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29 Aug 2023
सामान्य अध्ययन पेपर 3
पर्यावरण
दिवस-38. वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2023 के प्रमुख प्रावधान और मुद्दे क्या हैं? (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- विधेयक के बारे में संक्षिप्त जानकारी देकर प्रारंभ कीजिये।
- विधेयक के प्रमुख प्रावधानों और मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
हाल ही में वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2023 लोकसभा और राज्यसभा दोनों से पारित हो गया है।
- प्रस्तावित विधेयक 1980 के वन (संरक्षण) अधिनियम में संशोधन लाता है, जिससे भूमि की विशिष्ट श्रेणियों पर इसकी प्रयोज्यता का विस्तार होता है। इस विस्तार में वह भूमि शामिल है जिसे भारतीय वन अधिनियम 1927 के तहत या 1980 अधिनियम के अधिनियमन के बाद सरकारी दस्तावेज़ के माध्यम से आधिकारिक तौर पर जंगल के रूप में नामित किया गया है।
वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2023 के प्रमुख प्रावधान:
- दायरा और नाम परिवर्तन: विधेयक एक प्रस्तावना पेश करके अधिनियम के दायरे को विस्तृत करता है।
- इसके संभावित प्रभाव को दर्शाते हुए अधिनियम का शीर्षक संशोधित कर वन (संरक्षण एवं संवर्धन) अधिनियम, 1980 कर दिया गया है।
- विभिन्न भूमियों पर प्रयोज्यता: यह अधिनियम, जिसे शुरू में सिर्फ अधिसूचित वन भूमि पर लागू किया गया था, बाद में राजस्व वन भूमि और सरकारी रिकॉर्ड में वन के रूप में दर्ज भूमि तक बढ़ा दिया गया।
- संशोधनों का उद्देश्य दर्ज वन भूमि, निजी वन भूमि, वृक्षारोपण आदि पर अधिनियम के अनुप्रयोग को सुनिश्चित करना है।
- छूट: विधेयक में वनों के बाहर वनीकरण तथा वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करने के लिये कुछ छूट का प्रस्ताव है।
- सड़कों और रेलवे के किनारे स्थित बस्तियों एवं प्रतिष्ठानों के लिये कनेक्टिविटी प्रदान करने हेतु 0.10 हेक्टेयर वन भूमि का प्रस्ताव किया गया है, सुरक्षा संबंधी बुनियादी ढाँचे के लिये 10 हेक्टेयर तक भूमि का प्रस्ताव किया गया है तथा सार्वजनिक उपयोगिता परियोजनाओं के लिये वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित ज़िलों में 5 हेक्टेयर तक वन भूमि का प्रस्ताव दिया गया है।
- इन छूटों में अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं, वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control- LAC), नियंत्रण रेखा (Line of Control- LoC) आदि के 100 किमी. के भीतर राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित रणनीतिक परियोजनाएँ शामिल हैं।
- विकास के लिये प्रावधान: विधेयक निजी संस्थाओं को पट्टे पर वन भूमि के आवंटन से संबंधित मूल अधिनियम के मौजूदा प्रावधानों को सरकारी कंपनियों तक भी विस्तारित करता है।
- इससे विकास परियोजनाओं को सुविधा मिलेगी और अधिनियम के कार्यान्वयन में एकरूपता सुनिश्चित होगी।
- नवीन वानिकी गतिविधियाँ: संशोधनों में वनों के संरक्षण के लिये वानिकी गतिविधियों की शृंखला में अग्रिम पंक्ति के वन कर्मचारियों के लिये बुनियादी ढाँचे, इकोटूरिज़्म चिड़ियाघर और सफारी जैसी नई गतिविधियों को जोड़ा गया है।
