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  • 31 Aug 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृति

    दिवस-40. भारतीय लघु चित्रकला परंपरा की प्रमुख विशेषताओं पर चर्चा कीजिये। यह मध्यकालीन भारतीय समाज के सामाजिक-राजनीतिक और धार्मिक पहलुओं को किस प्रकार प्रतिबिंबित करती है? (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारतीय लघु चित्रकला का संक्षिप्त विवरण देते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • लघु चित्रकला परंपरा की प्रमुख विशेषताओं पर चर्चा कीजिये। इसके साथ ही इसके सामाजिक-राजनीतिक और धार्मिक पहलुओं पर भी चर्चा कीजिये।
    • मुख्य बिंदुओं को बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।

    भारतीय लघु चित्रकला परंपरा एक उल्लेखनीय कलात्मक विरासत है जिसमें चित्रकला की विभिन्न शैलियाँ सम्मिलित हैं, जिनमें से प्रत्येक की अलग-अलग विशेषताएँ हैं। कागज़, कपड़ा, ताड़ के पत्ते, लकड़ी, हाथी दाँत और चमड़े जैसी छोटी सतहों पर बनाई गई ये पेंटिंग अपने जटिल विवरणों, ज्वलंत रंगों तथा विषयगत विविधता के लिये जानी जाती हैं। यह परंपरा मध्यकाल में फली-फूली और इसने उस दौरान भारतीय समाज के सामाजिक-राजनीतिक एवं धार्मिक पहलुओं को प्रतिबिंबित करने वाले दर्पण के रूप में कार्य किया।

    भारतीय लघु चित्रकला परंपरा की मुख्य विशेषताएँ:

    • लघु आकार और विवरण: लघु चित्रों के कारण कलाकार को एक सीमित कैनवास पर जटिल विवरणों को प्रदर्शित करने के लिये अविश्वसनीय कौशल एवं सटीकता दिखाने की आवश्यकता होती है।
    • प्राकृतिक रंग और सामग्री: प्राचीन भारतीय कलाकारों ने खनिजों, पौधों, धातुओं तथा सीपियों से प्राप्त प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया, जिससे चित्रों को एक अद्वितीय और जीवंत रंग मिला। सोने और चाँदी का उपयोग अक्सर सजावट के लिये किया जाता था।
    • सांस्कृतिक और क्षेत्रीय विविधता: भारत के विभिन्न क्षेत्रों में लघु चित्रकला की विभिन्न शैलियाँ उभरीं, जैसे बौद्ध, जैन, राजस्थानी, मुगल, दक्कन और पहाड़ी। प्रत्येक शैली की अपनी विशिष्ट उपशैलियाँ, विषय-वस्तु और तकनीकें थीं।
    • विषय-वस्तु और विषय: लघु चित्रों में धार्मिक कहानियों, मिथकों, किंवदंतियों, महाकाव्यों, ऐतिहासिक घटनाओं, दरबार के दृश्यों, चित्रों, परिदृश्यों, वनस्पतियों, जीवों तथा कामुकता सहित विभिन्न विषयों को दर्शाया गया है। यह विविधता विभिन्न शासकों और समुदायों के हितों एवं प्राथमिकताओं को प्रदर्शित करती है।
    • पांडुलिपि चित्रण: लघुचित्र अक्सर धार्मिक और साहित्यिक ग्रंथों के लिये चित्रण के रूप में कार्य करते हैं, जो वेदों, पुराणों, रामायण, महाभारत तथा अन्य धर्मग्रंथों के आख्यानों पर प्रकाश डालते हैं। कला और साहित्य के बीच ये संबंध परंपरा की पहचान थे।

    सामाजिक-राजनीतिक और धार्मिक पहलुओं का प्रतिबिंब:

    • दरबारी संरक्षण: लघुचित्र अक्सर शासकों तथा कुलीनों द्वारा संरक्षित होते थे, जो अभिजात वर्ग के संरक्षण और सौंदर्य संबंधी संवेदनाओं को दर्शाते थे। विषयों और प्रसंगों का चुनाव अक्सर संरक्षक की राजनीतिक संबद्धता तथा रुचि को व्यक्त करता है।
    • राजवंशीय संघर्ष: दरबार के दृश्यों और ऐतिहासिक घटनाओं के चित्रण के माध्यम से, लघु चित्रों ने विभिन्न राजवंशों और साम्राज्यों के बीच शक्ति की गतिशीलता, संघर्ष एवं गठबंधन के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान की।
    • सांस्कृतिक आदान-प्रदान: इस कला रूप ने भारत और अन्य क्षेत्रों के बीच सांस्कृतिक संबंधों को प्रदर्शित किया, जैसा कि फारसी, मध्य एशियाई, चीनी एवं यूरोपीय प्रभावों के समावेश में देखा गया है। ये अंतःक्रियाएँ कलात्मक रूपांकनों, तकनीकों और विषयों में स्पष्ट थीं।
    • धार्मिक समन्वय: लघु चित्रों ने मध्यकालीन भारत में विभिन्न धार्मिक मान्यताओं और प्रथाओं के सह-अस्तित्व तथा अंतःक्रियाओं को प्रदर्शित किया। उन्होंने हिंदू, बौद्ध, जैन, इस्लाम, सिख तथा अन्य धर्मों के अनुष्ठानों, त्योहारों, संतों, फकीरों और भक्तों को चित्रित किया।
    • सामाजिक पदानुक्रम: दरबारी जीवन के चित्र और दृश्य समाज में पदानुक्रम पर प्रकाश डालते हैं। ये पेंटिंग अक्सर विभिन्न सामाजिक स्तरों की जीवनशैली, पोशाक और तौर-तरीकों को प्रदर्शित करती हैं।

    भारतीय लघु चित्रकला परंपरा न केवल कलात्मक कुशलता का प्रमाण है बल्कि मध्ययुगीन भारतीय समाज की जटिलताओं को प्रतिबिंबित करने वाला दर्पण भी है। अपने जटिल विवरण, जीवंत रंगों और विविध विषयों के माध्यम से इसने उस समय के दौरान राजनीति, धर्म, संस्कृति तथा समाज के बीच अंतरसंबंध को दर्शाया। लघुचित्र, भारत के ऐतिहासिक अतीत के बहुमुखी आयामों को समझने के लिये एक अमूल्य स्रोत बने हुए हैं।

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