दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- आर्कटिक वार्मिंग के बारे में संक्षेप में बताते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
- जेट स्ट्रेम और ध्रुवीय भंवर पर इसके प्रभाव पर चर्चा कीजिये जिससे मौसम के प्रतिरूप में विसंगतियाँ होने के साथ चरम मौसमी घटनाएँ होती हैं।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
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आर्कटिक वार्मिंग का आशय विश्व के बाकी हिस्सों की तुलना में आर्कटिक की त्वरित वार्मिंग होना है। यह जेट स्ट्रीम और ध्रुवीय भंवर के व्यवहार को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है।
IPCC आकलन 2019 के अनुसार, 19वीं सदी के अंत से आर्कटिक का औसत तापमान लगभग 2.0 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है, जबकि वैश्विक औसत तापमान में लगभग 1.0 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है।
जेट स्ट्रीम पर प्रभाव:
- कमज़ोर जेट स्ट्रीम: जैसे-जैसे आर्कटिक क्षेत्र गर्म होता है, ध्रुवीय क्षेत्र एवं निचले अक्षांशों के बीच तापमान का अंतर कम हो जाता है। यह कमज़ोर तापमान प्रवणता जेट स्ट्रीम को प्रभावित करती है, जो ऊपरी वायुमंडल में तेज़ी से बहने वाली, संकीर्ण वायु धाराएँ हैं। जेट धाराओं के कमज़ोर होने से ये अधिक घुमावदार होने के साथ धीमी गति से प्रवाहित हो सकती हैं।
- जेट स्ट्रीम प्रतिरूप: शोधकर्ताओं ने जेट स्ट्रीम के व्यवहार में बदलावों का दस्तावेज़ीजीकरण किया है, जिसमें "अवरुद्ध" प्रतिरूप के काफी उदाहरण हैं जहाँ जेट स्ट्रीम विभिन्न प्रतिरूप प्रदर्शित करती है।
- वर्ष 2012 में ग्रीष्मकाल में ग्रीनलैंड पर लगातार उच्च दाब प्रणाली से जेट स्ट्रीम का सामान्य मार्ग अवरुद्ध हो गया। इसके परिणामस्वरूप मध्य संयुक्त राज्य अमेरिका में भीषण गर्मी और सूखा पड़ा, जबकि अन्य क्षेत्रों में बदले हुए मौसम प्रतिरूप के कारण भारी वर्षा एवं बाढ़ का अनुभव हुआ।
ध्रुवीय भंवर पर प्रभाव:
- भंवर व्यवधान: ध्रुवीय भंवर (आर्कटिक क्षेत्र के चारों ओर हवाओं का परिसंचरण), वायुमंडलीय परिसंचरण एवं तापमान प्रवणता में वार्मिंग-प्रेरित परिवर्तनों से बाधित हो सकती है।
- भंवर स्थिति में बदलाव: आर्कटिक की ऊष्ण वायु से ध्रुवीय भंवर कमज़ोर हो सकती है, जिससे इसका दक्षिण की ओर विस्थापन हो सकता है। इससे ठंडी वायु सामान्य से अधिक दक्षिण की ओर जा सकती है, जिसके परिणामस्वरूप निचले अक्षांशों में शीत स्थितियाँ विकसित हो सकती हैं।
- स्ट्रैटोस्फेरिक वार्मिंग: चरम मामलों में आर्कटिक वार्मिंग, स्ट्रैटोस्फेयर को प्रभावित कर सकती है। इससे ध्रुवीय भंवर बाधित हो सकती है।
- ध्रुवीय भंवर विस्थापन (2019): वर्ष 2019 की शुरुआत में ध्रुवीय भंवर में काफी अधिक व्यवधान का अनुभव किया गया जिससे ठंडी वायु का प्रवाह संयुक्त राज्य अमेरिका एवं दक्षिण कनाडा तक हुआ। इससे रिकॉर्ड ठंड के साथ परिवहन बाधित हुआ।
मौसम के प्रतिरूप और चरम मौसमी घटनाओं के परिणाम:
- अत्यधिक तापमान की घटनाएँ: जेट स्ट्रीम और ध्रुवीय भंवर के बदले हुए व्यवहार के परिणामस्वरूप ध्रुवों से बाहर के क्षेत्रों में लंबे समय तक अत्यधिक तापमान, जैसे हीटवेव या कोल्ड स्नैप हो सकता है।
- वर्ष 2021 की शुरुआत में उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्सों में असामान्य सर्दी का अनुभव किया गया, जिसे "ध्रुवीय भंवर विभाजन" के रूप में जाना जाता है, जिससे कुछ स्थानों पर रिकॉर्ड ठंड का अनुभव किया गया।
- चरम मौसम: धीमी गति से चलने वाली जेट स्ट्रीम और इसके अवरुद्ध प्रतिरूप से मौसम की चरम सीमाओं को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे अधिक गर्मी, भारी वर्षा या सूखे की स्थिति हो सकती है।
- वर्ष 2020 में "नेचर" पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में आर्कटिक वार्मिंग और उत्तरी गोलार्ध में गंभीर शीतकालीन मौसम की घटनाओं की बढ़ती संभावना के बीच संबंध की पहचान की गई है।
- तूफानी हवाओं के मार्ग में बदलाव: जेट धाराओं में बदलाव, तूफानी हवाओं के मार्ग को प्रभावित कर सकता है, उनके मार्ग और तीव्रता को बदल सकता है, जिसका उष्णकटिबंधीय चक्रवातों या अतिरिक्त उष्णकटिबंधीय तूफानों की चपेट में आने वाले क्षेत्रों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है।
- बर्फ का तीव्रता से पिघलना: IPCC के अनुसार वर्ष 2006 से 2015 तक आर्कटिक ग्लेशियरों और बर्फ की चोटियों का द्रव्यमान प्रतिवर्ष लगभग 178 गीगाटन की औसत दर से कम हुआ है।
जैसे-जैसे आर्कटिक क्षेत्र तीव्रता से गर्म हो रहा है उसके साथ ही मौसम प्रणालियों पर जलवायु परिवर्तन के दूरगामी परिणामों की आशंका और उन्हें कम करने के लिये इन जटिल अंतःक्रियाओं को समझना महत्त्वपूर्ण है। UNDP का लक्ष्य आर्कटिक वार्मिंग के प्रभावों को कम करने, सतत विकास को बढ़ावा देने और इन परिवर्तनों से सीधे प्रभावित होने वाले समुदायों एवं पारिस्थितिक तंत्रों की भलाई सुनिश्चित करने के लिये वैश्विक प्रयासों को प्रेरित करना है।