- वन क्षेत्रों में सर्वेक्षण एवं जाँच को अब गैर-वानिकी गतिविधियों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- जलवायु परिवर्तन शमन एवं संरक्षण: इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ऐसे क्षेत्र वन संरक्षण प्रयासों के पहचाने गए भाग के रूप में जलवायु परिवर्तन से निपटने में भारत के प्रयासों में योगदान देना तथा वर्ष 2070 तक नेट शून्य उत्सर्जन जैसी भारत की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं में योगदान देना।
- स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना: विधेयक चिड़ियाघरों, सफारी और इकोटूरिज़्म की स्थापना जैसी गतिविधियों को प्रोत्साहित करता है, जिनका स्वामित्व सरकार के पास होगा, साथ ही यह संरक्षित क्षेत्रों के बाहर अनुमोदित योजनाओं में स्थापित किया जाएगा।
विधेयक से संबंधित चिंताएँ:
- हिंदी नाम पर आपत्ति: अधिनियम के नए नाम (जो अब हिंदी में है) पर इस आधार पर आपत्तियाँ थीं कि यह "गैर-समावेशी" था और इसमें दक्षिण भारत एवं पूर्वोत्तर दोनों में "(गैर-हिंदी भाषी) आबादी के कई व्यक्ति शामिल नहीं थे।"
- पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों पर प्रभाव: विधेयक में प्रस्तावित छूट ने विशेष रूप से अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के पास रणनीतिक परियोजनाओं से संबंधित, पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों जैसे- हिमालय, ट्रांस-हिमालयी और पूर्वोत्तर क्षेत्रों में निर्वनीकरण के बारे में चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
- स्वदेशी समुदायों पर प्रभाव: विधेयक, 2023 (FCA) भारत की सीमाओं पर रहने वाले स्वदेशी समुदायों के अधिकारों को समाप्त कर देगा। उचित "मूल्यांकन और शमन योजनाओं" के बिना, ऐसी मंज़ूरी से जैव विविधता को खतरा हो सकता है तथा विषम मौसम की घटनाओं को ट्रिगर किया जा सकता है।
- सीमित प्रयोज्यता: विधेयक कानून के दायरे को केवल अक्तूबर 1980 या उसके बाद वन के रूप में दर्ज क्षेत्रों तक सीमित रखता है। इस बहिष्करण के परिणामस्वरूप वन भूमि और जैव विविधता वाले गर्म स्थानों के महत्त्वपूर्ण हिस्से अधिनियम के दायरे से बाहर हो सकते हैं, जिससे उन्हें गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिये संभावित रूप से बेचने, परिवर्तित करने, साफ करने तथा शोषण करने की अनुमति मिल जाएगी।
- केंद्र-राज्य संतुलन: कुछ राज्य सरकारों ने तर्क दिया है कि वन संरक्षण समवर्ती सूची के अंतर्गत आता है, जिसका अर्थ है कि इस मामले में केंद्र और राज्य दोनों की भूमिका है। उनका मानना है कि प्रस्तावित संशोधनों से संतुलन केंद्र की ओर झुक सकता है और वन संरक्षण मामलों में राज्य सरकारों के अधिकारों पर असर पड़ सकता है।
वर्ष 1980 के अधिनियम का उद्देश्य वनों की कटाई से निपटना था, जिसमें गैर-वन भूमि उपयोग के लिये केंद्र सरकार की मंजूरी, संरक्षण और प्रबंधन पर केंद्रित वन गतिविधियों की अनुमति की आवश्यकता थी।। विधेयक इस सूची का विस्तार करता है तथा इसमें सिल्विकल्चर, इको-पर्यटन एवं भूकंपीय सर्वेक्षण को शामिल करता है। हालाँकि ये गतिविधियाँ आर्थिक विकास में सहायता कर सकती हैं, लेकिन आर्थिक लाभ व वन संरक्षण वारंट स्पष्टीकरण को संतुलित करने हेतु व्यक्तिगत आकलन को व्यापक छूट के साथ प्रतिस्थापित किया जा सकता है।