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  • 31 Aug 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    दिवस- 40. सार्वजनिक सेवा वितरण में भ्रष्टाचार के मुख्य कारण क्या हैं? लोक सेवक नैतिक मानकों और मूल्यों का पालन करके भ्रष्टाचार का मुकाबला करने के साथ इसे किस प्रकार रोक सकते हैं? (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भ्रष्टाचार को परिभाषित करते हुए सार्वजनिक सेवा वितरण में भ्रष्टाचार के मुद्दे को हल करने के महत्त्व का संक्षिप्त विवरण देते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
    • भ्रष्टाचार के कारणों पर चर्चा करते हुए बताइये कि नैतिक मानकों और मूल्यों का पालन करके सेवा वितरण में भ्रष्टाचार से कैसे निपटा जा सकता है।
    • मुख्य बिंदुओं को बताते हुए निष्कर्ष लिखिये।

    भ्रष्टाचार का आशय अपनी शक्ति का उपयोग निजी लाभ के लिये करने से है। इसमें रिश्वतखोरी, धन का गबन और भाई-भतीजावाद आदि शामिल हो सकते हैं। सार्वजनिक सेवा वितरण में भ्रष्टाचार एक ऐसी व्यापक और निरंतर समस्या है जो स्वास्थ्य, शिक्षा, जल, स्वच्छता व सामाजिक सुरक्षा जैसी आवश्यक सेवाओं की गुणवत्ता एवं पहुँच को प्रभावित करती है। सेवा वितरण में भ्रष्टाचार विभिन्न रूपों में देखा जा सकता है जैसे रिश्वतखोरी, भाई-भतीजावाद, धन का गबन, धोखाधड़ी, जबरन वसूली और पक्षपात।

    सार्वजनिक सेवा वितरण में भ्रष्टाचार के कुछ मुख्य कारण:

    • पारदर्शिता और जवाबदेहिता का अभाव: सेवा वितरण की प्रक्रियाएँ स्पष्ट एवं सुसंगत न होने से भ्रष्टाचार का उच्च जोखिम बना रहता है।
      • उदाहरण के लिये यदि सार्वजनिक संसाधनों के आवंटन, अनुबंध देने या लाभार्थियों का चयन करने के मानदंड व तंत्र पारदर्शी और जवाबदेह नहीं हैं तो सार्वजनिक अधिकारियों या निजी अभिकर्ताओं द्वारा धन में हेराफेरी, विचलन या दुरुपयोग की संभावना बनी रहती है।
    • कमज़ोर शासन और संस्थागत क्षमता: जब सार्वजनिक सेवाएँ प्रदान करने के लिये ज़िम्मेदार संस्थान तथा प्रणालियाँ नागरिकों की जरूरतों व मांगों के प्रति प्रभावी, कुशल और उत्तरदायी नहीं होती हैं तो सेवा उपयोगकर्ताओं के बीच विश्वास एवं संतुष्टि का स्तर कम होता है।
      • इससे सेवा प्रदाताओं और प्राप्तकर्ताओं दोनों के लिये बेहतर सेवाएँ प्राप्त करने करने हेतु शुल्क या करों का भुगतान करने से बचने के लिये भ्रष्ट आचरण में संलग्न होने के लिये प्रोत्साहन मिलता है।
    • वेतन और प्रोत्साहन का कम होना: जब सार्वजनिक सेवाएँ प्रदान करने वाले लोक सेवकों को उनके कार्य के लिये प्रेरित नहीं किया जाता है, तो वे अपनी आय बढ़ाने या अपना पद सुरक्षित करने के साधन के रूप में भ्रष्टाचार का सहारा ले सकते हैं।
      • उदाहरण के लिये यदि शिक्षकों, डॉक्टरों या पुलिस अधिकारियों का वेतन बहुत कम है या इनका अनियमित रूप से भुगतान किया जाता है तो वे बुनियादी सेवाएँ प्रदान करने या अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिये छात्रों, रोगियों अथवा नागरिकों से रिश्वत की मांग कर सकते हैं।
    • सांस्कृतिक और सामाजिक मानदंड: जब समाज या समुदाय के मूल्य और मान्यताएँ जीवन या अस्तित्व की रणनीति के रूप में भ्रष्टाचार को नज़रअंदाज या प्रोत्साहित करती हैं, तो भ्रष्ट व्यवहार के खिलाफ नैतिक आक्रोश और प्रतिरोध का स्तर निम्न हो जाता है।
      • उदाहरण के लिये यदि संरक्षणवाद, ग्राहकवाद या उपहार देने की संस्कृति समाज में प्रचलित व स्वीकृत है तो सेवा वितरण में प्रभाव या विनिमय के वैध और अवैध रूपों के बीच अंतर करना मुश्किल हो सकता है।
    • लोक सेवक अपने आचरण और निर्णय लेने को निर्देशित करने वाले नैतिक मानकों एवं मूल्यों का पालन करके सेवाओं के वितरण में भ्रष्टाचार को रोक सकते हैं तथा उसका मुकाबला कर सकते हैं।

