायत्तता के संरक्षण पर चर्चा को जन्म मिला।
इसी तरह 103वें संशोधन अधिनियम, 2019 ने स्थापित जाति-आधारित आरक्षण पर आर्थिक आरक्षण के प्रभाव के बारे में बहस को जन्म दिया। इसके बाद निरस्त किये गए कृषि कानूनों ने किसानों के कल्याण और कृषि प्रथाओं के बारे में चिंताओं के कारण संवैधानिक सिद्धांतों के साथ उनकी सुसंगतता पर बहस को बढ़ावा दिया।
भारतीय संविधान में मनमाने संशोधनों को रोकने हेतु डिज़ाइन किये गए तंत्र:
- कठोर संशोधन प्रक्रिया (अनुच्छेद 368): संशोधन की प्रक्रिया जानबूझकर जटिल रखी गई है, जिसके लिये संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत या विशेष बहुमत और आधे राज्यों के अनुसमर्थन की आवश्यकता होती है।
- उदाहरण: 24वें संशोधन अधिनियम,1971 ने मौलिक अधिकारों से संबंधित प्रावधानों में संशोधन की आवश्यकता को बढ़ा दिया, जिससे इन अधिकारों के लिये अधिक स्थिरता सुनिश्चित हुई।
- मूल संरचना सिद्धांत: सर्वोच्च न्यायालय ने यह अवधारणा स्थापित की कि संविधान की कुछ आवश्यक विशेषताएँँ जैसे लोकतंत्र और समानता में संशोधन नहीं किया जा सकता है।
- उदाहरण: केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने मूल संवैधानिक सिद्धांतों को कमज़ोर करने वाले संशोधनों को रोकते हुए, बुनियादी संरचना सिद्धांत को बरकरार रखा।
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा न्यायिक समीक्षा: न्यायपालिका के पास उन संशोधनों की समीक्षा करने और उन्हें रद्द करने का अधिकार है जो मौलिक अधिकारों या संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करते हैं।
- उदाहरण: मिनर्वा मिल्स लिमिटेड बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने 42वें संशोधन अधिनियम के कुछ हिस्सों को अमान्य कर दिया, जिसमें न्यायिक समीक्षा के दायरे को प्रतिबंधित करने की मांग की गई थी।
- संघीय संरचना और राज्य की सहमति: संघीय संरचना या राज्यों की शक्तियों को प्रभावित करने वाले संशोधनों हेतु निर्दिष्ट संख्या में राज्य विधानसभाओं के अनुसमर्थन की आवश्यकता होती है।
- उदाहरण: 101वाँ संशोधन अधिनियम (जिसने वस्तु एवं सेवा कर (GST) लागू किया) को आधे से अधिक राज्यों के अनुसमर्थन की आवश्यकता थी।
- निर्धारित और गैर-निर्धारित मौलिक अधिकार: कुछ मौलिक अधिकारों को स्पष्ट रूप से सूचीबद्ध किया गया है जबकि कुछ नए अधिकारों को पहचानने और उनकी रक्षा करने की अनुमति न्यायालय को दी गई है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न मामलों में निजता के अधिकार और पर्यावरण संरक्षण को अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार के अभिन्न अंग के रूप में मान्यता दी है।
- संसद की प्रतिनिधिक प्रकृति: लोगों की आवाज़ के रूप में संसद के विचार-विमर्श और बहस से प्रस्तावित संशोधनों पर गहन मंथन सुनिश्चित होता है।
- उदाहरण: 44वें संशोधन अधिनियम, 1978 द्वारा संसद की व्यापक बहस के बाद कुछ संवैधानिक प्रावधानों को बहाल किया गया।
- राष्ट्रपति की सहमति: संविधान संशोधनों के लिये राष्ट्रपति की सहमति आवश्यक है, जो मनमाने परिवर्तनों के खिलाफ एक जाँच के रूप में कार्य करती है।
- उदाहरण: 42वाँ संशोधन अधिनियम,1976, किये गए व्यापक परिवर्तनों के कारण विवादास्पद था; हालाँकि संसद की मंजूरी के बाद राष्ट्रपति ने इसे सहमति दे दी।
- जनहित याचिकाएँ (PILs): जनहित याचिकाएँ नागरिकों को मौलिक अधिकारों या संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन करने वाले संशोधनों को चुनौती देने के लिये सीधे न्यायालयों से संपर्क करने की अनुमति देती हैं।
- उदाहरण: विशाखा बनाम राजस्थान राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने मौलिक अधिकारों पर ज़ोर देते हुए कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न जैसी समस्याओं को हल करने पर बल दिया।
- सार्वजनिक जागरूकता और नागरिक समाज: एक सक्रिय नागरिक समाज और सार्वजनिक जागरूकता जल्दबाज़ी या मनमाने संशोधनों पर रोक लगाने तथा जवाबदेही को प्रोत्साहित करने का कार्य कर सकती है।
- वर्ष 2011 में अन्ना हज़ारे के नेतृत्व में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन जैसे नागरिक समाज आंदोलनों ने लोकपाल विधेयक से संबंधित संवैधानिक संशोधनों पर चर्चा को प्रभावित किया।
भारतीय संविधान के प्रमुख वास्तुकार डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने इन सुरक्षा उपायों के महत्त्व पर ज़ोर दिया। उन्होंने संविधान को एक जीवंत दस्तावेज़ के रूप में देखा, जिसे अपने मूलभूत सिद्धांतों को बनाए रखते हुए समाज की बदलती ज़रूरतों के अनुरूप होना चाहिये। हालाँकि उन्होंने संशोधन प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने की आवश्यकता को भी पहचाना जो लोकतंत्र और अधिकारों के सार को कमज़ोर कर सकती है।