दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को परिभाषित करते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- स्वतंत्रता के बाद से भारत में क्षेत्रीय दलों के उद्भव के लिये ज़िम्मेदार विभिन्न कारकों पर चर्चा कीजिये।
- साथ ही स्वतंत्रता के बाद की अवधि में राष्ट्रीय राजनीति तथा शासन पर क्षेत्रीय दलों के प्रभाव पर भी चर्चा कीजिये।
- मुख्य बिंदुओं को संक्षेप में प्रस्तुत करते हुए निष्कर्ष लिखिये।
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क्षेत्रीय दल, किसी विशिष्ट राज्य या क्षेत्र के तहत कार्य करने वाले राजनीतिक दल होते हैं और मुख्य रूप से यह एक विशेष सांस्कृतिक, भाषाई, जातीय या धार्मिक समूह के हितों एवं आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। ये पार्टियाँ अक्सर विविध आबादी और अलग-अलग स्थानीय चिंताओं वाले देशों में विकसित होती हैं। उनका लक्ष्य उन मुद्दों को हल करना है जो उनके विशिष्ट क्षेत्र के लिये अद्वितीय हैं तथा यह उन लोगों के अधिकारों की सुरक्षा एवं कल्याण को बढ़ावा देने की दिशा में कार्य करते हैं जिनका वे प्रतिनिधित्व करते हैं।
स्वतंत्रता के बाद से भारत में क्षेत्रीय दलों के उद्भव के लिये विभिन्न कारकों को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है, जैसे:
- भाषाई पुनर्गठन और क्षेत्रीय पहचान: वर्ष 1956 के राज्यों के भाषाई पुनर्गठन का उद्देश्य भाषाई आधार पर राज्यों का निर्माण करना था। इसने अधिक स्वायत्तता और क्षेत्रीय पहचान की मान्यता की मांगों को जन्म दिया। DMK, TDP और शिव सेना जैसी पार्टियाँ अपने-अपने क्षेत्रों के हितों की वकालत करते हुए भाषाई एवं सांस्कृतिक पहचान के मुद्दे पर विकसित हुईं।
- सामाजिक न्याय और अधिकारिता: राष्ट्रीय पार्टियाँ अक्सर पिछड़ी जातियों, अल्पसंख्यकों, आदिवासियों और किसानों जैसे हाशिये पर रहने वाले समूहों की शिकायतों को पर्याप्त रूप से संबोधित करने में विफल रहीं। सपा, बसपा और राजद जैसी क्षेत्रीय पार्टियों ने सामाजिक न्याय, सशक्तिकरण तथा इन हाशिये पर मौजूद वर्गों के उत्थान पर ध्यान केंद्रित करके प्रमुखता हासिल की। उन्होंने इन समूहों की आकांक्षाओं एवं ज़रूरतों को पूरा करने वाली नीतियों को विकसित करने का वादा किया।
- कॉन्ग्रेस के प्रभुत्व में गिरावट: राष्ट्रीय स्तर पर कॉन्ग्रेस पार्टी के प्रभुत्व में गिरावट से क्षेत्रीय दलों के लिये अपना प्रभाव बढ़ाने का अवसर मिला। TMC, NCP, और YSRCP जैसी क्षेत्रीय पार्टियों ने इस राजनीतिक शून्यता का फायदा उठाया तथा वैकल्पिक शासन एवं नीतियों की पेशकश करके लोगों का समर्थन हासिल किया। उन्होंने स्थानीय मुद्दों को अधिक प्रभावी ढंग से संबोधित किया तथा कॉन्ग्रेस से निराश मतदाताओं के बीच लोकप्रियता हासिल की।
- गठबंधन राजनीति का उद्भव: वर्ष 1989 से गठबंधन राजनीति के उद्भव से क्षेत्रीय दलों की प्रासंगिकता बढ़ गई। कई मामलों में किसी भी एक पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने के कारण, क्षेत्रीय पार्टियों ने गठबंधन सरकारें बनाने एवं बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। JD(U), SAD और AIADMK जैसी पार्टियाँ इन गठबंधनों में प्रमुख भागीदार थीं, जिन्होंने नीतिगत रियायतें तथा मंत्री पद हासिल करने के लिये अपने समर्थन का लाभ उठाया।