    इनमें से कुछ नैतिक मानक और मूल्य निम्नलिखित हैं:

    • ईमानदारी: लोक सेवकों को अपने कार्य को ईमानदारी, विश्वसनीयता और निरंतरता के साथ करना चाहिये। उन्हें व्यक्तिगत लाभ के लिये अपनी शक्ति या पद का दुरुपयोग नहीं करना चाहिये। उन्हें हितों के किसी भी टकराव या अनुचितता की उपस्थिति से बचना चाहिये, जो उनकी निष्पक्षता या वस्तुनिष्ठता से समझौता कर सकता है।
    • जवाबदेही: लोक सेवकों को अपने कार्यों और परिणामों के लिये जवाबदेह एवं ज़िम्मेदार होना चाहिये। उन्हें संबंधित अधिकारियों एवं हितधारकों को अपने प्रदर्शन और परिणामों की रिपोर्ट करनी चाहिये तथा उन्हें समझाना चाहिये। उन्हें प्रतिक्रिया और आलोचना को भी स्वीकार करना चाहिये तथा आवश्यकता पड़ने पर सुधारात्मक कदम उठाने चाहिये।
    • पारदर्शिता: लोक सेवकों को अपनी नीतियों और प्रक्रियाओं के बारे में स्पष्ट बोध होना चाहिये। उन्हें जनता के साथ सेवा वितरण में शामिल अन्य पक्षों को समय पर तथा सटीक जानकारी प्रदान करनी चाहिये। उन्हें यह भी सुनिश्चित करना चाहिये कि उनकी गतिविधियाँ, निगरानी और ऑडिट के अधीन हैं।
    • व्यावसायिकता: लोक सेवकों को अपने कार्य में योग्यता, दक्षता और प्रभावशीलता का प्रदर्शन करना चाहिये। उन्हें अपने कौशल और ज्ञान में सुधार करने तथा सेवा वितरण में सर्वोत्तम प्रथाओं एवं मानकों को लागू करने का प्रयास करना चाहिये। उन्हें सेवाओं के उपयोगकर्ताओं के अधिकारों और गरिमा का भी सम्मान करना चाहिये तथा उनके साथ शिष्टाचार एवं निष्पक्षता से व्यवहार करना चाहिये।

    सार्वजनिक सेवा वितरण में भ्रष्टाचार कई कारकों से होता है, जिसमें प्रणालीगत कमज़ोरियाँ और अनैतिक मानवीय व्यवहार शामिल हैं। नैतिक मानकों को बनाए रखने, मूल्यों का पालन करने और निवारक उपायों को लागू करके लोक सेवक भ्रष्टाचार को रोकने तथा उसका मुकाबला करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं जिससे प्रभावी एवं पारदर्शी शासन प्रणाली को प्रोत्साहन मिल सकता है।

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