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दिवस-4: प्राचीन कला और मूर्तिकला भौतिकवादी और दार्शनिक विचारधाराओं की समृद्ध भावना को दर्शाती है। उपयुक्त उदाहरणों के साथ विस्तृत वर्णन कीजिये। (250 शब्द)

20 Jul 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | संस्कृति

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • इस बारे में एक संक्षिप्त परिचय दीजिये कि प्राचीन कला और मूर्तिकला में भौतिकवादी तथा दार्शनिक विचारधाराओं का मिश्रण कैसे है।
  • कला और वास्तुकला द्वारा प्रतिबिंबित भौतिकवादी तथा दार्शनिक विचारधाराओं को उपयुक्त उदाहरणों के साथ विस्तार से समझाइये।
  • यथोचित निष्कर्ष लिखिये।

प्राचीन भारतीय कला और मूर्तिकला भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की एक मनोरम झलक पेश करती है। यह कलात्मक अभिव्यक्तियाँ न केवल सौंदर्य संबंधी उत्कृष्ट कृतियों के रूप में काम करती हैं बल्कि गहन भौतिकवादी और दार्शनिक विचारधाराओं का भी प्रतीक हैं। विभिन्न कालखंडों के विभिन्न कला रूपों और मूर्तियों की जांच से उनकी रचना पर भौतिकवाद और दर्शन के महत्वपूर्ण प्रभाव का पता चलता है, जिससे समय के साथ भारतीय समाज और विचार प्रक्रियाओं के विकास का पता चलता है।

प्राचीन कला और मूर्तिकला के कुछ उदाहरण जो इन पहलुओं को दर्शाते हैं:

  • भौतिकवादी विचारधाराएँ: प्राचीन कला और मूर्तिकला अक्सर धन, शक्ति और विलासिता के चित्रण के माध्यम से भौतिकवादी विचारधाराओं को प्रतिबिंबित करती हैं। ये कलाकृतियाँ उस समय के दौरान प्रचलित आर्थिक समृद्धि और सामाजिक पदानुक्रम की अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं।
    • मौर्य काल: तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व का साँची का महान स्तूप, भौतिकवादी प्रवृत्तियों का उदाहरण है। पत्थर से बना और विस्तृत नक्काशी से सुसज्जित स्तूप की भव्यता, सम्राट अशोक के अधीन मौर्य साम्राज्य की समृद्धि को दर्शाती है।
    • चोल काल: चोल काल (11वीं शताब्दी ई.पू.) के दौरान निर्मित तंजावुर में बृहदेश्वर मंदिर, भौतिकवादी महिमा का प्रतिनिधित्व करता है। मंदिर का विशाल आकार, जटिल नक्काशी और कांस्य मूर्तियों तथा सोने के आभूषणों का व्यापक उपयोग चोल शासकों की संपत्ति और शक्ति को उजागर करता है।
    • चंदेल राजवंश (10वीं-12वीं शताब्दी ई.): खजुराहो के मंदिर, अपनी जटिल नक्काशी के लिए प्रसिद्ध हैं, जिनमें कई कामुक मूर्तियाँ भी शामिल हैं। ये मूर्तियाँ प्रेम, कामुकता, आनंद और उत्साह को दर्शाती हैं।
  • दार्शनिक विचारधाराएँ: प्राचीन कला और मूर्तिकला भी अपने समय के दौरान प्रचलित दार्शनिक विचारधाराओं को व्यक्त करने के साधन के रूप में कार्य करती थी। इन कलाकृतियों में धार्मिक विश्वासों, नैतिक मूल्यों और दार्शनिक अवधारणाओं को समाहित किया गया है।
    • गांधार कला: यह प्राचीन भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र (पहली से पाँचवी शताब्दी सीई) में विकसित हुई, जिसमें हेलेनिस्टिक और भारतीय प्रभाव का मिश्रण था। सारनाथ संग्रहालय में प्रतिष्ठित खड़े बुद्ध जैसी मूर्तियां, भौतिक संपत्ति से अलगाव और आंतरिक ज्ञान की खोज के बौद्ध दर्शन को दर्शाती हैं।
      • उदाहरण: बौद्ध कला: भारत, अफगानिस्तान और अन्य क्षेत्रों में पाए गए बौद्ध स्तूप, गुफा चित्र और मूर्तियां बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों, जैसे करुणा, ज्ञान और जीवन की क्षणभंगुर प्रकृति पर जोर देती हैं।
    • एलोरा गुफाएँ: एलोरा गुफाएँ हिंदू, बौद्ध और जैन विचारधाराओं का सामंजस्यपूर्ण मिश्रण दर्शाती हैं। कैलासा मंदिर, गुफा परिसर के भीतर एक उत्कृष्ट कृति है, जो भगवान शिव के निवास स्थान कैलाश पर्वत का प्रतिनिधित्व करता है। मंदिर की जटिल नक्काशी हिंदू पौराणिक कथाओं के दृश्यों को दर्शाती है, जो सृजन, संरक्षण और विनाश की दार्शनिक अवधारणाओं पर जोर देती है।
    • विजयनगर साम्राज्य: विजयनगर साम्राज्य की मूर्तियां और कलाकृतियाँ भौतिकवाद तथा आध्यात्मिकता के परस्पर संबंध को उजागर करती हैं। हम्पी में बिट्ठल मंदिर अपने संगीतमय स्तंभों के लिए प्रसिद्ध है, जिन्हें बजाने पर अलग-अलग संगीतमय स्वर निकलते हैं। यह वास्तुशिल्प चमत्कार कला, संगीत, आध्यात्मिकता और दर्शन के बीच दिव्य संबंध में विश्वास का प्रतीक है।

प्राचीन भारतीय कला और मूर्तिकला भौतिकवादी और दार्शनिक विचारधाराओं की एक समृद्ध टेपेस्ट्री प्रदान करती है। ये कलात्मक अभिव्यक्तियाँ भारत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विकास को दर्शाती हैं, साथ ही समकालीन समाज में भौतिकवादी आकांक्षाओं और दार्शनिक खोज की निरंतरता का भी प्रतिनिधित्व करती हैं।