स्वतंत्रता के बाद की अवधि में राष्ट्रीय राजनीति तथा शासन पर क्षेत्रीय दलों के प्रभाव को विभिन्न पहलुओं में देखा जा सकता है, जैसे:
- लोकतंत्र और संघवाद को मज़बूत करना: क्षेत्रीय दलों ने भारत में लोकतंत्र तथा संघवाद को मज़बूत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। विविध भाषाई, सांस्कृतिक और क्षेत्रीय समूहों का प्रतिनिधित्व करके उन्होंने यह सुनिश्चित किया है कि राजनीतिक प्रक्रिया में व्यापक स्तर के दृष्टिकोण शामिल हों। इसने अधिक समावेशी और प्रतिनिधि लोकतंत्र में योगदान दिया है। इसके अलावा विभिन्न मुद्दों पर लोगों को एकजुट करने के उनके प्रयासों से लोगों में राजनीतिक जागरूकता और भागीदारी को बढ़ावा मिला।
- केंद्रीकरण को चुनौती देना तथा स्वायत्तता की मांग करना: राष्ट्रीय दलों के पास ऐतिहासिक रूप से भारतीय राजनीति में महत्त्वपूर्ण शक्ति और प्रभाव था। हालाँकि क्षेत्रीय दलों ने अपने-अपने राज्यों को अधिक स्वायत्तता एवं संसाधनों के हस्तांतरण की वकालत करके इस आधिपत्य को चुनौती दी है। स्वायत्तता की यह मांग अक्सर क्षेत्र-विशिष्ट मुद्दों को संबोधित करने तथा देश के विभिन्न क्षेत्रों में संतुलित विकास को बढ़ावा देने की इच्छा में निहित है।
- एजेंडा और नीतियों को आकार देना: क्षेत्रीय दल गठबंधन के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर की सरकारों के एजेंडे और नीतियों को आकार देने में महत्त्वपूर्ण रहे हैं। उनका समर्थन गठबंधन सरकारों को बनाने और बनाए रखने में सहायक रहा है, जो भारतीय राजनीति की एक प्रमुख विशेषता रही है। राष्ट्रीय सरकारों पर दबाव डालकर क्षेत्रीय दलों ने यह सुनिश्चित किया है कि सुरक्षा, विदेशी मामले, आर्थिक सुधार एवं सामाजिक कल्याण जैसे प्रमुख नीतिगत क्षेत्रों में उनकी विशिष्ट मांगों और चिंताओं का समाधान किया जाए।
- चुनौतियाँ और समस्याएँ: जहाँ क्षेत्रीय पार्टियाँ राजनीतिक परिदृश्य में कई सकारात्मक पहलू लेकर आई हैं वहीं इनसे कुछ चुनौतियाँ भी उत्पन्न हुई हैं। गठबंधन सरकारों में विभिन्न क्षेत्रीय दलों के बीच हितों की विविधता, शासन में अस्थिरता तथा अनिश्चितता का कारण बन सकती है। कुछ क्षेत्रीय दलों पर भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, सांप्रदायिकता और यहाँ तक कि अलगाववाद के आरोप लगाए गए हैं। ये मुद्दे प्रभावी शासन में बाधा डालने के साथ राजनीतिक व्यवस्था में तनाव पैदा कर सकते हैं।
राष्ट्रीय राजनीति और शासन पर क्षेत्रीय दलों का प्रभाव एक बहुआयामी घटना है। लोकतंत्र को मज़बूत करने, स्वायत्तता की मांग करने, नीतियों को आकार देने और विविध हितों की वकालत करने में उनके योगदान ने भारतीय राजनीति की गति को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया है। इसके साथ ही गठबंधन की गतिशीलता एवं इसके नकारात्मक प्रभावों से जुड़ी चुनौतियाँ भी मौजूद हैं।